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Uttarakhand

उत्तराखण्ड में मुआवजे के नाम पर पत्रकारों का विभाजन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में कोरोना संक्रमण को लेकर कई तरह की घोषणाये कर चुके है जिसमें करोना वरियर्स के सम्मान और उनके हितो की भी बात कही गई है। लेकिन लगता है कि उत्तराखण्ड सरकार को इससे कोई सबक नही लेना चाहती है। मोदी जीन ने समाचार प्रत्रो और न्यूज चैलनो के अलावा न्यूज पोर्टलो के संवादादाताओं को कोरोना से लड़ने के लिये एक बड़ा सिपाही माना है लेकिन अभी तक राज्य सरकार के द्वारा पत्रकारो के मुआवजा यासम्मान निधी को लेकर कोई स्पष्ट गाईडलाईन तय नही की है। दबाब के चलते शासन ने पत्रकारो के लिये बीमा की बात कही है लेकिन इसमें भी अधिकृत पत्रकार का उल्लेख करने से यह साफ नही हो पाया है कि उक्त मुआवजा किन पत्रकारो का होगा। एक तरह से सरकार के द्वारा पत्रकारो का विभाजन कर के पत्रकारो के बीच फूट डालने का ही काम किया है।

जिस तरह से देश कारेाना से लड़ रहा है और इस लड़ाई में मीडियकर्मियों की भी बड़ी भूमिका सामने आ रही है। प्रधानमंत्री मोदी भी मीडिया को कोरोना वारियर्स के तौर पर मान कर समाचार पत्रो को आवश्यक वस्तु की श्रेणी मे ंरख चुके है। ऐसे ही मीडिश्या कर्मियों के कोरोना की इस लड़ाई में अगर किसी मीडिया कर्मी को कुछ हो जाता है तो उसके लिये सभी राज्य अपने अपने स्तर से मुआवजा देने का ऐलान कर चुके है। उत्तराखण्ड सरकार ने भी प्रदेश के मीडियाकर्मियों के लिये दस लाख के मुआवजे की घोषणा की है लेकिन इस घोषणा में एक बड़ा पेचं फंसा दिया गया है जिसके चलते पत्रकारो में भारी नराजगी बनी हुई है।

दरअसल उततराखण्ड शासन के द्वारा कोरोना वरियर्स के लिये मुआवजे का शासानादेश जारी किया है जिसमे प्रदेश के कई विभागों के कर्मचारीयों जो कि कारोना की लड़ाई में काम कर रहे हैं उनको आपदा राहत कोष से सम्मान नीधि के तौर पर दस लाख का कवर दिये जाने का उल्लेख किया गया है। इसमें अगर इन विभागों के कर्मचारीयों की कोरोना युद्ध के चलते मौत हो जाती है तो उनके परिवारजनो को दस लाख रूपये दिये जायेगे। इनमें आउटसोर्सिग और सविदा कर्मियों को भ्राी शामिल किया गया है लेकिन मीडियाकर्मियों के लिये अधिकृत मीडियाकर्मी होने का उल्लेख किया गया है। यानी अधिकृत मीडियाकर्मी की अगर कोरोना से मौत हो जाती है तो उनके परिवारजनो को भी दस लाख दिये जायेंगे।

इसी शासनादेश की भाषा को लेकर पत्रकार जगत मे ंखसा रोष फैला हुआ है। शासनादेश में यह स्पष्ट नही है कि अधिकृत मीडिया कर्मी कोैन होगा। यहां तक की यह भी स्पष्ठ नही किया गया है कि सूचना विभाग द्वारा मानयता प्राप्त या मीडिया संस्थानो के द्वारा अधिकृत पत्रकार ही इस में शमिल होगे यह भी पूरी तरह से स्पष्ठ नही किया गया है।

गौर करने वाली बात यह है कि अधिकतर बड़े मीडिया घराने के पत्रकारो को तो हर तरह से सहुलियते मिलती रही है लेकिन इन में ज्यादातर काम करने वाले पत्रकार एक तरह से स्टिंगर ही होते है चाहे वह न्यूज चैलनो के संवाददाता हो या प्रिट मीडिया के सवांददाता। अधिकांश के पास न तो संस्थानो से कोई नियुक्ति पत्र तक जारी नही होता है यह लेाग एक तरह से जितना काम उतना दाम के तरह काम करते है। कुछ ऐसे ही हाल ही में तेजी से उभरे और कोरोना संक्रमण के चलते लाकडाउन में सबसे आगे रहने वाले न्यूज पोर्टलों के सवांददाताओ की भी स्थिति है। इसमे ंभी ज्यादातर वे लेाग है जिनको न तो किसी न्यूज पोर्टल संस्थान ने अधिकृत किया है यहां तक कि वेतन आदी भी इनको मिल जाये तो यह बड़ी बात है।

जबकि फील्ड में अधिकांश इसी तरह के ही पत्रकार समाचार संकलन के लिये जुटे रहते है और सबसे ज्सादा जोखिम भी इन्हीं पत्रकारो को उठाना पड़ रहा है लेकिन इनको कोरोना वरियर्य के तौर पर माना तो जा रहा है लेकिन मुआवजे आदी के लिये इनको अधिकृत नही माना जा रहा है। राजय सरकार के द्वारा जारी किये गये शासनादेश की माने तो एइ श्रेणी के वे सभ पत्रकार भगवान के ही भरोषे है और अगर उनको कुद हो जाये तो उनका सहारा केवल भगवान ही हो सकता है।

इसी के देखते हुये इंडियन जर्नलिस्ट युनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीआर प्रजापति के द्वारा मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को पत्र लिख है जिसमें प्रदेश में कारेाना से लड़ाने वाले सभी मीडियाकर्मियों को 50 लाख का बीमा कवर दिये जाने की मांग की गई है। साथ ही पत्र. में अन्य राज्यों जैसे मध्यप्रदेश और तमिलनाडु में पत्रकारो के लिये सरकार के द्वारा दी जा रही अंतरम सहायता दिये जाने कीर बात करही गई है वैसे ही उत्तराखण्ड सरकार से भी दिये जाने की मांग की गई है।

श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष और इंडियन जर्नलिस्ट युनियन के उपाध्यक्ष विश्वजीत सिंह नेगी ने भी मुख्यमंत्री से पत्रकारो के लिये करोना की लड़ाई में किये जा रहे भेदभाव पर नारजगी जताते हुये सरकार को पत्र लिखा है। वरिष्ठ पत्रकार और पर्वतजन न्यज पोंर्टल के सम्पादक शिव प्रसाद सेमवाल इसे सरकार ओर नौकरशाहो की पत्रकारो को आपस में लड.वाने का षडयंत्र बता कर कह रहे है कि सरकार ने जानबूझ कर अधिकृत मीडियाकर्मी का उल्लेख किया है जिस से सरकार की चाटुकारतिा करने वाले मीडिया हाउस और पत्रकारो को ही इसका लाभ मिल सके और जो सरकार की नीति और नियत को आईना दिखाते है उनको सरकार देखना ही नही चाहती। हालंाकी पत्रकारो की नारजगी के बाद सूचना महानिदेशालय के उच्चाधिकारी मान रहे हैं कि इसमें कुछ किये जाना जरूरी है और इस मामले को जल्द ही सुलझा लेने की बात भी कर रहे है लेकिन जिस तरह से लाकडाउन के पहले चरण के बीत जाने के बाद भी पत्रकारो के लिये कोई गईडलाईन ही तय नही की गई है तो दूसरे चरण में कब तक यह हो पायेगा यह कहा नही जा सकता

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