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आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में जैसा कमाल दिखाया था और जिस तरह का साथ आम आदमी पार्टी को दिल्ली में मिला वैसा उसे दूसरे राज्यों खासकर उत्तराखण्ड में नहीं मिल पाया। पंजाब को छोड़कर बाकी जिस भी राज्य में आम आदमी पार्टी ने विधानसभा का चुनाव लड़ा वहां वह अपनी मजबूत उपस्थिति भी दर्ज नहीं करा पाई। पंजाब की बात करें तो वहां आम आदमी पार्टी अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई थी। लेकिन उत्तराखण्ड और पंजाब की स्थिति में फर्क है। जब आम आदमी पार्टी ने पंजाब का विधानसभा चुनाव लड़ा उससे पहले आम आदमी पार्टी को पंजाब से ही अपने चार सांसद मिले थे जबकि उत्तराखण्ड में जब आम आदमी पार्टी ने पहला लोकसभा चुनाव 2014 में लड़ा तो सभी पांचों प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी

दिल्ली की तर्ज पर आम आदमी पार्टी उत्तराखण्ड में सियासी हलचल नहीं पैदा कर पाई। आम आदमी पार्टी का हर राजनीतिक प्रयोग सत्ता पाने में असफल साबित हुआ। यहां तक की उत्तराखण्ड के मतदाताओं को चुनावी वायदों के गारंटी कार्ड देने के बाद भी केजरीवाल उनका विश्वास नहीं जीत पाए। पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उत्तराखण्ड में पांच रैलियां हुई। यह रैलियां हल्द्वानी, देहरादून और काशीपुर में होने चलते मैदानी क्षेत्र तक सिमट गई। आम आदमी पार्टी के जरिए पहाड़ का कायाकल्प करने का दावा करने वाले केजरीवाल ने पहाड़ी क्षेत्रों में कदम भी नहीं रखा। हालांकि दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया जरूर अल्मोड़ा और उत्तरकाशी गए। आम आदमी पार्टी मैदानी क्षेत्र में थोड़ी बहुत उपस्थिति दर्शाते देखी गई। जबकि पहाड़ में वह अपना कोई राजनीतिक वजूद नहीं बना पाई।

पार्टी का पहली बार प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ना निराशाजनक प्रयोग साबित हुआ। सबसे बड़ी कमी प्रदेश प्रभारी की सामने आई। जिन्होंने तेरह जिलों के प्रभारी ऐसे नियुक्त किए जो गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से थे। कहा गया कि वह नेता नहीं बल्कि वालंटियर थे। पार्टी हार्डिंग्स और सोशल मीडिया पर चुनाव लड़ती नजर आई। जबकि जमीन पर वह कहीं नहीं दिखाई दी। राजनीतिक पंडितों की नजर में कहे तो आम आदमी पार्टी प्रदेश के जमीनी आदमी को नहीं जोड़ पाई। आप पिछले कई महीनों से सोशल मीडिया और डोर टू डोर प्रचार-प्रसार के जरिए अपनी पकड़ बनाने का काम करती नजर आ रही थी। आप कार्यकर्ता व नेता पार्टी की रीति नीतियों को जनता तक पहुंचाने के लिए हर संभव तरीका अपनाते देखें गए। यही नहीं बल्कि अपने प्रचार-प्रसार को धार देते हुए आप ने टेलीकॉल अभियान भी शुरू किया है। इस मेगा डिजिटल टेलिफोनिक अभियान के तहत 3785 वालंटियर रोजाना 50-50 व्यक्तियों को फोन कर आप की नीति व मंशा से रूबरू करवा रहे थे। साथ ही आप के दिल्ली के विकास माडल व केजरीवाल की विभिन्न गारंटियों को बता रहे थे। पार्टी का दावा था कि इस टेलीकॉल अभियान के तहत 9 लाख 43 हजार काल किए गए।

आप पार्टी उत्तराखण्ड की सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ी। लेकिन इस चुनाव में वह दिल्ली की तर्ज पर मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ बना न सकी। दिल्ली में जहां तीन-चार किलोमीटर के दायरे में एक विधानसभा होती है जबकि उत्तराखण्ड में इसके विपरीत होता है यहां 1-1 विधानसभा सौ से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर तक फैली हुई होती है। एक तरह से कहा जा सकता है कि दिल्ली से निकलकर आम आदमी पार्टी पहाड़ के रास्तों में भटक गई। पार्टी उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति को समझ न सकी। इसके चलते मतदाता भी पार्टी को दिल्ली की पार्टी कहकर दरकिनार कर गए। दिल्ली-उत्तराखण्ड के बीच कनेक्शन को भी समझना होगा। उत्तराखण्ड ऐसा राज्य है जहां लगभग हर परिवार से कोई न कोई दिल्ली में है। या तो पढ़ाई करने या फिर नौकरी या बिजनेस करने लोग ज्यादातर दिल्ली जाते हैं। इसलिए उत्तराखण्ड के लोगों के लिए आम आदमी पार्टी और उसकी दिल्ली वाली पहचान साफ है। आम आदमी पार्टी उसी तरह के वादे भी उत्तराखण्ड में कर रही थी जो काम उन्होंने दिल्ली में करके दिखाया। दिल्ली में 200 यूनिट बिजली फ्री देने वाली आम आदमी पार्टी ने उत्तराखण्ड में 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा किया था।

पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उत्तराखण्ड में 5 बार आए। वह जब भी आए तभी नई गारंटी देकर गए। उन्होंने मतदाताओं को 5 से 7 गारंटी दी। यह गारंटी 300 यूनिट बिजली फ्री की थी। इसके अलावा किसानों को फ्री बिजली दी जानी थी। दूसरी गारंटी रोजगार की थी। जिसमें 5 सालों में 5 लाख रोजगार युवाओं को देने का लक्ष्य बताया गया। यानी हर साल एक लाख नौकरियां देने का वादा किया गया। साथ ही बेरोजगारों को 5000 भत्ता देने का भी ऐलान किया गया। तीसरी गारंटी महिलाओं को 1000 प्रति महीना देने की थी। जिसमें 18 साल से ऊपर की महिलाओं को एक हजार रुपए देने का वादा किया गया। बुजुर्ग लोगों के लिए भी केजरीवाल के पास गारंटी थी। वह थी तीर्थ यात्रा की गारंटी। इसके तहत 65 साल से ऊपर के बुजुर्ग व्यक्तियों को वातानुकूलित गाड़ियों में ले जाने और वातानुकूलित होटलों में ठहराने के साथ ही तीर्थ यात्रा कराना था। साथ ही उनके साथ दो व्यक्ति और जा सकते थे।

केजरीवाल ने उत्तराखण्ड के लोगों को दिल्ली की तर्ज पर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं फ्री करने और 1 लाख का इलाज निःशुल्क कराने का वादा किया। साथ ही उन्होंने सेना और अर्धसैनिक बलों में नौकरी करने वाले लोगों के शहीद होने पर एक करोड़ रुपए देने का वादा किया था। यह सभी घोषणाएं दिल्ली की तर्ज पर की गई। आम आदमी पार्टी उत्तराखण्ड की तरफ से कहा गया कि दो माह में ही अरविंद केजरीवाल की ओर से जनता को दी गई गारंटी योजना से लाखों परिवार जुड़े। पार्टी का दावा था कि बिजली गारंटी से 14 .50 लाख लोग, रोजगार गारंटी से 8 .52 लाख लोग तो तीर्थ यात्रा गारंटी योजना से 2 लाख से ज्यादा लोग जुड़ चुके थे। यही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरा कर्नल (रि ़) अजय कोठियाल ने दावा किया था कि महिला को हजार रुपये गारंटी योजना से तो महज 16 दिन के भीतर एक लाख से अधिक महिलाएं जुड़ गईं थी। आम आदमी पार्टी के दावों पर विश्वास करें तो महज 2 माह के भीतर ही पार्टी को इन गारंटी स्कीम के तहत 26 लाख लोगों ने गारंटी कार्ड भर कर अपना विश्वास जताया। लेकिन जब चुनावी परिणाम सामने आए तो इसका 10 फीसदी मतदाताओं का वोट पार्टी नहीं पा सकी। यहां यह बताना भी जरूरी है कि हल्द्वानी में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली हुई तो उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आम आदमी पार्टी की मुफ्त गारंटी योजनाओं पर तंज कसते हुए कहा था कि ‘उत्तराखण्ड के लोग स्वाभिमानी हैं जो मुफ्त के चक्कर में आने वाले नहीं हैं।’

गौरतलब है कि उत्तराखण्ड एक सैन्य बहुल राज्य है। यहां हर गांव, हर मोहल्ले में पूर्व सैनिक हैं। इस को ध्यान में रखते हुए ही आम आदमी पार्टी ने भारतीय सेना से सेवानिवृत्त कर्नल अजय कोठियाल को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया। चुनाव में आम आदमी पार्टी को पूर्ण विश्वास था कि भूतपूर्व सैनिक उनकी तरफ जा सकते हैं। ऐसे में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता था। लेकिन ऐसा होता हुआ नहीं दिखा। जिस गंगोत्री विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी ने कर्नल कोठियाल को अपना प्रत्याशी बनाया वहां भी वह पिछड़ गए। हालत यह हो गई कि आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री प्रत्याशी ही गंगोत्री विधानसभा से तीसरे नंबर पर पहुंच गए। गंगोत्री के मतदाताओं का कहना है कि अगर कर्नल कोठियाल आम आदमी पार्टी के बजाय भाजपा या कांग्रेस से चुनाव लड़ते तो वह चुनाव जीत जाते, लेकिन आप से नहीं। आप को उत्तराखण्ड में लोग अब भी बाहरी पार्टी ही मानते हैं।

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में जैसा कमाल दिखाया था और जिस तरह का साथ आम आदमी पार्टी को दिल्ली में मिला वैसा उसे दूसरे राज्यों खासकर उत्तराखण्ड में नहीं मिल पाया। पंजाब को छोड़कर बाकी जिस भी राज्य में आम आदमी पार्टी ने विधानसभा का चुनाव लड़ा वहां वह अपनी मजबूत उपस्थिति भी दर्ज नहीं करा पाई। पंजाब की बात करें तो वहां आम आदमी पार्टी अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई थी। लेकिन उत्तराखण्ड और पंजाब की स्थिति में फर्क है। जब आम आदमी पार्टी ने पंजाब का विधानसभा चुनाव लड़ा उससे पहले आम आदमी पार्टी को पंजाब से ही अपने चार सांसद मिले थे, जबकि उत्तराखण्ड में जब आम आदमी पार्टी ने पहला लोकसभा चुनाव 2014 में लड़ा तो सभी पांचों प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।­

बात अपनी-अपनी

आम आदमी पार्टी ने सबसे बड़ी गलती उत्तराखण्ड में 2017 का विधानसभा चुनाव न लड़कर की। अगर पार्टी 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ती तो मत प्रतिशत के हिसाब से उसे बढ़त मिलती। जिस तरह से तब लोगों में आम आदमी पार्टी के प्रति रुझान था तब पार्टी का खाता भी खुल सकता था। लेकिन पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड को कोई तरजीह नहीं देकर मतदाताओं को निराश किया जिससे यहां के मतदाताओं में पार्टी के खिलाफ आक्रोश हो गया। आम आदमी पार्टी के कई नेता पार्टी छोड़ गए। उनमें अनूप नौटियाल, कमला पंत, राजीव लोचन साह जैसे जमीनी नेता थे।
रवि कुमार, कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी

आम आदमी पार्टी के लिए केदारनाथ आपदा में ही भ्रष्टाचार के आरोप लग गए थे। तब आपदा में आम आदमी पार्टी को करोड़ों का फंड दिया गया। लेकिन उस फंड को वितरण नहीं किया जिसके कारण ही उत्तराखण्ड के लोगों में आम आदमी पार्टी के प्रति नकारात्मक सोच पैदा हो गई थी। जिसका खामियाजा उसे विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा है।
भार्गव चंदोला, पत्रकार और पूर्व नेता आम आदमी पार्टी

उत्तराखण्ड में कैंडिडेट सेलेक्शन प्रोसेस ठीक से नहीं हुआ जो व्यक्ति दिल्ली में नेताओं के कॉन्टेक्ट में था उन्हें ही टिकट दे दिया गया। दूसरा जिस तरह भाजपा-कांग्रेस के पास कैडर आधारित वोट है ऐसा आम आदमी पार्टी के पास नहीं था। यहां तक कि पार्टी का कोई चुनावी मैनेजमेंट देखने वाला भी नहीं था। बूथ तक कार्यकर्ता नहीं जुड़ सके थे। इसके अलावा बार- बार प्रदेश प्रभारियों और प्रदेश अध्यक्ष को बदलना भी पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। कारण यह था कि जो भी प्रभारी और अध्यक्ष पार्टी के बनाए गए वह ज्यादातर बाहरी थे। वह उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति को समझने से पहले ही हटा दिया जाते रहे। सबसे बड़ा सवाल पार्टी द्वारा तय किए गए मुख्यमंत्री चेहरे पर उठ रहे हैं। जो प्रत्याशी अपनी विधानसभा तक में सम्मानजनक स्थिति में नहीं आया उसको मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाना पार्टी के लिए बड़ा हास्यास्पद रहा। पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल कोठियाल करिश्माई चेहरा नहीं बन सके।
अतुल जोशी, पूर्व नेता आम आदमी पार्टी

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