पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की पुस्तक ‘मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत’ का लोकार्पण 29 अप्रैल को देहरादून में किया गया। लोकार्पण समारोह में जगतगुरु शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम महाराज, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, विधायक हरीश धामी, फुरकान अहमद, अनुपमा रावत, सहित कई अन्य नेता मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन सुरेंद्र कुमार ने किया है। हरीश रावत की यह किताब ‘मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत’ का प्रकाशन ‘पाखी पब्लिशिंग हाउस’ ने की है। इस किताब में हरीश रावत के बचपन से लेकर अब तक की राजनीतिक यात्रा का सिलसिलेवार उल्लेख के साथ ही उत्तराखण्डियत के तमाम पहलुओं को छुआ गया है। हरीश रावत ने अपने संबोधन में कहा कि लोकतंत्र सत्ता और विपक्ष की पटरी पर चलता है। दोनों पटरियों को मजबूत होना चाहिए। एक पटरी जवाबदेही कर्ता की पटरी है तो दूसरी पटरी विपक्ष की है। जगतगुरु दोनों पटरियों की मजबूती के लिए बखूबी सामंजस्य बनाने में सामर्थ्य हैं। उन्होंने कहा कि आज कुछ लोगों ने सनातन धर्म को अपनी बपौती बना लिया है, जबकि सनातन सबका है।
यह गंगा की तरह है, जिसमें सब समाहित हो जाते हैं। इस दौरान रावत ने किताब के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए उत्तराखंडियत को अपने शब्दों में परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि ‘इस किताब में वही है जो उत्तराखण्ड की आत्मा है, इसके कुछ पहलुओं को, जो जीवन की आवश्यकता है, जिन बिंदुओं की वजह से उत्तराखण्ड उभर कर आया है, उन बिंदुओं को सहेजने की कोशिश की है।’ लोकार्पण के दौरान जगतगुरु शंकराचार्य ने कहा कि ‘जितना वह हरीश रावत को जानते हैं, उस आधार पर वह कह सकते हैं कि उत्तराखण्ड और हरीश अलग-अलग नहीं हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक उत्तराखंडियत में जिस अंदाज से उत्तराखण्ड के विभिन्न पहलुओं को उकेरा है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।’ उन्होंने कहा कि पुस्तक के रूप में हरीश रावत ने एक शोधग्रंथ तैयार किया है, इसलिए इसे हर विद्यालय में होना चाहिए, ताकि हमारे बच्चे बचपन से ही उत्तराखण्डियत को समझ सकें। जगतगुरु ने यह भी कहा कि आज बहुत से लोग उनसे पूछते हैं, क्या हरीश रावत चुनाव लड़ेंगे, तो वह कहते हैं कि हरीश ने जीवनभर राजनीति की है, बुढ़ापे में वह गड्ढे नहीं खोदेंगे, बल्कि राजनीति ही करेंगे। उन्होंने कहा कि हरीश को चुनाव जरूर लड़ना चाहिए।
इस अवसर पर कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि एक साथी कह रहे हैं कि हरीश ने उत्तराखण्डियत शब्द उनसे चुरा लिया। उन्होंने किशोर उपाध्याय का नाम लिए बिना कहा कि आप कभी वनाधिकार की बात करते थे, उत्तराखण्डियत और पलायन की बात करते थे, श्रीदेव सुमन का नाम रटते थे, भाजपा में जाते ही आप इन मूल्यों को क्यों और कैसे भूल गए, पहले इसका जवाब देना चाहिए। उन्होंने हरीश को अपना गुरु बताते हुए उन्हें राजनीति की पाठशाला बताया। गौरतलब है कि पुस्तक लोकार्पण से पहले टिहरी से भाजपा के विधायक किशोर उपाध्याय ने कहा था कि जब मैं उन्हें उत्तराखण्डियत के बारे में समझाता था तब वह इसे गंभीरता से नहीं लेते थे। उन्होंने कहा बेईमानी की आदत कभी जाती नहीं है। एक घटना पर 2016 में जब मैंने कहा कि यह उत्तराखण्डियत पर हमला है तो अगला आदमी कहने लगा- होती क्या है यह उत्तराखण्डियत? आज सुना है उत्तराखण्डियत पर वे किताब लिख चुके हैं।
‘मेरी लाश पर होगा उत्तर प्रदेश का विभाजन’
हरीश रावत की इस पुस्तक के शीर्षक ‘कांग्रेस और राज्य आंदोलन के अंतर्गत पृष्ठ संख्या 351 पर अविभाजित उत्तर प्रदेश से पृथक उत्तराखण्ड राज्य के मामले का भी रहस्योद्घाटन किया गया है। हरीश रावत लिखते हैं कि मैंने स्व. श्री जितेंद्र प्रसाद जी की सलाह पर पहाड़ों के कांग्रेसजनों को एक बैठक प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के निवास में बुलाई। भूलवश मैं इस बैठक में श्री नारायण दत्त तिवारी जी को बुला बैठा। श्री तिवारी जी केंद्र में मंत्री नहीं बनाए जाने से पहले ही रूष्ट थे। स्व. जितेंद्र प्रसाद, स्व. महावीर प्रसाद और मैंने श्री राव को केंद्र शासित राज्य बनाने की घोषणा के लिए सहमत करवा लिया था। हमारी मदद स्व. माधव राव सिंधिया, स्व. राजेश पायलट और स्व. एसवी चह्नान ने भी की। बहुत खुश मूड में राव साहब बैठक में आए, मैं बोला, स्व. केसी पंत बोले फिर स्व. तिवारी जी से बोलने का अनुरोध किया। स्व. तिवारी जी ने स्व. गोविंद बल्लभ पंत जी का नाम लेकर कहा उत्तर प्रदेश का विभाजन मेरी लाश पर ही होगा। सारा माहौल बदल गया। निराश राव साहब कुछ इधर-उधर की बातों सहित पहाड़ों की भावना का सम्मान करने की घोषणा कर बैठक से चले गए। नरसिम्हा राव मूर्दाबाद के नारों के बीच सभा समाप्त हुई। इतिहास में शायद पहली बार या हो सकता है अंतिम बार कोई पार्टी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के खिलाफ उसके घर में ही नारा लगाए। कांग्रेसजनों ने ऐसा इतिहास बनाया।