सीमांत शहर पिथौरागढ़ में सात साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास किया तो हर किसी ने बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की कल्पना कर ली थी। तब उम्मीद जगी थी कि अब सीमांत के लोगों को इलाज के अभाव में दम नहीं तोडना पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो साल पहले दूसरी बार इसका उद्घाटन किया तो लोगों की उम्मीदों को तो जैसे पर लग गए। लेकिन सरकार दो साल में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी। सरकारी तंत्र की काहिली का आलम यह है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किए बगैर ही यहां प्रधानाचार्य की नियुक्ति कर दी गई। बीते तीन बरसों से नियुक्त प्रधानाचार्य स्वयं स्वीकारते हैं कि वे अपना समय बगैर काम यहां व्यतीत कर रहे हैं
‘उत्तराखण्ड में हरिद्वार और पिथौरागढ़ में जल्द मेडिकल कॉलेज स्थापित किए जाएंगे। केंद्र सरकार द्वारा इसकी अनुमति मिल गई है। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं।’ ‘प्रत्येक मेडिकल कॉलेज की स्थापना के लिए केंद्र सरकार द्वारा 325 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की गई है। इन मेडिकल कॉलेजों की स्थापना पर आने वाले खर्च का 10 प्रतिशत राज्य सरकार द्वारा तथा 90 प्रतिशत खर्च केंद्र द्वारा वहन किया जाएगा।’ उक्त दोनों ट्वीट प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 27 मार्च 2020 को किए थे। तब सीमांत के लोगों को कांग्रेस के बाद भाजपा से फिर से उम्मीद जगी थी कि अब जल्द ही पिथौरागढ़ का मेडिकल कॉलेज अस्तित्व में आ जाएगा। इसके साथ ही सीमांत के लोगों की वर्षों से चली आ रही स्वास्थ्य समस्या भी दूर हो जाएगी। हालांकि इस मामले में इतना जरूर हुआ था कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के रहते पिथौरागढ़ और हरिद्वार मेडिकल कॉलेज को केंद्र से स्वीकृति जरूर मिली थी। तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने तब त्रिवेंद्र सिंह रावत को पिथौरागढ़ मेडिकल कॉलेज का स्वीकृति पत्र भी सौपा था। इससे चार साल पहले 14 दिसंबर 2016 को प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सीमांत के शहर पिथौरागढ़ में एक मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास किया था। क्योंकि प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव होने थे। इसके मद्देनजर भाजपा ने इसे कांग्रेस का चुनावी शिगूफा करार दिया था।
इस मेडिकल कॉलेज का निर्माण अक्सर सियासी चर्चाओं के केंद्र में रहा है। मुख्यमंत्री रहते हरीश रावत ने इसका शिलान्यास किया तो दूसरी तरफ भाजपा भी शिलान्यास के मामले में पीछे नहीं रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 के विधानसभा चुनाव से ऐन वक्त पहले 27 दिसंबर 2021 को हल्द्वानी में पिथौरागढ़ मेडिकल कॉलेज का उद्धघाटन किया। साथ ही मेडिकल कॉलेज के निर्माण के लिए धनराशि भी स्वीकृत की। मेडिकल कॉलेज का दूसरी बार उद्घाटन होने के बाद तब कांग्रेस ने इसे भाजपा का चुनावी एजेंडा घोषित किया। इस मामले में भाजपा ने उस समय सबको चौंका दिया जब 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने घोषणा पत्र में भी हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज खोलने का वायदा किया था। तब भाजपा ने इसे केंद्र सरकार का विजन कहा था। प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए भी आज एक साल हो गया है लेकिन उत्तराखण्ड में हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने के मोदी सरकार के विजन और उत्तराखण्ड सरकार के वायदे पर काम शुरू नहीं होने से सरकार पर सवालिया निशान लग रहे हैं। देखा जाए तो उत्तराखण्ड में फिलहाल देहरादून, हल्द्वानी और श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के भरोसे ही पूरा स्वास्थ्य सिस्टम है। ऐसे में लोगों का कहना है कि नए मेडिकल कॉलेज के खुलने और इस पर तेजी से काम होने का फायदा आने वाले समय में पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड को हो सकता है।
पिथौरागढ़ में मोस्टामानु मंदिर के पास ढूंगा गांव की जमीन पर 25 एकड़ भूमि पर प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक पिथौरागढ़ से गंभीर बीमारी के मरीजों को 250 किलोमीटर दूर हल्द्वानी रेफर करना होता है। जिसमें देरी के कारण कई मरीजों की जान तक चल जाती है। सीमांत में आए दिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जिससे लोग उचित इलाज न मिलने के कारण दम तोड़ देते हैं। गत वर्ष की ही बात करें तो मार्च में मुनस्यारी में बीमार हुए कोलकाता निवासी पर्यटक पिथौरागढ़ तक नहीं पहुंच पाए थे। अगस्त में दन्या की प्रसूता ने दम तोड़ दिया था। सितंबर में प्रसव के लिए हल्द्वानी रेफर की गई गर्भवती महिला नहीं बच सकी थी। सीमांत क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं की यह स्थिति आम है। पिथौरागढ़ के साथ- साथ आस-पास के जिलों के लोगों को भी बड़ी राहत मिलेगी।
पिथौरागढ़ एक पहाड़ी जिला है। यहां दूरस्थ क्षेत्रों के कई ऐसे गांव हैं, जो अंतरराष्ट्रीय सीमा के करीब हैं। पिथौरागढ़ जिले की सीमा न केवल नेपाल से मिलती है बल्कि चीन के कब्जे वाला तिब्बत भी इससे मिलता है। जाहिर है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा से मिलने के कारण इसका महत्व बहुत ज्यादा है। यही नहीं गढ़वाल मंडल के चमोली से लेकर कुमाऊं के बागेश्वर, अल्मोड़ा और चंपावत जिले की सीमाएं भी इससे लगती है। इससे साफ है कि पिथौरागढ़ में मेडिकल कॉलेज स्थापित होने से न केवल चमोली बल्कि बागेश्वर, अल्मोड़ा और नैनीताल जिले के एक बड़े हिस्से को स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन पिथौरागढ़ में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने का सपना फिलहाल अधर में लटका हुआ है। मेडिकल कॉलेज का नाम जमीन पर एक सड़क ऊपर (चंडाक रोड) से नीचे की ओर बनाई गई है। जिस पर सिर्फ रोड़ी डालकर इतिश्री कर दी गई है। इसके अलावा दीवार बंदी भी की गई है। मेडिकल कॉलेज स्थल पर एक छोटा-सा कमरा बना है जिस पर टीन की छत डली है। लेकिन इस कमरे में आई दरारें इशारा कर रही हैं कि कभी भी यह जमीदोंज हो सकता है। ढूंगा गांव के निवासी पूरन फुलारा कहते हैं कि हम भी पिछले कई सालों से यहां मेडिकल कॉलेज के नाम पर हो रही राजनीति को देख रहे हैं। कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा यहां शिलान्यास कराकर चुनावी रणनीति तैयार करती रहती है। चुनाव से कुछ दिन पहले ही मेडिकल कॉलेज नेताओं को याद आता है और चुनाव के बाद इसे भुला दिया जाता है।
मेडिकल कॉलेज निर्माण कार्य दो बार अलग-अलग सरकारी निर्माण कंपनियों को सौंपा गया। लेकिन दोनों ही कार्यदायी संस्था निर्माण कार्य करने से पीछे हट गई। सबसे पहले 2020 में भारत सरकार की कार्यदायी संस्था एनपीसीसी को निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी। 24 अगस्त 2021 को 76 करोड़ की राशि एनपीसीसी संस्था को दी गई थी। कॉलेज के निर्माण को सेंटर स्पॉन्सर्ड स्कीम के तहत तैयार किया जाना था। सितंबर 2021 में कहा गया कि उत्तराखण्ड सरकार निर्माण कार्य से असंतुष्ट है। 8 सितंबर 2021 को एनपीसीसी और विभाग के मध्य कॉलेज निर्माण को लेकर हुए अनुबंध को तत्काल निरस्त करने का फैसला लिया गया। जिसके बाद पेयजल निगम को कार्य दिया गया। दावा किया गया कि पिथौरागढ़ मेडिकल कॉलेज को लेकर लिए गए फैसलों और किए गए कार्यों का समय-समय पर परीक्षण भी किया गया और समीक्षा भी हुई। लेकिन हैरानी इस बात की है कि अनुबंध खत्म होने के बाद भी एनपीसीसी ने इससे जुड़े फंड और कार्यों को पेयजल निगम को ट्रांसफर नहीं किया। चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के प्रभारी सचिव आर राजेश कुमार ने जब कानूनी कार्रवाई किए जाने के निर्देश दिए तब जाकर फंड वापिस किया गया।
बिल्डिंग बनी नहीं प्रिंसिपल की हुई तैनाती
पिथौरागढ़ में पिछले सात साल से मेडिकल कॉलेज की बुनियाद तक नहीं खुदी है, लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि तीन साल पहले ही यहां के लिए प्रिंसिपल की नियुक्ति कर दी गई। डॉ अरविंद कुमार बरोनिया नामक प्रिंसिपल ने यहां में आते ही लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह में तीन कमरों में कब्जा कर अपना आवास बना लिया। इसके साथ ही अपने वाहन की पार्किंग भी बना डाली। प्रिंसिपल का लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह में यह कब्जा एक साल तक रहा। जिला प्रशासन के साथ लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों की लापरवाही यह है कि उनके विभाग के गेस्ट हाउस को एक साल से आवास में तब्दील कर चुके प्रिंसिपल को हटाने तक की कार्यवाही नहीं की गई। इसके बाद जब स्थानीय लोगों ने इसके खिलाफ धरना- प्रदर्शन किया तब जाकर प्रिंसिपल ने लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह में तीन कमरों को खाली किया। फिलहाल, यह प्रिंसिपल मोस्टमानु मंदिर के सामने ढूंगा गांव में कवीन्द्र फुलारा के घर में किराए पर रह रहे हैं। ‘दि संडे पोस्ट’ टीम उनसे फुलारा के घर पर जाकर मिली। जहां प्रिंसिपल डॉ अरविंद कुमार बरोनिया धूप सेक रहे थे। बरोनिया से जब यह पूछा गया कि अभी तक मेडिकल कॉलेज का निर्माण नहीं हुआ है और न ही स्टूडेंट यहां पढ़ने तक आते हैं ऐसे में वह क्या करते हैं? इस पर उन्होंने कहा कि फिलहाल तो वह अपना समय पास कर रहे हैं। क्या उससे वह संतुष्ट है? इसके जवाब में वह असहमति जताते हैं। साथ ही वह कहते हैं कि इस उम्मीद में वह समय व्यतीत कर रहे हैं कि एक दिन मेडिकल कॉलेज बनेगा और वह पढ़ाई शुरू कराएंगे। लेकिन क्या तब तक वह यहां रह पाएंगे? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि समय के गर्भ में क्या लिखा है किसने जाना। हालांकि इस दौरान वह दो-दो कार्यदायी संस्थाओं द्वारा नर्माण कार्य को शुरू न करने की व्यथा व्यक्त करते हैं और साथ ही आश्वासन भी देते हैं कि सीमांत क्षेत्र की जनता का मेडिकल कॉलेज का सपना जरूर पूरा होगा।
बात अपनी-अपनी
मेडिकल कॉलेज निर्माण में हमारी पार्टी पर चुनावी शिगूफा का आरोप लगाने से पहले भाजपा को अपनी गिरेबान में झांककर देखना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा भी इस मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन किए हुए दो साल हो गए हैं। देश के प्रधानमंत्री की घोषणाओं पर अभी तक भी काम नहीं होना सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाता है। जिस भाजपा ने सभी जिलों में मेडिकल कॉलेज बनाने का वायदा अपने मेनिफेस्टो में किया है, उसको भी मेडिकल कॉलेज का निर्माण याद नहीं रहा। लोगों को मेडिकल कॉलेज के नाम पर मूर्ख बनाते हुए दो साल पहले ही प्राचार्य की नियुक्ति कर दी गई। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को अपने पैतृक जिले के सबसे बड़े ड्रीम प्रोजेक्ट को जल्द शुरू कराना चाहिए। मुख्यमंत्री जी ने जो हमसे 10 विकास कार्यो की सूची मांगी है उनमें से एक मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य कराना भी शामिल है।
मयूख महर, विधायक पिथौरागढ़
मेडिकल कॉलेज की घोषणा कांग्रेस कार्यकाल में बेशक हुई लेकिन यह सिर्फ घोषणा ही रही इस पर कुछ काम नहीं हुआ यह चुनावी शिगूफा था। लेकिन हमारी सरकार इस पर गंभीरता से काम कर रही है। फिलहाल जमीन का इश्यू खत्म हो चुका है। कॉलेज बनने की पूरी प्रोसेस जारी है। निर्माण कार्य के लिए 76 करोड़ रुपया जारी हो चुका है।
चंद्रा पंत, पूर्व विधायक पिथौरागढ़
मैं वहां पर छह महीने पहले गई थी। तब मुझे जमीन संबंधी मामले में भेजा गया था। मेडिकल कॉलेज के लिए जमीन की दिक्कत आ रही थी। वह जमीन दो अलग-अलग हिस्सों में थी। जिसे अब क्लियर कर दिया गया है।
अमनदीप कौर, अपर सचिव उत्तराखण्ड शासन
केंद्रीय पोषित योजना के तहत प्रदेश में तीन मेडिकल कॉलेज पिथौरागढ़, हरिद्वार और रुद्रपुर बनने हैं। पिथौरागढ़ मेडिकल कॉलेज का निर्माण अभी शुरू नही हुआ हैं। फिलहाल पेयजल निगम को काम सौंपा गया है। जल्दी ही काम शुरू किया जाएगा।
डॉ. आशुतोष सयाना, निदेशक चिकित्सा शिक्षा