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Uttarakhand

सेहत के लिए इस्तेमाल करते थे लकड़ी के बर्तन

  • जाहिद हबीबी
  • उत्तराखण्ड का काष्ठ शिल्प अनूठा है। लंबे समय तक भोजन और खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए लोग लकड़ी के बर्तनों का उपयोग करते थे। लेकिन आज घरों से ये लकड़ी के बर्तन लगभग गायब हो गए हैं। अब म्यूजियम में ही लोग इन बर्तनों को देख पाते हैं।
  • लकड़ी के बर्तनों का उपयोग अधिकांशतः दूध और उससे बनने वाली वस्तुओं को रखने के लिए किया जाता है। इससे लंबे समय तक खाद्य वस्तु की गुणवत्ता बनी रहती है। लकड़ी के इन बर्तनों को बनाने के लिए मुख्य रूप से सानन या गेठी की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है जो वर्षों पानी में रहकर भी नहीं सड़ती हैं। सानन की लकड़ियां कालाढूंगी रेंज के जंगल में अधिक मात्रा में पाई जाती हैं। पीढ़ियों से लकड़ी से बर्तन बनाने की इस विरासत को उत्तराखंड के चुनार जाति के दस्तकारों ने बचाये रखा है। जो हर वर्ष सर्दियों के मौसम में कालाढूंगी के जंगलों में पानी के स्रोत के पास काष्ठशिल्प का कार्य करते हैं।
  • उत्तराखण्ड की संस्कृति एवं जनजीवन से ताल्लुक रखने वाली पारम्परिक काष्ठ से निर्मित वस्तुएं मसलन दही जमाने के लिए ठेकी, दही फेंटकर मट्ठा तैयार करने वाली ढौकली, अनाज मापन के लिए नाली एवं माणा तथा खाद्यान्न के संग्रहण के लिए भकार वगैरह अब संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं। संग्रहालय की शोभा बने यह प्राचीन वस्तुएं करीब दो से तीन सौ साल पुरानी काष्ठ शिल्प की निशानी हैं। पहाड़ में दही जमाने के लिए ठेकी तथा दही से मट्ठा तैयार करने के लिए डौकली और रौली बनाई जाती हैं जो स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने वाली सानन एवं गेठी की लकड़ी से बनाई जाती हैं। इसी प्रकार घी रखने के लिए हड़पिया, नमक रखने को आद्रता शोषक तुन का करुवा नामक छोटा बर्तन बनाया जाता है। तुन की लकड़ी से ही आटा गूंथने की परात का बनाई जाती है। यहां तक कि छोटे बच्चों को दूध पिलाने के लिए केतलीनुमा गड़वे, कटोरी के रूप में फरवा एवं अन्न भंडारण के लिए बड़े संदूकनुमा भकार एवं पुतका का प्रचलन था। अनाज की मापन के लिए नाली, पाली, माणा और बेल्का, आटे से बने पके भोजन को रखने के लिए छापरा का प्रचलन था। पहाड़ी वाद्य यंत्र भी काष्ठ से तैयार किए जाते हैं। इनमें से अधिकांश चीजें अब प्रचलन से बाहर हो गई हैं। इसके चलते यह वस्तुएं अब अपनी पहचान तक को तरसने लगी हैं। सरकार इस तरफ ध्यान दे इसके कारोबार को बाजार उपलब्ध कराने की सरकार जिम्मेदारी समझे और इसका प्रचार-प्रसार हो तो काष्ठशिल्प फिर से जीवित हो उठेगा।
  • काॅर्बेट म्यूजियम में काष्ठ के बर्तन
  • उत्तराखण्ड के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में आज भी काष्ठ के बर्तनों का प्रचलन है। हर घर में आपको लकड़ी के बर्तन देखने को मिल जाएंगे। कालाढूंगी में आए काष्ठशिल्पकारों द्वारा बनाए गए बर्तनों को काॅर्बेट ग्राम विकास समिति द्वारा काॅर्बेट संग्रहालय की दुकान में भी रखा जाता है जहां इसका प्रचार-प्रसार भी किया जाता है। समिति अध्यक्ष राजकुमार पांडे एवं सचिव मोहन पांडे ने बताया इन लकड़ी के बर्तनों को उत्तराखण्ड राज्य के लोगों से अधिक बाहरी राज्यों और विदेशी पर्यटकों द्वारा खरीदकर ले जाया जाता है। इन बर्तनों को जलशक्ति वाले गाड़-गधेरों में खराद मशीन द्वारा बनाया जाता है। इस तरह की मशीनें गाड़-गधेरों के अतिरिक्त भाबर में नदी किनारे भी लगती हैं। पीढ़ियों से बर्तन बनाने की इस विरासत को उत्तराखंड के चुनार जाति के दस्तकारों द्वारा बचाकर रखा गया है। यह काष्ठशिल्प का कार्य कालाढूंगी रेंज अंतर्गत भुमकाचैड़ तप्पड़ में बागेश्वर जिले से आकर चुनार लोग सर्दियों के महीने में करते हैं।
  • जिस तरह तांबे के बर्तन में पानी पीने से कई बीमारियां दूर होती हैं ठीक उसी तरह लकड़ी के बर्तन भी फायदेमंद हैं। लकड़ी के बर्तन में पानी पीने से शरीर में से जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं। लकड़ी के बर्तनों के इस्तेमाल से एक प्लस प्वाइंट यह है कि लकड़ी गैर प्रतिक्रियाशील है और आपके खाने में भोजन में हानिकारक कैमिकल को खत्म कर देती है। लकड़ी में प्राकृतिक तौर पर शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले कीटाणुओं को मारने के गुण होते हैं।

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