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Uttarakhand

क्या बदहाल सड़कों की बदलेगी सूरत

सड़कें किसी भी प्रदेश के विकास की लाइफ-लाइन होती हैं। उत्तराखण्ड में अधिकतर सड़कें खस्ताहाल हैं। 2017 में जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गड्ढा मुक्त सड़कों का नारा दिया था। सड़कें गड्ढा मुक्त तो नहीं हुईं अलबत्ता गड्ढा युक्त होकर सरकार के दावे को आईना जरूर दिखाती रहीं। यह तब है जब प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले पर्यटकों की यहां आवाजाही लगी रहती है। पर्यटन प्रदेश के सपने को पलीता लगाती इन टूटी सड़कों को देख फिलहाल सीएम पुष्कर सिंह धामी ने गड्ढा मुक्त अभियान की शुरुआत की है। धामी ने संबंधित अधिकारियों को एक सप्ताह का अल्टीमेटम देकर सड़कें सुधारने के आदेश दिए हैं। देखना यह होगा कि कब तक धामी का यह आदेश बदहाल सड़कों की सूरत बदल पाएगा

खटीमा से हल्द्वानी तक गड्ढ़ों से जूझता हुआ आया हूं’

उत्तराखण्ड में सड़कों की हालत पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के उपरोक्त शब्द बताते हैं कि उत्तराखण्ड के अंदर सड़कों का हाल किस कदर खराब है। हल्द्वानी में समीक्षा बैठक में भाग लेने आए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हल्द्वानी आने के लिए खटीमा से सड़क मार्ग चुना। इस यात्रा के दौरान सड़कों के हालत को देखकर नाराज दिखे मुख्यमंत्री ने कहा कि खटीमा से हल्द्वानी सड़क मार्ग से आया हूं और जगह-जगह गड्ढों ने उनकी यात्रा में स्वागत किया। शुक्र है मुख्यमंत्री ने सड़क मार्ग से यात्रा करने की जहमत उठाई और हकीकत से रूबरू हुए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का पूर्व विधानसभा क्षेत्र खटीमा, कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा का विधानसभा क्षेत्र सितारगंज और स्वर्गीय इंदिरा हृदयेश की विधानसभा रही हल्द्वानी, जिसका वर्तमान में प्रतिनिधित्व उनके पुत्र सुमित हृदयेश कर रहे हैं। आमतौर पर वीआईपी विधानसभाएं मानी जाती रही हैं। इन तीन वीआईपी विधानसभाओं का मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का सड़क मार्ग से कड़वा अनुभव बताता है कि अन्य स्थानों पर सड़कें किस हाल में होंगी।

 


रामनगर-बेतालघाट मोटरमार्ग

सड़कें विकास की जीवन रेखा मानी जाती हैं और मूलभूत, आधारभूत सुविधाओं की जब बात आती है तो सड़कें ही इस पैमाने की पहली कड़ी हैं। अगर हल्द्वानी और उसके आस-पास के क्षेत्रों में सड़कों की हालत देखें तों इस बात को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं कि यहां की जीवन रेखा खस्ताहाल स्थिति में है। राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप के बीच जुबानी जंग इनकी स्थिति में कोई सुधार तो नहीं ही ला पाई है। कुमाऊं का प्रवेश द्वार और उत्तराखण्ड की आर्थिक राजधानी माना जाने वाला हल्द्वानी और उसके आस-पास की विधानसभाओं कालाढूंगी, नैनीताल, लालकुआं, भीमताल में सड़कों की हालत देखकर लगता नहीं कि डबल इंजन की सरकार में विकास की कोई नई इबारत लिखी जा रही है। सिर्फ दावे हैं, हकीकत में जमीन पर वास्तविकता बिल्कुल विपरीत है जबकि हल्द्वानी को छोड़कर अन्य सभी विधानसभाओं में भारतीय जनता पार्टी के विधायक काबिज हैं। इस तथ्य को स्वीकार करने में किसी को कोई परहेज नहीं है कि डॉ इंदिरा हृदयेश ने हल्द्वानी और उसके आस- पास जो अब कालाढूंगी और लालकुआं विधानसभा क्षेत्रों से जुड़ गए हैं, में आंतरिक सड़कों का जाल बिछा दिया था। हल्द्वानी की मुख्य सड़क नैनीताल रोड उत्तराखण्ड की सबसे खूबसूरत सड़कों में शुमार होती थी, उसके खस्ताहाल हैं। लोक निर्माण विभाग उसे पैच वर्क कर सुधारने की कोशिश कर रहा है। जब मुख्य सड़क के खस्ताहाल है तो शहर के अंदर आंतरिक मार्गों की हालत को आसानी से समझा जा सकता है। कभी सीवर तो कभी गैस पाइप लाइन के नाम पर खोदी गई सड़कें अपने मरम्मत के इंतजार में हैं। हल्द्वानी-बरेली मार्ग मंडी से लालकुआं तक यह समझना मुश्किल हो जाता है कि सड़क में गड्ढे हैं या फिर गड्ढे में सड़क। पिछले 22 सालों में गोविंद सिंह बिष्ट, हरीश चंद्र दुर्गापाल, नवीन दुमका और मोहन सिंह बिष्ट इस क्षेत्र सेजनप्रतिनिधि रहे हैं या फिर वर्तमान में हैं। लेकिन सड़कों की हालत में कोई बदलाव नहीं आया। हल्द्वानी नगर निगम की बात करें तो पूरी हल्द्वानी विधानसभा, कालाढूंगी और लालकुआं का आंशिक भाग इसमें आता है। नगर निगम के पुराने क्षेत्र में कुछ सड़कों पर स्वामित्व लोक निर्माण विभाग और कुछ सड़कों पर नगर निगम का स्वामित्व है। लेकिन सड़कों की हालत कहीं भी ठीक नहीं हैं। विधानसभा चुनावों से पूर्व कई सड़कों की मरम्मत के लिए कार्य प्रारंभ किए गए थे परंतु कार्य में गुणवत्ता के अभाव के चलते उन सड़कों की हालत पहले से भी खस्ता हो गई हैं। पूर्व मंत्री और कालाढूंगी से विधायक बंशीधर भगत सड़कों की खराब दशा पर भी कई बार नाराजगी जता चुके हैं। उनका कहना है कि सड़कें दो साल भी नहीं चल पा रही हैं। हम काफी मशक्कत से सड़कों के लिए धनराशि मंजूर करवाते हैं लेकिन घटिया गुणवत्ता हमारी मेहनत पर पानी फेर देती हैं।

रिटायर्ड इंजीनियर अखिल पंत का कहना है कि ठेकेदारों की प्रतिस्पर्दा में टेंडर में ठेकेदार लागत से बहुत कम दरों पर टेंडर उठा तो लेते हैं लेकिन फिर वही दरें उनके नुकसान का कारण बनती हैं तो वह काम की गुणवत्ता से खिलवाड़ करने लगते हैं। हल्द्वानी नगर निगम के अंतर्गत आंतरिक मार्गों में कई वर्षों से मरम्मत का काम नहीं हुआ है। नगर निगम के ही एक पार्षद का कहना है कि नए कामों की तो छोड़िए पुरानी सड़कों के मरम्मत के लिए पैसों का रोना है। अपने क्षेत्र की जनता को जवाब देना मुश्किल हो रहा है। हम तो ट्रिपल इंजन की सरकार का हिस्सा हैं फिर भी सड़क जैसे मूलभूत कार्यों के लिए पैसा नहीं मिल पा रहा है। लापरवाही का आलम यह है कि गौला नदी पर काठगोदाम में बने पुल में बड़े-बड़े गड्ढे लोक निर्माण विभाग की पोल खोल रहे हैं जबकि वीआईपी के ठिकाने सर्किट हाउस को जाने वाला यह महत्वपूर्ण पुल है। यही हाल तिकोनिया से रोडवेज और रेलवे स्टेशन को जाने वाले मार्ग का है जिसकी सुधबुध लेने वाला कोई नहीं है। दुर्गा सिटी सेंटर से मुखानी रोड को जोड़ने वाले मार्ग को सीवर लाइन बिछाकर यूं ही छोड़ दिया गया है। लोग गड्ढों से जूझने पर मजबूर हैं। भीमताल विधानसभा क्षेत्र के अधिकांश मुख्य एवं संपर्क मार्ग दुरुस्त करने की याद किसी को नहीं आई। सबसे बुरा हाल अल्मोड़ा को जाने वाले मार्ग का है। भवाली से लेकर क्वारब तक का सफर किसी कड़े अनुभव से कम नहीं है। सड़क सुधार के नाम पर पिछले कई सालों से चल रही कवायद ने सफर आसान करने के बजाय यात्रा की कठिनाइयां बढ़ा दी है। खैरना से काकड़ीघाट, जो दो साल पहले बनकर तैयार हो चुका था, उसको देखकर यह समझना मुश्किल है कि इसमें पहले काम हो चुका है। छोटी गाड़ी के पहियों की गहराई तक हुए गड्ढे किसी यातना से कम नहीं है। काकड़ीघाट से क्वारब तक रोड कटिंग का काम चलते इससे अभी जल्दी निजात मिलने की संभावना कम ही है। इसी प्रकार बेतालघाट को रामनगर से जोड़ने वाला मार्ग घटिया गुणवत्ता की भेंट चढ़ गया। ठेकेदार और विभाग की मिलीभगत के चलते इस मार्ग पर भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े गड्ढे साफ नजर आते हैं। पाटकोट के रास्ते बेतालघाट को जोड़ने वाला मार्ग विभागीय लापरवाही के चलते आवागमन के लिए दुरूह बना हुआ है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूरे प्रदेश में एक हफ्ते के अंदर सभी सड़कों को गड्ढामुक्त करने की बात कही है। गड्ढामुक्त यानी पैच वर्क कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाइए। सवाल है कि जिस प्रदेश को आप पर्यटन प्रदेश की संज्ञा देते हैं वहां आप पैच वर्क की हुई सड़कों से पर्यटकों का स्वागत करना चाहते हैं। नई सड़कों की स्वीकृति के बीच पुरानी सड़कों को बदहाल छोड़ना इस प्रदेश की रवायत बन गई है। नई सड़कों की स्वीकृति की वाहवाही के बीच सत्ता प्रतिष्ठान भूल जाते हैं कि स्वीकृति से निर्माण प्रारंभ होने के बीच एक लंबी प्रक्रिया होती है। भारतीय जनता पार्टी के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं ‘इस बार मुख्यमंत्री सड़क मार्ग से आएं उन्हें सड़कों की हालत का पता चला लेकिन जनता तो इन गड्ढों से हमेशा जूझ रही है। आप बहुत ज्यादा उम्मीद मत पालिए क्योंकि सिस्टम बहुत ढीठ हो चुका है। कद्दावर नेता बंशीधर भगत की विधानसभा में सड़कों के हाल देखिए, वे सड़कों के लिए भारी-भरकम बजट लाए लेकिन कार्य की गुणवत्ता का यह हाल है कि पहले दिन सड़क बनती है, दूसरे दिन सड़क उखड़ने लगती है। दोष व्यवस्था का है, उस राजनीतिक-प्रशासनिक गठजोड़ का है जो एक-दूसरे के पूरक हैं।’

 

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