उत्तराखण्ड में अधिकारियों की मनमानी के मामले रूकने के बजाय बढ़ रहे हैं। मजेदार बात यह है कि इन अधिकारियों पर लगाम लगाने में जहां शासन नकाम है तो वहीं सरकार भी बेबस नजर आ रही है। ताजा मामला उत्तराखण्ड भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड का समाने आया है जिसमें शिक्षा विभाग में तैनात अधिकारी दमयंती रावत को विगत दो वर्ष से प्रतिनियुक्ति देकर सचिव पद पर तैनात है। इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा गोैर करने वाली बात यह हैे कि इसके लिए शिक्षा विभाग से जरूरी एनओसी तक नहीं ली गई है। यही नहीं शिक्षा मंत्री द्वारा प्रतिनियुक्ति के प्रस्ताव को ही रद्द करते हुए पूरी तरह से आपत्ति दर्ज कर चुके हैं। बावजूद इसके वर्ष 2018 से दमयंती रावत बोर्ड में सचिव पद पर तैनात है।
विभाग के तमाम नियम-कायदों को ताक पर रखकर जिस दमयंती रावत को उत्तराखण्ड भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में सचिव पद पर तैनात किया गया है वह कोई नया चेहरा नहीं है। दो-दो सरकारों और तीन-तीन मुख्यमत्री के कार्यकाल से लेकर मौजूदा समय तक दमयंती रावत ऐसी महिला अधिकारी के तौर पर अपनी पहचान बना चुकी है जिस पर कार्यवाही करने का साहस मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री भी कभी नहीं दिखा पाए। इतना जरूर रहा है कि सरकार का इकबाल बरकरार रहे इसके लिए आदेश या आपत्तियां की जाती रही लेकिन दमयंती रावत को नियमों के खिलाफ कार्य करने पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी है।
इस पूरे मामले को राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो जिस उत्तराखण्ड भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में दमयंती रावत को सचिव के पद पर तैनात किया गया है वह विभाग कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के पास है। दययंती रावत मंत्री हरक सिंह रावत की खास अधिकारी मानी जाती रही है। मूलतः शिक्षा विभाग में नियुक्त दययंती रावत को दूसरे विभागों में प्रतिनियुक्ति करने के लिए हरक सिंह रावत के द्वारा पहले भी कई प्रयास किए गए हैं जिसमें एक बार तो उनके और तत्कालीन शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी के बीच खासा विवाद और मतभेदों की जमकर चर्चा हो चुकी है।
दरअसल वर्ष 2012 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा तत्कालीन समय में कांग्रेस के भीतर मचे घमासान के चलते पार्टी नेताओं के निशाने पर रहे। यहां तक कि सरकार के मंत्रियों के बारे में कहा जाता था कि बहुगुणा पर दबाब बनाकर जो चाहे वह काम मंत्री करवा सकते थे। हरक सिंह रावत तक राज्य के कृषि मंत्री के पद पर थे।
इसी दौरान देहरादून के सहसपुर खण्ड शिक्षा अधिकारी के पद पर तैनात रही दमयंती रावत को हरक सिंह रावत अपने कृषि विभाग के अधीन बीज प्रमाणीकरण विभाग में निदेशक के पद पर तैनात करना चाहते थे। इसके लिए तमाम तरह के प्रयास किए गए। यहां तक कि कृषि मंत्री द्वारा सीधे दमयंती रावत को बीज प्रमाणिकारण एजेंसी में प्रतिनियुक्ति दे दी गई। हैरानी की बात यह हेै कि शिक्षा विभाग में तैनात रही दमयंती रावत को नई तैनाती के लिए विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र तक नहीं लिया गया और बकायदा दमयंती रावत नई तैनाती स्थल पर बैठने लगी।
पूरा मामला सुर्खियों में आने पर तत्कालीन शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने दमयंती रावत को विभागीय एनओसी देने से ही साफ मनाकर दिया और जल्द से जल्द मूल विभाग में वापसी के आदेश जारी कर दिए। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया ओैर दमयंती रावत की नई तैनाती आराम से चलती रही। इसे लेकर कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत और शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी के बीच जमकर विवाद और बयानबाजी भी हुई।
इस तरह एक अधिकारी की तैनाती पर सरकार के दो-दो मंत्रियों के बीच मनभेद और मतभेद की चर्चाओं से सरकार की फजीहत हुई। तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने हस्तक्षेप किया और मामले का पटाक्षेप किया। बताया जाता है कि हरक सिंह रावत ने इस मामले में विजय बहुगुणा पर जबर्दस्त दबाव बनाया तो उन्होंने अपने हाथ से ही दमयंती रावत के नियुक्ति प्रस्ताव पर आदेश लिखकर हस्ताक्षर कर दिए। चर्चा यह भी रही कि इस पर मंत्री प्रसाद नैथानी भी मुख्यमंत्री से खासे नाराज हुए।
वर्ष 2017 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो नए राजनीतिक समीकरणों के चलते कांग्रेस के कई बड़े नेता भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीकर कई मंत्री बने। हरक सिंह रावत भी ऐसे ही नेता रहे हैं और मौजूदा सरकार में हरक सिंह रावत आयुष और श्रममंत्री हैं। उत्तराखण्ड भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड भी हरक सिंह रावत के विभाग का ही एक अंग है। इसी बोर्ड में हरक सिंह रावत द्वारा दमयंती रावत को फिर से बगैर शिक्षा विभाग की एनओसी जारी हुए ही बोर्ड में अपर कार्य अधिकारी के पद पर तेैनात कर दिया और 2018 में बोर्ड के सचिव पद पर तैनाती दे दी। तब से लेकर अब तक दमयंती रावत उत्तराखण्ड भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के सचिव पद पर तैेनात हैं।
हैरत की बात यह है कि एक बार फिर से दमयंती रावत के कारण शिक्षा मंत्री और श्रम मंत्री के बीच मतभेद पैदा हो चुका है। हालांकि यह मतभेद उतना सामने नहीं आया जितना कांग्रेस सरकार में चर्चा बटोर चुका था। लेकिन मतभेद इतना तो सामने आ ही चुका है कि 9 जनवरी 2018 में ही मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री अरबिंद पाण्डे दमयंती रावत की प्रतिनियुक्ति के प्रस्ताव पर असहमति जता चुके हैं। यही नहीं प्रतिनियुक्ति के प्रस्ताव को ही रद्द कर चुके हैं।
चर्चा तो यहां तक थी कि शिक्षा मंत्री द्वारा मामले के संज्ञान में आने के बाद घोषणा की थी कि पूरे मामले में विभागीय कार्यवाही की जाएगी। सूत्रों की मानें तो शिक्षा विभाग के अधिकारियों को कड़ी कार्यवाही करने के मौखिक आदेश तक जारी किए गए थे। लेकिन न तो शिक्षा विभाग कोई कार्यवाही कर पाया और न ही शिक्षा मंत्री अरबिंद पाण्डे अपनी बात का वजन जनता और विभगा को बता पाए। तीन वर्षों से लगातार दमयंती रावत शिक्षा विभाग से बगैर एनओसी के ही बोर्ड में कार्यरत है जिसमें एक वर्ष अपर कार्य अधिकारी के पद पर रही है और दो वर्ष से बोर्ड के सचिव पद पर कार्यरत है।
इस पूरे प्रकरण में न तो शिक्षा विभाग कुछ कहना चाहता है और न ही सरकार का कोई बयान सामने आया है। इस पूरे मामले का खुलासा जनसंघर्ष मोर्चा द्वारा तमाम प्रमाण एकत्र कर मामले को एक बार फिर से सुर्खियों में ला खड़ा किया है। मोर्चा के मीडिया प्रभारी पिन्नी भाई ने बकायदा एक प्रेसवार्ता कर सरकार और श्रम मंत्री पर दमयंती रावत के मामले में गंभीर आरोप लगाए हैं। मोर्चा का कहना हेै कि सरकार की जीरो टाॅलरेंस नीति पूरी तरह से फेल है।
जनसंघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ नेगी का कहना है कि जिस तरह से उत्तराखण्ड भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में भारी भ्रष्टाचार और अनियमिताएं हुई हैं उसके लिए सरकार और श्रम विभाग के अधिकारी और मंत्री हरक सिंह रावत जिम्मेंदार है। बोर्ड में मजदूरों के लिए साईकिल, मशीन टूल और अन्य उपकरणों की खरीद में जमकर भ्रष्टाचार किया गया है। घटिया साईकिलों को ऊंचे दर पर खरीदा गया है जिसके लिए दययंती रावत को प्रतिनियुक्ति पर लाया गया है। नेगी का आरोप है कि इसके लिए बकायदा एक सोची-समझी रणनीति के तहत काम किया गया और खास चहेती अधिकारी को बोर्ड में तैनात किया गया जिससे करोड़ों का भ्रष्टाचार किया जा सके।
नेगी के आरोप बहुत ही गंभीर है। पूर्व में भी मोर्चा द्वारा मजदूरों के लिए घटिया स्तर की साईकिलों की खरीद पर श्रम विभाग और श्रम मंत्री पर अरोप लगाए गए थे। लेकिन इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। यहां यह भी देखने वाली बात है कि पूर्व में बीज प्रमाणीकरण एजेंसी में भी कई खरीद के मामले में अनियमिताओं के आरोप लगे थे औेर अब उत्तराखण्ड भवन निर्माण एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड पर आरोप लगाए जा रहे हैं। इसे एक संयोग ही कहंे, क्यांेकि दोनों ही विभागों में दमयंती रावत का नाम समान रूप से रहा है। साथ ही तीन-तीन मुख्यमंत्री के कार्यकाल और दो-दो शिक्षा मंत्री के दौर में जिस तरह से एक अदना अधिकारी की ताकत देखी जा रही है उससे तो यह कहा जा सकता है कि राज्य में अधिकारी मदमस्त है और इनके सामने सरकार और मंत्री बेबस ही है।