[gtranslate]
Uttarakhand

वेलडन नैनीताल पुलिस

नैनीताल जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पंकज भट्ट, उनकी टीम में शामिल एसपी (सिटी) हरवंश सिंह और एसपी (क्राइम) डॉ. जगदीश चंद्र की सूझबूझ ने हल्द्वानी शहर को साम्प्रदायिकता की आग में झुलसने से रोक दिया है। सोशल मीडिया में अपने व्यक्तिगत प्रचार करने के आदी हो चले उत्तराखण्ड के नौकरशाहों की भीड़ में पंकज भट्ट सरीखे अफसरों का होना राहत देता है। भट्ट के आने के बाद से नैनीताल पुलिस की कार्यशैली में गुणात्मक बदलाव देखा जा रहा है

‘उत्तराखण्ड में नफरत और साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश बेहद चिंताजनक है। इसलिए निर्दोष लोगों के जीवन की रक्षा, राज्य की संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सरकार का प्रभावी होना लाजिमी है।’ ये मजमून मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को मशहर लेखिका नयन तारा सहगल, उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्य सचिव एसके दास, पूर्व सचिव विभापुरी दास सहित कई पर्यावरणविद्, शिक्षाविद्, पत्रकारों द्वारा लिखे गए पत्र का है जिसमें उसमें उन्होंने उत्तराखण्ड में नफरती बयानों और साम्प्रदायिक तनाव पर गहरी चिंता व्यक्त की है। साम्प्रदायिक नफरतों और जातिगत विभेद से अमूमन दूर रहने वाले उत्तराखण्ड में हाल ही में घटी साम्प्रदायिक और जातिगत सद्भाव के ताने-बाने को तोड़ने की घटनाएं परेशान करने वाली हैं। हरिद्वार जिले के भगवानपुर में रामनवमी के अवसर पर फैला साम्प्रदायिक तनाव इसके बाद रुड़की में होने वाली हिंदू महापंचायत के आयोजन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद लगी रोक सवाल खड़े करती है कि क्या उत्तराखण्ड में आपसी सद्भाव को विभाजन की ओर धकेलने की योजनाबद्ध कोशिश की जा रही है? अल्मोड़ा जिले के सल्ट क्षेत्र में दलित दूल्हे को घोड़े पर बैठने से रोकने की घटना 1980 के कफल्टा कांड की याद ताजा कर देती है जब एक मंदिर के सामने से दलितों की बारात में दूल्हे के डोली पर बैठ कर जाने की घटना के बाद खूनी संघर्ष में कई लोगों की मौत हो गई थी। हालिया घटनाओं के बरस्क दीवार पर लिखी इबारतें साफ तौर पर पढ़ी जा सकती हैं कि राजनीतिक फायदे के लिए प्रदेश के राजनेताओं को उन्माद को बढ़ावा देने से कोई गुरेज नहीं है भले ही दीर्घकाल के लिए सामाजिक ताने-बाने को नुकसान ही क्यों न हो जाए। ऐसा ही एक वाक्या हल्द्वानी के शीशमहल काठगोदाम में घटा जिसमें दो गुटों की आपसी रंजिश को साम्प्रदायिक मुद्दा बनाकर शहर की फिजा को खराब करने की कोशिश की गई है। पुलिस के उच्चधिकारियों की सूझबूझ के चलते मामला ज्यादा तुल नहीं पकड़ पाया और पुलिस की जांच के बाद जब सच्चाई सामने आई तो पता चला कि आपसी रंजिश को दो समुदायों के बीच का मामला बताकर तनाव को बढ़ा मामले को साम्प्रदायिक रूप देने की कोशिश की गई।

कुमाऊं का प्रवेश द्वार कहलाए जाने वाले हल्द्वानी में हालिया संपन्न विधानसभा चुनाव में शहर की सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। सुमित हृदयेश की इस जीत में शहन के अल्पसंख्यक मतदाताओं का खास योगदान रहा। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के पक्ष में एक पक्षीय मतदान को साम्प्रदायिक चश्मे से देखने की कोशिश चलते अंदरूनी तनाव काफी दिनों से खदबदा रहा था। हालांकि ये बड़े पैमाने पर नहीं था। एक मंदिर से हनुमान चालीसा को पढ़कर निकल रहे कुछ युवकों से दूसरे समुदाय के कुछ युवकों से सामान्य बहस हो गई। उसके कुछ समय पश्चात छह-सात दो पहिया वाहनों पर पहुंचे लोगों ने कथित हिंदूवादी संगठन के लोगों पर पथराव किया। शायद ये अवसर था इस घटना को साम्प्रदायिक रूप देने का। बिना पड़ताल किए इस घटना को साम्प्रदायिक रूप देने में मीडिया का एक वर्ग भी पीछे नहीं रहा। मेयर जोगेंद्र रौतेला और अन्य भी घटनास्थल पर पहुंच गये विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की ओर से पंचायत का भी आयोजन कर लिया गया जिसमें एक वर्ग पर उपद्रव करने का आरोप लगाते हुए कड़ी कार्रवाई की मांग की गई। ये उन लोगों के लिए सुनहरा अवसर था जो साम्प्रदायिक विभाजन के जरिए अपनी राजनीति का आधार पुख्ता करना चाहते थे। तारीफ करनी होगी नैनीताल के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पंकज भट्ट, एसपी सिटी हरवंश सिंह और उनकी टीम की जिन्होंने अपनी सूझबूझ से इस घटना को उस मुकाम तक नहीं पहुंचने दिया जिस दिशा की ओर इसे कुछ लोग ले जाना चाहते थे। घटना की जांच के बाद पता चला कि पथराव की घटना में शामिल जिन युवकों ने पूजा कर लौट रहे युवकों पर पथराव किया वो उस सम्प्रदाय के थे ही नहीं जिसका शक उन पर किया जा रहा था।

राजनीतिक विमर्शों को एक तरफ रख दें तो हल्द्वानी कभी साम्प्रदायिक विभाजन का साक्षी नहीं रहा है। नागरिकों के राजनीतिक विमर्श अलग हो सकते हैं लेकिन सामाजिक और साम्प्रदायिक विमर्श के मामले में कभी विवाद की स्थिति देखने को अमूमन नहीं मिली। हां इतना जरूर है कि 2014 के बाद से जिस प्रकार देश की राजनीति को एक साम्प्रदाय के खिलाफ धकेलने की कोशिश हुई उसका कुछ असर अब यहां भी दिखने लगा है। लेकिन वो उस स्तर तक नहीं है जो साम्प्रदायिक विभाजन की लंबी रेखा खींच दे। लेकिन इन सब घटनाओं के बीच नेताओं और कुछ संगठनों की भूमिका पर सवाल जरूर खड़े होते हैं। अपने राजनीतिक लाभ के लिए शांत शहर को साम्प्रदायिकता के मुहाने पर खड़ा कर देना कतई बुद्धिमानी नहीं कहा जा सकता वह भी तब जब आप जिम्मेदार पदों पर हो। घटना की तह में जाए बिना एकतरफा विमर्श बना लेना भले ही किसी को राजनीतिक लाभ दिला दे लेकिन उसके दीर्घकालिक परिणाम कभी भयावह हो जाते हैं। आज जब पूरा देश हनुमान चालीसा और अजान के विवाद से झुलस रहा है उसकी छाया से उत्तराखण्ड के अधिकांश इलाके अभी अछूते रहे हैं लेकिन ये छोटी-छोटी घटनाएं कभी भी बड़ा रूप ले सकती है।

अमूमन ऐसी घटनाओं पर पुलिस पर निष्पक्षतापूर्ण व्यवहार न बरतने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन नैनीताल पुलिस की प्रशंसा करनी होगी जिसने दबाव के बावजूद घटना को साम्प्रदायिक रंग लेने नहीं दिया और तीन दिनों के अंदर घटना से पर्दा उठाकर उन साजिशों को नाकाम कर दिया जो इस घटना को साम्प्रदायिक विवाद का मोड़ देकर शहर की फिजा को खराब करना चाहती थी। नैनीताल के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पंकज भट्ट ने इसे अपने मातहतों पर ही नहीं छोड़ा बल्कि एसपी सिटी हरवंश सिंह, एसपी क्राइम डॉ ़ जगदीश चंद्र और अपनी टीम के साथ स्वयं इस घटना की सच्चाई तक पहुंचने के लिए सक्रिय रहे। 2020 में सीएए और एनआरसी के विरोध के बीच दिल्ली में फैले साम्प्रदायिक दंगों के बीच दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे थे। लेकिन नैनीताल पुलिस की सूझबूझ ने इसे हल्द्वानी शहर में उस स्तर तक पहुंचने ही नहीं दिया। पुलिस द्वारा सोशियल मीडिया की सख्त निगरानी और अफवाह फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी के चलते अफवाहों पर भी विराम लगा है। नैनीताल के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बनने के बाद पंकज भट्ट की कार्यशैली से नैनीताल पुलिस में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। सोशियल मीडिया में व्यक्तिगत प्रचार से दूर पंकज भट्ट और उनके मातहत शांति से अपने दायित्वों को अंजाम दे रहे हैं। थोड़ी सी लापरवाही पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने से नहीं चूक रहे है। नशे तस्करों के विरूद्ध जिस प्रकार ताबड़तोड कार्रवाइयां इस बीच हुई हैं वो नैनीताल पुलिस की प्राथमिकताओं को दर्शाता है।

इस मामले में पुलिस ने जांच के बाद आवश्यक कार्यवाही की है। मामले का पटाक्षेप हो चुका है अब कहने को कुछ बचा ही नहीं है। प्रथम दृष्टया जो लग रहा था वह दो कम्युनिटी के लोगों का ही मामला दिख रहा था। तीसरा गुट भी उसमें शामिल था। हम भी तब धरने में शरीक हुए थे लेकिन हमारा मकसद मामले को संभालने का था। हमने लोगों को समझाया। तब वे माने।
डॉ. जोगेंद्र सिंह रौतेला, मेयर नगर निगम हल्द्वानी

पुलिस का फर्ज है कि शहर में अमनचैन कायम रहे। इस केस में साम्प्रदायिक ताकतों को नेस्तनाबूद करना जरूरी था। अगर थोड़ी सी भी देरी होती तो कुछ सिरफिरे इस मामूली सी घटना को धार्मिक उन्माद में परिवर्तित कर सकते थे। शहर की फिजा को बिगाड़ने की किसी भी चाल को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। फिलहाल, मामले में विवेचना जारी है। कुछ गिरफ्तारियां हो गई हैं कुछ अभी होनी है।
पंकज भट्ट, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, नैनीताल

हल्द्वानी का सदा ही सौहार्दपूर्ण वातावरण रहा है। यहां विभिन्न जाति, धर्म के लोग प्यार और सद्भाव से रहते हैं। लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जो धार्मिक उन्माद फैलाकर राजनीति करने का प्रयास कर रहे थे जिन्हें नैनीताल पुलिस ने निष्पक्ष जांच करके आईना दिखाने का काम किया है। इस मामूली सी घटना मतें आपसी दुश्मनी की रंजिश को साम्प्रदायिकता का रूप देने का प्रयास किया गया। जिसमें जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी संलिप्त हैं। ऐसे लोगों पर कार्यवाही करनी चाहिए। हल्द्वानी की अमन प्रेमी जनता को भी ऐसे लोगों की पहचान करके उन्हें करारा जवाब देना चाहिए। ऐसे आरोपियों के खिलाफ आवाज उठानी जरूरी है जो राजनीति के लिबास में साम्प्रदायिकता के दुश्मन बनने की कोशिश कर रहे हैं।
सुमित हृदयेश, विधायक हल्द्वानी

You may also like

MERA DDDD DDD DD