पंडित नैन सिंह रावत किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनका परिचय सिर्फ इतना भर नहीं है कि वे सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की तहसील मुनस्यारी के गांव भटकूड़ा के वाशिंदे थे, बल्कि वे वह शख्स थे जिन्होंने तिब्बत को पैदल नापने और वहां का नक्शा तैयार करने का ऐतिहासिक कार्य किया। इसी से खुश होकर अंग्रेजों ने उन्हें बरेली के पास गांवों की जागीरदारी उपहार स्वरूप दी। लेकिन आज स्थिति यह है कि उन्हें अपने ही प्रदेश की सरकारों ने भुला दिया है
पंडित नैन सिंह रावत, एक अप्रतिम व्यक्तित्व व एक महान अन्वेषक जिसे गूगल ने ही नहीं फिल्मी दुनिया ने भी अपनाया। डाक विभाग ने उन पर डाक टिकट जारी किया। जिस व्यक्ति ने दुनिया को बहुत कुछ दिया। जिसकी दुनिया हमेशा कर्जदार रही। देश-विदेश में उनके कार्यों की सराहना हुई। दुनियाभर में उनके कृतित्व के लिए लोग उनको सराहते रहे। उनके व्यक्तित्व पर बहुत कुछ लिखा गया। जिस व्यक्ति ने अपने कृतित्व से उत्तराखण्ड को एक पहचान दी, आखिर ऐसी क्या बात रही कि प्रदेश की अब तक की सरकारें उनके नाम पर कुछ विशेष नहीं कर पाई। यहां तक की उन्हें याद करने या उनकी जयंती मनाने में भी कंजूसी करती रही है। आखिर उत्तराखण्ड की माटी में पैदा हुए 19वीं शताब्दी के इस महान अन्वेषक को यहां की सरकारों ने क्यों भुला दिया? बीते 21 अक्टूबर को इस महान अन्वेषक की 139 जयंती थी, लेकिन सरकारी स्तर पर इसे मनाने का कोई ताम-झाम मौजूद नहीं था।
इधर उनके जन्म स्थान मुनस्यारी में पहली बार सोसाइटी फार एक्शन इन हिमालय संस्था द्वारा उनकी जयंती धूमधाम से मनाई गई। इसमें कई प्रस्ताव पास हुए तो कई मांगें भी रखी गई। विकासखंड सभागार मुनस्यारी में आयोजित इस जयंती कार्यक्रम की खासियत यह रही कि यहां पहली बार स्कूली बच्चे मुख्य अतिथि बने। इस दौरान इस महान अन्वेषक के जीवन दर्शन पर निबंध, चित्रकला, व्याख्यान आदि कार्यक्रम आयोजित हुए।
प्रतियोगिता में भाग लेने वाले विद्यार्थियों को जिला पंचायत सदस्य पुरस्कार 2023 से सम्मानित किया गया। इस दौरान कुछ मांगें व प्रस्ताव भी पास किए गए जिसमें पंडित नैन सिंह के जयंती दिवस 21 अक्टूबर को राजकीय दिवस घोषित करने, सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों में जयंती समारोह मनाने, उनके जन्म स्थान भटकुड़ा में स्मारक तथा संग्रहालय बनाने, मुनस्यारी में पंडित नैन सिंह रावत के स्मारक एवं पार्क के अधूरे निर्माण को पूरा करना आदि शामिल रहा।
जहां तक नैन सिंह रावत के कृतित्व की बात है तो उन्हें तिब्बत को पैदल नापने व वहां का नक्शा तैयार करने के लिए जाना जाता है। अब वह बड़े पर्दे पर आ रहे हैं। देश के पहले सर्वेयर नैन सिंह रावत पर फिल्म बनने जा रही है। निर्देशक अहमद खान इस फिल्म को बना रहे हैं। डाक विभाग ने 17 जून 2004 को इनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया था। नैन सिंह वह व्यक्ति हैं जिन्होंने दुनिया को तिब्बत के भूगोल से परिचित कराया था। नैन सिंह रावत का जन्म मुनस्यारी के भटकुड़ा गांव में हुआ था। हालांकि उनका पैतृक गांव उच्च हिमालयी गांव ‘मिलम’ है। वर्ष 1948 में वह अपने मूल गांव में रहने आ गए थे। वह व्यापार के लिए तिब्बत जाते रहते थे। उन्होंने ल्हासा की समुद्र तल से ऊंचाई नापी थी। उन्होंने यहां के अक्षांश व देशांतर की गणना भी की। नैन सिंह रावत ने 1856 से लेकर 1872 तक चार बार तिब्बत की यात्रा की। वह महान सर्वेयर थे। तिब्बत की गहन जानकारी के कारण वह अंग्रेजों के नजदीक आए। कहते हैं कि माला के दाने गिराकर कदमों को गिनकर उन्होंने सर्वे का मानक तैयार किया था। यह भी कहा जाता है कि वह दोनों पैरों के बीच में 33 इंच लंबी रस्सी बांधते थे। जब दो हजार पग पूरे हो जाते तो उसे एक मील माना जाता था।
वह 16 साल तक घर नहीं लौटे। उनकी पत्नी हर साल उनके लिए नए कोट व पैजामा बनाती थी। जब वह 16 साल बाद लौटे तो उन्हें 16 कोट व पैजामे भेंट किए गए। नैन सिंह रावत ने 1855-56 में एक सर्वेयर व द्विभाषीए के तौर पर पहली बार तुर्किस्तान की यात्रा की। मुनस्यारी के ही रहने वाले प्रसिद्व लेखक शेर सिंह पांगती ने उन पर ‘हम भी हैं घुमक्कड़’ नामक पुस्तक लिखी। कहते हैं कि आजीविका के लिए उन्होंने भेड़-बकरी पालन शुरू किया। वह रोज डायरी के पन्ने लिखा करते थे। उन दिनों अध्यापन करने वालों को पंडित की पदवी दी जाती थी। वह डायरी में सामाजिक पहलुओं का वर्णन करते थे। नैन सिंह पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। वह एक महान अन्वेषक थे। कहते हैं कि अपने अन्वेषण के लिए वह घर से पूरी तरह दूर रहे। उनके लिखे डायरी के पन्ने बताते हैं कि उन्हें, अरबी, फारसी, अंग्रेजी, कुमाऊंनी, तिब्बती व हिंदी भाषा का अच्छा ज्ञान था। गूगल ने उनके जन्म दिन पर उन्हें श्रद्धांजलि दी और कहा कि वह तिब्बत को पहली बार विश्व मानचित्र पर लाए। 19 वीं सदी में तिब्बत का नक्शा बनाने का काम अंग्रेजों ने उन्हें दिया था। तिब्बत के ल्हासा की समुद्र तल से ऊंचाई ज्ञात की तो यहां से निकलने वाली मुख्य नदी त्सांगपो के बड़े भाग का मानचित्रण भी किया। वह आधुनिक विज्ञान पर अक्षांश दर्पण लिखने वाले पहले भारतीय थे। वह तिब्बत भाषा के भी जानकार थे।
नैन सिंह रावत द्वारा ठोक- ज्यालुंग यात्रा, यारकंद यात्रा व अक्षांस दर्पण पुस्तकें भी लिखी गई। वह अंग्रेजों के लिए द्विभाषीय का भी काम करते थे। तिब्बत का नक्शा बनाने जैसा असंभव कार्य करने के लिए अंग्रेज सरकार ने नैन सिंह रावत को वर्ष 1877 में बरेली के पास तीन गांवों की जागीरदारी उपहार के रूप में दी थी। वर्ष 1876 में उन पर दि जियोग्राफिकल मैगजीन ने एक लेख भी प्रकाशित किया था। उत्तराखण्ड की बात करें तो प्रदेश की हरीश रावत सरकार ने एकमात्र काम 21 अक्टूबर 2015 को मुनस्यारी के बलाती में उनकी याद में पर्वतारोहण संस्थान खोला था। मुनस्यारी में बनने वाले उनके स्मारक एवं पार्क आज भी अधूरे हैं। इसके अलावा इस महान सर्वेक्षक के नाम पर खास काम प्रदेश में आज तक नहीं हुआ।
नैन सिंह की की प्रमुख यात्राएं
- मिलम-बद्रीनाथ-माणा गांव (1851-1854)
मिलम से चंबा (1854)
मिलम से लेह (1856-57)
मिलम-काठमांडू-ल्हासा-मानसरोवर (1865-66)
मिलम-सतलज-सिंधु-जालंुग (1867)
मिलम-चारकंद-काशगर मिशन एक (1870)
मिलम-शिमला-लेह-मारकंद-काशगर मिशन दो (1873)
मिलम-लेह-ल्हासा-तवांग-आसाम (1874-75)
जिस व्यक्ति को उसके कार्यों के लिए दुनिया ने माना, उसे अपनी सरकारों ने भुला दिया। हम चाहते हैं कि इस महान अन्वेषक की याद में उत्तराखण्ड में विशेष कार्य किए जाएं। उनकी जयंती को सरकारी स्तर पर मनाया जाय। उनकी जयंती पर राजकीय अवकाश घोषित हो। इस महान अन्वेषक के कार्यों से नई पीढ़ी परिचित हो। उनके जीवन व कार्यों से प्रेरणा ले सके, इसके लिए स्कूली स्तर पर कार्यक्रम आयोजित हों।
जगत मर्तोलिया, सामाजिक कार्यकर्ता
- नैन सिंह रावत को मिले पुरस्कार
रायल ज्योग्रैफिकल सोसाइटी लंदन का अभिभाव स्वर्ण पदक
ब्रिटिश सरकार का कम्पेनियन ऑफ इंडियन एम्पायर
वर्ष 2014 में भारतीय डाक विभाग द्वारा डाक टिकट जारी
वर्ष 2017 मंे उनके 187 वें जन्मदिन पर गूगल का डूडल जारी
वविक्टोरिया पदक