चारधाम यात्रा का हिंदुओं में काफी महत्व है। माना जाता है कि चारधाम की यात्रा करने वाले श्रद्धालु के समस्त पाप धुल जाते हैं और आत्मा को जीवन मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। पिछले एक माह से चल रही इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु उत्तराखण्ड आ चुके हैं। यह यात्रा फिलहाल घोड़े-खच्चरों और श्रद्धालुओं की मौतों से चर्चा में है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसका कारण टेम्प्रेचर रिएक्शन मान रहे हैं। गर्मी से सर्दी में पहुंचने से नसें ब्लॉक होने और शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने से मौत अधिक हो रही है। आरोप है कि सरकार की लचर चिकित्सा व्यवस्था भी इसका एक कारण है
को विड महामारी के चलते दो साल रुकी रही चार धाम यात्रा वर्तमान के यात्री सीजन में अपनी पूरी क्षमता के साथ चल रही है। यात्रा के लिए अब तक 20 लाख से अधिक श्रद्धालु अपना पंजीकरण करा चुके हैं। जबकि 10 लाख से अधिक तीर्थ चारों धाम के दर्शन कर अपने-अपने घरों को वापस लौट चुके हैं। जिस रफ्तार से यात्रा चल रही है उसी तेजी से तीर्थ यात्रियों की मौत हो रही है। महज एक माह में 80 से ज्यादा घोड़े खच्चरों और 108 तीर्थयात्रियों की मौत होना सरकार की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े कर रहा है। चारधाम यात्रा के दौरान दम तोड़ रहे श्रद्धालुओं को लेकर सरकार के उन दावो पर सवाल खड़े हो रहे हैं जिनमें सरकार प्रदेश में आने वाले तीर्थ यात्रियों को तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराने का जोर-शोर से दावों करती नजर आती है। उससे राज्य की स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ प्रशासन द्वारा की गई तैयारियों को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल इस बात को लेकर भी है कि उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान करने वाली इस यात्रा के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं राज्य सरकार व स्वास्थ्य विभाग द्वारा क्यों मुहैया नहीं कराई जा रहीं है?
प्रसिद्ध चारधाम यात्रा इस वर्ष अपने निर्धारित समय पर शुरू हुई। यात्रा शुरू होते ही यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं में उत्साह का माहौल देखा जा रहा है। आलम यह है कि यात्रा प्रारंभ होने के एक माह होने तक ही दस लाख से अधिक श्रद्धालु चारधाम की यात्रा कर चुके हैं। वर्तमान में राज्य की बदहाल हो चुकी स्वास्थ्य सुविधाओं की भयावह स्थिति का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि यात्रा के 25 दिन पूरे होने तक ही 100 से अधिक तीर्थयात्रियों की मौत हो चुकी है। यहीं नहीं केदारनाथ धाम में व्यवस्था बनाने में जुटे बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय को भी तबीयत बिगड़ने पर ऑक्सीजन स्पोर्ट पर रख हेलीकॉप्टर से गुप्ता काशी उपचार के लिए भेजना पड़ा। यात्रा के दौरान इतने बड़े पैमाने पर हो रही तीर्थयात्रियों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। यात्रा के दौरान लगातार हो रही तीर्थयात्रियों की मौत की संख्या को लेकर बात की जाये तो अभी तक केदारनाथ धाम में 43, गंगोत्री में 5 और यमुनोत्री में 25 से अधिक तो केदारनाथ में 13 तीर्थयात्रियों की मौत हो चुकी है।
जानकार बता रहे हैं कि यह आंकड़ा बीते कुछ वर्षों की तुलना में बहुत ज्यादा है जबकि चारधाम यात्रा को शुरू हुए अभी एक माह ही हुए है। चारधाम यात्रा और विशेष रूप से केदारनाथ धाम की यात्रा जिसे खुद देश के प्रधानमंत्री पिछले कुछ वर्षों से लगातार बार-बार प्रमोट करते रहे हैं, वहां यात्रियों की इतने बड़े पैमाने पर मौत के बढ़ते आंकड़ों ने कई सवाल खड़े कर दिये है? 2017 की बात की जाए तो पूरे यात्राकाल में 112 तीर्थयात्रियों की मौत हुई थी। वहीं 2018 में 102 तीर्थयात्री और 2019 में 90 तीर्थयात्रियों ने अपनी जान गंवाई। परंतु लगभग 6 महीने तक संचालित होने वाली इस तीर्थयात्रा में इस बार शुरुआत के एक महीने में ही 100 से अधिक तीर्थयात्रियों की मौत हो चुकी है।
चार धाम यात्रा में श्रद्धालु देश-विदेश से आ रहे हैं। इसके बावजूद प्रदेश में आ रहे इन श्रद्धालुओं की न तो कोविड जांच हो रहीं है और न ही कोरोना के नियमों का पालन होते दिखाई दे रहा हैं। यात्रा के दौरान हुई 100 मौतों में से बहुत से श्रद्धालुओं की मौत स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि कुछ श्रद्धालुओं की मौत कोविड के चलते हुई है। स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के मरीजों के शरीर का तापमान अचानक बदलता है। इससे दिल की नसें सिकुड़नें लगती हैं, ब्लड सर्कुलेशन में भी दिक्कत आती है। ऐसी सिचुएशन में भी लोग पहाड़ों पर चढ़ाई जारी रखते हैं। इससे फिजिकल एक्टिविटी होती रहती है और डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के मरीजों के शरीर पर उल्टा प्रभाव पड़ता है। ये सारी दिक्कतें ही मौत का कारण बन जाती हैं। पहाड़ पर पला-बढ़ा व्यक्ति और मैदानी इलाकों के इंसान की शारीरिक क्षमता में अंतर होता है। ऊंचाई पर हवा पतली होती है। वहां ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऐसे में मैदानी इलाके वाले लोगों को पहाड़ों पर सांस लेने में समस्या आती है।
ऑक्सीजन की कमी के कारण ही हार्ट अटैक आता है और लोगों की जान चली जाती है। बताया जाता है कि एक स्वस्थ्य व्यक्ति को सांस लेने के लिए 70 प्रतिशत ऑक्सीजन की जरूरत होती है। जबकि आठ हजार फीट की ऊंचाई के बाद से ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ने लगती है। इसके बाद केदारनाथ धाम में सांस लेने के लिए 87 फीसदी ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है लेकिन यहां पर मात्र 57 फीसदी ऑक्सीजन है, जिसकी वजह से बेचौनी, बेहोश होना व हार्ट अटैक जैसी घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है।
केदारनाथ धाम में तैनात डॉक्टर प्रदीप भारद्वाज के अनुसार यदि श्रद्धालु कुछ बातों का ध्यान रखेंं तो वे इस तरह के खतरों से बच सकते हैं और आसानी से अपनी यात्रा पूरी कर सकते हैं। डॉक्टर प्रदीप भारद्वाज के अनुसार चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु कुछ गलतियां कर रहे हैं, जो उनके जीवन पर भारी पड़ रही है। उसमें सबसे बड़ी गलती यह है कि लोग कम समय में केदारनाथ धाम जैसी जगह से दर्शन करके वापस जाना चाहते हैं। इसमें हेलीकॉप्टर से आने वाले लोगों की संख्या भी अधिक है। जब श्रद्धालु हेलीकॉप्टर में नीचे यानी गुप्तकाशी या फाटा से बैठते हैं तो वहां का मौसम गर्म होता है और जब वह ऊपर यानी 12 हजार फीट की ऊंचाई पर केदारनाथ धाम में पहुंचते हैं तो बहुत ज्यादा ठंड होती है। ऐसे में व्यक्ति की बॉडी उस टेंपरेचर को एडोप्ट नहीं कर पाती है और उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। यही गलती पैदल मार्ग से आने वाले श्रद्धालु भी करते हैं, वो भी समय बचाने के लिए जल्दी जल्दी चलते हैं, जिसके कारण उन्हें सांस की दिक्कत होने लगती है। तब उनकी जान मुश्किल में पड़ जाती है।
प्रदेश की स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ ़शैलजा भट्टठ्ठ इतने बड़े पैमाने पर हो रही तीर्थयात्रियों की मौत को लेकर विभाग का बचाव करते हुए कहती हैं कि ऋषिकेश से लेकर केदारनाथ तक की यात्रा में टेम्प्रेचर का वेरिएशन बहुत ज्यादा है, वहां बेहद ठंड है और मैदानी इलाकों में गर्मी। ऐसे में कई लोग एक्लेमटाइज नहीं कर पाते हैं और खासतौर पर वे लोग जो हैली सर्विसेज के जरिए सीधे ऊंचाई में पहुंच जा रहे हैं, साथ ही लोगों में दर्शन को लेकर उत्साह बहुत है। वे कई बार उपवास करके यात्रा करते हैं और कई बार बहुत तेज यात्रा करने के उत्साह के चलते भी तबियत बिगड़ती है, स्वाथ्य विभाग द्वारा लगातार यात्रियों को सलाह दी जा रही है कि वे भोजन करके, पर्याप्त पानी पी कर, धीमे-धीमे यात्रा करें। वहीं, उनका कहना है कि कोई भी मृत्यु इलाज के दौरान नहीं हुई है। अस्पतालों में उन तीर्थयात्रियों को लाया जा रहा है जिनकी मृत्यु पहले ही हो चुकी है।
गौरतलब है कि चारधाम यात्रा में चारों धाम उच्च हिमालयी क्षेत्र में हैं। उनकी ऊंचाई समुद्र तल से 2700 मीटर से भी ज्यादा है। केदारनाथ धाम की यात्रा में खड़ी चढ़ाई चढ़कर पहुंचना पड़ता है। केदारनाथ के लिए गौरीकुंड से 19 किलोमीटर की चढ़ाई है। जबकि बद्रीनाथ के लिए गाड़ी बद्रीनाथ तक जाती है। यमुनोत्री के लिए भी साढ़े पांच किलोमीटर पैदल जाना होता है। गंगोत्री तक गाड़ी से जाया जा सकता है। यात्रा में आ रहे श्रद्धालुओं को पैदल चलते समय सांस लेने में दिक्कत हो रहीं है। ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों में यात्रियों को बहुत ज्यादा ठंड, कम ह्यूमिडिटी, बहुत ज्यादा अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन, हवा के कम दबाव और ऑक्सीजन की कम मात्रा जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा है। जिस कारण श्रद्धालुओं को ऑक्सीजन की प्रॉब्लम होने के चलते हार्ट अटैक जैसी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। यात्रा मार्ग पर ऑक्सीजन जैसी सुविधाएं भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा श्रद्धालुआें को मुहैया नहीं कराई जा रहीं हैं।
राज्य सरकार व राज्य का स्वास्थ्य विभाग भले ही लाख दावे करे लेकिन हकीकत यही है कि चारधाम यात्रा के प्रमुख जनपद रुद्रप्रयाग में ही किसी हार्ट स्पेशलिस्ट को नियुक्त नहीं किया जा सका है। जबकि रुद्रप्रयाग जनपद में ही केदारनाथ धाम स्थित है। राज्य के चमोली जनपद में भगवान बद्रीनाथ का धाम है, यहां भी हृदय रोग विशेषज्ञ की तैनाती न होना स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर किए जाने वाले दावों की पोल खोलता नजर आता है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार चार धाम यात्रा की तैयारियों के दृष्टिगत जनपद के स्वास्थ्य विभाग द्वारा चमोली में 13 डॉक्टर, 16 पैरामेडिकल स्टाफ व दो ईसीजी टेक्निशियनों की मांग की गई थी, लेकिन विभाग द्वारा चमोली को 13 के बजाए मात्र 3 डॉक्टर ही उपलब्ध कराए। वहीं विभाग द्वारा 16 पैरामेडिकल स्टॉफ और दो ईसीजी टेक्निशियनों की मांग को दरकिनार करते हुए एक भी पैरामेडिकल स्टॉफ व ईसीजी टेक्निशियन उपलब्ध नहीं कराया। यह हाल तब है, जबकि चमोली जिले में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 64 पद स्वीकृत हैं इनमें से लेकिन 46 पद रिक्त चले आ रहे हैं। बावजूद इसके राज्य के स्वास्थ्य विभाग की घोर लापरवाही का परिणाम है कि चारधाम यात्रा जैसे सीजन के दौरान डॉक्टर तक उपलब्ध कराने में आनाकानी की जा रही है।
साथ में हमजा राव
बात अपनी-अपनी
पहले यात्रा सार्वजनिक परिवहन के माध्यम से की जाती थी और कम से कम 9 दिनों की यात्रा होती थी। लेकिन अब तीर्थयात्री निजी वाहनों में आते हैं और अच्छी सड़कों के कारण आवाजाही तेज होती है। उन्हें खुद को यहां के मौसम में ढालने के लिए बहुत कम समय मिलता है जो उनके स्वास्थ्य पर खराब असर डालता है। तीर्थयात्रियों की मौत के लिए प्रमुख कारण अनुकूल समय की कमी है।
दिलीप जावलकर, पर्यटन सचिव
इस विषय में इन्फॉर्मेशन ऑफिस से पता कीजिए, डोंट कॉल मी।
वरुण चौधरी, जिलाधिकारी चमोली
श्रद्धालुओं से मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कराया जा रहा है। यात्रा मार्ग पर स्वास्थ्य सुविधा भी उपलब्ध है। नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ
कार्रवाई भी की जा रही है।
श्वेता चौबे, पुलिस अधीक्षक चमोली
हमने चार धाम यात्रा के लिए आने वाले 50 और उससे अधिक उम्र के सभी तीर्थ यात्रियों के लिए मेडिकल स्क्रीनिंग अनिवार्य करने का फैसला लिया है। मेडिकल स्क्रीनिंग होने के बाद ही तीर्थयात्री आगे बढ़ पाएंगे।
डॉक्टर शैलजा भट्ट, स्वास्थ्य महानिदेशक उत्तराखण्ड
आगे की यात्रा पर जाने के लिए चिकित्सीय रूप से अयोग्य पाए गए तीर्थयात्री को वापस लौट आने की सलाह दी जा रही है जो इस बात को मानने से इनकार करते हैं और मंदिर तक
पहुंचने के लिए अड़े हैं हम उन तीर्थयात्रियों से सेफ्टी रूलस का पालन करने का वचन भी ले रहे हैं।
बीके शुक्ला, मुख्य चिकित्सा अधिकारी रुद्रप्रयाग
50 साल से ऊपर के तीर्थ यात्रियों के लिए अनिवार्य आधार पर चिकित्सा जांच की जा रही है। बड़कोट जानकी चट्टी और यमुनोत्री मंदिर में तीन स्थानों पर चिकित्सा जांच की जा रही है। जबकि हिना और गंगोत्री मंदिर में 50 वर्ष से अधिक आयु के यात्रियों की चिकित्सा जांच की जा रही है।
केएस चौहान, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, उत्तरकाशी