[gtranslate]
Uttarakhand

कब बदलेगी शिक्षा की तस्वीर

उत्तराखण्ड पृथक राज्य बनने के बाद नीति-नियंताओं से जनता ने यह उम्मीद रखी थी कि अब उनके बच्चों को बेहतर स्कूली शिक्षा के लिए शहरों में पलायन नहीं करना पड़ेगा, लेकिन बीते बाईस वर्षों में स्थिति में ज्यादा सुट्टार नहीं हो पाया है। राज्य में स्कूली शिक्षा बदहाली के कगार पर जा पहुंची है। हालात इतने विकट हैं कि हजारों करोड़ रुपए शिक्षा मद में प्रतिवर्ष खर्च होने के बावजूद सरकारी स्कूलों में शौचालय और पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविट्टाओं का टोटा है। प्रयोगशाला और पुस्तकालयविहीन स्कूलों के भवन जर्जर हो चले हैं। बीते बाईस बरसों में सैकड़ों स्कूल बदइंतजामी का शिकार हो बंद हो गए हैं

कहा जाता है कि खराब सरकारी स्कूल खराब निजी स्कूलों को बढ़ावा देते हैं। अगर सरकारी स्कूलों की स्थिति अच्छी होगी तो निजी स्कूल भी बेहतर करने की तरफ बढ़ेंगे। उत्तराखण्ड की शिक्षा की तस्वीर भी इस कथन से मिलती-जुलती है। राज्य गठन के 22 वर्षों बाद भी शिक्षा व्यवस्था पटरी पर नहीं आ पाई है। सरकारी शिक्षा के केंद्र आवश्यक आधारभूत ढांचें, शिक्षकों व प्रयोगशालाओं की कमी झेल रहे हैं तो इनके विकल्प के तौर पर जगह-जगह खुले कई निजी विद्यालय भी मानकों पर खरे नहीं उतरते। ऐसे में सवाल यह है कि क्या धामी सरकार प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिर्वतन ला सकती है? राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों को छोड़ भी दें तो राज्य के मुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्रियों के जिले में ही शिक्षा के बुरे हाल हैं। पूर्व शिक्षा मंत्री रहे मंत्री प्रसाद नैथानी के जिले टिहरी में 173 व पूर्व मुख्यमंत्री देने वाले बीसी खण्डूड़ी, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, विजय बहुगुणा, त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत यानि पांच मुख्यमंत्री देने वाले पौड़ी में 171 स्कूल जर्जर हालत में हैं।

देहरादून जिले में 121 स्कूलों की स्थिति दयनीय है। विधायक सुरेश राठौर ने पूर्व में स्कूलों की दुर्दशा का सवाल जब विधानसभा में उठाया तो सरकार की तरफ से शिक्षा मंत्री ने अपने लिखित जबाब में कहा था कि प्रदेश में 172 माध्यमिक व 1116 बेसिक स्कूलों की स्थिति काफी खराब है, इनके पुननिर्माण के लिए व्यवस्था की जा रही है। यही नहीं राज्य के बेसिक स्कूलों में लगातार छात्र संख्या में गिरावट आ रही है। राज्य के 2298 इंटर कॉलेज व हाईस्कूल में 1496 में स्थाई प्रिंसिपल एवं हेडमास्टर नहीं हैं। वहीं जब विधायक प्रीतम सिंह पंवार ने प्रधानाचार्यों की नियुक्ति संबंधी सवाल किया तो उसके जबाव में बताया गया कि प्रदेश में हेडमास्टर के 912 पदों में से 416 खाली हैं। 1386 इंटर कॉलेजों में 1080 में स्थाई प्रिंसिपल नहीं है।

पौड़ी गढ़वाल के ग्वाड़खाल का स्कूल : छात्रों की कमी से हो चुका है बंद

वहीं प्रदेश में स्कूल ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या भी लगातार घट रही है। बड़ी संख्या में ही बच्चे बीच में स्कूल छोड़ रहे हैं। केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट कहती है कि प्रदेश में कक्षा 9 व 10 के बीच सबसे अधिक बच्चे बीच में ही स्कूल छोड़ रहे हैं। ऐसे बच्चों की दर 9 .1 प्रतिशत है। प्रदेश के 2500 इंटर कॉलेजों में 4148 पद रिक्त चल रहे हैं। प्रदेश में इंटर की कक्षाओं में 22 विषयों में 4000 प्रवक्ताओं के पद खाली हैं। हिंदी में 557 व अंग्रेजी में 460 शिक्षक कम हैं। विषयवार देखें तो गणित में 265, जीव विज्ञान में 299, रसायन विज्ञान में 398, भौतिक विज्ञान में 272, अंग्रेजी में 460, भूगोल में 243, नागरिक शास्त्र में 533, अर्थशास्त्र में 555, हिंदी में 557 पद रिक्त चल रहे हैं। हालांकि सरकार माध्यमिक स्कूलों की 430 विज्ञान एवं कंप्यूटर लैब को आधुनिक बनाने के लिए 21 करोड़ 50 लाख रुपए खर्च करने जा रही है। इसमें 68 लैब गढ़वाल पौड़ी जिले व 51 लैब अल्मोड़ा में हाईटैक बनाई जानी हैं। अभी कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ में 36, चंपावत में 17, बागेश्वर में 16, अल्मोड़ा में 51, नैनीताल में 45, यूएसनगर में 31 लैब हैं। वहीं गढ़वाल मंडल में चमौली में 39, रुद्रप्रयाग में 12, टिहरी में 43, उत्तरकाशी में 28, देहरादून में 27, हरिद्वार में 27, पौड़ी में 68 लैब हैं। वहीं प्रदेश में 10 से कम छात्र संख्या वाले 3618 स्कूल हैं जिनका विलीनीकरण होना है।

जनपदवार देखें तो कुमाऊ मंडल के पिथौरागढ़ में 433 प्राथमिक व 73 जूनियर, चंपावत में 135 प्राथमिक व 11 जूनियर, बागेश्वर में 193 प्राथमिक व 23 जूनियर, अल्मोड़ा में 459 प्राथमिक व 35 जूनियर, नैनीताल में 194 प्राथमिक व 27 जूनियर, ऊधमसिंह नगर में 35 प्राथमिक व 03 जूनियर तो वहीं गढ़वाल मंडल के हरिद्वार को छोड़कर देहरादून में 189 प्राथमिक व 27 जूनियर, रुद्रप्रयाग में 122 प्राथमिक व 17 जूनियर, उत्तरकाशी में 156 प्राथमिक व 46 जूनियर, पौड़ी में 645 प्राथमिक व 74 जूनियर, टिहरी में 375 प्राथमिक व 60 जूनियर व चमोली में 239 प्राथमिक व 47 जूनियर प्राथमिक विद्यालय में छात्र संख्या 10 से कम है। प्रदेश के 14 हजार 40 बेसिक व जूनियर स्कूलां में 53 हजार 140 छात्र पढ़ते हैं लेकिन इनके पास बैठने के लिए फर्नीचर तक नहीं हैं। 541 स्कूली इमारतें जर्जर हाल में हैं।

सरकारी स्कूलों में लगातार छात्र संख्या घट रही है। इसकी एक वजह शिक्षकों व संसाधनों की कमी भी रही है। बजट के अभाव में संसाधन उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। यूं तो शिक्षा विभाग में 50 अरब रुपए का सालाना बजट है। लेकिन इसमें से 80 प्रतिशत बजट शिक्षक व अन्य कार्मिकों की तनख्वाह में खर्च हो जाता है। प्रदेश में करीब 70 हजार अफसर, शिक्षक व कर्मचारी हैं। इनकी तनख्वाह में ही 35 अरब रुपए खर्च हो जाते हैं। अगर प्रदेश के सीमांत जिले पिथौरागढ़ की स्थिति को देखें तो पिथौरागढ़ जनपद में डीईओ प्रारंभिक, उपशिक्षा अधिकारी, बीईओ के 12 पद खाली हैं। 106 इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्य एवं 78 हाईस्कूलों में प्रधानाचार्य नहीं है। सहायक शिक्षकों व प्रवक्ताओं के 987 पद खाली हैं। आठ विकासखंडों में से 06 में बीईओ के पद खाली है। उपशिक्षा अधिकारियों के 8 पदों के सापेक्ष 3 पद ही भरे हैं। 106 इंटर कॉलेज बगैर प्रधानाचार्यों के चल रहे हैं। प्रधानाध्यापकों के 87 पदों के सापेक्ष 9 पद ही भरे हैं। हाईस्कूल व इंटर कॉलेजों में सहायक शिक्षकों के 376 पद खाली हैं तो 611 पद प्रवक्ताओं के खाली हैं। हाईस्कूल, इंटर कॉलेज में 77 लिपिक, 69 दफ्तरी, 200 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी व 140 स्वच्छकों के पद खाली हैं।

 

प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को प्रखर व प्रभावी बनाने के लिए राज्य सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। सूबे में शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव किया जा रहा है। प्रदेश में विद्या समीक्षा केंद्र स्थापित करने की पहल की जा रही है जिसमें शिक्षा विभाग का संपूर्ण डाटा ऑनलाइन उपलब्ध होगा, जिसके तहत विषयवार डाटा, छात्र-छात्राओं के विवरण के साथ ही विद्यालयों में उपलब्ध संसाधनों का डाटा भी मौजूद रहेगा। प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में आधारभूत ढांचे के साथ ही शैक्षणिक व प्रशासनिक सुधार के साथ ही गुणवत्ता में भी परिवर्तन लाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है।
डॉ. धन सिंह रावत, शिक्षा मंत्री, उत्तराखण्ड सरकार

 

 

 

You may also like

MERA DDDD DDD DD