नमन चंदोला
कोरोना महामारी के दौरान आप कुछ फ्रंट लाइन वाॅरियर्स को घर-घर तक मदद पहुंचाते, जरूरतमंदों को अस्पताल पहुंचाते और यहां तक कि कोरोना से होने वाली मौतों का अंतिम संस्कार करते देखा होगा। ये फ्रंट लाइन वाॅरियर्स कोई और नहीं हमारे उत्तराखण्ड पुलिस के काॅन्स्टेबल्स हैं जो अन्य फ्रंट लाइन वाॅरियर्स के साथ मिलकर आपदा की इस घड़ी में हर संभव मदद कर रहे हैं और आज जब कोरोना काल के बीच पूरे विश्व में पुलिस एक फ्रंट लाइन वाॅरियर्स या यूं कहें कोरोना वाॅरियर्स के रूप में कार्य कर रही है तो आखिर क्या कारण हैं कि उत्तराखण्ड जिसे भावनाओं का प्रदेश भी कहते हैं, पुलिस कांस्टेबलों की भावनाओं को आहत किया जा रहा है?
और आखिर क्यों उत्तराखण्ड पुलिस के इन होनहार काॅन्स्टेबलों का ग्रेड पे 4600 से घटाकर 2800 कर दिया गया?
आइए एक नजर डालते हैं हमारे अनेक कोरोना योद्धाओं में से एक पुलिस कांस्टेबलों के कार्यक्षेत्र पर – देखिए कोरोनाकाल ही क्यों अगर प्रदेश में कभी आपदाएं आएं तो यही जवान मुस्तैदी से तैनात दिखते हैं, पहाड़ों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों में भी ये जवान बिना भय के निरंतर ‘उत्तराखण्ड पुलिस आपकी मित्र’ की भावना को चरितार्थ करते दिखते हैं। चाहे यातायात व्यवस्था बनाए रखना हो या कानून व्यवस्था का पालन कराना हो उत्तराखंड पुलिस के ये फ्रंट लाइन वाॅरियर्स और आधार स्तम्भ ही मुख्य भूमिका में दिखते हैं। ऊंची-ऊंची पहाड़ियों में रोड एक्सिडेंट से खाई में गिरे लोगों को निकालना हो या दूर दराज के क्षेत्रों में सहायता पहुंचाना हो, नदियों के जलस्तर बढ़ने पर लोगों की जान बचाना हो या असहाय की मदद। यही फ्रंट लाइन वाॅरियर्स (हमारे कांस्टेबल्स) हमारे काम आते हैं।
हम रात भर चैन से सो पाते हैं क्योंकि हमें पूरा भरोसा होता है कि हमारे इन रात भर जागने वाले रक्षकों के रहते हमें कुछ नहीं हो सकता। फिर एक सवाल हर आम आदमी के मन में उठता है कि जब वो (काॅन्स्टेबल्स) इतना सबकुछ करते हैं तो फिर उनको अन्य कर्मचारियों की तरह समय पर प्रोन्नति क्यों नहीं मिलती?
सरकार इसके चाहे बहुत से कारण गिनाए लेकिन आम जनता का यही मानना है कि उन्हें उनका हक मिलना ही चाहिए। जब हमने इस संबंध में कुछ सिपाहियों से बात की तो उनमें से एक सिपाही ने नाम उजागर न की शर्त पर बताया कि पिछले एक साल से कोविड 19 महामारी के दौरान वो बिना एक दिन की छुट्टी काटे ड्यूटी पर तैनात है।
पिछले साल जब महामारी चरम पर थी तो उसकी शादी उस बीच पूर्व से फिक्स थी लेकिन उन्होंने शादी को डेट को आगे बढ़ाकर जनसेवा में तैनाती का फैसला लिया। एक और सिपाही ने बताया कि उत्तराखण्ड पुलिस का हर एक सिपाही प्रोटोकाॅल से बंधा होता है यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे ग्रेड पे को कम किया गया है ऐसा किसी और विभाग में होता तो वे लोग काम रोक कर आंदोलन कर लेते लेकिन हम लोग ऐसा नहीं कर सकते फैसला उच्च अधिकारियों और सरकार को लेना है हमें उम्मीद है इस फैसले पर पुनर्विचार अवश्य होगा।
अब देखिए इन सब के बीच उत्तराखण्ड सरकार के हाल के फैसले ने हम सब को अवश्य ही निराश किया है, बल्कि हमें ही नहीं वर्तमान में कोरोना वाॅरियर्स के नाम से मशहूर हमारे काॅन्स्टेबलों के मनोबल को भी जरुर हतोत्साहित किया है। हर समय बिना बहाने ड्यूटी करने की तत्परता के बावजूद इस तरह उनका ग्रेड पे घटना अन्यायपूर्ण रवैया है।
एक तरफ सरकार आपदा में अवसर खोजने की बात कहकर कहती है कि हर युवा को इस आपदा में भी सकारात्मक अवसर खोजने चाहिए वहीं फ्रंट लाइन वारियर्स के ग्रेड पे के साथ लिया गया फैसला तो बिल्कुल भी सकारात्मक नहीं है, खैर यहां हम सरकार के बारे में ज्यादा बात नहीं करेंगे हम बात करेंगे अपने कोरोना योद्धाओं, उत्तराखण्ड पुलिस के काॅन्स्टेबलों की।
अब देखिए एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रिटायरमेंट के समय वरिष्ठ बाबू तक पहुंच जाता है।
एक बाबू वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी तक पहुंच जाता है।
एक पटवारी तहसीलदार तक पहुंच जाता है।
फोरेस्ट गार्ड रेंजर तक पहुंच जाता है।
लेकिन एक सिपाही सिपाही ही रह जाता है।
अंतर देखिए योग्यता में वह एक आम बाबू की योग्यता के बराबर होता है जो प्रशासनिक अधिकारी तक पहुंच जाता है लेकिन उसी योग्यता के आधार पर भी एक सिपाही अपनी अधिकांश सेवा सिपाही के रूप में ही देता है।
ऊपर से अब ग्रेड पे का खेल जहां एक सिपाही को 20 वर्ष की विभागीय सेवा के पश्चात 4600 ग्रेड पे मिलना था वहीं उसे अब 2800 ग्रेड पे मिलेगा। इससे वेतन में लगभग 20000 से 25000 का अंतर आने की उम्मीद है।
अब सोचिए जहां विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक विचारधाराएं एकमत होकर इस विचार को बढ़ाने के पक्षधर थे कि उत्तराखण्ड पुलिस के इन फ्रंट लाइन वर्कर्स/काॅन्सटेबल्स का ग्रेड पे बढ़ा कर उनको सम्मान दिया जाए, अर्थात ग्रेड पे 4600 से 4800 किया जाए।
प्रमोशन न मिलने की स्थिति में काॅन्स्टेबलों को तीन पदों का वेतनमान और ग्रेड पे अनिवार्य रूप से दिया जाता था। लेकिन इसके विपरीत सरकार द्वारा उत्तराखण्ड पुलिस के इन योद्धाओं और आधार स्तंभों का ग्रेड पे 4600 से 2800 किया जा रहा है जिससे सीधे 1800 रुपया की बड़ी कटौती की जाएगी जो कि किसी भी राज्य हितैषी और उत्तराखण्ड पुलिस के शुभचिंतक को गवारा नहीं है।
एक सिपाही समूह ग की योग्यता को पुरा करने के बाद भी उसे एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी श्रेणी से रिटायर होना पड़ेगा। लगभग 35-40 साल सेवा करने का यह फल तो नहीं होना चाहिए।
एक और सिपाही ने बताया कि आज उत्तराखण्ड पुलिस के ज्यादातर जवान हायर एजुकेशन के साथ-साथ तकनीकी योग्यता को रखतें हैं लेकिन इसके बावजूद इनको समय पर प्रोन्नति न मिलने से मनोबल कहीं न कहीं गिरता है। अन्य राज्यों के मुकाबले आज उत्तराखण्ड के लगभग 90 प्रतिशत से ज्यादा जवान ग्रेजुएट हैं और विभिन्न योग्यताओं को रखते हैं ऐसे में सरकार पर पुलिस विभाग की ही जरुरतों के हिसाब से इन्हीं जवानों को आवश्यकता अनुरूप प्रशिक्षण देकर तैनाती दी जाती है इससे सरकार पर अन्यत्र नियुक्तियों का वित्तीय बोझ नहीं पड़ता। इस फैसले को लेकर जहां एक तरफ काॅन्स्टेबल इस फैसले से अचंभित हैं वहीं उत्तराखण्ड पुलिस के डीजीपी द्वारा इस मसले पर कमेटी बना इस समस्या के समाधान की बात कही गई है।
आगे क्या होगा भविष्य की गर्त पर है लेकिन हमें उम्मीद है जल्द इस फैसले को वापस लेकर फ्रंट लाइन वाॅरियर्स को उनका हक दिया जाएगा। लेकिन सवाल वही है कि कर्तव्यनिष्ठा का यह कैसा फल!
-सामाजिक कार्यकर्ता