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Uttarakhand

कब खुलेगा जमरानी का जाम

ऊर्जा प्रदेश के नाम से स्थापित उत्तराखण्ड को नदियों का प्रदेश भी कहा जाता है। नदियों का उद्गम स्थल होने के बाद भी कई क्षेत्रों में लोग प्यासे और बूंद-बूंद पानी को मोहताज हैं। जल विद्युत परियोजनाओं की ओर से अभी भी पूरी उदासीनता बनी हुई है। नैनीताल जनपद के जमरानी बांध परियोजना का मामला भी ऐसा ही है जो पांच दशक से भी अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी बनना तो दूर उसके निर्माण की प्रारम्भिक प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो सकी है, जबकि अब तक उस पर करोड़ों रुपयों की धनराशि बर्बाद की जा चुकी है। अब परियोजना की लागत में करीब 10 गुना बढ़ोतरी हो चुकी है। राजनीतिक गलियारों में यह मुद्दा चुनावों के निकट अक्सर छाया रहता है। इस पर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, चर्चाएं चलती हैं। लेकिन सवाल आज भी वही है कि राजनीतिक प्रपंचों में उलझा जमरानी का जाम कब खुलेगा?

‘‘जमरानी बांध का सपना दिखाकर कई नेता खुद को राजनीतिक फलक में स्थापित कर गए, बस एक जमरानी बांध ही था जो स्थापित नहीं हो पाया। ये महज चुनावी शिगूफा बनकर रह गया। चुनावों के दौरान जमरानी का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा होता था, मगर चुनाव खत्म हो जाने के बाद यह हमेशा भुला दिया गया। जमरानी बांध के नाम पर नेता वोट भी मांगते रहे, जनता उन्हें वोट भी देती रही मगर नेताओं से सवाल पूछने में संकोच करती रही। वोट तो आपने भरपूर लिए मगर लौटाने की बारी आई तो आप आश्वासनों से हमें भरमाते रहे। जब जमरानी बांध की बात की गई थी तो समझाया गया था कि हल्द्वानी और उसके आस-पास ही नहीं वरन् सम्पूर्ण तराई भाबर, बरेली, पीलीभीत की खेती इस परियोजना से लहलहा उठेंगी और पेयजल की समस्या का समाधान हो जाएगा। कहा गया कि हल्द्वानी और उसके आस-पास के इलाके को भरपूर पीने का पानी मिलेगा जो आज भी पानी की भयंकर किल्लत से जूझ रहे हैं।ञञ यह कहना है हल्द्वानी निवासी राजू रावत का। यह दर्द अकेले राजू का ही नहीं बल्कि उन हजारों लोगों का है जो पिछले कई दाकों से जमरानी बांध परियोजना के पूरा होने की आस में टकटकी लगाए बैठे है।

जमरानी बांध परियोजना कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी के काठगोदाम क्षेत्र से दस किमी . दूर गौला नदी के अपस्ट्रीम पर बनाई जानी है। जमरानी बांध की परिकल्पना आज से लगभग 54 साल पहले की गई थी। 1968 की गर्मियों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कृष्ण चन्द्र पंत तत्कालीन विद्युत मंत्री केएल राव को तराई- भाबर के भ्रमण पर लाए थे। केएल राव ने अमेरिका के विशेषज्ञ बुक के दल से सर्वेक्षण करवा कर इसे सैद्धांतिक रूप से मंजूर किया था। 1974 में 61.25 करोड़ की इस जमरानी बांध परियोजना को भारत सरकार की स्वीकृति के लिए भेजा गया। 1975 में इसे स्वीकृति मिली और 1976 में केसी पंत ने इसका शिलान्यास किया। जिसकी अध्यक्षता नारायण दत्त तिवारी ने की। लेकिन वक्त के साथ इसकी लागत बढ़ती गई जो आज लगभग 2700 करोड़ के आस-पास पहुंच गई है। पहले चरण का कार्य 10 करोड़ की लागत से पूरा कर भी लिया गया। उसके बाद इसके निर्माण में राजनीति का प्रवेश हुआ। जिसने इस बहुद्देशीय परियोजना को राजनीति प्रपंचों में उलझाए रखा। इस बांध के निर्माण से ज्यादा राजनीतिक दलों की दिलचस्पी ने इसे चर्चाओं में बनाए रखा। उनके चुनावों मुद्दों बेशक में जमरानी बांध बनना प्राथमिकता रही। लेकिन केसी पंत और नारायण दत्त तिवारी की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते यह परियोजना आगे नहीं बढ़ पाई।

लोगों की मानें तों जमरानी बांध परियोजना एक महत्वाकांक्षी और दूरदर्शी परियोजना है। इसके द्वारा उत्तराखण्ड सहित उत्तर प्रदेश के पीलीभीत और बरेली के क्षेत्रों तक सिंचाई की सुविधा दी जानी है तथा हल्द्वानी और उसके आस-पास के क्षेत्रों में पीने का पानी मुहैया कराया जाना है। अभी तक 2584.10 करोड़ की लगात को पार कर चुकी इस परियोजना से नैनीताल जिले के छः गांव प्रभावित हो रहे हैं जिसमें मुरकुड़िया, तिलवाड़ी, उडवा, पस्तोला, गंगरोड पनिया बोर ग्राम आते हैं। यहां लगभग 1236 परिवारों का विस्थापन होना है। इन परिवारों के विस्थापन और पुनर्वास पर लगभग पांच सौ करोड़ रुपए खर्च होने हैं। सरकार की यहीं पर अग्निपरीक्षा होनी है क्योंकि बांध निर्माण में विस्थापन और पुनर्वास पर लोगों के अनुभव बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। डूब क्षेत्र में आ रहे लोगों का पुनर्वास सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। सिंचाईं विभाग की पुनर्वास स्कीम, पुनर्वास स्थल की प्लानिंग और टाउन प्लानिंग पर कितना ईमानदारी से अमल हो पाता है यह अभी भविष्य के गर्भ में छिपा है। जमरानी बांध से 57065 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को सिंचाईं के पानी का लाभ मिलना है। यह पानी उत्तराखण्ड के नैनीताल, ऊधमसिंह नगर के तराई भाबर क्षेत्र के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के बरेली, पीलीभीत तक सिंचाईं हेतु उपलब्ध होगा।

जिसमें नहरों के निर्माण और जीर्णोद्वार के लिए 250 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। 2053 तक हल्द्वानी शहर को 42 एमसीएम पेयजल उपलब्ध कराने का प्रावधान है। हल्द्वानी शहर को पानी उपलब्ध कराने हेतु बांध स्थल पर बनने वाले कुएं से 16 किमी. पाइप लाइन बिछाई जाएगी। जिसके लिए वन क्षेत्र से गुजरने वाली पाइप लाइन के लिए वन विभाग की स्वीकृति जरूरी होगी। शीतलाहाट, दमवाढुंगा और शीशमहल में बनने वाले डब्ल्यूटीपी प्लांट से हल्द्वानी, कालाढूंगी और लालकुआं विधानसभा क्षेत्र के हल्द्वानी से सटे इलाकों में जलापूर्ति होने से पेयजल समस्या का एक हद तक समाधान हो सकेगा। 1828 करोड़ रुपए बांध के निर्माण में खर्च होने का अनुमान है। जमरानी बांध के अस्तित्व में आ जाने के बाद 63 लाख मिलियन यूनिट बिजली उत्पादन हर वर्ष होगा। जमरानी बांध की पिछले चौवालीस वर्षों में बढ़ती लागत से सरकारों के सामने आर्थिक संसाधन जुटाने की चुनौती हमेशा से रही है। 2014 के बाद से भाजपा ने हर चुनावों में जमरानी बांध का वायदा किया है। शायद उसी दबाव का परिणाम था कि इसे राष्ट्रीय परियोजना में शामिल कर लिया गया। अपने स्तर से किसी भी राज्य सरकार के लिए बांध परियोजनाओं के लिए आर्थिक संसाधन जुटा पाना संभव नहीं है।

जून 2022 में केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय की ओर से 2584 ़10 करोड़ की जमरानी बांध परियोजना को सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान की गई। जिसमें केंद्र एवं राज्य का अनुपात 90-10 का होगा। मतलब यह कि इस परियोजना पर 90 प्रतिशत केंद्र सरकार और 10 प्रतिशत राज्य सरकार का खर्चा होगा। जबकि इस परियोजना में 600 करोड़ का अंशदान उत्तर प्रदेश का भी है। जलशक्ति मंत्रालय की इन्वेस्टमेंट क्लियरिंग कमेटी ने 90ः10 के अनुपात में निवेश की स्वीकृति दे इस परियोजना को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत वित्तीय स्वीकृति को भेजा है। अब पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड की बैठक में योजना के लिए वित्तीय स्वीकृति का इंतजार है। जिसकी बैठक फरवरी माह में होना तय माना गया था। लेकिन फरवरी माह भी गुजर चुका है। जमरानी बांध परियोजना के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश केंद्रीय बजट में कोई प्रावधान नजर नहीं आया। वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाईं योजना के लिए 8587 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। सवाल है कि क्या इस राशि में से जमरानी बांध को कुछ मिल पाएगा।

क्योंकि आज जिस स्थिति में जमरानी बांध परियोजना की कार्ययोजना पहुंच गई है अब बजट का पहलू ही ज्यादा महत्वपूर्ण है। पूर्व में भी स्वीकृति के बाद प्रथम चरण के नाम पर 10 करोड़ खर्च कर जिस प्रकार जमरानी क्षेत्र में कार्यालय और आवासीय परिसर स्थापित किए गये थे उसके बाद परियोजना की वित्तीय स्वीकृति के इंतजार में वो जर्जर ढांचे में तब्दील होते चले गये। लेकिन प्रत्येक परियोजना के सकारात्मक पक्ष के साथ नकारात्मक पक्षों की चर्चा होती हैं। जमरानी बांध की झील बनने के बाद पर्यटन को पंख लगने, सिंचाईं पेयजल की सुविधाओं की गूंज के बीच बांध के विरोध के स्वर कहीं नहीं सुनाई देते। लालकुआं के जीवन सिंह उप्रेती के अनुसार गौला नदी के चुगान से सरकार को जो अरबों का राजस्व मिलता है और एक बड़ा तबका इस खनन से आजीविका अर्जित करता है उसके लिए चुनौती बढ़ेगी।

मजदूर, ट्रक मालिक, पेट्रोल पम्प व्यवसायी से लेकर एक बड़ा तबका इससे प्रभावित होगा। हल्द्वानी से लेकर किच्छा तक कई लोग खनन व्यवसाय से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से व्यवसाय में लगभग गौला नदी से हजारों करोड़ रुपए का व्यवासाय होता है। फिलहाल जमरानी बांध की वित्तीय स्वीकृति का सभी को इंतजार है। केंद्रीय रक्षा और पर्यटन राज्यमंत्री और क्षेत्रीय सांसद अजय भट्ट इस परियोजना के लिए खासे उत्साहित हैं। जमरानी बांध परियोजना के प्रधानमंत्री सिंचाईं योजना में शामिल होने से उनको विश्वास है कि इसको शीघ्र ही वित्तीय स्वीकृति मिल जाएगी। इस परियोजना को 2022 से 5 वर्षों में, 2027 में पूर्ण होने का लक्ष्य रखा गया था। वित्तीय स्वीकृति मिलने में देरी होने से इसमें विलंब होना निश्चित है।

हर सरकार से जमरानी बांध बनाने की मांग की शुरूआत मैंने ही की थी क्योंकि इसके लाभार्थी सिर्फ हल्द्वानी या इसके आस-पास के इलाके ही नहीं हैं यह परियोजना भाबर व तराई के लिए वरदान सिद्ध होगी जिसका लाभ उत्तर प्रदेश के भी कई क्षेत्रों को मिलेगा। उनका इस परियोजना से लगाव शायद इस लिए भी है इसके लिए मेरे संघर्ष ने राजनीति में मुझे एक दिशा दी। जिसके चलते में विधानसभा पहुंचा और मुझे एक और मजबूत प्लेटफॉर्म मिला। जहां मैं इसके लिए आवाज मजबूती से उठा सकूं। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री, सिंचाई मंत्री और केंद्र की सरकारों तक मैंने इसके लिए मुलाकातें की। भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय ने इसको प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत वित्तीय स्वीकृति के लिए भेजा है। जल्द ही इस परियोजना के लिए धनराशि मंजूर हो जाएगी। जमरानी बांध का निर्माण शुरू होना मेरे लिए सबसे बड़ा दिन होगा। मेरा लगाया पौधा एक पेड़ के रूप में बनता महसूस होगा। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के समय इस परियोजना को पर्यावरणीय स्वीकृति मिल गई थी और पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्रित्वकाल में ये स्वीकृति के अंतिम चरण में पहुंच गई है।
बंशीधर भगत, विधायक कालाढूंगी

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