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Uttarakhand

इलाज को मोहताज मुख्यमंत्री के मतदाता

स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल/भाग-एक

थानों रायपुर का बदहाल वेलनेस सेंटर

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्य के स्वास्थ्य मंत्री भी हैं। साथ ही गृह, गोपन, कानून एवं न्याय, लोक निर्माण, सूचना, ऊर्जा, ग्रामीण विकास, राजस्व, तकनीकी शिक्षा, औद्योगिक विकास, वित्त, आबकारी, संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी उन्होंने अपने पास ही रखे हुए हैं। ऐसे में जाहिर है कि मुख्यमंत्री काम के बोझ तले दबकर इन विभागों के कार्यों का सही निर्वहन नहीं कर पा रहे है। मुख्यमंत्री के अधीन स्वास्थ्य मंत्रालय का हाल सबसे बदतर है। हालात इतने खराब हैं कि स्वयं मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में उनके अपने मतदाता स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम हैं। स्वास्थ्य विभाग की
वेबसाइट www.uk.health.in में उपलब्ध जानकारियों को ले जब ‘दि संडे पोस्ट’ के संवाददाताओं ने स्वास्थ्य उपकेंद्रों, प्राथमिक केंद्रों, सामुदायिक केंद्रों और जिला अस्पतालों में पहुंच वेबसाइट में बताई गई सुविधाओं की बाबत पड़ताल की तो सरकार ओैर मुख्यमंत्री के दावों की हकीकत सामने आई है। स्वयं मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र डोईवाला के पहाड़ी गांव नाहींकला में जिस तरह से स्वास्थ्य सेवाओं का मजाक बनाया जा रहा है उससे सरकार के दावों पर सवालिया निशान लग रहा है। हैरानी इस बात की है कि मुख्यमंत्री की अपनी ही विधानसभा सीट के निवासियों को चार वर्षों से चिकित्सक नहीं मिल पाया है, जबकि स्वास्थ्य विभाग के अभिलेखों में ‘नाहींकला’ गांव के लिए एक एलोपैथिक चिकित्सक, एक फार्मासिस्ट और एक वार्ड ब्वाॅय की तैनाती चल रही है।

दुखद है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत स्वास्थ्य मंत्री का दायित्व भी संभाले हुए हैं, लेकिन उनके चुनाव क्षेत्र डोईवाला और देहरादून की जनता स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरस रही है। अस्पतालों में चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मी तो दूर दवाइयां तक नहीं हैं। कागजों पर बेशक डाॅक्टर और स्टाफ तैनात हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है

देहरादून जिले के थानो न्याय पंचायत के रायपुर विकासखण्ड के अंतर्गत ‘नाहींकला’ ग्रामसभा आती है। इस ग्रामसभा में ‘चार तोक’ गांव हैं जिनमें सबसे दुर्गम ‘सतेली’, ‘नाहींकला’, ‘नाहीं खुर्द’ और ‘कंडल’ गांव आते है। इसी ‘नहींकला’ ग्रामसभा का एक अतिदुर्गम तोक गांव ‘सतेली’ है जिसके बारे में कहा जाता है कि आजादी के बाद इस गांव में कभी कोई जनप्रतिनिधि नहीं गया। राज्य बनने के बाद जरूर कई जनप्रतिनिधि इस गांव तक पहुंचे हैं। लेकिन शासन-प्रशासन का कोई नुमाइंदा इस क्षेत्र में जाने का साहस नहीं कर पाया। अविभाजित उत्तर प्रदेश में वर्ष 1987 में देहरादून के तत्कालीन जिलाधिकारी एसके दास पहले नौकरशाह थे जो सतेली गांव तक पहुंचे थे। हालांकि उसके बाद कई अधिकारी इस क्षेत्र में आए लेकिन नाहींकला से आगे वे भी नहीं जा पाए।

इसी नहींकला में राजकीय प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किया गया है। जिसमें दो भवन बनाए गए हैं। एक भवन में अस्पताल और दूसरे भवन में कार्यालय बनाया गया है, लेकिन यह केवल भवन के नाम पर ही स्वास्थ्य केंद्र बना हुआ है। कहने को तो इस केंद्र में विगत चार वर्षों से एलोपैथिक चिकित्सक राचित गर्ग की तैनाती विभाग द्वारा की गई है, लेकिन तैनाती के बाद गांव वालों ने चिकित्सक राचित गर्ग को कभी देखा ही नहीं। जानकारी के अनुसार राचित गर्ग इस केंद्र में तैनाती के बाद तीन वर्ष का पीजी कोर्स करने के लिए चले गए और जब पीजी कोर्स पूरा हुआ तो उनको अन्य स्थान पर तैनात कर दिया गया।

नाहींकाला स्वास्थ्य उपकेंद्र में एलोपैथिक फार्मासिस्ट केसी भट्ट को तैनात किया गया है। लेकिन उनको हमेशा किसी न किसी अन्य स्थान पर कार्य करने के लिए भेज दिया गया। भट्ट के अनुसार वे कभी चारधाम यात्रा मार्ग तो कभी कोरोना में कार्यरत रहे हैं। फिलहाल एक वर्ष से केसी भट्ट को कोरोना केयर सेंटर में तैनाती दी हुई है और एक वर्ष से ज्यादा समय से नाहींकला में फार्मासिस्ट उपलब्ध नहीं हैं। ‘‘पूर्व ग्राम प्रधान और स्थानीय निवासी किशन सिंह कृषाली कहते हैं कि गणतंत्र दिवस पर अनेक बार खुशामद करने के बाद फार्मासिस्ट अस्पताल में झंडा रोहण के लिए तो आए, लेकिन उसके बाद वे फिर दिखाई नहीं दिए।’’

एलोपैथ के नाम पर नाहींकाला में केवल एक वार्ड ब्वाॅय ही तैनात है जो स्थानीय निवासियों के लिए चिकित्सक का काम कर रहा है। एक सफाईकर्मी भी तैनात किया गया था जिसकी कुछ माह पूर्व ही मृत्यु हो चुकी है जिसके चलते अस्पताल में सफाईकर्मी भी नहीं है। अस्पताल में दवाओं की कमी बनी हुई है। ‘‘स्थानीय निवासी राजेश सिंह कृषाली बताते हैं कि दवाएं छह महीने में आती हैं, लेकिन हर मरीज को सिर्फ एक ही दवा दी जाती है। चाहे बुखार हो, सर्दी हो या जुखाम, डाॅक्टर एक ही दवा सभी रोगियों को देते हैं। डाॅक्टर हैं नहीं, अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उसे पहले की तरह कई किमी दूर ऋषिकेश, देहरादून या जालीग्रांट अस्पताल में ले जाना पड़ता है।’’

नाहींकाला स्वास्थ्य उपकेंद्र में एक आयुर्वेदिक महिला चिकित्सक और महिला फार्मासिस्ट की भी नियुक्तियां हुई हैं, लेकिन बताया जाता है कि दोनों ही सप्ताह में एक बार अस्पताल आती हैं। स्थानीय निवासी बताते है कि प्रत्येक सोमवार को महिला

चिकित्सक आती है ओैर प्रत्येक बुधवार या वृहस्पतिवार को एक दिन फार्मासिस्ट आती हैं। हैरानी की बात यह है कि विभागीय नियमों के अनुसार सरकारी अस्पताल में कार्यरत चिकित्सकों के लिए तैनाती स्थल से दस किमी परिधि मेंे ही आवास होने का नियम है लेकिन यह दोनों ही चिकित्सक और फार्मासिस्ट नाहींकला से 50 किमी दूर ऋषिकेश में ही रहती हैं। जबकि नहींकला उप स्वास्थ्य केंद्र को मौजूदा सरकार ने बेलनेस सेंटर भी बनाया हुआ है जो कि केवल नाम का ही है। स्थानीय निवासी राजपाल सिंह कृषाली का कहना है कि ये दोनों सप्ताह में सिर्फ एक बार ही उपकेंद्र में आती हैं।

नाहींकाला गांव के स्थानीय निवासी सरकार और खासतौर पर विधायक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से खासे नाराज हैं। स्थानीय निवासियों को कहना है कि मुख्यमंत्री होने के चलते हमलोग अपने विधायक तक पहुंच नहीं पाते और न ही सरकार हमारी कोई सुध ले रही है।

एसपीएचसी नाहींकाला की बदहाली बयां करती तस्वीर

जनप्रतिनिधियों द्वारा जनता की उपेक्षा केवल यहीं तक सीमित नहीं है। स्वयं ग्रामप्रधान देवेंद्र तिवाड़ी जो कि सतेली गांव से हैं, वे भी पलायन कर कई किमी दूर भोगपुर में बस चुके हैं। लेकिन पंचायत का चुनाव आज भी अपने गांव सतेली से ही लड़ रहे हैं। नाहींका­­­ला से कुछ किमी दूर सनगांव में भी उप स्वास्थ्य केंद्र और एएनएम केंद्र है जिसको सरकार ने वेलनेस सेंटर बनाया हुआ है। यहां भी एक आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट की तैनाती की हुई है लेकिन वह भी नियमित नहीं आती हंै। मात्र एएनएम के भरोसे जो कि अधिकतर फील्ड में ही गई हुई बताई जाती हैं, यह स्वास्थ्य केंद्र चल रहा है।

देहरादून राज्य का सबसे विकसित जिला माना जाता है। इस जिले में पूरा सरकारी अमला और सरकार बैठती है। इसी देहरादून के महज 28 किमी दूर थानो में 25-30 हजार की आबादी के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाया हुआ है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय थानो में प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र था जिसे राज्य बनने के बाद उच्चीकरण करके प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना दिया गया। इस केंद्र का क्षेत्रफल दो न्याय पंचायत थानो और रानीपोखरी, दो ब्लाॅक रायपुर और डोईवाला तथा दो वन विभाग की रेंज थाना और बड़कोट तक विस्तार दे दिया गया।

दो-दो न्याय पंचायत और दो-दो विकास खंडों की बड़ी आबादी के लिए इस केंद्र का उच्चीकरण तो कर दिया गया, लेकिन इसमें जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए स्टाफ आदि को बढ़ाया ही नहीं गया। आज इस केंद्र में मानकों के अनुसार एक चिकित्सक, एक फार्मासिस्ट और एक एएनएम की ही तैनाती है। गौर करने वाली बात यह है कि इस केंद्र में कुछ माह पूर्व ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा वेलनेस सेंटर स्थापित किया गया है। लेकिन वेलनेस सेंटर के लिए जरूरी उपकरण ओैर स्टाॅफ आदि की तैनाती नहीं हो पाई है। एक तरह से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के बोर्ड पर वेलनेस सेंटर का नाम जोड़ दिया गया है। जिस तरह से कि राज्य बनने के बाद इस केंद्र से उप नाम हटाकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कर दिया गया था।मौजूदा समय में केंद्र को एम्स ऋषिकेश के अधीन कर दिया गया है। इसलिए अब इस केंद्र में एम्स के चिकित्सक तैनात हैं लेकिन इस केंद्र के अन्य उपकेंद्रांे आदि के लिए व्यवस्था इसी केंद्र द्वारा संचालित हो रही है।

25-30 हजार की आबादी के लिए स्वास्थ सेवाओं की व्यवस्था किस तरह से चल रही है इसका प्रमाण इस बात से साफ हो जाता है कि दो माह पूर्व थानो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की प्रभारी चिकित्सक का स्थानांतरण हो चुका है ओैर फार्मासिस्ट को ही इसका प्रभार दिया गया है। दो माह से यह व्यवस्था चल रही है।

थानो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के आधीन रानीपोखरी, नाहींकला और भोगपुर तीन एलोपैथिक डिस्पेंसरी का संचालन होता है। इसके साथ ही 9 स्वास्थ्य उपकेंद्र संचालित होते हैं जिनमें थानो, रामनगर डांडा, धारकोट, सनगांव, भोगपुर, इठारना, धम्मुवाला, रानीपोखरी और धमंडपुर शामिल हैं। साथ ही केंद्र में होम्योपैथी और आयुर्वेदिक केंद्र भी संचालित किए जा रहे हैं।

देहरादून जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के थानो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और इसके अधीन संचालित होने वाले उप स्वास्थ्य केंद्र नाहींकला के हालात देखने से यह तो साफ हो गया है कि आज भी स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों में स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सक ओैर फार्मासिस्ट केवल विभागीय कागजों में ही तैनात हैं। नियुक्ति स्थलों में तैनाती के बजाय किसी सुगम और सुविधासंपन्न स्थानों में तैनाती आसानी से पा रहे हैं। ‘दि संडे पोस्ट’ ने जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय से जानकारी प्राप्त की तो कार्यालय ने बताया कि जिलों में सभी 47 स्वास्थ्य केंद्रों में 47 चिकित्सक तैनात हैं। सच्चाई यह है कि थानो और नाहींकला में डाॅक्टर की नियुक्ति तो है, लेकिन तैनाती नहीं है। थानो में तो दो माह पूर्व ही डाॅक्टर का स्थानांतरण हो चुका है और प्रभारी का कार्य फार्मासिस्ट के हाथों में दिया हुआ है।

देहरादून जिले में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए स्टाफ और चिकित्सकों की नियुक्ति और तैनाती के आंकड़ों को देखें तो देहरादून जैसे सुगम जिले के हालात भी कमोवेश अन्य जिलों के जैसे ही हैं। सीएमओ से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जिले में एक जिला अस्पताल जो कि गांधी शताब्दी और कोरोनेशन को मिलाकर एक किया गया है उसमें 49 चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं, जबकि 46 कार्यरत हैं और तीन पद रिक्त चल रहे हैं।

देहरादून जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के आकड़ों  से यह साफ हो गया है कि सरकार के अस्पतालों में चिकित्सकों की तैनाती किए जाने के तमाम दावे हवा-हवाई ही हैं। जिला और उप जिला अस्पतालों में 154 डाॅक्टरों के पदों की स्वीकृति के बावजूद 41 डाॅक्टरों के पद रिक्त होना वह भी देहरादून जैसे अति सुगम जिले में, साफ है कि सरकार जनता को चिकित्सक तक मुहैय्या नहीं करवा पाई है। पहाड़ी जिलों या देहरादून जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में किस तरह के हालात होंगे यह तो नाहींकला से ही साफ हो गया है। लेकिन जब देहरादून के मैदानी और सुविधाजनक नगरों के स्वास्थ्य के हालात ऐसे हैं तो राज्य के कैसे होंगे, यह आसानी से समझा जा सकता है

इसी तरह से 4 उप जिला अस्पताल हैं जिसमें विकासनगर उप जिला अस्पताल में डाॅक्टरों के 21 पद स्वीकृत है और 15 कार्यरत हैं जबकि 6 पद रिक्त हैं। मसूरी उप जिला अस्पताल में 29 पद स्वीकृत हैं जिसमें 19 कार्यरत हैं और 10 पद रिक्त हैं। इसी प्रकार से प्रेमनगर उप जिला अस्पताल में 21 पद स्वीकृत है तो 18 कार्यरत हैं जबकि 3 पद रिक्त हैं। ऋषिकेश उप जिला अस्पताल में 30 स्वीकृत पदों की अपेक्षा केवल 24 पद कार्यरत हैं जबकि 6 पद रिक्त हैं।

सामुदायिक अस्पतालों की बात करें तो डोईवाला में 9 पद स्वीकृत हैं, लेकिन एक ही कार्यरत है। इस अस्पताल को हिमालयन अस्पताल को पीपीपी मोड पर दिया हुआ है। इसी तरह से रायपुर, सहसपुर, चकराता तथा सहिया में विभागीय आंकड़ों के अनुसार सभी स्वीकृत पद कार्यरत हैं। एक मानसिक चिकित्सालय सहसपुर में स्थापित है जिसमें 9 पद स्वीकृत हैं जिसमें महज 4 पदों पर ही कार्यरत हैं जबकि 5 पद रिक्त हैं।

अन्य स्टाफ की बात करें तो नर्स 226 पद स्वीकृत हैं जिसमें 205 ही कार्यरत हैं और वार्ड ब्वाॅय के 249 पदों के सापेक्ष में 233 पद कार्यरत हैं। वाहन चालकों के 33 पद स्वीकृत हैं जिनमें केवल 24 पद पर ही चालक कार्यरत हैं।

देहरादून जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के आंकड़ों से यह साफ हो गया है कि सरकार के अस्पतालों में चिकित्सकों की तैनाती किए जाने के तमाम दावे हवा-हवाई ही हैं। जिला और उप जिला अस्पतालों में 154 डाॅक्टरों के पदों की स्वीकृति के बावजूद 41 डाॅक्टरों के पद रिक्त होना वह भी देहरादून जैसे अति सुगम जिले में, साफ है कि सरकार जनता को चिकित्सक तक मुहैय्या नहीं करवा पाई है। पहाड़ी जिलों या देहरादून जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में किस तरह के हालात होंगे यह तो नाहींकला से ही साफ हो गया है। जब देहरादून के मैदानी और सुविधाजनक क्षेत्रों में स्वास्थ्य के हालात ऐसे हैं, तो राज्य के अन्य हिस्सों में कैसे होंगे, यह आसानी से समझा जा सकता है।

देहरादून जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के आंकड़ों से यह साफ हो गया है कि सरकार के अस्पतालों में चिकित्सकों की तैनाती किए जाने के तमाम दावे हवा-हवाई ही हैं। जिला और उप जिला अस्पतालों में 154 डाॅक्टरों के पदों की स्वीकृति के बावजूद 41 डाॅक्टरों के पद रिक्त होना वह भी देहरादून जैसे अति सुगम जिले में, साफ है कि सरकार जनता को चिकित्सक तक मुहैय्या नहीं करवा पाई है। पहाड़ी जिलों या देहरादून जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में किस तरह के हालात होंगे यह तो नाहींकला से ही साफ हो गया है। लेकिन जब देहरादून के मैदानी और सुविधाजनक नगरों के स्वास्थ्य के हालात ऐसे हैं तो राज्य के कैसे होंगे, यह आसानी से समझा जा सकता है

हेल्थ एवं वेलनेस सेंटर सनगांव रायपुर

 

‘‘गणतंत्र दिवस पर अनेक बार खुशामद करने
के बाद फार्मासिस्ट अस्पताल में झंडा रोहण
के लिए तो आए, लेकिन उसके बाद वे
फिर दिखाई नहीं दिए।’’

एसपीएचसी नाहींकाला नाम मात्र को अस्पताल

-किशन सिंह कृषाली, पूर्व ग्राम प्रधान

‘‘दवाएं छह महीने में आती हैं, लेकिन हर मरीज को सिर्फ एक ही दवा दी जाती है। चाहे बुखार हो, सर्दी हो या जुखाम, डाॅक्टर एक ही दवा सभी रोगियों को देते हैं। डाॅक्टर हैं नहीं, अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उसे पहले की तरह कई कि.मी. दूर ऋषिकेश, देहरादून या जाॅलीग्रांट अस्पताल में ले जाना पड़ता है।’’

  • राजेश सिंह कृषाली, स्थानीय निवासी

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