[gtranslate]
Uttarakhand

नशे की गिरफ्त में उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड में 8 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं जिसमें से 1.6 प्रतिशत इसके लती हैं। 6 हजार से अधिक लोग इंजेक्शन लगा रहे हैं। 3.38 प्रतिशत लोग गांजे का सेवन कर रहे हैं। 2.58 प्रतिशत लोग अफीम का सेवन कर रहे हैं। 2.09 लोग नशीली दवा लेते हैं। 0.02 प्रतिशत लोग कोकीन के लती हैं

प्रदेश में यूं तो नशे का अवैध कारोबार दशकों से चलता आ रहा है। कोरोनाकाल में लाॅकडान के बीच भी इसके कारोबारी खासे सक्रिय रहे। प्रदेशभर में पुलिस की सक्रियता से जो दर्जनों मामले प्रकाश में आए उनमें युवाओं की तादाद ज्यादा थी। नशे की तलब एवं इसके कारोबार से मालामाल बनने का सपना युवाओं के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। पूरा प्रदेश नशे के मकड़जाल में फंसता जा रहा है। एम्स के नेशनल ड्रग डिपेंडेंसी ट्रीटमेंट सेंटर की एक सर्वे रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखण्ड में 8 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं जिसमें से 1.6 प्रतिशत इसके लती हैं। 6 हजार से अधिक लोग इंजेक्शन लगा रहे हैं। 3.38 प्रतिशत लोग गांजे का सेवन कर रहे हैं। 2.58 प्रतिशत लोग अफीम का सेवन कर रहे हैं। 2.09 लोग नशीली दवा लेते हैं। 0.02 प्रतिशत लोग कोकीन के लती हैं। लेकिन हकीकत में मामले इससे कहीं अधिक हैं। यही वजह है कि यहां नशे के सौदागरों की सक्रियता लगातार बढ़ती जा रही है।

पूरे प्रदेश में नशे का बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है। समय-समय पर नशीले पदार्थों की पकड़ी जाने वाली खेप इसका बड़ा प्रमाण है। स्कूल, काॅलेज, हाॅस्टल एवं आवासीय काॅलोनियों में इनकी पकड़ मजबूत है। नौजवान इनके साॅफ्ट टारगेट हैं। नशे की दवा एवं इंजेक्शन का कारोबार धड़ल्ले से हो रहा है। युवा एस्कोरिल सी, कोरेक्स, कोडीस्टार, कोडिन एवं सीरप फेंसेडिल का जमकर उपयोग कर रहे हैं, क्योंकि इसमें क्लोरफिन इरामिन एवं कोडीन मिला होता है। इसके अलावा फोईबिन, अल्प्राजोलम, नाइट्राबाइट, स्पास्मो जैसी दवाओं का भी नशे के लिए इस्तेमाल हो रहा है। नशा करने वाला व्यक्ति एवं परिवार चैतरफा लुट रहा है। एक तो नशीले पदार्थों का खरीदने में अच्छा-खासा पैसा खर्च हो रहा है। नशे से सेहत खराब हो रही है और फिर इलाज के नाम पर जमकर पैसा खर्च हो रहा है। इसके अलावा युवाओं का करियर बर्बाद हो रहा है सो अलग। प्रदेश के युवा चरस, स्मैक, अफीम, गांजा, हेरोइन, भांग, नशीले इंजेक्शन एवं गोलियों के सेबन के लती बनते जा रहे हैं। ड्रग्स के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। बीते सालों पर नजर डालें तो वर्ष 2020 में 700 से अधिक तो वर्ष 2019 में 1158 एवं 2018 में 1133 लोग नशे का अवैध व्यापार करते पकड़े गए थे। अक्टूबर 2020 में रुड़की में 278 नशीली गोलियों के साथ आरोपित पकड़े गए थे। अकेले 2017 में कुमाऊं मंडल में 3.45 कोड़ रुपए की अवैध शराब बरामद तो 105 किलो चरस प्राप्त हुई। नशीले पदार्थों की तस्करी में ऊधमसिंह नगर पहले तो नैनीताल दूसरे नंबर पर है। 2018 में एनडीपीएस एक्ट में 332 मुकदमे दर्ज किए गए। वर्ष 2019 में अल्मोड़ा पुलिस ने 50 लाख का नशे का कारोबार पकड़ा जिसमें चरस, गांजा, अफीम शामिल हैं, 59 तस्कर पकड़े। पूर्व में प्रदेश के हरिद्वार में कच्ची शराब पीने से हुई लोगों की मौत बताती है कि कच्ची एवं नकली शराब का गोरखधंधा किस कदर चल रहा है। वर्ष 2018 में लालकुआं में शराब की एक फैक्ट्री पकड़ में आई थी। इसी वर्ष रामनगर क्षेत्र में भी एक अवैध फैक्ट्री पकड़ी गई थी। इसी वर्ष कालाढूंगी में एक घर से शराब बरामद हुई। वहां अवैध रूप से शराब बनाई जा रही थी।

ऊधमसिंह नगर में तो बीते तीन सालों में 4898 तस्करों को पकड़ा जा चुका है। कुमाऊं एवं गढ़वाल के कई होटल एवं चाय की दुकानों में शराब परोसने का धंधा लंबे समय से होता रहा है। अकेले नैनीताल जनपद में इंजेक्शन के नशे से एचआईवी संक्रमण के 16 से अधिक मामले प्रकाश में आ चुके हैं। नशे के चंगुल में फंसे कई युवाओं की असमय मौत हो चुकी है। नशे के चलते जहां लोग अपनों को खो रहे हैं, तो वहीं इसकी पूर्ति के लिए युवा चोरी की राह भी चुन रहे हैं। लोगों की आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो रही है। लोग कज लेकर अपने बच्चों का इलाज कराने को मजबूर हो रहे हैं।

देहरादून के पटेलनगर में विगत वर्ष सात हजार नश्ीले कैप्सूल के साथ एक तस्कर गिरफ्तार किया गया था। बीते वर्ष अल्मोड़ा में 150 से अधिक लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया। साजिश इस तरह से रची जा रही है कि पहले छात्रों को फ्री में नशा उपलब्ध कराया जा रहा है। बरेली, पीलीभीत, फतेहगंज, चम्पावत, हल्द्वानी सहित तमाम पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी सप्लाई हो रही है। पड़ोसी देश नेपाल को मादक पदार्थों की तस्करी का केंद्र माना जाता है। यहां से भारी मात्रा में चरस एवं अफीम भारत आती है फिर यहां से दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, देहरादून को भेजी जाती है। यह तब हो रहा है जब सीमा पर तस्करी रोकने के लिए एसओजी, एसएसबी एवं पुलिस की टीमें मिलकर कार्य कर रही हैं। लगातार चेकिंग अभियान चलाए जाते रहे हैं। इधर ऊधमसिंह नगर के बिलासपुर, बहेड़ी, बरेली, रामपुर में अफीम की खेती होती है। यहां से भी तस्कर इसे पहाड़ पहुंचाने का काम करते हैं। कहने को तो नशीले पदार्थ की सप्लाई करने के दोषी व्यक्ति को 20 वर्ष की सजा एवं 2 लाख रुपया जुर्माने का प्रावधान है। दोबारा पकड़े जाने पर एनडीपीसी एक्ट के तहत उम्र कैद की सजा भी हो सकती है, लेकिन कानून का यह डर भी लोगों को तस्करी के क्षेत्र में आने से नहीं रोक रहा।

राज्य बनने के बाद प्रदेश में मद्य निषेध के पद खाली होते चले गए। मद्य निषेध विंग भी नहीं बना प्रदेश में मद्य निषेध अधिकारी का पद भी सृजित नहीं है। कहने को तो नशा रोकने के लिए नेशनल एक्शन प्लान के तहत सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय की तरफ से 2 करोड़ 20 लाख रुपए समाज कल्याण विभाग को मिले हैं। नेशनल एक्शन प्लान फाॅर ड्रग डिमांड डिडक्शन कार्यक्रम के तहत काम होता है। नशा मुक्ति केंद्रों का हाल भी बुरा है। सुदूरवर्ती जिले पिथौरागढ़ में पूर्व में जो नशा मुक्ति केंद्र था वह बंद हो चुका है। लुटियाड़ा वार्ड में खुला यह केंद्र सरकारी मदद न मिलने से बंद पड़ा है। लोगों को उपचार के लिए अब हल्द्वानी, बरेली की तरफ जाना पड़ता है। हल्द्वानी में 4, ऊधमसिंह नगर 3, अल्मोड़ा में 1 एवं चम्पावत में 1 नशा मुक्ति केंद्र है। सैकड़ों की संख्या में नशा छुड़ाने वालों ने पंजीकरण कर रखा है। लोग नशे की गिरफ्त से बाहर आने के लिए छटपटा रहे हैं। लेकिन मादक पदार्थों के अवैध कारोबारी उन्हें अपने चंगुल से निकलने नहीं दे रहे।

सरकार नशे को खत्म करने की बजाय बढ़ा देने के लिए पूरी तरह दोषी है। क्योंकि सरकार को शराब से राजस्व चाहिए तो स्वाभाविक है कि वह शराब की ज्यादा से ज्यादा बिक्री को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करेगी। प्रदेश के युवाओं में हताशा, निराशा और डिप्रेशन तथा बेरोजगारी बढ़ने से ही नशे का ज्यादा प्रचलन हुआ है। क्योंकि युवा को  रोजगार मिल नहीं रहा है ऐसे में वह अपनी प्रतिभा को हताशा और निराशा की ओर ले जा रहा है। इसके चलते ही हमने नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन किया था। इसके बाद प्रदेश में शराब तस्करों का बढ़ता वर्चस्व भी खतरनाक होता जा रहा है। इससे निपटने के लिए माफिया संस्कृति विरोधी जन अभियान भी शुरू किया गया। पुलिस और प्रशासन चाहे तो नशे पर पूरी तरह रोक लगा सकती है लेकिन वह ऐसा चाहती नहीं क्योंकि उसे एक हिस्सा अवैध रूप से इन्हीं से मिलता है।
पीसी तिवारी अध्यक्ष, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी

हमारी पुलिस की इंटरनल रिपोर्ट में नशे का प्रतिशत महज 2.3 प्रतिशत है। आप जिस संस्था का सर्वे बता रहे हैं वह हमें देखना पड़ेगा। उसके बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।
अशोक कुमार, डीजीपी उत्तराखण्ड

You may also like

MERA DDDD DDD DD