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Uttarakhand

उत्तराखंड सरकार कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए ले रही है कर्ज पर कर्ज

उत्तराखंड सरकार कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए ले रही है कर्ज पर कर्ज

उत्तराखण्ड सरकार का वित्तीय अनुशासन बिल्कुल ही चरमरा गया है। सरकार न तो अपने संसाधनों का पूरा उपयोग कर पा रही है और न अनावश्यक खर्च पर ही उसका अंकुश है। आज हालत यह है कि कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए कर्ज लेना पड़ा रहा है। कैग की हाल में जारी रिपोर्ट के मुताबिक कर्ज का महज एक तिहाई धन ही विकास योजनाओं पर खर्च हो पा रहा है।

राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा भी दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, पेंशन वगैरह में चला जाता है। ऐसे में विकास के नाम पर केंद्र सरकार की ही योजनाएं दिखाई दे रही हैं। उत्तराखण्ड राज्य कर्ज के बोझ तले दबा जा रहा है, मगर सरकार वित्तीय अनुशासन पर ध्यान नहीं दे पा रही है।

कैग रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार अपना वित्तीय अनुशान सही तरीके से नहीं कर पा रही है। प्रदेश की आर्थिक समृद्धि का लाभ जनता को नहीं मिल रहा है। सरकार कर्ज पर कर्ज ले रही है। लेकिन कर्ज का महज एक तिहाई ही वह विकास योजनाओं पर लगा रही है। न तो सरकार अपने संसाधनों का पूरा उपयोग कर रही है और न ही खर्च पर उसका अंकुश है।

कैग ने अपने अध्ययन के तहत वर्ष 2013 से लेकर वर्ष 2018 तक के राज्य लेखा परीक्षा में पाया है कि 2013 के राजस्व के सरप्लस की स्थिति को सरकार बाद के वर्षों के लिए बरकरार नहीं रख पाई है। इस दौरान प्रारंभिक घाटा निरंतर बाद के वर्षों में बढ़ता ही चला गया और वर्ष 2017-18 में यह घाटा 3948 करोड़ पहुंच गया है।

यही नहीं राजस्व घाटा भी 2013 से निरंतर बढ़ता रहा और वर्ष 2017-18 में यह घाटा एक हजार 978 करोड़ तक जा पहुंचा है। राजकोषीय घाटा भी वर्ष 2017-18 में 7 हजार 935 करोड़ हो चुका है। रिपोर्ट में सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि सरकार ने कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए कर्ज ले रही है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश सरकार का वित्तीय अनुशासन पूरी तरह से बिखर चुका है।

प्रदेश की आर्थिक स्थिति को लेकर कैग की रिपोर्ट वास्तव में चिंताजनक है। अगर महत्वपूर्ण बिंदुओं को ही देखें तो मौजूदा सरकार की वित्तीय स्थिति पूरी तरह से सामने आती दिखाई दे रही है। प्रदेश कर्ज के दल-दल में डूब चुका है। सरकार कर्ज का भुगतान और उसके ब्याज का भुगतान करने के लिए कर्ज ले रही है।

वर्ष 2013 से वर्ष 2017 तक के पांच वर्ष के अंतराल को देखें तो कैग ने साफ किया है कि इस दौरान प्रदेश सरकार ने कर्ज का 74 फीसदी उपयोग सिर्फ पूर्व में लिए गए कर्ज और उसके ब्याज के भुगतान करने के लिए ही किया है। जिसके चलते महज 25.41 फीसदी से लेकर 39.10 प्रतिशत का उपयोग विकास योजनाओं पर ही खर्च हो पाया है। बकाया कर्ज बढ़ता रहा और 2013 से 2018 के बीच सरकार द्वारा कर्ज के ब्याज के भुगतान के लिए 12.64 फीसदी राजस्व खर्च किया है।

प्रदेश सरकार अपने जरूरी खर्च के लिए आकस्मिक निधि से समय-समय पर फंड लेती रही है, लेकिन उसकी प्रतिपूर्ति नहीं कर पा रही है। इस वर्ष भी सरकार ने अपने राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए 165 करोड़ 58 लाख की व्यवस्था की है, जबकि अनुपूरक बजट में 848 करोड़ 11 लाख की व्यवस्था केंद्र की सहायता प्राप्त योजनाओं के लिए की है।

70 करोड़ विश्व बैंक और अन्य मद से करने का तय किया है, जबकि आकस्मिक निधि से लिए गए 165 करोड़ 58 लाख की प्रतिपूर्ति सरकार को भविष्य में करनी जरूरी है। इसी पर कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पूर्व में आकस्मिक निधि से लिए गए 231 करोड़ 51 लाख की सरकार प्रतिपूर्ति नहीं की है।

सरकार ने 2016-17 में लिए गए 156 करोड़ 7 लाख, 2017-18 में लिए गए 75 करोड़ 44 लाख की अगस्त 2018 तक भी प्रतिपूर्ति नहीं कर पाई है। इस आकलन से साफ है कि सरकार आकस्मिक निधि का उपयोग तो तुरंत कर लेती है, लेकिन उसकी प्रतिपूर्ति करने में कोताही बरत रही है, जबकि इस वर्ष फिर से सरकार द्वारा 165 करोड़ 58 लाख रुपये आकस्मिक निधि से लिए जा चुके हैं।

ब्याज के भुगतान की बात करें तो वर्ष 2013-14 से लेकर वर्ष 2017-18 तक 8.13 फीसदी ब्याज दर के हिसाब से भुगतान किया है। साथ ही ब्याज भुगतान के लिए वर्ष 2017-18 में कुल 7556 करोड़ में से 3987 करोड़ रुपए कर्ज लेना पड़ा। अब सरकार के बजट घाटे की बात करें तो सरकार का बजट अनुमान सही नहीं रहा है। सरकार बजट निर्धारित करते समय अनुमान लगाती है। लेकिन वास्तविक स्थिति सरकार को एक वर्ष के बाद सामने दिखती है।

वर्ष 2018 के बजट समीक्षा में सरकार ने पूंजीगत व्यय विकास योजनाओं के लिए धनराशि 5हजार 514 करोड़ का अनुमान लगाया था, लेकिन खर्च 5 हजार 914 करोड़ हो गया, जबकि बजट अनुमान में प्रारंभिक घाटा 2 हजार 887 करोड़ रहने और राजकोषीय घाटा 2 हजार 464 करोड़ रहने का अनुमान था, लेकिन प्रारंभिक घाटा 1 हजार 61 और राजकोषीय घाटा 5 हजार 471 रहा।

प्रारंभिक घाटा वर्ष 2015-16 में 3154 करोड़, तो वर्ष 2016-17 में 1744 करोड़ और 2017-18 में बढ़कर 3948 करोड़ हो गया। इसी तरह से राजस्व घाटा जहां वर्ष 2014-15 में 917 करोड़ था वह वर्ष 2015-16 में बढ़कर 1852 करोड़ हो गया। वर्ष 2016-17 में यह महज 383 करोड़ ही रहा, लेकिन वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 1978 करोड़ तक पहुंच गया।

इसी तरह से राजकोषीय घाटा वर्ष 2013-14 में 2650 करोड़ रहा तो 2014-15 में 5826 करोड़ तक पहुंच गया। वर्ष 2015-16 में राजकोषीय घाटा 6725 करोड़ तो 2016-17 में यह बढ़कर 5467 करोड़ हुआ और वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 7935 करोड़ हो गया। हालांकि, कैग ने प्रदेश की अर्थिक स्थिति में सुधार होने की बात भी कही है।

वर्ष 2008-09 से वर्ष 2017-18 तक प्रदेश में जीडीपी की मिश्रित आर्थिक विकास दर सीएजीआर 16.30 प्रतिशत तथा प्रति व्यक्ति आय विकास दर 14.70 प्रतिशत रही जो कि देश के अन्य विशेष श्रेणी के राज्यों से ज्यादा रही है। प्रति व्यक्ति आय विकास दर का औसत राष्ट्रीय औसत से ज्यादा रहा है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोग उत्तराखण्ड में कम पाए जाते हैं। यह जरूर प्रदेश सरकार के लिए कुछ राहत देने वाला आकलन हो सकता है।

जीएसटी को लेकर हाल ही में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा गलत बयानी की बात सामने आई थी। दरअसल, मुख्यमंत्री ने जीएसटी दर के बढ़ने को जीडीपी दर से जोड़ दिया था और बयान दिया था कि राज्य की जीडीपी 32 फीसदी बढ़ी है। हालांकि अगले ही दिन इसका ख्ांडन आ गया था कि वे जीएसटी की बात कर रहे थे जो कि उनके मुंह से गलती से जीडीपी निकल गया। यहां पर जीएसटी के आंकड़े राज्य के लिए सुखद बताए जा रहे हैं। वित्त विभाग द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार राज्य में जीएसटी की दरें 32 फीसदी बढ़ी हैं।

2016-17 में राज्य को मूल्यवर्धित कर प्रणाली वैट से सालाना 70 हजार 133 करोड़ की आय हुई थी। वर्ष 2017 में राज्य में जीएसटी प्रणाली लागू होने के चलते सरकार को तात्कालिक राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा था जिसकी भरपाई केंद्र सरकार द्वारा प्रतिपूर्ति के रूप में की गई थी। इसके बाद राज्य ने जून 2017 तक 15 हजार 120 करोड़ का जीएसटी अर्जित किया, लेकिन राज्य के हिस्से में केवल 5 हजार 500 करोड़ ही आया।

वर्ष 2018-19 और 2019-20 में जीएसटी में 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि कैग ने इस पर अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि उत्तराखण्ड राज्य अब एक औद्योगिक राज्य बन चुका है। ऐसे में राज्य में अब कर संग्रहण राज्य से बाहर जा रहा है। अभी राज्य को जीएसटी से हो रहे नुकसान की भरपाई केंद्र सरकार द्वारा की जा रही है जो कि वर्ष 2022 तक ही होगी। ऐसे में राज्य की चिंता 2022 के बाद ही है क्योंकि राज्य के अपने कर संग्रह में ही कमी आ रही है। हालांकि उपभोक्ताओं को इससे फायदा हो रहा है, लेकिन राज्य के नुकसान हो रहा है।

अब जीडीपी के आंकड़ां को देखें तो राज्य सरकार के अर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2017-18 में जीडीपी की अंतिम दर 6.82 फीसदी थी, जबकि वित्तीय वर्ष 2013-14 में आर्थिक विकास दर 8.47 प्रतिशत आंकी गई थी। वर्ष 2013 में प्राकृतिक आपदा के कारण विकास दर गिरकर 5.29 प्रतिशत ही रह गई जो कि आपदा के पुनर्निर्माण के बाद बढ़कर 8.8 प्रतिशत हुई, लेकिन बाद में फिर से इसमें गिरावट आई और 5.91 फीसदी रह गई। इस तरह से पिछले दो वर्षों में जीडीपी की दरों में कोई खास तेजी नहीं दिखाई दी है। अगर कोई बढ़ोतरी हुई है तो वह मामूली बढ़ोतरी ही हुई है।


सरकार राज्य की वित्तीय स्थिति को लेकर चाहे बड़े-बड़े दावे कर रही हो, लेकिन हकीकत कैग की रिपोर्ट ने खोलकर रख दी है। वर्ष 2018-19 के बजट के दौरान सरकार ने अपने दो वर्ष के कार्यकाल में पहली बार सरप्लस बजट पेश किया था। सरकार ने पहली बार आमदनी ज्यादा ओैर खर्च कम होने का अनुमान लगाया था।

तब आर्थिक जानकारां की निगाह में सरकार इस सरप्लस बजट से अपने वित्तीय अनुशासन पर उठ रहे सवालां की धार को कुंद करने का ही प्रयास करती दिखाई दे रही थी, जबकि सरकार के ही आंकड़ां में सरकार अपना राज्य का राजस्व तक प्राप्त करने में पिछड़ रही थी ओैर अपनी आय को बढ़ाने के लिए कोई नए स्रोत तक नहीं ढूंढ़ पाई है। बावजूद इसके सरकार द्वारा बजट की एक रंगीन तस्वीर दिखाने का प्रयास किया गया था।

2018-19 के बजट आंकड़ों के अनुसार तब सरकार का अनुमान था कि वर्ष 2019-20 में 48689 करोड़ 43 लाख का राजस्व प्राप्त कर लेगी, जबकि 48663 करोड़ 90 लाख धनराशि खर्च होने का अनुमान लगा रही थी। इन आंकड़ों से सरकार ने राज्य के बजट में 15 करोड़ 53 लाख रुपए सरप्लस रहने का अनुमान लगाया गया था।

आर्थिक जानकारां की मानें तो सरकार हमेशा से ही ज्यादा से ज्यादा बजट का बड़ा आकार तो रखती है। लेकिन खर्च के लिए धनराशि तक नहीं जुटा पाती है। इसके चलते सरकार अपने ही बजट को पूरा खर्च नहीं कर पाती है। ठीक इसी तरह से उत्तराखण्ड में भी होता आ रहा है। सरकार केंद्र सरकार के ही भरोसे अपने बजट का आकार बढ़ती रही है। लेकिन इस वर्ष तो सरकार ने एक कदम आगे बढ़कर सरप्लस बजट को ही प्रस्तुत करने में कोई गुरेज नहीं किया।

आज प्रदेश में केंद्र सरकार की योजनाओं के ही सहारे प्रदेश सरकार चल रही है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय उद्यान मिशन, बाढ़ सुरक्षा, पेयजल और सिंचाई के अलावा नमामि गंगा योजना आदि सभी योजनाएं केंद्र सरकार के द्वारा चलाई जा रही है।

यहां तक कि ऑलवेदर रोड़ और हाईवे निर्माण भी केंद्र सरकार की योजनाएं हैं। इसके विपरीत राज्य सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा तो अपने कर्मचारियां के वेतन, भत्ते, पेंशन, मानदेयों आदि पर ही खर्च हो रहा हैं। यह हिस्सा कुल बजट के 40 फीसदी से भी ज्यादा है। माना जा रहा है कि अपनी देनदारी, कर्ज और कर्ज के ब्याज में ही सरकार के कुल बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है। इस तरह से सरकार के पास तकरीब 13 फीसदी ही बजट बचा है जिसे सरकार राज्य में विकास के कामां पर खर्च कर पाती है।

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