ये बात सुनने में थोड़ा अलग लग सकती है कि जहां हमारे देश का एक हिस्सा बारिश के इंतजार में बेचैन रहता है… वही कई गांव बारिश के नाम से ही सिहर उठते हैं। हल्द्वानी से मात्र 10 से 12 किलोमीटर की दूरी पर गौलापार सूखी नदी के किनारे बसा नकायल गांव भी इन्ही गांवो में से एक है, आज़ादी के बाद से आजतक इस गांव के ग्रामीण सड़क औऱ पुल की मांग कर रहे हैं लेकिन इन लोगों को आश्वाशनों के अलावा हासिल कुछ नही हुआ ।
बरसात की काली रात में जब जब बारिश की तेज बौछारों के साथ बिजली कड़कने की आवाज सुनायी देती है, तो नकायल गांव के भयभीत ग्रामीण अपनी सलामती के लिए भगवान से दुआ करने लगते हैं, बरसात के कारण हल्द्वानी शहर तक जाने वाले संपर्क मार्ग का टूट जाना आम बात हो गयी है, जिससे गाँव के लोगों तक हफ़्तों तक खाध्य सामग्री और जरूरी सामग्री का अकाल पढ़ जाता है, जो नौकरीपेशा लोग हैं घर में बैठने को मजबूर हो जाते हैं, नकायल गांव के लोग गाँव में सड़क और सूखी नदी पर पुल बनाने की मांग को लेकर स्थानीय विधायक, अफसरों से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री तक मिल चुके हैं लेकिन कोई भी उनकी फ़रियाद पर अमल करने को तैयार नहीं है, ऐसे में वे जांए तो जांए कहाँ ? ग्रामीणो के मुताबिक आज़ादी के बाद से लगातार ये लोग सँघर्ष करने को मजबूर हैं।
1952 से लेकर आज तक यहां के लोगों का एक ही सपना रहा है की हल्द्वानी से नकायल गाँव को जोड़ने वाली सड़क और बीच में बहने वाली सुखी नदी में पुल बन जाए, लेकिन सपने हकीकत में नही बदल पाए, 1953 से गाँव की कई पीढ़ियाँ सपने देखते देखते गुज़र गयी लेकिन आज तक ना ही सड़क का निर्माण हुआ है और ना ही सुखी नदी में पुल ही बन पाया, स्थानीय लोगो की माने तो पहाड़ो में हलकी बरसात से सूखी नदी अपना तांडव मचाना शुरू कर देती है, ऐसे में यहाँ के लोगो का सम्पर्क शहर से टूट जाता है। यही नही नदी के उफान की वजह से लोग जहां तहां फंस जाते है, स्कूल के बच्चो को तो बरसात के दिनों में तीन तीन माह स्कूल की छुट्टी करनी पड़ती है। हल्द्वानी शहर से मात्र 10 से 12 किलोमीटर की दूरी पर बसा नकायल गाँव आज भी मूलभूत चीजो के लिए तरस रहा है, इस गाँव के पचास फीसदी लोग भारत माता की रक्षा के लिए या तो सरहदों में तैनात हैं या फिर सेना से रिटायर्ड हैं , बावजूद इसके गाँव की बदहाल हालत देखने के बाद भी लोगो की उम्मीद ख़त्म नहीं हुई है, ऐसा नही की गाँव में कोई मंत्री या अधिकारी नहीं पंहुचा हो और सड़क और पुल का शिलान्यास ना किया गया हो बावजूद इसके आज भी गाँव की तस्वीर 1952 की तरह जस की तस बनी हुयी है।
अधिकारी भी मानते है की नकायल गांव के ग्रामीणों की समस्या गम्भीर है, क्योकि बरसात के दिनों में किसी भी गांव का जिला मुख्यालय या आस पास के नजदीकी शहर से संपर्क कटना किसी भयावह हालातो से कम नही है, लिहाज़ा ग्रामीणों की समस्या को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ पुलों के निर्माण के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक से भी बात की गई है, और जिन जगहों में नालो औऱ नदियों की वजह से लोगों को आवाजाही में दिक्कत होती है उनमें राज्य आयोग के बजट से पुल बनाने की तैयारी की जा रही है ।
नकायल गांव कोई पहला ऐसा गांव नही है जो कई दशकों से सड़क और पुल के लिये तरस रहा हो, उत्तराखण्ड के सैकड़ो गांव ऐसे है जहां मूलभूत सुविधाएं तो दूर, इंसान का पैदल चलना दूभर हो जाता है, औऱ सरकार के पास सिवाय आस्वासनो के कुछ नही मिलता, तब ग्रामीण आंदोलन की राह पर उतर आते है ।