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Uttarakhand

नड्डा की निगाह में दोयम दर्जे के साबित हुए उत्तराखण्डी

देहरादून। उत्तराखण्ड के भाजपा नेता बड़े-बड़े दावे करते नहीं थकते कि पार्टी की तीसरी पीढ़ी युवा नेताओं की है। भविष्य में भी भाजपा के पास युवा नेतृत्व की कमी नहीं होने वाली। परंतु जिस तरह से नए राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की टीम में नई पीढ़ी को पूरी तरह से नकारा गया है उससे एक बात तो साफ हो जाती है कि राष्ट्रीय नेतृत्व की निगाह में उत्तराखण्ड के नेताओं का स्तर दोयम दर्जे तक ही है, जबकि पूर्व में प्रदेश के कई नेताओं को राष्ट्रीय टीम में सम्मानजनक स्थान मिलता रहा है। हालांकि राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी को फिर से राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाकर उत्तराखण्ड भाजपाइयों को खुश होने का एक अवसर जरूर नड़्डा ने दिया है। एक और नेता महेंद्र पाण्डेय को प्रदेश कार्यलय का सचिव बनाकर यह साफ कर दिया है कि प्रदेश में भाजपा के नेता बाबूगिरी से ज्यादा लायक नहीं है।

उत्तराखण्ड भाजपा के राजनीतिक भविष्य को लेकर कई बार सामने आया है कि वरिष्ठ भाजपा नेताओं के एडजेस्ट होने के बाद से प्रदेश की राजनीति में जो शून्यता आ रही है उसका निदान किस तरह से पूरा हो पाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभामंडल की छाया के नीचे पनपने वाली नई भाजपा की पौध आने वाले समय में किस तरह से नेतृत्व करेगी। आज भले ही भाजपा युवा नेताओं की भरी पूरी जमात प्रदेश में होने की बात करती हो, लेकिन वह जमात अपने दम पर कोई करिश्मा कर दिखा पाएगी यह भाजपा के मोजूदा हालात को देखकर समझा जा सकता है।

कभी प्रदेश में भाजपा की त्रिमूर्ति के नाम पर राजनीतिक दखल रखने वाली पार्टी आज प्रदेश की राजनीति में वरिष्ठता से जूझ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खण्ड़ूड़ी राजनीति में अब एकांत की ओर जा चुके हैं। भगत सिंह कोश्यारी महाराष्ट्र में राजभवन का सम्मान पाकर अपने आप को आने वाली भाजपा की राजनीति में पहले ही ढाल चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निंशक’ भी केंद्र की राजनीति में रम चुके हैं। यहां तक कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट भी अब केंद्र की राजनीति में सांसद बनकर अपनी नई राजनीतिक पारी में ही रम चुके हैं।

एक के बाद एक प्रदेश भाजपा के बड़े और वरिष्ठ नेताओं के राज्य से बाहर होने के बाद उत्तराखण्ड में पार्टी अब इस हालत में आ चुकी है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी स्थान तक नहीं मिल पा रहा है, जबकि केंद्रीय भाजपा पार्टी को युवा कंधों पर चलाने की बात कर रही है। देश के कई राज्यों से युवाओं को तरजीह दी गई है लेकिन उत्तराखण्ड से एक भी नेता को इसके लायक तक नहीं समझा गया।

प्रदेश के कई नेताओं को केंद्रीय संगठन में पदों से नवाजा गया था। यहां तक कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान में पौड़ी सीट से सांसद तीरथ सिंह रावत अमित शाह की टीम में अपना स्थान बनाने में सफल रहे थे। यही नहीं हिमाचल प्रदेश का प्रभारी भी तीरथ सिंह रावत को बनाया गया था। लेकिन इस बार जेपी नड्डा की टीम में उनको कोई स्थान तक नहीं मिल पाया, जबकि नेताओं का दावा था कि भाजपा में तीरथ सिंह रावत नई पीढ़ी के नेताओं में अपना स्थान रखते हैं।

अब अगर भाजपा की नई टीम की बात करें तो बेशक राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का कद पहले से बड़ा कर उनको पार्टी का मुख्य प्रवक्ता बनाया गया है, लेकिन इसमें अनिल बलूनी की अपनी मेहनत ही रही है। जिसके चलते वे अपना स्थान न केवल सुरक्षित रख पाए, यहां तक कि मुख्य प्रवक्ता तक पहुंचे हैं।

हालांकि केंद्रीय भाजपा कार्यालय के सचिव पद पर महेंद्र पाण्डेय को तैनात कर उत्तराखण्ड के नाम एक पद और दिया गया। लेकिन पाण्डेय ने कभी भी प्रदेश की राजनीति में अपने आप को नहीं रखा। दिल्ली और अन्य प्रदेश से ही उन्होंने अपनी राजनीति आरंभ की है। इतना जरूर है कि महेंद्र पाण्डेय मूल रूप से उत्तराखण्ड के निवासी हैं, लेकिन राजनीतिक तौर पर पाण्डेय प्रदेश की राजनीति में कभी देखे तक नहीं गए। एक तरह से यह माना जा रहा है कि महेंद्र पाण्डेय को कार्यालय सचिव पद पर बैठाए जाने से उनको एक बाबूगिरी का ही पद नसीब हुआ है जिसको लेकर उत्तराखण्ड भाजपाई कुछ हद तक खुश हो सकते हैं।

अब प्रदेश भाजपा की नई पीढ़ी के नेताओं की बात करें तो राजनीतिक तौर पर यह देखा गया है कि नई पीढ़ी के युवा सरकार में तो पद हासिल करने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक रहे हैं, लेकिल सांगठनिक तौर पर उनका कद केवल प्रदेश की राजनीति में ही रहा है। यहां तक कि बड़े नेताओं का बरदहस्त पाकर ही वे अपना स्थान बना पाए हैं।

हालांकि कई युवा नेता विधायक भी चुने गए हैं, लेकिन उनका राजनीतिक स्तर उनकी विधानसभा तक ही सिमटा हुआ है। एक भी नई पीढ़ी का नेता ऐसा नहीं दिखाई देता है जो प्रदेश में अपनी खास पहचान बनाने में सफल हुआ हो। चाहे वह विधायकी के दम पर ही क्यां न हो? लेकिन उनका राजनीतिक कद केवल अपनी विधानसभा, राजधानी देहरादून तक और देहरादून से अपनी विधानसभा तक ही सिमट कर रह गया है।

जबकि पूर्व में चाहे वह अजय भट्ट रहे हों या निशंक हों, या भगत सिंह कोश्यारी का नाम रहा हो ये सभी नेता अपने राजनीतिक वजूद को पूरे प्रदेश में बनाने में सफल रहे हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत भी अपनी छाप पूरे प्रदेश में नहीं छोड़ पाए। त्रिवेंद्र रावत भी भगत सिंह कोश्यारी के राजनीतिक शिष्य होने और भाजपा संगठन के नेता होने के चलते ही अपना कद बढ़ाने में सफल रहे। जिस कारण वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेंद्र रावत का असर पूरे प्रदेश में माना जा सकता है। लेकिन अगर राजनीति की बात करें तो त्रिवेंद्र रावत सबसे पहले संगठन के नेता के तौर पर माने जाते रहे हैं और इसी के चलते वे भाजपा के एक चेहरे के तौर पर उभर कर समाने आए।

अब प्रदेश भाजपा में आयातित भाजपाइयों की बड़ी जमात इस कदर शामिल हो चुकी है कि प्रदेश के कई पदों और दायित्वों में इनकी भागीदारी होने लगी है। खास तौर पर कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं के समर्थकों, कार्यकर्ताओं को सरकार के विभिन्न विभागों में बड़े पैमाने पर एडजेस्ट किया जा रहा है। मूल भाजपा के कार्यकर्ताओं को अपने नेता के राष्ट्रीय भाजपा टीम में होने से बड़ा सहारा मिलता रहा है जो कि नड्डा टीम में नहीं हो पाया। अब भाजपा नेताओं को केवल इस बात से ही संतुष्टि मिल रही है कि अनिल बलूनी का कद बढ़ाया गया है और एक उत्तराखण्ड मूल के नेता को कार्यलय सचिव का पद दिया गया है।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो भाजपा की नई पीढ़ी अब केवल चुनावों तक ही अपनी दखल देने तक सिमट चुकी है। जिसका बड़ा असर 2017 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिल चुका है। मोदी के आभामंडल और मोदी लहर के जहाज पर सवार होकर चुनावों में भारी जीत के बाद दिखाई दे चुका है। कई ऐसी सीटों पर भाजपा के नई पीढ़ी के युवा अंतरों से चुनाव जीते हैं। लेकिन इसके बावजूद 2017 के बाद जितने भी चुनाव हुए हैं हर चुनाव में भाजपा ने सिर्फ और सिर्फ मोदी सरकार के कामकाज और आभामंडल के नीचे ही चुनाव में अपनी रणनीति तैयार की है।

अगले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने अभी से मोदी सरकार के कामकाज और प्रदेश को मोदी सरकार द्वारा दी गई सौगातों का बखान करना आरम्भ कर दिया है। मतदाताओं तक मोदी सरकार द्वारा राज्य को दी गई करोड़ों की योजनाओं का सहारा चुनाव में लेने की राणनीति भाजपा बना रही है। यानी भाजपा नेताओं के लिए प्रदेश सरकार के कामकाज से बेहतर मोदी सरकार के कामकाज के भरोसे चुनावी नैया पार लगाने का प्रयास किया जाएगा। इससे यह साफ हो जाता हे कि भले ही भाजपा संगठन के तौर पर मजबूत पार्टी है, लेकिन चुनाव में भाजपा को हर समय कोई न कोई खेवनहार ही चाहिए। इसका ही बड़ा असर रहा हे कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने प्रदेश में भरपूर नई पीढ़ी के नताओं को अपनी टीम में रखने से परहेज किया।

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