वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पंचायत जनाधिकार कार्यक्रम के संयोजक जोत सिंह विष्ट की याचिका पर उत्तराखण्ड मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को देश के विभिन्न राज्यों में लाॅकडाउन के कारण फंसे हुये नागरिको को चरणबद्ध तरीके से राज्य में वापिस लाने का आदेश जारी किया है। अब सरकार को इस पर कदम उठाना है कि वह किस तरह से अपने राज्य के नागरिको को सुरक्षित राज्य में वापिस लाती है।
दरअसल कोरोना के चलते देश में लोक डाउन की स्थिति बनी हुई है। जिसके चलते हजारों उत्तराखण्ड के नागरिक देश के कई राज्यों में फंसें हुये है। इनको राज्य में वापिस लाये जाने को लेकर सरकार के कई बार मांग की जा रही है। परंतु राज्य सरकार इस पर कोई निर्णय नही ले रही है जबकि उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा राजस्थान के कोटा से अपने राज्य के विद्यार्थियों को उनको घरो में पहुंचाने का काम कर चुकी है और अब देश के अन्य राज्यों में फंसे हुये मजदूरो को भी उत्तर प्रदेश में लाये जाने की तैयारी कर रही है। इसके चलते प्रदेश सरकार पर भारी जनदबाव बना हुआ है लेकिन सरकार के ढुलमुल रवैये के चलते न तो राज्यो से उत्तराखण्ड में किसी नागरिक को लाया जा रहा है यहां तक कि उत्तराखण्ड में ही आये हुये प्रवासी नागरिको को क्वांरंटीन की अवधि पूरी करने के बावजूद उनको उनके घरो तक पहुंचान मे ंभी राज्य सरकार नकाम ही साबित हुयी है।
कांग्रेस के वरिष्ट नेता जोत सिंह बिष्ट के द्वारा 24 अप्रैल को उत्तराखण्ड राज्य मानवाधिकार आयोग में एक याचिका दाखिल कर के मांग की गई थी कि उत्तराखण्ड सरकार देश के विभिन्न राज्यों मे फंसे हुये नागरिको को सुरक्षित उनके अपने घरो तक पहुंचाने की व्यवस्था करने और जो प्रवासी उत्तराखण्ड नही आ पा रहे हें उनके प्रवास के स्थान पर उनकी पूरी देखभाल करने के आदेश देने की मांग की गई थी। जिस पर उत्तराखण्ड मानावाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को अविलम्ब कार्यवाही करने का आदेश जारी कर दिया।
मानवाधिकार आयोग के इस आदेश से राज्य सरकार पर फिर से सवाल खड़े होने लगे है। उत्तराखण्ड के नगारिकों की सुरक्षित घर वापसी को लेकर सरकार के लापरवाही भरे रवैये से पहले ही सरकार के खिलाफ राजनैतिक ददो के द्वारा आरोप लगाये जा चुके है। सोशल मीडिया में भी सरकार , खास तौेर पर मुख्यमंत्री की कार्यशैली को लकर तमाम तरह के तंज कसे जा चुके है। अब मानावधिकार आयोग के आदेश के बाद प्रवासी उत्तराखण्डियों की प्रदेश में सुरक्षित वापसी की राह आसान होती दिखाई दे रही है।
ऐसा नही है कि उत्तराखण्ड सरकार के द्वारा लाॅकडाउन के समय में किसी को राज्य से बाहर न भेजा हो या राज्य में आने की ईजाजत न दी हो। पूर्व में 28 मार्च को राज्य सरकार के द्वारा गुजरात के सैकड़ो तीर्थी यात्रियों को सरकारी बसो के द्वारा गुजरात तक पहुंचाने का काम कर चुकी है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा राजस्थान के कोट से अपने प्रदेश के विद्यार्थियों को लाये जाने के लिये की गई बसो की व्यवस्था में उत्तराखण्ड सरकार के द्वारा भी अपने राज्य के 150 छात्रो को कोटा से वापिस लाया जा चुका है। हांलाकी सरकार के इस कदम का जहां स्वागत किया गया था तो वहीं इसको लेकर सरकार पर भेदभाव बरतने का भी आरोप लगाया गया था।
आम उत्तराखण्डी जो कि महानगरो में लाॅकडाउन के चलते खासे परेशान है और उनके पस न रहने खाने तक की कोई सुविधा नही है वाजद उनको उत्तराखण्ड में लाये जाने की कोइ व्यवस्था न कर के कोटा में पड़ने वाले छात्रो के लिये सरकार उत्तर प्रदेश सरकार से बातचीत करके उनको राज्य मे ंलाने में सफल हो जाती है। इसी को लेकर सरकार के खिलाफ नारजगी बनी हुई है।
कांगेेस के वरिष्ट नेता जोत सिंह बिष्ट के द्वारा अपने प्रयासो से 22 मार्च के बाद से लेकर अभी तक 2 हजार प्रवसी उत्तराखण्डियों से सम्पर्क साध कर उनके बारे में जानकारी एकत्र की है। जिसको बकायदा मुख्यमंत्री और महामहिम राज्यपाल को सूची बना कर सोैंप कर मांग की गई कि इन उत्तराखण्डियों को सुरक्षित उत्तराखण्ड मे ंवापिस लाया जाये। लेकिन बिष्ट के तमाम प्रयासों के बावजूद किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नही की गई।
लाॅकडाउन के प्रथम चरण के बाद दूसरे चरण के चलते इन प्रवासीयो की हालत और भी बदतर होने की जानकारी बिष्ट को प्रप्त हुई तो उन्होने फिर से सरकार और राज्यपाल को इस मामले में कदम उठाने की मांग की लेकिन लेकिन फिर भी उनकी मांग पर कोई कार्यवाही नही की गई।
आखिरकार 24 अप्रैल को जात सिंह बिष्ट के द्वारा उत्तराखण्ड मानवाधिकार आयोग में याचिका दाखिल की और याचिका में 2 हजार प्रवासीयों की सूची प्रस्तुत की। जिसमें सभी जानकारीयां दी गई थी। याचिका को आयोग ने स्वीकार किया और 28 अप्रैल को आयोग ने राज्य के मुख्यसचिव को अविलम्ब कार्यवाही करने का अदेश जारी कर दिया।
आयेाग के द्वारा देश के अन्य राज्यकें में रहने वाले प्रवासी उत्तराखंड के नागरिको की सुविधा के लिये कार्यवाही करने और उनकी घर वापसी के लिये जरूरी स्वास्थ्य सुरक्ष संबधित बातो का भी पूरी तरह से पालन करने का आदेश दिया है।
अब देखनाा होगा कि आयेाग के इस आदेश का राज्य सरकार और राज्य की मशीनरी किस तरह से सऔर कब तक पालन करती है जबकि यह माना जा रहा है कि लोकउाउन का तीसरा चरण होना तय है तो राज्य सरकार कब तक असे अमल में लाती है।
जोत सिंह बिष्ट- याचिका कर्ताः अन्य राज्यों में उत्तराखण्ड के गरीब नागरिक रोजगार के लिये गये हुये हैं। कोरोना के चलते लोकडाउन मे वे सभी बेरोजगार हो चुके है उनके पास न तो रहने की जगह है ओर न ही खाने आदी के कोई साधन हैं यहां तक कि अब उनके पास सिंचत धन तक नही समाप्त हो चुका है। क्योंकि जो कुछ बचाया हुआ था वह लाॅकडाउन के पहले चरण में ही समाप्त हो गया और अब दूसरे चरण के बाद तीसरा चरण तय माना जा रहा हैं इसके चलते उनकी स्थिति बहुत खरब हो चुकी है। मैंने अपने प्रयासो से 2 हजार नगारिको ंकी सूची राज्य सरकार को दी है जो उत्तराखण्ड में अपने घरों में आना चाहते है। हजारो ऐसे नागरिक है जो लाॅकडाउन मे फसे हुये है उनको उत्तराखण्ड में वापिस लाया जाना जरूरी है। जब सरकार ने मेरी कोई भी मांग नही मानी तो मुझे मानवाधिकार आयेाग में याचिका डालनी पड़ी जिस पर आयेाग ने सरकार को आदेश जारी कर दिया है। अब सरकार को देखना है कि वह किस तरह से इस आदेश का पालन करवा पाती है।