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Uttarakhand

‘आप’ का कप्तान कौन

उत्तराखण्ड में आम आदमी पार्टी ने 2022 का विधानसभा चुनाव दिल्ली मॉडल पर लड़ा। दिल्ली की तर्ज पर मतदाताओं के बीच गारंटी कार्ड बांटे गए। जिनमें फ्री बिजली से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ ही रोजगार की गारंटी दी गई। लेकिन देवभूमि की जनता ने ‘आप’ की किसी भी गारंटी पर अपनी मुहर नहीं लगाई। विधानसभा में पार्टी जहां अपना मुख्यमंत्री बनाने का दावा कर रही थी, वहीं मुख्यमंत्री के घोषित उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा पाए। जिन नेताओं के हाथ में पार्टी की पतवार थी वे पार्टी की नैया को पार लगाने की बजाय उसे मझधार में ही छोड़ भागे। फिलहाल चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रीय पार्टी घोषित होने के बाद ‘आप’ उत्तराखण्ड में फिर से मजबूत संगठन खड़ा करने की तैयारी में है। पुराने प्रभारी की छुट्टी कर नए प्रदेश प्रभारी और सह प्रभारी नियुक्त कर दिए गए हैं। पार्टी की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए अध्यक्ष की नियुक्ति पर केंद्रीय हाई कमान विचार कर रहा है। जल्द ही उत्तराखण्ड को नया कप्तान मिलने वाला है

उत्तराखण्ड के दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर जब पुष्कर सिंह धामी दिल्ली पहुंचे तो वहां उन्होंने एक प्रवासी सम्मेलन में कहा था कि आम आदमी पार्टी ने उत्तराखण्ड की जनता से बड़े-बड़े वायदे कर उनके साथ छल करने की कोशिश की, लेकिन उत्तराखण्ड की जनता ने उन्हें पूरी इज्जत के साथ विदा किया। उत्तराखण्ड में जिनके नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ा, उन्होंने अपनी पूरी टीम के साथ पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने दावा किया कि उत्तराखण्ड के अंदर आम आदमी पार्टी का नामोनिशान खत्म हो गया है और ना ही यह पार्टी पुनर्जन्म ले पाएगी। मुख्यमंत्री धामी ने जो उक्त बात कही देखा जाए तो वह आम आदमी पार्टी के बनाए गए हवाई किले की हकीकत है। उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनावों से पहले जिस तरह से आम आदमी पार्टी दिल्ली की तर्ज पर प्रदेश के मतदाताओं को लुभाने के प्रयास कर रही थी और पार्टी की तरफ से चुनावों में दमदार जीत के दावे किए जा रहे थे वे न केवल ध्वस्त हुए, बल्कि पार्टी के सभी बड़े पदों पर बैठे मुख्य लोग भाजपा की शरण में चले गए। हालांकि आम आदमी पार्टी के नेता मुख्यमंत्री की पुनर्जन्म ना लेने की बात से असहमत हैं।

राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। महज 11 साल में ही दो राज्यों में अपनी सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी के नेता उस दिन से उत्साहित हैं जब से पार्टी को ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा मिला है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने गत 10 अप्रैल को आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया है। ‘आप’ को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद से पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल सहित देशभर के कार्यकर्ताओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। ऐसे में जब ‘आप’ को अब राष्ट्रीय पार्टी घोषित कर दिया गया है तो पार्टी देश के अलग-अलग राज्यों में अपना संगठन खड़ा करने में लग गई है। इनमें उत्तराखण्ड भी है। हालांकि उत्तराखण्ड में नौ साल पहले ही आम आदमी पार्टी ने एंट्री कर ली थी। तब 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने सभी पांचों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। जिनमें अनूप नौटियाल और बल्ली सिंह चीमा ने चुनाव लड़ा था। लेकिन इसके बाद उत्तराखण्ड में पार्टी निष्क्रिय हो गई। जिसके चलते पार्टी 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव नहीं लड़ी। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह पार्टी की सबसे बड़ी भूल रही। हालांकि 2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने अपनी भूल सुधार करते हुए जोर-शोर से मैदान में उतरने की घोषणा की। चुनाव से पहले जिस जोश और वायदों के साथ आम आदमी पार्टी ने उत्तराखण्ड मे एंट्री मारी तो सियासी गलियारों मे यह चर्चा होने लगी थी कि इस बार उत्तराखण्ड में भी दिल्ली की तरह बदलाव देखने को मिलेगा, लेकिन जनता के जनादेश और मोदी लहर में आम आदमी पार्टी पत्तों की तरह बिखर गई। यहां तक कि पार्टी की नैया को पार लगाने का दावा करने वाले पार्टी के दिग्गज ही अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। रही सही कसर उस समय निकल गई जब पार्टी के तारणहार कहे जाने वाले नेता जिनमें मुख्यमंत्री पद पर घोषित हुए कर्नल (रि) अजय कोठियाल और संयोजक रहे दीपक बाली ही पार्टी का दामन छोड़ भाजपा में चले गए।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो उत्तराखण्ड में आम आदमी पार्टी से बड़े नेताओं का मोहभंग इसलिए भी हुआ कि यहां पर शीर्ष नेतृत्व ने सेनापति तो खड़े कर दिए, लेकिन उनकी लगाम दिल्ली से बांध दी गई। प्रदेश स्तर पर कोई भी फैसला नहीं लिया जा रहा था। वहीं, दूसरा कारण यह भी है कि विधानसभा चुनाव 2022 में आम आदमी पार्टी को जनता ने इस कदर नकार दिया कि पार्टी का मुख्यमंत्री फेस सहित कई बड़े नेता तक अपनी जमानत नहीं बचा पाए, तो पार्टी नेताओं को लगा कि ‘आप’ का प्रदेश में कोई जनाधार ही नहीं है।

बहरहाल, हार के बाद लड़खड़ाई आम आदमी पार्टी एक बार फिर से खड़ी होने की कोशिशों में जुट गई है। अब पार्टी की नजर नगर निकाय चुनावों पर है जो इसी साल के आखिर में होने हैं। यही वजह है कि ‘आप’ इन दिनों सदस्यता अभियान चला रही है। उधर, कई बड़े नेताओं ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ली। जिनमें चार दशक तक कांग्रेस के सिपाही रहे जोत सिंह बिष्ट प्रमुख हैं। इसी दौरान पार्टी ने अपने पुराने प्रभारी दिनेश मोहनिया को हटा दिया है। मोहनिया ही वह प्रभारी हैं जिनके रहते पार्टी को विधानसभा में करारी हार का सामना करना पड़ा था। चुनावों में मिली हार के बाद भी पार्टी ने डेढ़ साल तक मोहनिया को प्रदेश प्रभारी बनाए रखा। लेकिन अब पार्टी ने उत्तराखण्ड के नए प्रभारी और सह प्रभारी नियुक्त किए हैं। जिनमें प्रभारी बरिंद्र गोयल को बनाया गया है जबकि सह प्रभारी रोहित महरोलिया बने है। बरिंद्र गोयल पंजाब के संगरूर से लहरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और रोहित महरोलिया दिल्ली की त्रिलोक पूरी सीट से आम आदमी पार्टी के विधायक हैं।
‘आप’ के ऊधमसिंह नगर के जिला सचिव रवि कुमार इस बाबत कहते हैं कि नवनियक्ुत प्रभारी एवं सहप्रभारी का उत्तराखण्ड में स्वागत है। चेहरे बदलने से राज्य में पार्टी की स्थिति में कोई सधुर नहीं होगा। चुनाव के बाद समीक्षा तक नहीं की गई। केंद्रीय नेतत्ृव द्वारा पार्टी को मजबूत करने के लिए स्थानीय सगंठन के सच्चे और क्रांतिकारी साथियों को महत्व देना होगा। पार्टी में शामिल होने वाले प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत है, उसे सगंठन के अधीन रहना होगा। यह समझना बहुत आवश्यक है कि पार्टी की छवि आम आदमी की है उसी छवि के अनुसार कार्य करना होगा। दिल्ली तथा पजांब से संपर्क के लिए समन्वय समिति बनाना आवश्यक है।

दौड़ में कलेर और बिष्ट

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उत्तराखण्ड में आम आदमी पार्टी अब अपने नए अध्यक्ष की तलाश में जुट गई है। पार्टी को अब ऐसे अध्यक्ष की तलाश है जो पार्टी के लिए समर्पित होकर काम कर सके। फिलहाल उत्तराखण्ड में कोई बड़ा चुनाव नहीं है लेकिन पार्टी संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए ‘आप’ के वरिष्ठ नेताओं ने उत्तराखण्ड में नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश शुरू कर दी है। इसके लिए उत्तराखण्ड से कई नामों का पैनल दिल्ली भेजा गया जा चुका है। माना जा रहा है कि जल्द ही एक नाम पर सहमति बन सकती है। कहा जा रहा है कि निकाय चुनावों की तैयारी के लिए अगले महीने में नया प्रदेश अध्यक्ष पार्टी को मिल जाएगा। उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनाव में ‘आप’ को मिली करारी हार के बाद कई नेता पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। अब पार्टी हर कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहती है क्योंकि जिन नेताओं पर उसने भरोसा जताया था, वे सब धोखा दे चुके हैं इसलिए ‘आप’ का केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि उत्तराखण्ड की कमान एक ऐसे नेता को दी जाए जो पार्टी के लिए समर्पित होकर काम कर सके।

 

‘आप’ नेताओं और कार्यकर्ताओं का कहना है कि कि भले ही अध्यक्ष के चयन में कुछ देरी हो रही हो लेकिन अध्यक्ष ऐसा हो जो पार्टी में टिक कर रहे। फिलहाल पार्टी पिछले अनुभव को देखते हुए अपने किसी पुराने विश्वासपात्र पर ही दांव लगाने की

Jot Singh Bist

तैयारी में है जिसके लिए कुछ विश्वासपात्र नेताओं का नाम चर्चा में है। इन सबमे ऊपर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रह चुके एसएस कलेर का नाम आ रहा है। कलेर खटीमा से आम आदमी पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। बताया जा रहा है कि चुनाव लड़ने के दौरान उन्होंने ही प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने की सिफारिस पार्टी आलाकमान से की थी। तब उन्होंने अपने चुनाव में व्यस्त होना बताया था। देखा जाए तो इस समय पार्टी के पुराने और समर्पित नेता एसएस कलेर ही हैं। कलेर हालांकि खटीमा से पिछले विधानसभा चुनाव हार गए थे।

खटीमा के भाजपा उम्मीदवार पुष्कर सिंह धामी की हार के पीछे कलेर का नाम मुख्य रूप से चर्चाओं में रहा था। वह इसलिए कि जब पुष्कर सिंह धामी खटीमा से चुनाव लड़ रहे थे तो तब कलेर की कई वीडियो वायरल हुई थी। उनमें एक वीडियो में कलेर धामी से भिड़ते नजर आए थे। तब कलेर ने धामी पर चुनावों में सरकारी अधिकारियों का सहयोग लेने के आरोप लगाए। यही नहीं बल्कि खटीमा विधानसभा चुनावों में एक दूसरी वीडियो भी बड़ी तेजी से वायरल हुई थी। जिसमें एक टाटा टैम्पो गाड़ी साड़ियों से भरी हुई पकड़ी गई थी। कलेर ने उस साड़ियों से भरी गाड़ी को भाजपा प्रत्यासी पुष्कर सिंह धामी का बताया था। बताते है कि कलेर द्वारा वायरल की गई ये वीडियो चुनावों में पुष्कर सिंह धामी की हार का कारण बनी थी। प्रदेश अध्यक्ष के संभावित नामों में कलेर के अलावा इस समय ‘आप’ के प्रदेश संगठन समन्वयक जोत सिंह बिष्ट का नाम भी चर्चाओं में है। चालीस साल तक कांग्रेस में रहे बिष्ट पिछले साल ही ‘आप’ में शामिल हुए हैं।

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