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Uttarakhand

महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग पोषण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पोषण अभियान की शुरुआत वर्ष 2018 में की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य देश को सशक्त और गर्भवती महिलाओं को शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाना है। राज्य सरकार ने इस अभियान को जनांदोलन में बदले के लिए एक-एक बच्चे को गोद लिए जाने की शुरुआत की है जिसकी शुरुआत उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने की। रावत ने एक बच्चा गोद लिया तो तत्कालीन राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने भी एक बच्चे को गोद लिया। तब दावा किया गया कि हमारा लक्ष्य वर्ष 2020 तक हमें उत्तराखण्ड के सभी बच्चों को कुपोषण मुक्त कराना है। लेकिन आज भी प्रदेश में 17926 बच्चे कुपोषित हैं। फिलहाल कुपोषण मुक्त अभियान की एक बार और तारीख बढ़ा दी गई है। धामी सरकार ने प्रदेश को 2025 तक कुपोषण से मुक्त करने का दावा किया है

पोषण शरीर के विकास का विज्ञान है। यह व्यक्ति और उसके खानपान के बीच का संबंध है। जिसमें उसके शारीरिक एवं जैविक पहलुओं के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक, सामाजिक पहलू समाहित हैं। भोजन हमें ऊर्जा देता है। शरीर के भीतर की टूट-फूट को ठीक करता है। बीमारियों से शरीर की रक्षा करता है। लेकिन जब यह नहीं होता तो फिर कुपोषण इसकी जगह ले लेता है। जो मानव शरीर को ही नहीं बल्कि मानवीय संपदा को भी भारी हानि पहुंचाता है। सरकारों की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने नागरिकों के लिए उचित पोषण की व्यवस्था करें और कुपोषण से उन्हें मुक्त रखें। लेकिन उत्तराखण्ड में पोषण की तमाम योजनाओं के बाद भी कुपोषण भारी होता दिख रहा है। हालांकि उत्तराखण्ड सरकार का दावा है कि राज्य के जयंती वर्ष तक प्रदेश कुपोषण मुक्त हो जाएगा यही नहीं तब तक प्रदेश के बालक-बालिकाओं का लैंगिक अनुपात भी कम कर लिया जाएगा। इसके लिए प्रदेश में कुपोषित बच्चों को गोद लेने का अभियान भी चल रहा है।

इसके लिए महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग पोषण माह का आयोजन भी करता रहा है। ये पोषण माह प्रदेश के हर आंगनबाड़ी केंद्र में आयोजित किए जाते रहे हैं। प्रदेश को कुपोषण से मुक्त करने के लिए एक नहीं आठ से अधिक योजनाएं चल रही हैं। जिनमें राष्ट्रीय पोषण मिशन, पीएम मातृ वंदना योजना, सीएम बाल पोषण योजना, सीएम आंचल अमृत योजना, सीएम सौभाग्यवती योजना, सीएम वात्सल्य योजना, सीएम महिला पोषण योजना, किशोरी बालिका योजना आदि शामिल हैं। इन योजनाओं पर हर साल औसतन 250 करोड़ रुपया खर्च किया जा रहा है। इसके अलावा महिला एवं बच्चे सुपोषित हो सकें इसके लिए हर वर्ष पोषण पर 563 करोड़ रुपए से भी अधिक खर्च किया जा रहा है। प्रदेश सरकार इन योजनाओं के लाभाथि्र्ायों को महालक्ष्मी किट, गोद भराई किट एवं स्वच्छता किट वितरित करती रही है। प्रदेश में कुपोषण को खत्म करने के लिए पोषण अभियान की शुरुआत वर्ष 2018 में शुरू की गई थी, बावजूद इसके कुपोषण से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अभी प्रदेश में 1667 अतिकुपोषित बच्चे हैं।

कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या 17926 है। बच्चे के जन्म के पहले घंटे में स्तनपान का आंकड़ा 28 प्रतिशत है। नीति आयोग की रिपोर्ट जिसमें देश के 170 जिलों को शामिल किया गया था उसमें हरिद्वार, चमोली, उत्तरकाशी एवं उधमसिंह नगर कुपोषित जिलों में शामिल थे। यही नहीं पूर्व में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट जिसमें प्रदेश के 12691 घरों की 13280 महिला एवं 1586 पुरुषों पर बातचीत के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया था कि प्रदेश में 5 वर्ष के 18 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से कम जबकि 56.8 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी पाई गई। खून की कमी के पीछे के कारणों पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना था कि आयरन की कमी एवं पर्याप्त पौष्टिक भोजन का न होना इसका मुख्य कारण है। उत्तराखण्ड सरकार ने अपने अधिकारियों को यह निर्देश दिए थे कि अति कुपोषित बच्चों को गोद लेकर न केवल उनकी खुराक एवं दवा का खर्च उठाना है, बल्कि नियमित अंतराल में इन बच्चों के बारे में जानकारी भी हासिल करती रहनी है। इस पर अधिकारी कितने ईमानदार रहे हैं यह सर्वविदित है। कहने को प्रदेश सरकार 5 लाख से अधिक बच्चों एवं 15 लाख से अधिक गर्भवती महिलाओं को आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से पोषाहार प्रदान करती है। प्रदेश में सरकारी और सहायता प्राप्त अशासकीय विद्यालय में कक्षा एक से 8 तक करीब 6.84 लाख बच्चों को दोपहर का भोजन प्रदान किया जाता है। खून की कमी को दूर करने के लिए स्कूलों में दवा उपलब्ध कराई गई है। लेकिन कुपोषण है कि मिटने का नाम नहीं ले रहा है।

आयरन, विटामिन बी 12, विटामिन ए एवं फोलिक एसिड की कमी एनीमिया का मूल कारण होती है। एनीमिया यानी खून की कमी से महिलाएं ज्यादा प्रभावित होती हैं। कुपोषण पोषक तत्वों की कमी या असंतुलन से उत्पन्न होता है। समुचित वजन न होना, शरीर में कमजोरी होना, थकान महसूस करना, बार-बार इंफेक्शन होना, शरीर का हल्का पीला रंग होना, सांस फूलना, हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द होना, बालों का गिरना, लंबाई कम बढ़ना, त्वचा का सूखना, मसूड़ों से खून आना, दस्त लगना कुपोषण के लक्षण हैं। वहीं एनीमिया का मतलब होता है खून में हीमोग्लोबिन की कमी। इससे चिड़चिड़ापन, थकान, चक्कर आना,
कमजोरी, आंखों के नीचे काले घेरे, झुर्रियां एवं असमय बुढ़ापा आ जाता है। प्रदेश में 6 माह से पांच वर्ष आयु वर्ग के 59.8 प्रतिशत बच्चे एनिमिक हैं। इनमें शहरी क्षेत्र के 61.3 और ग्रामीण क्षेत्र के 59.1 बच्चे शामिल हैं। वहीं 15 से 49 आयु वर्ग की 45.2 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया की समस्या से जूझ रही हैं। जिनमें शहरी क्षेत्र की 43.4 एवं ग्रामीण क्षेत्र की 46.2 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। यह तब हो रहा है जब प्रदेश के 13 जिलों में कुल 105 बाल विकास परियोजनाएं चल रही हैं। इसमें से 8 शहरी क्षेत्रों एवं 97 ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही हैं। इन परियोजनाओं के तहत कुल संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में 1274 शहरी क्षेत्रों में तो शेष 18666 केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे हैं। सरकार की मानें तो अब प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्र में एक स्पंदन केंद्र की स्थापना होनी है। कुपोषण के लिए प्रदेश में अनुपूरक पोषाहार, कुक्ड फूड योजना, टेक होम राशन, राष्ट्रीय पोषण मिशन, स्वास्थ्य एवं पोषण शिक्षा, स्कूल से पहले शिक्षा, वृद्धि निगरानी एवं संदर्भ योजनाएं, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, स्वास्थ्य जांच एवं टीकाकरण जैसी योजनाएं चल रही हैं।

इन पर है जिम्मेदारी
एएनएम आंगनबाड़ी कार्यकत्री, आशा कार्यकत्री, दाई के ऊपर मातृ सुरक्षा की जिम्मेदारी है। गर्भवती का पंजीकरण, गर्भवती की नियमित जांच करना, टिटनेस के टीके लगाना, आयरन एवं फोलिक एसिड की गोलियां देना, स्वास्थ्य और पोषण संबंधी शिक्षा देना, संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करना, खतरनाक गर्भावस्था का पता कर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए रेफर करना एएनएम के जिम्मे है तो वहीं गर्भवती का अपने केंद्र में पंजीकरण करना, अतिरिक्त पोषाहार की व्यवस्था करना, गर्भावस्था की जांच अपने केंद्र में करवाने की व्यवस्था करना, गर्भवती को किसी भी प्रकार का खतरा होने पर एएनएम द्वारा शिक्षा देने में सहायता करना, आयरन और फोलिक ऐसिड की गोलियों का भंडार कर गर्भवती को उपलब्ध करना, हर माह गर्भवती का वजन लेकर रिकॉर्ड रखना आंगनबाड़ी कार्यकत्री की जिम्मेदारी है।

आशा कार्यकत्री की जिम्मेदारी है कि वह गर्भवती का पंजीकरण कर एनएनएम को सूचित करे। ग्राम सभा में एएनएम के भ्रमण की सूचना गर्भवती को देना, प्रत्येक गर्भवती को एएनएम से जांच करवाने के लिए उप केंद्र में ले जाना, स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी शिक्षा में एएनएम, आंगनबाड़ी की सहायता करना, गर्भवती को किसी भी प्रकार का खतरा होने पर उसे स्वास्थ्य केंद्र ले जाना, जरूरत पड़ने पर आयरन की गोलियों का वितरण एवं भंडारण करना है। वहीं समय से गर्भवती से संपर्क करना, गर्भवती की नियमित जांच करना, स्वास्थ्य एवं पोषण शिक्षा देना, खतरनाक गर्भावस्था वाली महिलाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज करवाने की सलाह देना, घर पर किए जा रहे प्रसव के लिए प्रसव पूर्व तैयारी सुनिश्चित करना, प्रसव बाद नियत समय पर जच्चा-बच्चा की जांच करना, सुरक्षित प्रसव कराना, परिवार नियोजन की शिक्षा व सामग्री की व्यवस्था करना, नियमित वजन लेना एवं वजन की निगरानी करना दाई की जिम्मेदारी है।

वर्ष 2025 तक राज्य को कुपोषण मुक्त करना सरकार का लक्ष्य है। इसके साथ ही हम बालक-बालिकाओं का लैंगिक अनुपात भी तब तक बराबरी पर ले आएंगे। इसके लिए समाज का सहयोग भी जरूरी है। प्रदेश सरकार बेटी के जन्म से लेकर शिक्षा तक सभी योजनाओं का सही रूप से क्रियान्वयन कर रही है।
रेखा आर्य, महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री

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