प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री के राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के सभी दावो की पोल स्वय उनके ही विभाग ने खोल कर रख दी है। कार्यालय महानिदेशालय स्वास्थ्य चिकित्सा एंव परिवार कल्याण उत्तराखण्ड के द्वारा दैनिक समाचार पत्रो में एक सूचना विज्ञापन जारी किया है जिसमें 147 ऐसे सरकारी चिकित्सकों की सूचना दी गई है जो वर्षो से अपनी तैनाती स्थलो के चिकित्सालयों से गायब है। इन सभी को दो सप्ताह भीतरी अपनी जबाब दाखिल करने और अपने तैनाती स्थल पर उपस्थित होने का नोटिस दिया गया है। हैरानी इस बात की है कि जहां पर्वतीय जिलो के चिकित्सक गयाब है ता ेवहीं देहरादून उधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले के भी चिकित्सक गायाब है।
सूची के अनुसार देहरादून जिले से 8 और उधमसिंह नगर जिले से 14 तथा हरिद्वार जिले से 6 डाक्टर गायब है। अगर पहाड़ी जिलों की सूची को देखें तो सबसे ज्यादा गायब डाक्टर पहाड़ी जिलो से ही हैं। इनमें स्वयं मुख्यमंत्री के गृह जनपद पौड़ी जिले से 20 डाक्टर गायब है। गौर करने वाली बात यह है कि पोैड़ी जिले से गायब होने वाले चिकित्सको में से पौड़ी नगर, श्रीनगर तथा कोटद्वार नगर तक से डाक्टर गायब है, जबकि यह तीनो ही नगर क्षेत्र के विकसित और सभी सुखसुविधाओं से सुसज्जित नगर है। बावजूद इसके पौड़ी जिले से बड़े पैमाने पर चिकित्सक गायब है। इसक अलावा टिहरी जिले से 8 और उत्तरकाशी जिले ये 9 तथा चमोली जिले से 16 चिकित्सक गायब हो गये। रूद्रप्रयाग जिला जो कि चारधाम यात्रा के दूसरे धाम केदारनाथ से जुड़ा है से भी 9 डाक्टर लापता बताये गये है।
कुमायू मण्डल के पहाड़ी जिले नैनीताल से 18 और बागेश्वर से 3 तथा पिथोैरागढ़ से 6 व चम्पावत जनपद से 10 डाक्टर लापता बताये गये है। इसी तरह से सांस्कृतिक नगरी के तौर पा पाहचान रखने वाले अल्मोड़ा जिलो से भी कुमायूु मण्डल में सबसे ज्यादा 20 डाक्टरो का अता पता स्वंय राज्य के स्वास्थ्य महानिदेशक कार्यालय को नही है।
अब मौजूदा हालेात को देंखे तो राज्य में करोना संक्रमण के चलते स्वास्थ्य विीााग पर सबसे ज्यादा दबाब बना हुआ है। विशेष कर मेैदानी जिलो में कोरोना के चलते हालात खराब हो रहे है। देहरादून और हरिद्वार जिले लाल रंग की श्रेणी में आ चुके है। बावजूद इन जिलो से 14 डाक्टरो के लापता होने से कई सवाल खड़े होते है।
पहाड़ी जिलो में सौभाग्य से कारोना के मामले सामने नही आये है। यह नही है कि पहाड़ी जिलो के लिये राहत की बात हो सकती है लेकिन अभी राज्य में रैपिड जांच आरम्ीा नही हो पाई है अगर रैपिड जांच शूरू होगी तो मामले समाने आ सकते है। जिस तरह से देश के अन्य स्थानो में कोरोना के लेकर कई आंशकंश्े जताई जा रही है उस से उत्तराखण्उ के लिये चुनौति हो सकती है जबकि राज्य में पहले ही चिकित्सको की कमी बनी हुई है।
पहाड़ी जिलो के लिये हाईकोर्ट के द्वारा 21 अप्रैल को आदेश जारी किया गया है कि सरकार के द्वारा जिल अस्पतालो को कारोना के इलाज के लिये सुरक्षित किया गया है उनमे ं7 दिनो के भीतर आईसीयू और वैन्टीलेटर से युक्त किया जाये। इस से यह साफ हो गया है कि प्रदेश सरकार ओर राज्य का स्वास्थ्य चिकित्सा विभाग किस तरह से लापरवाह बना हुआ है। कोरोना से लड़ने के लिये अस्पतालो को सुरक्षित तो किया गया है लेकिन उनमें आईसीयू और वेंटीलेटर की सुविधा तक नही है। हाईकोर्ट के द्वारा इस मामले में एक याचिका पर हस्तक्षेप किया और अब सरकार के पास एक सप्ताह का समय है जिसमे ंसरकार के द्वारा कोरोना के इलाज के लिये सुरक्षित किये गये अस्पतालो में यह सुविधा स्थापित की जायेगी।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद देखना दिलचस्प होगा कि राज्य का स्वास्थ्य चिकित्सा एंव परिवार कल्याण विभाग और इसके विभागीय मंत्री जो कि स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत है किस तरह और तय समय पर अस्पतालो में आईसीयू ओर वेंटीलेटर की सुविधा दे पाते है या नही। जिस तरह से स्वास्थ्य विभाग के होलात रहे है ंउस से लगता नही कि सरकार कोई जल्द कदम उठाा पायेगी। क्यों कि स्वंय हईकोर्ट के द्वारा सरकार को भी इस कार्य के लिये समस्या आने पर अपना जबाब देने का समय भी दिया है यह सरकार के लिये एक राहत का काम कर सकती है।
बहरहाल मुख्यमंत्री के अपने ही विभाग में 147 डाक्टरो के लापता होने से यह भी साफ हो गया है कि सरकार प्रदेश मे ंस्वास्थ्य सुविधाओं कर बेहतरी के लिये तमाम दावे तो करती है ओर हर वर्ष चिकित्सकों की भर्ती कर के तैनाती को आदेश जारी कर देती है इसके बाद विभाग एक तरह से सो जाता है और कितने डाक्टरो ने अपनी तैनाती स्थल पर तैनात हो पाये है या नही इसे देखने की फुरसत किसी के पास नही है। अगर विभाग और स्वास्थ्य मंत्रालय सजग होता हो कई वर्षो से लापता हुये डाक्टरो के स्थान पर नई नियुक्ति कर के राहत दी जा सकती थी।