त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए खासी घोषणाएं की, ढेर सारे वादे किए। कोरोना महामारी के चलते अपना रोजगार गंवा चुके नौजवानों के लिए बकायदा एक पोर्टल ‘होप’ नाम से बना डाला। जमीनी हकीकत लेकिन इस मुद्दे पर सरकार की नाकामी सामने ला रही है। खुद केंद्र सरकार के संगठन राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी किए गए आंकड़े वर्तमान सरकार के दावों की हवा निकाल रहे हैं
उत्तराखण्ड में भाजपा की डबल इंजन वाली सरकार के चार बरस पूरे होने जा रहे हैं। इन चार बरसों में सरकार ने बेरोजगारों को रोजगार दिए जाने को बड़े-बड़े दावे किए। ‘दि संडे पोस्ट’ ने इन दावों को परखा तो हकीकत ठीक उलट निकली।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय एनएसओ द्वारा जारी आंकड़ों में जो बेरोजगारी दर निकल कर आई है वह वर्ष 2003-04 की तुलना में 7 गुना अधिक है। इसी तरह से वर्ष 2017 में नियोजन विभाग द्वारा करवाए गए सर्वे के अनुसार वर्ष 2020 तक बेरोजगारी की दर तीन गुना बढ़ चुकी है।
सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकोनाॅमी (सीएमआईई) द्वारा जारी आंकड़ों में देश के टाॅप दस राज्यों में उत्तराखण्ड पहले स्थान पर है जिसमें बेरोजगारी की दर 22.3 प्रतिशत है। और सबसे न्यूनतम टाप 10 राज्यों में पुडुचेरी का स्थान है। पुडुचेरी में यह दर 10.9 प्रतिशत है। इसमें सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि हिमालयी और पहाड़ी राज्यों जम्मू- कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा की तुलना मंे सबसे ज्यादा उत्तराखण्ड में ही बेरोजगारी की दर है। जहां जम्मू कश्मीर में 16.2 तो हिमाचल में 12 तथा त्रिपुरा में 17.4 फीसदी दर है। यह भी खासा दिलचस्प है कि देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी वाले टाॅप 10 राज्यों -जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखण्ड, हरियाणा, राजस्थान, गोवा, उत्तराखण्ड, दिल्ली, त्रिपुरा, बिहार, पुडुचेरी में भाजपा की सरकारंे हैं और जम्मू कश्मीर में केंद्र सरकार का शासन है। इन्हीं भाजपा शासित राज्यों में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है। जिसमें उत्तराखण्ड को पहले स्थान पर रखा गया है। सीएमआईई ने जनवरी 2021 के मासिक बेरोजगारी दर का आंकड़ा प्रस्तुत किया है जिसमें जनवरी 2021 में उत्तराखण्ड में बेरोजगारी की दर 4.5 पाई है।
सरकार किस तरह से सरकारी नौकरियों में युवाओं को भर्ती करने के लिए ठोस काम कर रही है, इसकी हकीकत इस बात से ही समझी जा सकती है कि 2016 में उत्तराखण्ड राज्य में आखिरी बार ही पीसीएस कि परीक्षा की विज्ञप्ति जारी हुई थी। 2106 के बाद 2021 का पांच वर्ष का समय बीत चुका है, लेकिन अभी तक इन पांच वर्षों में पीसीएस भर्ती की एक भी विज्ञप्ति सरकार जारी नहीं कर पाई है, जबकि अन्य राज्यों और खास तौर पर उत्तराखण्ड के मूल प्रदेश उत्तर प्रदेश में हर वर्ष पीसीएस की परीक्षा की विज्ञप्ति जारी होती रही है। वर्तमान भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार राज्य के युवाओं को सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए अभियान चलाकर रोजगार देने का दावा कर रही है, जबकि सरकार की इन भर्तियों में कोई न कोई ऐसा पेंच फंसा रहता है जिससे मामला न्यायालय में चला जाता है। हाल ही में सरकारी विभागों में डाॅट एंट्री पद के लिए सरकारी विज्ञप्ति जारी की गई जिसमें मान्यता प्राप्त कम्पयूटर संस्थान से एक वर्ष का डिप्लोमा अनिवार्य किया गया, जबकि उत्तराखण्ड में कोई भी एक वर्षीय मान्यता प्राप्त संस्थान ही नहीं है। इस शर्त से राज्य के हजारों बेरोजगारों का सरकारी नौकरी पाने का अवसर ही समाप्त हो गया। इस पर भारी विवाद हुआ तो सरकार ने इस शर्त को हटा दिया।
सरकार और चयन आयोग पर दोहरा मापदंड अपनाए जाने के भी आरोप लगते रहे हैं। वर्ष 2016 में उत्तराखण्ड ऊर्जा निगम और पिटकुल में जूनियर इजीनियरों के 250 पदांे के लिए विज्ञप्ति जारी की गई और 5 नवंबर 2017 में एक लंबे समय के बाद परीक्षा आयोजित की गई थी। अगस्त 2018 यानी नौ महीने के इंतजार के बाद परीक्षा परिणाम घोषित किया गया ओैर सभी चयनित अभ्यर्थियों के अभिलेखांे का वेरीफिकेशन कर दिया गया। इस मामले में कुछ असफल रहे परीक्षार्थी कोर्ट चले गए और मामले की सुनवाई कोर्ट में होने लगी। कोर्ट गए परीक्षार्थियों ने आरोप लगाया था कि इस परीक्षा में नकल का सहारा लिया गया है। परीक्षा में पास हुए 250 अथ्यर्थियों में रुड़की के ही एक कोचिंग इंस्टीट्यूट के 66 अभ्यर्थी पास हुए हंै। बेरोजगार संघ के अशीष शर्मा का कहना है कि जानबूझकर परीक्षा में नकल किए जाने के आरोप लगाए गए और आयोग ने बगैर कोर्ट की आज्ञा के ही जिलाधिकारी हरिद्वार द्वारा इसकी जांच करवाई और जांच के बाद शासन को परीक्षा निरस्त करने की संस्तुति कर दी। ऊर्जा सचिव ने जिलाधिकारी की रिपोर्ट को आधार मानकर परीक्षा निरस्त कर दी। चार वर्ष से पास हुए अभ्यर्थी भटक रहे हैं। हालांकि बताया जा रहा है कि अब ये अभ्यर्थी डबल बेंच में जाने का प्रयास कर रहे हैं।
अब आयोग और सरकार के दोहरे मापदंड की बात करें तो पिछले वर्ष हुई फाॅरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा जिसमें दर्जनों लोगों के खिलाफ नकल करवाने और नकल का सहारा लेने के साक्ष्य आयोग और सरकार के पास उपलब्ध हो चुके हैं यानी आयोग और सरकार अच्छी तरह से जानती है कि फाॅरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा में नकल हुई है। बावजूद इसके इस परीक्षा को निरस्त नहीं किया जा रहा है और सरकार का कहना है कि जल्द ही परीक्षा में पास हुए अभ्यर्थियों को नियुक्तियां दी जाएंगी, जबकि इस परीक्षा को निरस्त करने की मांग अनेक मंचों से उठाई जा रही है।
प्रदेश के अधिनस्थ चयन आयोग पर भी सवाल खड़े होते रहे हैं। सरकार सरकारी नौकरियों में रोजगार देने के दावे तो कर रही है लेकिन चयन आयोग के आंकड़े कुछ और ही बता रहे हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का दावा है कि उनकी सरकार ने पिछले चार वर्ष में 7 लाख लोगों को रोजगार दिया है। जबकि हकीकत सरकार के दावों के विपरीत है। चार सालों में सरकारी नौकरियों में महज 2816 पदों पर ही भर्तियां की जा सकी हैं। हैरानी की बात यह हैे कि इन पदों में भी सैकड़ों पद पूर्ववर्ती कांग्रेस की हरीश रावत सरकार द्वारा अध्याचित किये गये थे। इतना जरूर है कि वर्तमान सरकार द्वारा इन पदों पर भर्ती ही प्रक्रिया आरंभ की गई।
सूचना अधिकार कानून के तहत उत्तराखण्ड राज्य अधिनस्थ चयन आयोग से मिली जानकारी के अनुसार विगत साढ़े तीन वर्षों में राज्य में केवल 2816 पदों पर ही भर्तियां हो पाई हैं। इसके अलावा उपनल, युवा कल्याण आदि माध्यमों में आउट सोर्सिंग के तहत महज चार हजार ही लेागों को अस्थाई नौकरियां मिल पाई हैं। बावजूद इसके सरकार राज्य में सात लाख लोगों को रोजगार देने का दावा कर रही है।
राज्य अधिनस्थ चयन आयोग द्वारा दी गई सूचना के अनुसार राज्य में वर्ष 2014 से 2017 तक कुल 8 परीक्षाएं आयोजित की गई जिसमें 801 पदों पर चयन पूर्ण किया गया है। वर्ष 2017 से वर्ष 2020 तक 59 परीक्षाओं का आयोजन किया गया है जिसमें कुल 6 हजार पदों पर चयन पूर्ण करने की जानकारी दी गई है। हैरानी की बात यह है कि आयोग द्वारा अपनी जानकारी में अंकित किया गया है कि 6000 पदों की आयोग स्तर पर चयन की कार्यवाही कर ली गई है जिसमें 2816 पदों पर चयन की संस्तुति विभागों को भेजे जाने की जानकारी दी गई है।
आयोग द्वारा सूचना में यह भी जानकारी दी गई है कि वन रक्षक के 1218 पदों पर एसआईटी की जांच तथा ग्राम पंचायत विकास अधिकारी, व्यैक्तिगत सहायक/आशुलिपिक एवं अवर अभियंता विद्युत/यांत्रिकी के लगभग 489 पदों पर माननीय उच्च न्यायालय में लंबित होने के कारण तथा 477 पदांे पर कोई पात्र अभ्यर्थी न मिलने के कारण एवं लगभग 1000 पदों पर कोविड 19 के संक्रमण कारण अंतिम चयन/ अभिलेख सत्यापन की कार्यवाही पूर्ण न होने के कारण चयन संस्तुति नहीं भेजी जा सकी है। एक तरह से उत्तराखण्ड अधिनस्थ चयन आयोग यह मान रहा है कि 3184 पदों पर अभी तक चयन की संस्तुति नहीं की जा सकी है। अब सवाल इस बात का भी है कि 2816 पदों पर चयन की संस्तुति विभागों में भेजने की जानकारी आयोग दे रहा है लेकिन अभी तक इन विभागांे में नियुक्तियां नहीं मिल पाई।
आउटसोर्स से भी रोजगार आउट
उत्तराखण्ड प्रदेश में सरकारी विभागों में हजारों पद रिक्त हैं। इन पदों को भरने के लिए सरकार ने कोई प्रयास किया हो, ऐसा राज्य बनने के बाद से देखा ही नहीं गया है। एक अनुमान के मुताबिक राज्य में लगभग 40 हजार पद रिक्त हैं और अनेक विभागों में कई संवर्गीय पद भी रिक्त हैं। इन सबका तोड़ सरकारांे ने संविदा के तहत अस्थाई पदों के नाम का निकाला है जिसमें सभी विभागों में संविदा, अस्थाई कर्मचारियों को भर्ती किया गया है। इन कर्मचारियों से काम तो नियमित कर्मचारियों की ही तरह लिया जाता है। लेकिन वेतन पांच से लेकर दस हजार तक ही मिल पाता है। अब सरकारों ने इसका भी नया तोड़ निकाल कर सभी विभागों में आउट सोर्सिंग एजेंसी के तहत संविदा कर्मियों की भर्तियों के आदेश दे दिए हैं।

पूर्व में सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के बाद सभी सरकारी विभागों में चतुर्थ श्रेणी के पदों को समाप्त कर दिया गया था तब से लेकर आज तक संविदा या आउट सोर्सिंग के तहत ही कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है।
वर्तमान सरकार ने मार्च 2020 में नया आदेश जारी किया है जिसमें सरकारी विभागों में कार्यरत हजारों संविदा कर्मियों को आउटसोर्स एजेंसियों के हवाले कर दिया गया है। अब सरकार चपरासी से लेकर उच्च पदों तक को आउट सोर्स एजेंसी के तहत तैनात करवाएगी।
इस नए आदेश से हजारों ऐसे युवा जो कि वर्षों से सरकारी विभागों में काम कर रहे हंै उनकी नौकरी पर ही खतरा मंडरा चुका है। नई एजेंसी नए कर्मचारियों को भर्ती करेगी और पुराने कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा देगी। फिर भी अगर पुराने कर्मचारियों को किसी तरह से सेवा में रख भी ले तो उनका कार्यकाल नई एजेंसी के ही अधीन होगा और उनकी सेवा के वर्ष का कोई महत्व नहीं रह जाएगा।
इस नए आदेश का सबसे बड़ा दुष्परिणाम 108 आपातकालीन सेवा में देखने को मिल चुका है। राज्य में 108 आपातकालीन सेवा का संचालन करने वाली जीओके कंपनी का अनुबंध समाप्त होने के बाद नई कंपनी को इसका संचालन करने का अनुबंध किया गया। लेकिन नई कंपनी ने पूर्व में कार्यरत अनेक कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। पहले कंपनी ने पुराने कर्मचारियों को नई कंपनी में काम करने के लिए तमाम तरह की शर्तें लगाई जिनमें कम वेतन पर काम करने आदि शर्तें रखी गई। कम वेतन में काम करने की शर्त का जिन-जिन कर्मचारियों ने विरोध किया उनको कंपनी ने बाहर कर दिया। सैकड़ों कर्मचारी बेरोजगार कर दिए गए। हालांकि इस पर खासा हंगामा भी हुआ लेकिन कंपनी ने फिर भी कई कर्मचारियों को नौकरी से बाहर कर दिया।
इसी तरह से एक मामला महिला
सशक्तीकरण विभाग में आउटसोर्सिंग एजेंसी के तहत काम करने वाले संविदाकर्मियों का भी सामने आ चुका है। विभाग में सैकड़ों कर्मचारी टीडीएस मैनेजमेंट कंसल्टेंस प्राइवेट लिमिटेड आउटसोर्सिंग एजेंसी के तहत कार्यरत थे, लेकिन एजेंसी का अनुबंध समाप्त हो गया तो नई एजेंसी का नया अनुबंध किया गया। नई एजेंसी ने पुराने कर्मचारियों को रुका हुआ वेतन आदि तक नहीं दिया। नई एजेंसी ने उन्हीं पदों पर भर्ती की विज्ञप्ति तो जारी कर दी, लेकिन पूर्व की एजेंसी के तहत कार्यरत कर्मचारियों का लंबित वेतन और अन्य भुगतान देने से इंकार कर दिया गया। अब नई एजेंसी कार्यरत है और वह नए कर्मचारी रखेगी, लेकिन पुराने कर्मचारियों के भविष्य का क्या होगा इसका उत्तर न तो राज्य सरकार के पास है और न ही सरकारी विभाग के पास है।