जिस उम्र में युवा मौज-मस्ती करते हैं, उस उम्र में विक्रांत तोंगड़ ने पानी की बर्बादी को रोकने के लिए खुद को समर्पित कर दिया। बड़े औद्योगिक शहर ग्रेटर नोएडा में छोटे से गांव ‘खेड़ी भनौता’ के रहने वाले युवा विक्रांत तोंगड़ ने भू-जल बचाने के मद्देनजर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। केवल गंगा ही नहीं अपितु देशभर में विक्रांत द्वारा जल संरक्षण के प्रति अभियान चलाया जा रहा है
कहते हैं कि अगर तीसरा विश्वयुद्ध छिड़ा तो वह पानी के लिए होगा। हालांकि यह कितना सच है, इस पर संशय बना हुआ है। नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि लगातार घट रहा भू-जल स्तर वर्ष 2030 तक देश में सबसे बड़े संकट के रूप में उभरेगा। घटते भू-जल स्तर को लेकर भू वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की चिंता पर एनजीटी ने कड़े दिशा-निर्देश बनाने के लिए अल्टीमेटम दिया है, लेकिन ताज्जुब है कि वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी भूजल स्तर का संकट लगातार गहराता जा रहा है। इस मामले में इतने साल बीतने पर भी प्रशासन ने कुछ खास फुर्ती नहीं दिखाई। वर्ष 2008 में राष्ट्रीय नीति बनी थी और बाद में इसमें संशोधन होते रहे, लेकिन भू-जल का घटता स्तर नहीं थमा। लेकिन ग्रेटर नोएडा के एक युवक विक्रांत तोंगड़ ने इस ओर विशेष प्रयास किए है।
अपने गांव खेड़ी भनोता से इनका पहला सामाजिक कार्य ही जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना रहा। विक्रांत का जुझारू व्यक्तित्व ही था कि अपने गांव की एक छोटी-सी जल पंचायत से शुरुआत करके आज वे देशभर में लोगो को जागरूक करने का जिम्मा उठाए हुए हैं। यही नहीं बल्कि विक्रांत तोंगड़ जल संकट से ग्रस्त राज्यों में गहन शोध के माध्यम से कारणों का पता लगाते हैं और इससे जुड़े उपायों की पहल करते हैं। इसी के साथ वह रेन हार्वेस्टिंग, तालाबों का पुनर्जीवन और ट्री प्लांटेशन के मामले में एक लाख पौधे लगाने का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं। भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने विक्रांत तोंगड़ को ‘वाटर हीरो’ के खिताब से नवाजा है तो स्वय सेवी संस्था नवरतन ने उन्हें ‘पर्यावरण रत्न’ अवार्ड से सम्मानित किया है।
वर्ष 2013 में विक्रांत के द्वारा एनजीओ सोशल एक्शन फॉर फोरेस्ट एण्ड एनवायरनमेंट यानी की सेफ की नींव रखी गई। जिसके माध्यम से उन्होंने बहुत-सी मुहिम चलाई। जिला गौतम बुद्ध नगर में बिल्डर द्वारा भू-जल का अवैध दोहन रोकने में सेफ का योगदान अतुलनीय रहा। सेफ के अंतर्गत दिल्ली एनसीआर के विभिन्न गांवों और विद्यालयों में अब तक 100 से अधिक जल चौपाल कार्यक्रमों का आयोजन किया जा चुका है। इसके साथ ही संस्था द्वारा निर्मित वाटर डॉक्यूमेंट्री भी विशेष तौर पर सराही जा रही है। विक्रांत ने भू-जल सेना बनाकर सैकड़ों युवाओं को जिला गौतम बुद्ध नगर में 2017 से इस कार्यक्षेत्र में सक्रिय किया हुआ है। शीतकालीन ऋतु में उत्तर भारत में फैलने वाले वायु प्रदूषण के मुख्य कारण किसानों द्वारा पराली जलाना है और इस विषय पर विक्रांत ने गहन रिसर्च के माध्यम से न केवल कारणों का पता लगाया बल्कि इससे जुड़े उपायों पर भी ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया। उनके प्रयासों के कारण ही एनजीटी ने वर्ष 2015 से पराली जलाने पर रोक लगा रखी है।
नदियों को जीवन मानते हुए विक्रांत सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर हिंडन नदी के किनारों पर अवैध निर्माण कार्य को लेकर कई याचिकाएं डाल चुके हैं। इन्होंने गौतम बुद्ध नगर के किसानों को प्रेरित किया कि वे हिंडन के किनारे ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे और वृक्षारोपण के माध्यम से हिंडन के भू-जल रिचार्ज पर विशेष ध्यान दे। हिंडन के नवीनीकरण से जुड़ी विशेष कमिटी के सदस्य के रूप में विक्रांत द्वारा नदी के किनारों की साफ- सफाई, अतिक्रमण पर रोक, सीवेज के नदी में गिरने पर रोक लगाने के मद्देनजर काम किया है। इसके अलावा हिंडन से जुड़े तालाबों को पुनर्जीवन देने की भी पुरजोर कोशिश उनके द्वारा जारी है। गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अन्य पर्यावरणविदों के साथ मिलकर विक्रांत द्वारा वर्ष 2014 में सिंभावली शुगर मिल पर कोर्ट द्वारा 5 करोड़ का जुर्माना लगवाया था। ज्ञात हो कि हापुड़ की इस चीनी मिल द्वारा गंगा नदी में प्रत्यक्ष गंदगी छोड़ी जा रही थी, जो गंगा डॉलफिन के लिए भी खतरा बन चुकी थी और यह क्षेत्र गंगा की इको सेंसिटिव जोन के अंतर्गत भी नामांकित था।
इसके अतिरिक्त ऋषिकेश में गंगा किनारे अवैध कैम्पिंग तथा अवैध रिवर राफ्टिंग पर भी रोक लगाने की मुहिम विक्रांत द्वारा अन्य सामाजिक विश्लेषकों के साथ मिलकर चलाई गई। यही नहीं बल्कि करीब 2 साल पहले पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड़ ने नोएडा गोल्फ कोर्स के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में मुकदमा दायर किया था। गोल्फ कोर्स मैनेजमेंट पर अवैध रूप से जल दोहन करने का आरोप लगा था। इस मामले में एनजीटी ने पहले जांच का आदेश दिया था। जांच में विक्रांत के आरोप सही पाए गए थे। एनजीटी ने नोएडा गोल्फ कोर्स पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया था।
नोएडा में एनजीटी के आदेशों व सरकार की गाइडलाइन के खिलाफ जाकर लगातार कच्चे क्षेत्र को टाइल्स लगाकर पक्का किया जा रहा था। पेड़ों के आस-पास भी कच्चे स्थानों को कंक्रीट से पक्का कर दिया जाता था। लगातार बढ़ते कंक्रीट से बारिश का पानी जमीन में नहीं जा रहा था। जिससे भू-जल स्तर में गिरावट आ रही थी। साथ ही बरसात के मौसम में जलभराव की समस्या आती थी। पेड़ों के आस-पास कम से कम एक मीटर कच्चा स्थान छोड़ना चाहिए, लेकिन नोएडा व ग्रेटर नोएडा में ऐसा नहीं हो रहा था। इसके खिलाफ विक्रांत एनजीटी की अदालत में गए। इस मुद्दों को ध्यान में रखते हुए एनजीटी ने महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए तत्काल प्रभाव से कंक्रीट पर रोक लगा दी। साथ ही नियमों के विपरीत लगाई गई टाइल्स को हटाने के निर्देश के साथ प्राकृतिक तरीके से भू-जल को बढ़ाने के निर्देश दिए।
नोएडा सहित देशभर में बिल्डरों के द्वारा बेसमेंट बनाने के लिए बड़े पैमाने पर भूमिगत जल का दोहन हो रहा था। इसके लिए आठ से दस मीटर तक खुदाई कर दी जाती और खुदाई के दौरान निकलने वाले पानी को यूं ही बर्बाद कर दिया जाता था। जबकि नियम यह होना चाहिए कि बेसमेंट की खुदाई का स्तर स्थानीय अथॉरिटी, बिल्डर या मकान मालिक नहीं बल्कि केंद्रीय भू-जल प्राधिकरण तय करे कि कितनी गहराई तक बेसमेंट बनाया जाना चाहिए। कायदा यह है कि बेसमेंट का स्तर ग्राउंड वाटर स्तर से ऊपर ही रहना चाहिए ताकि इससे भू-जल बच सके। विक्रांत तोंगड़ के द्वारा यह मुद्दा सबसे पहले एनजीटी के समक्ष उठाया गया। इसके बाद 11 जनवरी 2013 को एनजीटी ने बिल्डरों पर लगाम लगाई। इसी के साथ यह भी तय किया गया कि कंस्ट्रक्शन में ग्राउंड वाटर की बजाय एसटीपी का पानी प्रयोग करने के भी निर्देश दिए गए। विक्रांत तोंगड़ कहते हैं कि नोएडा-ग्रेटर नोएडा भू-जल संरक्षण के उद्देश्य के लिए हम लोग वर्ष 2010 से लगातार प्रयासरत हैं, लगातार एनजीटी या संबंधित प्राधिकरण के माध्यम से अपनी मांग उठाते हैं, सुझाव देते हैं। जिस पर धीरे-धीरे ही सही लेकिन सरकारी सिस्टम काम कर रहा है। साथ ही प्रधानमंत्री जी के जल शक्ति अभियान से भी इस तरह के कामों में गति आई है।
पहले जब हम सरकारों को ये सुझाव देते थे तो वे बहुत आश्चर्य से देखते थे। लेकिन अपने एसटीपी के शोधित जल के पुनः उपयोग को लेकर जमीन पर काम शुरू हो गया है। हालांकि सरकार में बैठे कुछ अधिकारी आज भी इस तरह के प्रयास को फिजूल या गैर जरूरी मानते हैं, रुचि नहीं लेते ऐसे कामों में। हमारा सपना है कि नोएडा में भू-जल दोहन कम से कम हो एवं उपचारित जल को 100 प्रतिशत पुनः उपयोग में लाया जाए। नोएडा सेक्टर 135 में नगली वाजिदपुर गांव के पास 80 बीघे की खाली जमीन पड़ी है, जिसमें चार हेक्टेयर की जमीन में तालाब बनाया गया था। लेकिन पिछले 15 सालों से यह तालाब कूड़ा- करकट फेंकने के काम आ रहा था। विक्रांत बताते हैं कि नोएडा में हैंडपंप सूख रहे हैं। भू-जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। ऐसी स्थिति में ऐसे तालाब ही जल स्तर को रिस्टोर करने के काम आ सकते हैं। इसलिए हमने इन तालाब को ठीक कराया है। हम कई महीनों से लगे थे कि किसी भी तरह से इसका जीर्णोद्धार किया जाए।
मानसून से ठीक पहले यह अपने असल रूप में आ चुका है। बारिश के पानी के अलावा इसमें हम एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) का पानी भी इस्तेमाल करेंगे। इसके अलावा गाजियाबाद स्थित बुलंदशहर इंडस्ट्रीज एरिया में चार हेक्टेयर में फैले हुए कुड़े के ढेर को खत्म कराकर वहां पर जैव विविधता से भरपूर पार्क का निर्माण कराने में विक्रांत तोंगड़ की महत्वपूर्ण भूमिका रही। वहां 20 हजार पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। विक्रांत के प्रयासों से अब तक 10 हजार पौधे लग चुके हैं। विक्रांत बताते हैं कि वर्ल्ड हाउस मेकिंग अभियान के तहत उनकी संस्था लोगों को एकजुट कर उन्हें सूरजपुर वेटलैंड में घुमाते हैं।
इस दौरान पक्षियों के लिए घास-फूस का आशियाना बनाकर वेटलैंड में टांगते हैं। कुछ लोग अपने ऐसे घोंसले अपने घर पर भी लगा रहे हैं, जिससे पक्षियों को आशियाना मिल सके। वे दिल्ली- एनसीआर के लोगों को जागरूक कर उन्हें पक्षियों के लिए हाउस मेकिंग कार्य से जोड़ रहे हैं। वे सूरजपुर वेटलैंड में जगह-जगह करीब 100 से ज्यादा घोंसले लगा चुके हैं। साथ ही, लोगों को घोंसले बनाकर अपने घरों में टांगने की अपील भी कर रहे हैं। ऐसा करने से शायद आपको खुशी भी होगी और एक बेसहारा पक्षी को उसके रहने के लिए घर भी मिल पाएगा। जरूरी नही है कि आप किसी संस्था से जुड़े बिना जुड़े भी आप उन्हें घर दे सकते हैं।