इक्कीस बरस के उत्तराखण्ड में सबसे ज्यादा विवादित छवि वाले राजनेता हरक सिंह रावत को बताया जाता है। पहली निर्वाचित सरकार को अनेकों बार अपने कैबिनेट मंत्री हरक सिंह चलते शर्मसार होना पड़ा था। जैनी सेक्स कांड, परवासी भर्ती घोटाला यदि पहली निर्वाचित सरकार में हरक सिंह के नाम दर्ज बड़े विवाद हैं तो नेता प्रतिपक्ष रहते उन पर विकास नगर, देहरादून में जमीन हड़पने का आरोप भी। 2016 में हरीश रावत सरकार को गिराने की साजिश में मुख्य भूमिका इन्हीं हरक सिंह की रही। त्रिवेंद्र रावत सरकार में जरूर प्रेशर पॉलिटिक्स करने में माहिर हरक सिंह की खास दाल नहीं गली। अब एक बार फिर से रावत इसी प्रेशर पॉलिटिक्स के जरिए धामी सरकार को दबाव में ले मीडिया की सुर्खियां बटोर रहे हैं
तीन दशक पहले उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार में पहाड़ का एक चेहरा सबसे कम उम्र में पहली बार मंत्री बन कर सुर्खियों में आया था। राजनीति के वह नव युवक हरक सिंह रावत थे। हरक सिंह की लंबी राजनीतिक यात्रा में उपलब्धियों से कहीं ज्यादा ऐसे प्रकरण हैं जिनके चलते वे लगातार विवादों और सुर्खियों में बने रहते हैं। उनकी छवि एक अराजक और अगंभीर राजनेता की है। राजनीतिक गलियारों में हरक सिंह की कसमे और वादों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। कभी वह विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने के बाद मंत्री न बनने का एलान करते हैं और मंत्री पद को जूते की नोंक पर रखते कहते नजर आते हैं। इतना ही नहीं, मां धारी देवी की कसम खाकर भविष्य में कभी मंत्री न बनने की कसम दोहराते हैं। लेकिन कुछ दिनों बाद ही वह सरकार में फिर मंत्री बन जाते हैं। यह वही हरक सिंह है जो 2022 का विधानसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। लेकिन शायद ही किसी को इस घोषणा पर विश्वास हो। उत्तराखण्ड के दो दशक के राजनीतिक इतिहास में अगर किसी राजनेता के दामन पर सबसे ज्यादा दाग लगे तो वह हरक सिंह ही है। राजनीतिक गलियारों में अक्सर यह कहा जाता है कि अगर कोई और नेता होता तो कब का राजनीति छोड़ चुका होता। लेकिन हरक के बारे में कहा जाता है कि ‘‘हरक को क्या पड़ता है फरक।’’
गत 24 दिसंबर को एक बार फिर वह उस समय सुर्खियों में आ गए जब देहरादून में पुष्कर सिंह धामी सरकार की कैबिनेट बैठक चल रही थी। बैठक में कोटद्वार मेडिकल कॉलेज का प्रस्ताव न होने का बहाना बनाकर वह इस्तीफा देने की धमकी देकर मीटिंग से बाहर चले गए। हालांकि उत्तराखण्ड की राजनीति में हरक के इस कदम को एक बार फिर प्रेशर पॉलिटिक्स की संज्ञा दी गई। उत्तराखण्ड में अब तक शायद ही कोई ऐसी सरकार बनी होगी जिसमें हरक सिंह ने प्रेशर पॉलिटिक्स का भरपूर प्रयोग नहीं किया होगा। इस बार भी हरक के प्रेशर पॉलिटिक्स के सामने धामी सरकार झुकी और आनन-फानन में ही कोटद्वार मेडिकल कॉलेज के लिए 5 करोड़ रुपए की स्वीकृति कर दी गई।
दरअसल, कोटद्वार मेडिकल कॉलेज का तो एक बहाना था। हकीकत में हरक सिंह को अपने गिरते राजनीतिक कैरियर को बचाना है। चुनाव होने में महज दो माह का शेष है। ऐसे में कोटद्वार की जनता हरक से खासी नाराज बताई जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जनता की मिजाज को पहचाने में माहिर हरक सिंह एक बार फिर से प्रेशर पॉलिटिक्स का सहारा ले खुद का राजनीतिक वजूद बचाने की कवायद में जुट गए हैं। हरक के खाते में एक से बढ़कर एक विवाद जमा हैं। जेनी सेक्स स्कैंडल हो या पटवारी भर्ती घूस कांड, बीज एवं तराई विकास निगम के अध्यक्ष पद सहित दोहरे लाभ का फायदा हो, हरीश रावत सरकार की पीठ में छुरा घोंप कर भाजपा खेमे में शामिल होना हो या सन्नीकार कर्मकार कल्याण बोर्ड का घोटाला। सभी मामलों में वह बैकफुट पर जाते नजर आते हैं।
हरक सिंह रावत का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि वह कभी एक पार्टी के विश्वासपात्र नही रहे। हरक पहली बार 1991 के विधानसभा चुनाव में पौड़ी सीट से जीत कर उत्तर प्रदेश की विधानसभा में पहुंचे थे। तब अविभाजित राज्य उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपनी सरकार में उन्हें पर्यटन राज्य मंत्री बनाया था। उस दौरान हरक सिंह रावत उत्तर प्रदेश सरकार में सबसे युवा मंत्री थे। इसके बाद वर्ष 1993 का विधानसभा चुनाव भी उन्होंने पौड़ी विधानसभा सीट से लड़ा और दोबारा जीत दर्ज कराई। इसके तीन साल बाद ही वर्ष 1996 में भाजपा संग हरक सिंह रावत के मतभेद होने शुरू हो गए। जिसके चलते उन्होंने भाजपा को अलविदा कह दिया। भाजपा से नाता तोड़ने के बाद हरक बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने तब हरक सिंह रावत को कैबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ पर्वतीय विकास परिषद में उपाध्यक्ष का पद सौंपा। इस पद पर वह केवल एक महीने रह सके । इसके बाद मायावती ने उन्हें प्रमोट करते हुए कैबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ उत्तर प्रदेश खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड और महिला और बाल विकास बोर्ड का चेयरमैन बना दिया। इतना ही नहीं बल्कि तब मायावती ने हरक सिंह रावत को उत्तर प्रदेश बसपा के महामंत्री के साथ ही उत्तराखण्ड इकाई के अध्यक्ष का कार्यभार भी सौंपा।
इस दौरान हरक सिंह रावत को मायावती ने अपनी पार्टी के टिकट पर 1998 का लोकसभा चुनाव भी लड़ाया। तब वह बसपा से पौड़ी गढ़वाल सीट से मैदान में उतरे। लेकिन यह चुनाव वह जीत नहीं पाए। कारण रहा बसपा का पहाड़ी क्षेत्र में जनाधार नहीं होना। हालांकि पहाड़ों पर जाना-पहचाना चेहरा होने के कारण वह खासे वोट हासिल करने में कामयाब रहे थे। इसके कुछ समय बाद ही भाजपा के बाद उनका बहुजन समाज पार्टी से भी मोह भंग हो गया। भाजपा और बसपा के बाद हरक सिंह रावत ने 1998 में कांग्रेस का रुख किया। 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखण्ड में वर्ष 2002 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में हरक सिंह रावत लैंसडौन विधानसभा सीट से मैदान में उतरे और जीत हासिल की। उन्हें पहली निर्वाचित में कैबिनेट मंत्री बनने का अवसर मिला।
हरक सिंह रावत के चलते इस सरकार को एक सेक्स स्कैंडल के कारण खासा शर्मसार होना पड़ा था। दिल्ली से लेकर देहरादून तक जैनी सेक्स प्रकरण ने तो पूरे सिस्टम को ही हिलाकर रख दिया था। तिवारी सरकार के गठन होने के एक साल बाद ही सरकार में राजस्व मंत्री हरक सिंह रावत पर असम की एक महिला इंदिरा देवराऊ उर्फ जैनी ने आरोप लगाया था कि हरक सिंह रावत ने उन्हें देहरादून स्थित अपने घर में काम दिलाने के बहाने रखा और उसके साथ बलात्कार किया। जिससे वह उनके बच्चे की मां बनी। इसके बाद उत्तराखण्ड की राजनीति में तूफान आ गया। विपक्ष ने इस मुद्दे पर तिवारी सरकार की जमकर घेराबंदी कर दी। मजबूरन हरक सिंह रावत को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि बाद में सीबीआई जांच में हरक सिंह रावत को क्लीन चिट दे दी गई थी। इस सेक्स स्कैंडल का असर यह हुआ कि वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। हालांकि यह अलग बात है कि डीएनए टेस्ट में पाक साफ निकले हरक सिंह रावत खुद इसे सिम्पैथी में कन्वर्ट कर चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे।
नारायण दत्त तिवारी सरकार के कार्यकाल के दौरान ही पटवारी भर्ती घूस कांड चर्चाओं में रहा। इसमें भी हरक सिंह रावत का नाम खूब उछला था। पौड़ी के पटवारी भर्ती घोटाले में राजस्व मंत्री रहने के दौरान हरक सिंह रावत पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। तब उत्तराखण्ड में कांग्रेस मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार पूरी तरह इस घूस कांड के लपेटे में आ गई थी। इस पटवारी भर्ती परीक्षा में कापियां घर बैठकर जांची गई थी। मनमाने तरीके से नंबर देने का मामला भी सामने आया था। इसके साथ ही कई ऐसे लोगों को भी नौकरी दे दी गई थी, जिन्होंने परीक्षा के लिए आवेदन तक नहीं किया था। घपले का खुलासा होने के बाद पूरी प्रवेश परीक्षा को निरस्त किया गया था। इस घपले के चलते करीब डेढ़ दशक तक उत्तराखण्ड में पटवारी भर्ती परीक्षा दोबारा नहीं हुई। बताया जाता है कि उस समय हरक को लगा कि वह इस मामले में घिर रहें हैं तो उन्होंने बडी चतुराई से यह कहकर गेंद मुख्यमंत्री तिवारी के पाले में डाल दी थी कि जो भी हुआ, वह ‘पंडित जी’ यानी एनडी तिवारी की जानकारी में हुआ। फाइल पर उनके भी दस्तखत हुए हैं।
हरक तो बच गए लेकिन प्रशासन के अधिकारियों पर इसकी गाज गिरी थी। पौड़ी के तत्कालीन जिलाधिकारी एस.के. लांबा, मुख्य विकास अधिकारी कुंवर राजकुमार सिंह और उप
जिलाधिकारी विनोद चन्द्र सिंह रावत ने इस प्रकरण का खामियाजा भुगता और तीनों को सस्पेंड किया गया। बताया जाता है कि इस कांड में नाम आने के बाद पीसीएस राजकुमार सिंह के लिए तो आईएएस में चयन होना भी मुश्किल हो गया था। बामुश्किल वह आईएएस बन पाए थे। विनोद चंद्र रावत कभी आईएएस नहीं बन सके। न ही उन्हें कभी पोस्टिंग ही ढंग से मिली। जिलाधिकारी रहें एसके लांबा भी फिर आगे प्रोमोशन नहीं ले पाए। इस प्रकरण में कुल मिलाकर 78 पटवारी बर्खास्त कर दिए गए थे। सरकार की लीपापोती कहें या हरक सिंह रावत की राजनीतिक जादूगरी उनकी भूमिका पटवारी भर्ती में थी या नहीं यह आज तक साफ नहीं हुआ।
यही नहीं बल्कि कृषि मंत्री होने के बावजूद भी वह तराई बीज विकास निगम के साथ ही पूर्व सैनिक कल्याण निगम आदि में लाभ के दोहरे पद लेने के मामले में विवादित रहे। तब भाजपा ने इनकी खूब घेराबंदी की। मजबूरन हरक सिंह रावत को तराई बीज विकास निगम से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद हाई कोर्ट में याचिका दायर हुई। जिसमें हरक सिंह रावत को राहत मिली। बल्कि हरक सिंह रावत का अपने जनसंपर्क अधिकारी युद्धवीर की हत्या के बाद नाम चर्चाओं में रहा है। इस हत्याकांड में हरक सिंह का नाम उछलने पर सरकार को विपक्ष का हमला झेलना पड़ा था।
2007 में जब भाजपा की सरकार बनी और हरक सिंह रावत नेता प्रतिपक्ष बने तो उन पर देहरादून स्थित विकास नगर में करीब 100 बीघा भूमि गलत तरीके से हथियाने का आरोप लगा था।
वर्ष 2012 के चुनाव में हरक ने लैंसडोन की बजाय रुद्रप्रयाग सीट को चुना और यहां से भी चुनाव जीतने में सफल रहे। तब कांग्रेस की राज्य में सरकार बनी थी। पहले विजय बहुगुणा और फिर हरीश रावत के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार में हरक सिंह रावत को कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
वर्ष 2014 में उत्तराखण्ड में उस समय राजनीतिक हलचल मच गई जब दिल्ली के सफदरजंग एनक्लेव थाने में मेरठ की एक युवती ने अपने साथ हुए यौन शोषण का मामला दर्ज कराया। इस युवती ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराते हुए आरोपी का नाम एच एस रावत लिखवाया। इसके बाद चर्चा होने लगी कि वह आरोपी एच एस रावत यानी हरक सिंह रावत है। हालांकि यह सेक्स
स्कैंडल जैनी कांड की तरह चर्चित तो नहीं हुआ, लेकिन इसे जल्दी ही मैनेज कर लिया गया।
हरीश रावत सरकार में हरक सिंह द्वाराहाट के तत्कालीन विधायक मदन बिष्ट के एक स्टिंग को लेकर विवादों में रहे। इस स्टिंग में हरक सिंह रावत ने कई मामलों पर विवादास्पद टिप्पणी की थी। आपस में हो रही दोनों की बातों में ऐसा भी सुनने को मिला था जिससे लोकतंत्र भी शर्मसार हो उठा था। तब अवैध खनन को लेकर भी हरक सिंह रावत ने खुलासा करते हुए कहा था कि इस खेल में करोड़ों रुपए सरकार की जेबों में जाते हैं। इसके साथ ही हरक सिंह ने मुख्यमंत्री हरीश रावत पर आरोप लगाया था कि उन्होंने विधायकों को अपने पाले में लाने के लिए दो-दो करोड़ रुपये दिए हैं।
इसी दौरान वर्ष 2016 में हरीश रावत सरकार के खिलाफ बगावत कर दी गई। जिनमें मुख्य भूमिका पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत की रही। इस बगावत में बहुगुणा और रावत सहित कांग्रेस के नौ विधायकों ने विधानसभा सत्र के दौरान पार्टी से विद्रोह कर दिया। सभी नौ विधायकां ने मिलकर हरीश रावत सरकार गिराने की कोशिश की। यहीं सभी विधायक भाजपा में भी शामिल हो गए थे। हालांकि बाद में हरीश रावत सरकार एक साल से अधिक समय तक चली।
2017 के विधानसभा चुनाव में हरक सिंह कोटद्वार से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे जहां भाजपा ने उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया। पूर्व में त्रिवेंद्र सिंह रावत फिर तीरथ सिंह रावत और अब पुष्कर सिंह धामी सरकार में वह महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे हैं। कृषि मंत्री बनने के बाद वह अपनी मनमानी करने पर चर्चा में आए। तब शिक्षा विभाग की इजाजत के बगैर एक बीईओ दमयंती रावत और एक रिश्तेदार प्रधानाचार्य यशवंत सिंह रावत को मंत्री द्वारा कृषि विभाग में लाया गया। हरक सिंह रावत ने अपनी करीबी दमयंती को शिक्षा विभाग से प्रतिनियुक्ति पर इस बोर्ड में सचिव का पद दे दिया। इस पर जमकर विवाद हुआ। प्रदेश के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे और हरक सिंह रावत के बीच महीनों तक शीत युद्ध चलता रहा। प्रतिनियुक्ति के लिए एनओसी दिए बिना ही श्रम विभाग में दमयंती को भेजने के मामले ने जमकर तूल पकड़ लिया था। इस मामले को लेकर भाजपा की आपसी राजनीति का दूसरा ही रूप देखने को मिला। इतने विवाद के बाद भी हरक सिंह रावत ने दमयंती को इस पद पर बनाए रखा। 4 जुलाई 2021 को जब तीरथ सिंह रावत को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया तो नाराज होने वाले मंत्रियों में हरक सिंह रावत सबसे पहले मंत्री थे। तब उन्होंने योग्यता और अनुभव के आधार पर पुष्कर सिंह धामी का मुख्यमंत्री बनना स्वीकार नहीं किया था। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद वह माने। तब मंत्रालयों के हिसाब से भी उनका ओहदा बढ़ाया गया।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से हरक सिंह रावत की अक्सर अनबन रहीं। त्रिवेंद्र सिंह के कार्यकाल में हरक सिंह ने कई निर्णय पर उंगली उठाई कभी गैर सेंड कमिश्नरी पर तो कभी वन विभाग में फाइलें अटकने को लेकर हरक सिंह तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह से भिड़ते नजर आए। हालांकि हरक सिंह रावत ने भी त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में अपनी मनमानी में कोई कसर बाकी नहीं की। सरकार बनने के बाद साल 2017 में सन्नीकार कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद पर कार्यभार संभाल लिया। हरक के इस तरह यह पद संभालने पर सवाल खड़े हो गए थे। कारण यह है कि इस पद पर सचिव श्रम ही दायित्व संभालते रहे हैं। लेकिन भाजपा की सरकार में हरक सिंह रावत को श्रम मंत्रालय मिलने के बाद भी इस महत्वपूर्ण पद को उन्होंने ही संभाल लिया था जिसे नियमों के उल्लंघन के रूप में भी देखा गया। हरक सिंह रावत के कार्यकाल में सन्नीकार कर्मकार कल्याण बोर्ड में करोड़ां का घोटाला भी हुआ। यहां तक कि हरक सिंह पर यह भी आरोप लगे कि उन्होंने अपनी पुत्रवधू के एनजीओ को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से इस बोर्ड के करोड़ों रुपये के काम उनके एनजीओ को सौंप दिए थे जिनमें नियम विपरीत काम हुए। इसको लेकर बाद में यह मामला हाईकोर्ट भी गया। जहां यह अभी भी विचाराधीन है।
यही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी की टोपी लगाए लोगों ने श्रमिकों को साइकिलें बांटी। इन साइकिलों पर बोर्ड का नाम लिखा था। यह उस दौरान की बात है जब हरक सिंह रावत के बारे में कयास लगाए जाने लगे थे कि वह जल्द ही आम आदमी पार्टी का दामन थाम सकते हैं। तब इस मामले ने खूब तूल पकड़ा था। उस दौरान सवाल उठे थे कि आम आदमी पार्टी कैसे कर्मकार बोर्ड की साइकिलों को अपने फायदे के लिए बांट सकती है। मामला इतना बढ़ा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस पर जांच के आदेश भी दे दिए थे। कहा यह भी गया कि इसी मामले से तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हरक सिंह रावत को अध्यक्ष पद से हटाने की रूप रेखा तैयार कर ली थी।
इसके बाद इस पद से हरक सिंह रावत को हटाकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गत वर्ष अक्टूबर में अपने करीबी शमशेर सिंह सत्याल को सन्नीकार कर्मकार कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया था। हालांकि हरक सिंह रावत सत्याल को हटाने पर अडे़ रहे। इस मामले को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरक सिंह रावत में लंबे समय तक रार चलती रही। यहां तक कि मामला अदालत में पहुंचा। इसके बाद इस साल शमशेर सिंह सत्याल को बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटना पड़ा। बताते हैं कि यहां भी हरक सिंह रावत की प्रेशर पॉलिटिक्स की रणनीति ही काम आई।
महिला मामलों में हरक सिंह रावत अधिकतर विवादों के केंद्र में रहे हैं। उत्तराखण्ड के राजनेता अक्सर हरक सिंह के नाम पर चुटकुले लेते रहते हैं। कुछ दिन पहले ही सत्तारूढ़ भाजपा के एक नेता जो वर्तमान समय सरकार में मंत्री हैं ने कहा था कि जब हरक सिंह रावत आता है तो जवान बेटियों के घरों के दरवाजे बंद हो जाते हैं। हरक सिंह रावत के प्रेम प्रसंग लोगों की जुबान पर होते हैं। देहरादून में रहने वाली एक पंजाब की सिंगर की सोशल मीडिया पर डाली जाने वाली पोस्ट अक्सर चर्चाओं में रहती है। जिसमें वह महिला खुद को हरक सिंह रावत की पत्नी होने और अपने बच्चे को उनका पिता बताने के दावे से जुड़ी पोस्ट डालती रहती है। बताया जाता है कि यह सिंगर देहरादून के सहस्त्रधारा में एक लग्जरी फ्लैट में रह रही है।
बताया यह भी जाता है कि जब हरक सिंह रावत प्रदेश के कृषि मंत्री थे तो उन्होंने इसी महिला गायिका के भाई को देहरादून मंडी समिति का चेयरमैन भी बना दिया था। बात यहीं पर खत्म नहीं हुई बल्कि जब हरक सिंह रावत के पुत्र तुषित रावत की शादी थी तो महिला गायिका ने शादी की पार्टी का फोटो अपनी बेटी के साथ सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिख दिया था कि ‘अपने भाई की शादी में।’ इसके बाद मामला काफी चर्चाओं में आ गया था। बताया जाता है कि इस मामले में हरक सिंह रावत के बेटे तुषित रावत को सामने आना पड़ा था। बताया तो यहां तक जाता है कि तब तुषित रावत ने सोशल मीडिया पर लिखा था कि ‘उनकी कोई बहन नहीं है।’ हालांकि बाद में तुषित ने यह पोस्ट हटा दी थी। अभी भी वह महिला गायिका अपनी बेटी के नाम के आगे ‘रावत’ टाइटल लिखती है।