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Uttarakhand

कब लगेंगे रोपवे से पर्यटन को पंख

उत्तराखण्ड में कई ऐसे तीर्थ और पर्यटन स्थल हैं, जहां आसानी से पहुंच पाना मुमकिन नहीं है। यहां तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को लंबी पैदल दूरी तय करना पड़ती है, जो हर किसी के बस की बात नहीं है। लेकिन आने वाले दिनों में ऐसा नहीं होगा। पहाड़ की दुश्वारियों के बीच रोमांचक सफर को आसान बनाकर पर्यटन को बढ़ावा देने में रोपवे अहम किरदार अदा करेंगे। इसके मद्देनजर प्रदेश में कई रोपवे प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। निश्चित तौर पर रोपवे परियोजनाओं के धरातल पर उतरने से राज्य में पर्यटन और तीर्थाटन को पंख लगने के साथ ही रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। लेकिन इस राह में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। इन परियोजनाओं के लिए वन भूमि हस्तांतरण और पर्यावरणीय स्वीकृति के अवरोध उत्पन्न करती रही है

रोपवे यानी रज्जू मार्ग प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है। उनका मानना रहा है कि रोपवे परियोजनाएं प्रदेश के विकास में मील का पत्थर साबित होंगी और इससे राज्य में पर्यटन को नई रफ्तार मिलेगी। वह रोपवे नेटवर्क से पहाड़ की कनेक्टिविटी को बदलने की बात करते रहे हैं। इस समय प्रदेश में छोटे-बड़े 14 ऐसे रोपवे प्रोजेक्ट हैं जिन्हें सरकार धरातल पर उतारने की घोषणाएं कर चुकी है। इसमें 5.5 किमी. लंबा देहरादून-मसूरी रोपवे भी शामिल है। अगर यह जमीन में उतरता है तो यह एशिया का सबसे लंबा रोपवे बन जाएगा। लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि सरकार नए रोपवे परियोजनाओं के निर्माण की बात तो कर रही है लेकिन पूर्व में कई रोपवे परियोजनाएं ऐसी हैं जो वर्षों पूर्व घोषणा के बाद भी धरातल में नहीं उतर पाई हैं। जबकि उत्तराखण्ड में कई ऐसे तीर्थ स्थल हैं जहां पर सड़क कनेक्टीविटी मौजूद नहीं है। वहां तक पैदल पहुंचना मजबूरी है। ऐसे में रोपवे को सड़क कनेक्टिविटी का बड़ा विकल्प माना गया है।

अगर सरकारी प्रयासों की बात करें तो पर्यटन विकास को लेकर धामी सरकार ने अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिये हैं। कुमाऊं के प्रमुख मंदिरों को रोपवे से जोड़ने के लिए मानसखंड कॉरिडोर विकसित करने की योजना चल रही है। इसके लिए कुमाऊ क्षेत्र के प्रमुख मंदिरों तक अच्छी सड़क एवं रोपवे बनाए जाने हैं। राज्य के मुख्य सचिव डॉ एसएस संधु ने पर्यटन एवं लोक निर्माण अधिकारियों के साथ इस विषय पर एक बैठक भी की है। प्रदेश सरकार इस समय 14 रोपवे प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। जिसमें 10 बड़े व 4 छोटे प्रोजेक्ट शामिल हैं। अभी हाल में पर्यटन विकास परिषद की बोर्ड बैठक में पांच रोपवे प्रोजेक्ट को मंजूरी प्रदान की जा चुकी है। इसमें पंचकोटी से बौराड़ी, बलाटी बैंड से खलिया टॉप, ऋषिकेश से नीलकंठ, औली से गौरसों, रानीबाग से हनुमान गढ़ मंदिर तक रोपवे का निर्माण किया जाना है। इनका सर्वे भी शुरू कर दिया गया है। प्रदेश के केदारनाथ, हेमकुंड साहिब, चंडीदेवी में तीन रोपवे परियोजनाओं को राज्य वन्यजीव बोर्ड से अनुमति मिल गई है। केदारनाथ और हेमकुंड साहिब रोपवे के लिए दो हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है। केदारनाथ रोपवे 13 किमी लंबा होगा। हेमकुंड साहिब रोपवे की लंबाई 12.5 किलोमीटर होगी। चंडीदेवी रोपवे 2.13 किमी होगा।

यूं तो प्रदेश सरकार ने 35 नए रोपवे के प्रस्ताव जारी किए हैं। ऋषिकेश में 6 किमी लंबा रोपवे तैयार होना है। यह रोपवे आईएसबीटी से त्रिवेणीघाट व त्रिवेणीघाट से नीलकंठ महादेव होते हुए पार्वती मंदिर तक बनना है। 36 किमी की परिधि वाले इस क्षेत्र में रोपवे के चलते यह दूरी 6 किमी में बदल जानी है और यह दूरी मात्र 21 मिनट में पूरी की जा सकती है। इस रोपवे में आईएसबीटी, त्रिवेणीघाट, नीलकंठ व पार्वती मंदिर में चार स्टेशन बनने हैं। प्रदेश में अभी मसूरी, मंसा देवी, नैनीताल, सहस्रधरा, औली, चंडीदेवी में रोपवे हैं जबकि केदारनाथ, हेमकुंड साहिब, देहरादून-मसूरी, ऋषिकेश- नीलकंठ, हरकी पैड़ी-चंडी देवी में रोपवे प्रस्तावित है। इसके अलावा जो रोपवे बनाए जाने हैं उनमें देहरादून में पुरकुल गांव से मसूरी, कद्दूखाल से सुरकंडा देवी मंदिर, ढुलीगाढ़ से पूर्णागिरी, जानकी चट्टी से यमुनोत्री, रानीबाग से नैनीताल, गौरीकुंड से केदारनाथ, गोविन्दघाट से हेमकुंड, झलपाड़ी से दीवारडांडा, कीर्तिखाल से भैरवगढ़ी शामिल है।

इसके अलावा गौरीकुंड-केदारनाथ, औली-गौरसों, ऋषिकेश-नीलकंठ, खलियाटाप- मुनस्यारी, पंचकोटी-नई टिहरी, गोविंदघाट-हेमकुंड साहिब, रानीबाग -नैनीताल रोपवे परियोजनाओं के लिए नेशनल हाईवे, लॉजिस्टिक मैनेजमेंट से सरकार अुनबंध कर चुकी है लेकिन धरातल पर काम होना अभी बाकी है। हवाई बयानों के इतर ये रोपवे किस गति से जमीन पर उतर पाते हैं यह देखना अभी बाकी है। क्योंकि रोपवे मार्ग में अभी कई तरह की बाधाएं भी सामने आ रही हैं। सोनप्रयाग से केदारनाथ रोपवे में बेस कैंप तक 20 टॉवर लगने हैं। इसमें 1000 पेड़ कटने हैं। इसके अलावा सोनप्रयाग, गौरीकुंड व केदारनाथ में 3 बड़े एवं चीड़बासा, लिनचोरी में दो स्टेशन भी बनने हैं।

लेकिन वर्तमान में जो स्थितियां हैं वे बेहतर नहीं कहीं जा सकती हैं। जनपद पिथौरागढ़ में एक से एक धार्मिक व पर्यटन स्थल हैं। बावजूद इसके यह जनपद रोपवे से अभी तक नहीं जुड़ सका है। जबकि वर्षों से घोषणाएं होती आई हैं। वर्ष 1994 में ध्वज,चंडिका मंदिर, चंडाक, मोस्टमानू तक रोपवे बनाने का प्रस्ताव बना था लेकिन यह आज तक धरातल में नहीं उतर पाया। इसी तरह चंडिका मंदिर-असुरचुला- ध्वज रोपवे भी हवा हवाई ही साबित हुआ है। वर्ष 2014 में मुनस्यारी से खलियाटॉप रोपवे भी घोषणाओं में अटका हुआ है। पिथौरागढ़ जिला प्रशासन शासन को चार रोपवे बनाने का प्रस्ताव भेज चुका है जिसमें जाजरदेवल से असुरचूला मंदिर, डीडीहाट से मलयनाथ मंदिर, बूंदी से छियालेख व तवाघाट से नारायण आश्रम, बलाती बैंड से खलिया टॉप तक के रोपवे प्रस्ताव शामिल हैं। चंपावत जनपद में कहने को 6 छोटे रोपवे हैं। लेकिन इसमें से चार बंद पड़े हैं। उपराकोट से फुरकियासाला एवं लोहियासेरा से खिरद्वारी तक जरूरी चलायमान है। पूर्णागिरी धाम को जोड़ने के लिए बनाया जाने वाला पूर्णागिरी रोपवे को अभी भी शुरू होने का इंतजार है। चंपावत जिले में मुख्यमंत्री धामी ने हिंग्लादेवी से चाय बागान तक रज्जू मार्ग (रोपवे) की घोषणा की थी लेकिन इस पर अभी काम शुरू नहीं हो पाया है।

इसके अलावा खिरद्वारी -लोडियासेरा रज्जू मार्ग खराब हालत में हैं। जिले में सैंदर्क-अमकड़िया, सिमाड़ -पुनाबे, दियूरीबैंड-मटेला, जलकुनिया- श्यामलाताल रोपवे का भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। नैनीताल जनपद में एकमात्र रोपवे है। इसका संचालन वर्तमान में कुमाऊं मंडल विकास निगम कर रहा है। यह मल्लीताल से स्नोव्यू तक जाता हैं लेकिन इसके अलावा जनपद में रानीबाग से नैनीताल वाला रोपवे लंबे समय से खटाई में पड़ा है। चमोली जनपद में हेमकुंड साहिब रोपवे का निर्माण नहीं होने से श्रद्धालुओं को 19 किमी. की पैदल यात्र करनी पड़ी है। जबकि 2018 में धांधरिया से हेमकुंड रोपवे की घोषणा हुई थी। अब एक बार फिर आश जगी है कि शायद यह धरातल पर उतर पाए। अभी जनपद में एकमात्र रोपवे जोशीमठ- औली रोपवे का संचालन कार्य गढ़वाल मंडल विकास निगम अवश्य कर रहा है। टिहरी जनपद में कैम्पटीफॉल-मसूरी रोपवे सहित आठ रोपवे संचालित हैं।

पौड़ी जनपद में पोखरा ब्लॉक में जलपाड़ी, जयहरीखाल क्षेत्र में कीर्तिखाल- भैरवगढ़ी रोपवे, पौड़ी बाजार से क्यूंकालेश्वर मंदिर तक रोपवे की घोषणाएं कई बार हो चुकी हैं लेकिन यह जमीन पर नहीं उतर पाए हैं। नई टिहरी में टिपरी-मदनगेरी रोपवे का संचालन तो हो रहा है लेकिन स्यासूं-भल्डियाणा रोपवे का संचालन लंबे समय से ठप पड़ा है। वहीं सुरकंडा रोपवे का निर्माण बहुत धीमी गति से हो रहा है। रूद्रप्रयाग जिले में आज तक कोई रोपवे अस्तित्व में नहीं आ पाया है। अब जाकर केदारनाथ रोपवे से उम्मीद जगी है। उत्तरकाशी जनपद में रोपवे विकास शिलान्यास तक सिमटा हुआ है। यहां यमुनाघाटी के खरसाली गांव में रोपवे बनना था। 4 किमी. लंबे इस रोपवे निर्माण की लागत 70 करोड़ आंकी गई थी लेकिन अभी तक टेंडर नहीं हो पाया है। अल्मोड़ा जिले में भी कोई रोपवे नहीं है। जबकि यहां अल्मोड़ा नगर से कसारदेवी, पांडेयखोला, स्याही देवी के लिए रोपवे स्वीकृत हैं लेकिन काम नहीं हो पा रहा है। इसी तरह उत्तराखण्ड की काशी कहे जाने वाले बागेश्वर में भी तमाम घोषणाओं के बाद भी रोपवे नहीं बन पाया है जबकि यहां नीलेश्वर से चंडिका मंदिर तक रोपवे की मांग काफी पुरानी है। हालात ये हैं कि नए रज्जू मार्गों के निर्माण की घोषणाएं तो हो रही हैं लेकिन पुराने पर काम नहीं हो रहा है।

उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने के लिए पर्वतमाला परियोजना पर काम हो रहा है। इसके तहत पहाड़ी जिलों में रोपवे परिवहन का नेटवर्क तैयार किया जा रहा है। राज्य स्तर पर अनुमोदन के बाद जो भी प्रस्ताव केंद्र को जाते हैं उनका लगातार फॉलोअप सुनिश्चित किया जा रहा है। वन्य, वन्यजीव व पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी है लेकिन इसके साथ ही राज्य का विकास भी जरूरी है। इसलिए हमें इकोलॉजी व इकोनॉमी में समन्वय बनाकर आगे बढ़ने की जरूरत है।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड

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