सात साल पहले तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में जिला विकास प्राधिकरण (डीडीए) का गठन किया था। उनके इस निर्णय का तब जमकर विरोध हुआ और इन्हें जनता पर अनाधिकृत बोझ कहा गया। जिस नक्शे को पास करने के काम नगर पालिका कर रही थी उसे उसके अधिकार क्षेत्र से हटाकर प्राधिकरण के अधीन कर दिया गया। पहले से ही आर्थिक बदहाली से जूझ रही पालिकाओं की आय का स्रोत खत्म हो गया। साथ ही भवन निर्माताओं को कई विभागों के चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ रहा है। जन विरोध को देखते हुए राज्य सरकार ने पूर्व मंत्री चंदन राम दास की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जिसने अपनी रिपोर्ट में इसे खत्म करने की संस्तुति ही कर दी थी। तत्कालीन तीरथ सिंह रावत सरकार और पहली बार बनी धामी सरकार में कुछ दिनों के लिए प्राधिकरण निष्क्रिय कर दिए गए लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें नक्शा पास कराने के अधिकार दे दिए गए। प्राधिकरण की कार्यशैली से जनता आजिज आ चुकी है। इन्हें बंद करने की मांग जोर-शोर से चल रही है। अल्मोड़ा में इसके विरोध में पिछले सात साल से धरना चल रहा है। प्राधिकरणों को अवैध उगाही के अड्डे तक कहा जा रहा है
‘पहाड़ की भौगोलिक स्थिति के उलट जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण थोपा गया है। जिस कारण से लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। लोगों को अपने भवन निर्माण कराने से पहले जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण से अनुमति लेनी पड़ रही है जिस कारण से उन्हें अलग-अलग विभागों के धक्के खाने पड़ रहे हैं और भवन निर्माण कराने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। कुछ लोगों ने प्राधिकरण को अवैध उगाही का अड्डा बना डाला है।’
यह कहना है नगर पालिका अल्मोड़ा के निर्वतमान अध्यक्ष प्रकाश जोशी का। जिनके नेतृत्व में अल्मोड़ा के चौघानपाटा में पिछले सात सालों से कई संगठन के लोग धरने पर बैठते हैं। यह धरना जिला विकास प्राधिकरण (डीडीए) के विरोध में चल रहा है। साल 2017 में पर्वतीय क्षेत्रों में जिला विकास प्राधिकरण लागू हुआ था। इसके लागू होने के बाद से ही प्रदेश में प्राधिकरण का विरोध होने लगा था। अल्मोड़ा के लोग पिछले सात साल से इसके विरोध में हर मंगलवार को चौघानपाटा में धरना प्रदर्शन करते हैं।
ऐसा नहीं है कि प्राधिकरण का विरोध केवल अल्मोड़ा के लोग कर रहे हैं, बल्कि बागेश्वर और पिथौरागढ़ के लोग भी इस धरने को अपना समर्थन देते रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश के कई हिस्सों में कई संगठन के लोगों ने जिला विकास प्राधिकरण को समाप्त करने के लिए आंदोलन किए हैं। लेकिन उसके बावजूद भी प्रदेश सरकार द्वारा इसे वापस नहीं लिया गया। जिला विकास प्राधिकरण से पहले भवनों के नक्शे नगर पालिका पास करती थी, लेकिन अब अपने भवनों के नक्शे पास कराने के लिए लोगों को जिला विकास प्राधिकरण से अनुमति लेनी पड़ रही है। प्राधिकरण पर आरोप है कि इस दौरान वह वहां निर्माण करने वाले लोगों को अनुमति के नाम पर परेशान करते हैं। ऐसे में लोग प्राधिकरण को उगाही का अड्डा तक कह रहे हैं।
गौरतलब है कि साल 2017 में जिला स्तरीय विकास प्राधिकरणों का गठन किया गया था। 13 नवंबर 2017 को तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार में सभी जिलों के स्थानीय प्राधिकरणों और नगर निकायों की विकास प्राधिकरण से सम्बंधित शक्तियां लेते हुए 11 जिलों में जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण गठित किए गए थे। इसमें स्पष्ट किया गया था कि सभी जिला विकास प्राधिकरणों में नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे के 200 मीटर दायरे में आने वाले सभी गांव, शहर इसमें शामिल होंगे। 200 मीटर के दायरे में आने वाले सभी गांव और शहरों में नक्शा पास करना अनिवार्य कर दिया गया था। जिला विकास प्राधिकरणों के गठन के बाद इसका जमकर विरोध हुआ था। विपक्षी पार्टी कांग्रेस के साथ ही सत्तापक्ष के नेता इसके खिलाफ सड़कों पर आ गए थे। यही नहीं प्राधिकरण का जनप्रतिनिधियों ने भी खुलेतौर पर विरोध किया था। जिसे देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने
तत्कालीन बागेश्वर विधायक चंदन रामदास की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। चंदन राम दास की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट विधानसभा को सौंपते हुए इन प्राधिकरणों को रद्द करने की सिफारिश की थी। जिसके बाद सभी जिला विकास प्राधिकरणों को पहले तीरथ रावत सरकार ने और फिर पुष्कर सिंह धामी सरकार ने स्थगित कर दिया था। लेकिन 18 अप्रैल 2023 को कैबिनेट की बैठक में प्राधिकरण को पुनः स्थापित करते हुए ये फैसला लिया गया कि डीडीए प्रदेश में पहले की तरह ही काम करता रहेगा। हालांकि इसके साथ ही इसमें कई बदलाव भी किए गए। सरकार ने प्राधिकरण के क्षेत्र का दायरा जो पहले 200 मीटर था उसे घटाकर 50 से 100 मीटर हवाई दूरी तक कर दिया। इसके साथ ही सरकार ने नक्शा पास करने का शुल्क भी घटाकर आधा कर दिया था। जिला विकास प्राधिकरण सक्रिय होने से हर नए निर्माण का नक्शा पास कराना जरूरी हो गया है।
नगर पालिका अल्मोड़ा की पूर्व अध्यक्ष शोभा जोशी कहती हैं कि ‘विकास प्राधिकरण लागू होने से जनता बेहद परेशान है। लोगों को भवन निर्माण में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। एक ओर सरकार पलायन पर अंकुश लगाने की बात कर रही है तो दूसरी तरफ इसके विपरीत प्राधिकरण लागू कर पलायन को खुद बढ़ावा दे रही है। ग्रामीण क्षेत्र की जनता भी इस जनविरोधी प्राधिकरण के कारण काफी परेशान हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की जनता ज्यादातर गरीब है। खेती-बाड़ी, पशुपालन करके वो अपने परिवार का गुजर-बसर करती है। एक-एक पैसा जोड़कर अपने लिए एक छोटे से भवन का निर्माण करना चाहती है, लेकिन इस बीच प्राधिकरण के नियम आड़े आ जाते हैं। जोशी के अनुसार प्राधिकरण के नाम पर जनता को नोटिस पर नोटिस देकर एक भय का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। नक्शा पास कराने के नाम पर अवैध उगाही कर मोटी कमाई की जा रही है।