पुष्कर सिंह धामी सरकार में मंत्री बनने के बाद जनपद हरिद्वार में अपनी मजबूत पकड़ बनाने वाले स्वामी यतीश्वरानंद भाजपा नेताओं के आंखों की किरकिरी बन गए थे जिसके चलते स्वामी को हराने की पटकथा उनके मंत्री बनते ही तैयार की गई थी। जिसमें पूर्व मंत्री मदन कौशिक के खासमखास रहे भाजपा नेता नरेश शर्मा ने बाकायदा भाजपा छोड़कर आप ज्वाइन करते हुए स्वामी के खिलाफ बिगुल बजा दिया था जिसका मुख्य कारण एक मात्र यही था कि स्वामी मुख्यमंत्री धामी की सरकार में नंबर दो की हैसियत के चलते प्रदेश में लोकप्रिय होते जा रहे थे
जनपद हरिद्वार में 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान आए चुनाव परिणामों में भाजपा के कई दिग्गजों को हार का मुंह देखना पड़ा है। जिसमें पूर्व कैबिनेट मंत्री और भाजपा के दमदार नेता माने जाने वाले स्वामी यतीश्वरानंद सहित लक्सर के पूर्व विधायक संजय गुप्ता और खानपुर के पूर्व विधायक प्रणव सिंह चैम्पियन की पत्नी रानी देवयानी जैसे बड़े नाम शामिल हैं। फरवरी में जिस प्रकार चुनाव सम्पन्न होते ही लक्सर विधायक संजय गुप्ता ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक पर गंभीर आरोप लगाते हुए उनको अपनी हार का जिम्मेदार ठहराया था। चुनाव परिणाम में कमोवेश गुप्ता के आरोप सही साबित होते नजर आए। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि स्वामी यतीश्वरानंद जैसे बड़े चेहरों को हराने में भाजपा के एक शीर्ष नेता का बड़ा हाथ रहा है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार भाजपा के इस बड़े नेता ने भितराघात की शुरुआत हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीट से स्वामी यतीश्वरानंद को घेरते हुए की थी जिसमें इस बड़े नेता ने एन वक्त पर पूर्व में घोषित एक पार्टी के प्रत्याशी का टिकट बदलवाकर स्थानीय नेता को चुनाव मैदान में उतरवाने में मुख्य भूमिका निभाई जिसकी चर्चा पूरे क्षेत्र में बनी हुई है। यही नहीं स्वामी यतीश्वरानंद की हार का मुख्य कारण यह भी बताया जा रहा है कि जिस प्रकार छह महीने के कार्यकाल में यतीश्वरानंद पर क्षेत्र में बहुत बड़ी तादाद में अवैध खनन कराए जाने के आरोप लगे उससे भी कहीं न कहीं स्वामी की स्थिति क्षेत्र में कमजोर होती नजर आई।
बताया जा रहा है कि स्वामी को घेरने वाले भाजपा के बड़े नेता ने खनन के खेल में बढ़ती स्वामी की दखलअंदाजी का हवाला देकर खनन कारोबारियों को कांग्रेस की सरकार बनने और प्रत्याशी अनुपमा रावत को सुपर सीएम बनने का फायदा समझाते हुए कांग्रेस हित में काम करने को कहा गया। स्वामी के मंत्री रहते हाशिए पर पहुंच चुके कुछ भाजपा नेताओं ने बड़े नेता का वरदहस्त पाकर भाजपा का ही एक बड़ा तबका स्वामी को हराने में लग गया। यही कारण था कि भाजपा के अनुवांशिक संगठन जिसमें छात्र संगठन एबीवीपी, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी और सदस्य भी स्वामी के बढ़ते कद को हजम न कर पाने के चलते सीधे-सीधे स्वामी के विरोध में उतर आए। मतलब साफ है कि यतीश्वरानंद की सीट पर भाजपा का संगठन नहीं मात्र स्वामी अकेले कांग्रेस से जूझते नजर आए जिसका नतीजा यह निकला कि स्वामी कांग्रेस प्रत्याशी अनुपमा रावत से 4 हजार 472 वोटों से हार बैठे।
गौरतलब है कि धामी सरकार में मंत्री बनने के बाद जनपद में अपनी मजबूत पकड़ बनाने वाले स्वामी भाजपा नेताओं के आंख की ही किरकिरी बन गए थे जिसके चलते स्वामी को हराने की पटकथा उनके मंत्री बनते ही तैयार की गई थी। जिसमें पूर्व मंत्री मदन कौशिक के खासमखास रहे एक भाजपा नेता नरेश शर्मा ने बाकायदा भाजपा छोड़कर आप ज्वाइन करते हुए स्वामी के खिलाफ बिगुल बजा दिया था जिसका मुख्य कारण एक मात्र यही था कि स्वामी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार में नंबर दो की हैसियत के चलते प्रदेश में लोकप्रिय होते जा रहे थे। जिस कारण भाजपा के स्थानीय नेताओं सहित कुछ अन्य भाजपा के नेता उनकी बढ़ती लोकप्रियता और कद से परेशान हो गए थे, उन्हें लग रहा था कि राजनीति में अब उनकी हैसियत स्वामी के सामने कुछ नहीं रहेगी, क्योंकि कार्यकर्ता स्वामी यतीश्वरानंद के साथ खड़े हो गए थे। भाजपा के एक धड़े ने स्वामी यतीश्वरानंद को घेरने की तैयारी चुनाव होने के चार महीने पहले ही शुरू कर दी थी, लेकिन जिसको समझने में स्वामी नाकाम रहे। और विरोधियों के मंसूबे नहीं जान सके।
यही नहीं इस बार जातीय आधार पर भी स्वामी के विरुद्ध मजबूत चक्रव्यूह तैयार किया गया था जिसमें इस सीट पर भाजपा समर्थक माने जाने वाले ठाकुरों (चौहान) को भी सक्रिय करते हुए कह दिया गया कि यदि स्वामी यतीश्वरानंद तीसरी बार विधायक बने तो स्वामी के सामने उनका वजूद समाप्त हो जाएगा। जिसके चलते कभी भी चौहान राजपूत समाज को कभी विधायक बनने का मौका नहीं मिलेगा। इसी को देखते हुए एक बड़ा धड़ा स्वामी यतीश्वरानंद के खिलाफ मैदान में उतर गया, जबकि हालत यह थे कि स्वामी के साथ भितराघात करने वाले लोगों में शामिल कुछ नेता तो स्वामी यतीश्वरानंद के साथ जी जान से जुटे हुए थे और बाकायदा प्रचार-प्रसार में भी जाते रहे और रात को बनने वाली रणनीति में शामिल होते। परंतु ऐन वक्त पर ऐसे नेताओं ने स्वामी को अकेला छोड़ दिया।