देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने सचिवालय के कई अनुभागों में एक साथ थोक के भाव में तबादले की कार्यवाही की है। उनके इस इस कदम से जहां सचिवालय की कार्यशैली में बड़े बदलाव की उम्मीद देखी जा रही है, वहीं कर्मचारियों में नाराजगी भी सामने आ रही है। कर्मचारियों का कहना है कि वह सरकार के हर कदम का स्वागत और समर्थन करने को तैयार हैं, लेकिन इसके लिये दोषी केवल अनुभाग को ही नहीं ठहराया जा सकता है। कर्मचारियों का कहना है कि अधिकतर फाइलों में देरी उच्चाधिकारियों के कार्यालय से होती है जिसका दोष अनुभागों पर लगाया जा रहा है। अब इस मामले में कर्मचारी संघ सरकार तक अपनी बात रखने की बात कर रहा है, जबकि सरकार अन्य अनुभागों में भी इस तरह की कार्यवाही करने का मन बना चुकी है।
दरअसल, मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के द्वारा बड़े पैमाने पर एक साथ कई अनुभागों में तबादले करने काआदेश जारी किया गया था। 14 अगस्त तक चिन्हित किये गये अनुभागों में पूरी तरह से बदलाव करने की डेट लाइन भी दी गई थी। इसके अनुपालन में 14 अगस्त को प्रदेश सचिवालय में एक साथ कई अनुभागों के अनुभाग अधिकारियों, समीक्षा अधिकारियों और सहायक समीक्षा अधिकारियों, अनुसेवकों और कम्प्यूटर आपरेटरों को एक साथ अन्यत्र तबादला कर दिया गया है। माना जा रहा है कि जल्द ही सचिवालय के अन्य अनुभागों में भी इस तरह की कार्यवाही हो सकती है।
सरकार के इस तरह से एक साथ सम्पूर्ण तबादला करने को लेकर सचिवालय कर्मचारी संघ में नाराजगी देखी जाने लगी है। कर्मचारियों का कहना है कि सरकार केवल अनुभागों में ही तबादला कर रही है जबकि उच्चाधिकारियों के कार्यालायों में ऐसी कार्यवाही नहीं कर रही है। इसके अलावा कर्मचारियों का कहना है कि सरकार का मानती है कि तीन साल से ज्यादा समय से एक ही अनुभग में डटे हुये अधिकारियों का तबादला किया जायेगा, लेकिन सरकार ने ऐसे अधिकारियों तक का दबादला किया है, जिन्हें अनुभागों में तीन वर्ष से भी कम का समय हुआ है।
कर्मचारियों का यह भी तर्क है कि सरकार उच्च अधिकारियों के कार्यालायों में लम्बे समय से जमे हुये अधिकारियों को तबादले से अलग रख रही है, जबकि नियम सभी के लिये एक जैसा होना चाहिये। अगर अनुभागों के अधिकारियों के लिए तीन साल की सीमा तय की गई है तो अन्य विभागों और कार्यालयों में भी इसी नियम का पालन होना चाहिये।
सचिवालय संघ ने सरकार के कई नियमों पर सवाल भी उठाये हैं जिनमें सीसीटीवी कैमरे अधिकारियों के कमरों में नहीं लगाये जाने, फाइलों में देरी पर केवल अनुभागों को ही जिम्मेदार क्यों माना जा रहा है जबकि देरी उच्चाधिकारियों के द्वारा भी होती है तो उनकी जबाबदेही क्यों तय नहीं की जा रही है।
आईएएस अधिकारियों के निजी सचिवों पर तबादला आदेश लागू क्यों नहीं किया जा रहा है। कम ग्रेड पे अधिकारियों को अपर सचिव क्यों बनाया जा रहा है और आईएएस अधिकारियों को शासन के अलावा निदेशालयों और निगमों का दायित्व क्यों दिया जा रहा है।
कर्मचारियों की मांगों को देखने पर लगता है कि वास्तव में यह मामला सरकार और कर्मचारियों के बीच समन्वय की भारी कमी का ही है। जिस तरह से थोक के भाव में अनुभागों के एक साथ कई तबादले किये गये उससे यह सवाल भी उठना लाजमी है कि अन्य विभागों और कार्यालयों में लम्बे समय से जमे हुये कर्मचारियों और अधिकारियों को इस नयी कार्यशैली में क्यों नही रखा गया है, जबकि यह सच है कि अज भी शासन के कई ऐसे अधिकारी हैं जिनके स्टाफ का लम्बे समय से तबादला नहीं किया गया है।
सरकार सचिवालय में नई कार्यशैली को बढ़ावा देने के लिये कठोर नियम लागू कर रही है। राज्य में शासन के इतिहास में यह पहली बार देखा गया है कि एक साथ कई अनुभागों का सम्पूर्ण तबादला किया गया हो। इस नयी शैली को समर्थन भी मिल रहा है कर्मचारी स्वयं इसका समर्थन और सरकार का सहयोग करने की बात कर रहे हैं, लेकिन कर्मचारियों का यह भी कहना है कि इसको केवल कुछ ही विभागों -अनुभागों में किया जा रहा है, जबकि बदलाव पूरा और एक समान होना चाहिये।
बात अपनी-अपनी
ट्रांसफर सरकार की पॉलिसी होती है। सरकार समय -समय पर ट्रांसफर करती रहती है। कर्मचारी आचरण नियमावली के तहत कर्मचारियों को इसे मानना पड़ता है। हम सब सरकार का सहयोग करते हैं। लेकिन जिस तरह से एक अनुभाग में पूरी तरह से सभी का ट्रांसफर कर दिया गया उससे नये लेागों को काम करने और काम को समझने में देर लगेगी। ट्रांसफर सभी के लिये एक समान होना चाहिये। – करम राम, अध्यक्ष अनुसूचित जाति, जनजाति कर्मचारी फैडरेशन
सचिवालय में जो भी ट्रांसफर हो रहे हैं वह पिक एण्ड चूज के आधार पर हो रहे हैं। हमारी मांग है कि सचिवालय के सभी संवर्ग में एक समान ट्रांसफर पॉलिसी लागू की जाये और तीन वर्ष से ज्यादा कोई एक विभाग में नहीं रहे। इससे हर अधिकारी या कर्मचारी को पता रहेगा कि उसका तीन वर्ष के बाद ट्रांसफर होना ही है। हम मुख्यमंत्री जी से मिलकर अपनी बात रखने वाले हैं और हमारी मांग है कि दोनों पक्षों से बात करने के बाद ही ट्रांसफर की कार्यवही की जाये। इस तरह से चुनकर और एकतरफा ट्रांसफर न किये जायें। ट्रांसफर सभी के लिये एक समान होना चाहिये इसमें भेदभाव नहीं होना चाहिये। हम इस मामले में अपनी मीटिंग कर रहे हैं जो निर्णय होगा इसके अनुसार आगे बात करेंगे।
– राकेश जोशी, महासचिव सचिवालय कर्मचारी संघ