उत्तराखण्ड में वर्ष 2022 के मार्च माह में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अपेक्षित सीट न मिलने के बाद पार्टी हाईकमान ने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को हटाकर रानीखेत के पूर्व विधायक करण माहरा को प्रदेश संगठन की बागडोर सौंपी थी। माहरा जब से प्रदेश अध्यक्ष बने हैं तब से उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती दिग्गज नेताओं और पार्टी विधायकों के साथ समन्वय स्थापित न कर पाने की रही है। गत् दिनों दो विधानसभा उपचुनाव जीतने से उत्साहित माहरा ने प्रदेश संगठन को एक सूत्र में बांधने के लिए ‘केदारनाथ रक्षा प्रतिष्ठा यात्रा’ का आयोजन शुरू किया। लेकिन पार्टी आलाकमान के एक आदेश चलते वे बैकफुट में आ गए हैं। कारण है उनके द्वारा प्रदेश संगठन में की गईं कुछ नियुक्तियों को केंद्रीय प्रभारी कुमारी शैलजा द्वारा रद्द किया जाना। इन नियुक्तियों के रद्द होने को प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं की आंतरिक रार का नतीजा बताया जा रहा है
पत्र एक: 8 अगस्त 2024
मैं उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को बद्रीनाथ और मंगलोर विधानसभा उपचुनाव में मिली जीत पर बधाई देना चाहता हूं। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि उत्तराखण्ड के लोगों ने समावेशी दृष्टिकोण चुना है। मुझे उम्मीद है कि उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी न्याय के हमारे संदेश को घर-घर तक पहुंचाती रहेगी। मै एक बार फिर आपको ईमानदारी से धन्यवाद देता हूं,
राहुल गांधी, सांसद और नेता प्रतिपक्ष
पत्र दो: 7 सितम्बर 2024
मेरे संज्ञान में आया है कि उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस संगठन व जिला, ब्लॉक संगठन में कुछ अस्थायी व स्थायी नियुक्तियां की गई हैं। ऐसी सभी नियुक्तियां जो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की मंजूरी के बिना की गई हैं, उन्हें तुरंत रद्द किया जाता है।
कुमारी शैलजा, प्रदेश प्रभारी उत्तराखण्ड कांग्रेस
उक्त दोनों पत्र एक माह के अंदर उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करण माहरा को लिखे गए हैं। राहुल गांधी के बाद कुमारी शैलजा के पत्र से उत्तराखण्ड कांग्रेस की राजनीति में घमासान मचा हुआ है। इन पत्रों में एक ओर जहां राहुल गांधी के द्वारा करण माहरा की तारीफ करते हुए उनकी हौसला अफजाई की गई है तो दूसरी तरफ प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा ने उनके द्वारा की गई नियुक्तियां रद्द करके प्रदेश अध्यक्ष को कमजोर करने का काम कर दिया है। कांग्रेस प्रभारी ने नियुक्ति होने के पीछे एआईसीसी से स्वीकृति नहीं लेने को गंभीर माना है। प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा का यह पत्र ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस की बहुचर्चित ‘केदारनाथ रक्षा प्रतिष्ठा यात्रा’ का दूसरा पड़ाव खत्म हुआ है और पार्टी के नेताओं की यात्रा की थकान अभी उतरी भी नहीं है। उत्तराखण्ड कांग्रेस में पत्र प्रकरण से एक बहस शुरू हो गई है। कोई करण माहरा के पक्ष में तो कोई विपक्ष में बोल रहा है। यहां तक कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने भी इस मामले में चुटकी ली है। उन्होंने नियुक्तियां रद्द करने सम्बंधी प्रदेश प्रभारी के पत्र को सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स में डालते हुए लिखा कि ‘कांग्रेस में आजकल किस गुट का ज्यादा प्रेशर बना हुआ है, जो प्रदेश अध्यक्ष के निर्णयों को बदलवा देता है?’
चर्चा है कि इस प्रकरण से प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा को जोर का झटका धीरे से लगा है। इससे पहले रहे प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव ने माहरा के कार्यक्षेत्र में कभी भी सीधे हस्तक्षेप नहीं किया था। प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा की इस कार्रवाई ने प्रदेश कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी, विशेषकर हरीश रावत और करण माहरा के मध्य चल रही नूरा कुश्ती को सामने ला दिया है। प्रदेश अध्यक्ष के पक्षधर यह ही कहते सुने जा रहे हैं कि प्रदेश कांग्रेस की ओर से कार्यकारिणी की जो सूची एआईसीसी को वर्ष 2022 को भेजी जा चुकी थी उसे आज तक मंजूरी नहीं मिली। इसे कांग्रेस
हाईकमान की उत्तराखण्ड में पार्टी की अनदेखी बतौर भी समझा जा रहा है। दो साल बाद भी कार्यकारिणी पर कोई निर्णय न लेने के बावजूद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने जिन्हें जिम्मेदारी सौंपी है, उन्हें पद से हटाया जाना कई संदेह और सवालों को जन्म देता है। यह सब ऐसे समय में किया गया है जब कांग्रेस के सामने तीन बड़े चुनाव कठिन चुनौती के रूप में सामने हैं।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता नाम न छापने की शर्त कहते हैं कि ‘पार्टी आलाकमान उत्तराखण्ड को लेकर कितना लापरवाह है इसकी बानगी केंद्रीय प्रभारी शैलजा स्वयं हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान खुद चुनाव लड़ रहीं हरियाणा कांग्रेस की इस वरिष्ठ नेता को उत्तराखण्ड दौरा करने का समय तक नहीं मिला था। हालात इतने विकट हैं कि अप्रैल 2022 में करन माहरा के अध्यक्ष बनने के बाद नई कार्यकारिणी का गठन किया गया था जिसमें सचिव, उपाध्यक्ष, संगठन सचिव, महामंत्री व कोषाध्यक्ष पद के नाम एआईसीसी को स्वीकृत किए जाने के लिए भेजे गए थे जिन्हें आज तक एआईसीसी से हरी झंडी नहीं मिली। इससे संगठन में जिम्मेदारी न मिलने से कार्यकर्ता नाराज हैं।’ कहा जा रहा है कि ऐसे समय में संगठन की मजबूती के लिए प्रदेश अध्यक्ष माहरा के द्वारा कुछ जिलों में पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई थी जिन्हंे एआईसीसी की अनुमति न लेने का हवाला देते हुए प्रदेश प्रभारी ने रद्द कर दिया।
पहले जो नियुक्तियां रद्द की गई हैं उनकी की तह में जाते हैं। प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा के प्रदेश अध्यक्ष को लिखे पत्र में यह जिक्र नहीं किया गया है कि कौन-कौन सी नियुक्तियां रद्द की गई हैं। लेकिन ‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने सूत्रों से इसका पता लगाया है। जिसके अनुसार हरिद्वार के महानगर अध्यक्ष अमन गर्ग की नियुक्ति रद्द की गई है। अमन गर्ग के महानगर अध्यक्ष से पहले सतपाल ब्रह्माचारी अध्यक्ष थे लेकिन उनको कांग्रेस ने हरियाणा के सोनीपत से लोकसभा का चुनाव लड़ा दिया जहां से जीतकर वे संसद में पहुंच चुके हैं। इस चलते हरिद्वार महानगर का अध्यक्ष पद खाली हो गया था। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने इस पद पर अमन गर्ग को नियुक्त कर दिया। पार्टी के सूत्रों की मानें तो अमन गर्ग का विरोध कांग्रेस के विधायक इंजीनियर रवि बहादुर ने किया। इसी के साथ हरिद्वार ग्रामीण की विधायक अनुपमा रावत ने भी रवि बहादुर के सुरों में अपना सुर मिला दिया। एक नियुक्ति को लेकर दो-दो विधायकों के विरोध की यह बात दिल्ली तक पहुंची जिसके बाद नियुक्तियों पर कुमारी शैलजा ने प्रदेश अध्यक्ष को उनके अधिकार दिलाने को मजबूर होना पड़ा है।
हरिद्वार के अलावा दूसरे अध्यक्ष पछवादून (देहरादून) के हैं जिनकी नियुक्ति रद्द की गई है। यह अध्यक्ष है राकेश नेगी। नेगी की नियुक्ति अध्यक्ष पद के खाली होने पर की गई है। पहले पछवादून की जिला अध्यक्ष लक्ष्मी अग्रवाल थी। लेकिन अग्रवाल गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अलविदा कह कर भाजपा में चली गई। नेगी का विरोध करने वालों में सबसे आगे चकराता के विधायक प्रीतम सिंह के रहे। इसके अलावा दो नियुक्तियां चमोली जिले की हैं जिन्हें रद्द किया गया है। दोनों ही ब्लॉक अध्यक्ष की हैं। जिनमें एक गैरसैंण के ब्लॉक अध्यक्ष हरेंद्र सिंह कंडारी हैं तो दूसरे नारायण बगड़ के नरेंद्र सिंह रावत हैं। रावत को उस समय अध्यक्ष बनाया गया था जब पूर्व अध्यक्ष खेमराम कोठियाल ने इस पद से इस्तीफा दे दिया था। चमोली के कांग्रेस जिलाध्यक्ष मुकेश नेगी इस मामले में अपनी नाराजगी प्रकट करते हुए कहते हैं कि पार्टी में यह नई नीति ईजाद की गई है जिसमें ब्लॉक अध्यक्ष की नियुक्ति करने पर भी एआईसीसी की अनुमति लेना जरूरी है। इससे पहले कहीं एआईसीसी की अनुमति नहीं ली गई है। ब्लॉक में पदाधिकारी बनाने का अधिकार जिलाध्यक्ष को है। जिलाध्यक्ष को किसी एआईसीसी की अनुमति की जरूरत नहीं पड़ती है, सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष की स्वीकृति हो जाती है इतना ही काफी होता है।
उत्तराखण्ड में वर्ष 2022 के मार्च माह में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अपेक्षित सीट ना मिलने के बाद पार्टी हाईकमान ने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को हटाकर रानीखेत के पूर्व विधायक करण माहरा को प्रदेश संगठन की बागडोर सौंपी थी। प्रदेश कांग्रेस के कप्तान के रूप में अभी तक लगभग ढाई वर्ष के कार्यकाल में माहरा के समक्ष चार विधानसभाओं के उपचुनाव और पांच लोकसभा सीटों के चुनाव हुए हैं। जिनमें लोकसभा की पांचों सीट पार्टी ने हारी हैं। इसके अलावा लोकसभा चुनाव से पहले दो विधानसभा उपचुनाव हुए थे जिनमें चम्पावत और बागेश्वर में पार्टी को हार मिली जबकि लोकसभा चुनाव के बाद हुए बद्रीनाथ और मंगलौर विधानसभा उपचुनाव में जीत हासिल हुई। इससे निश्चित तौर पर पार्टी में उत्साह का माहौल पैदा हुआ है। इस उत्साह की बदौलत केदारनाथ की रक्षा प्रतिष्ठा यात्रा निकाली गई। दो पड़ाव में शुरू हुई यह यात्रा भी लेकिन आपसी गुटबाजी को उजागर कर गई।
पार्टी सूत्रों के अनुसार दूसरे पड़ाव की यात्रा में गुप्तकाशी में करण माहरा और गणेश गोदियाल में तीखी झड़प हुई। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा दोनों में किसी तरह मामला सुलझाया गया। लेकिन एक संदेश यह गया कि माहरा और पुराने कांग्रेसियों में आपसी समन्वय नहीं है। इसमें दो राय नहीं है कि आपसी समन्वय ना होना पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में हार के कारणों का मंथन के लिए पार्टी नेतृत्व की ओर से भेजी गई फैक्ट फाइंडिंग टीम के समक्ष भी समन्वय की कमी का मुद्दा जोर-शोर से गूंजा था। जिला, ब्लॉक एवं अन्य स्तर पर प्रदेश संगठन की ओर से की गईं नियुक्तियों में स्थानीय विधायकों और क्षत्रपों को विश्वास में नहीं लेने की शिकायत भी हाईकमान तक पहुंचाई गई। यह भी शिकायत की गई कि इन नियुक्तियों के लिए एआईसीसी की स्वीकृति नहीं ली गई।
शायद यही वजह है कि प्रदेश प्रभारी का दायित्व ग्रहण करने के बाद पहली बार कुमारी शैलजा के समक्ष यही मामला प्रमुखता से सामने आया। इसके बाद प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा ने देहरादून के बजाय दिल्ली में ही गत माह अगस्त में प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं और फिर समस्त विधायकों की बैठक बुलाई थी। बताया जा रहा है कि इन बैठकों में करण माहरा निशाने पर रहे। दिल्ली में हुई इस बैठक में समन्वय समिति के गठन के फॉर्मूले पर सहमति बनी। एआईसीसी ने पहले 19 सदस्यों की समन्वय समिति गठित की। बाद में इस समिति में लोकसभा क्षेत्रों के पार्टी प्रत्याशियों को भी स्थान मिला। अब यह 23 सदस्यीय समिति बन चुकी है। इसकी एक बैठक कुछ दिन पहले ही देहरादून स्थित प्रदेश मुख्यालय राजीव भवन में हो चुकी है। जिसमें आपसी समन्वय स्थापित करने के प्रयास किए गए हैं। लेकिन यहां मेंढ़कों को एक तराजू में तोलने की कहावत साबित हुई।
माहरा जब से प्रदेश अध्यक्ष बने हैं तब से उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती दिग्गज नेताओं और पार्टी विधायकों के साथ समन्वय स्थापित न होने की रही है। विधायकों से लेकर वरिष्ठ नेता संगठन के स्तर पर निर्णय लेने में उन्हें विश्वास में नहीं लेने का आरोप लगाते रहे हैं। नियुक्तियां रद्द होने से एक बार फिर ये बहस शुरू हो चुकी है। हालांकि पार्टी के नेताओं का मानना है कि इस प्रकार के मामलों से कांग्रेस मजबूत होने की जगह, कमजोर ही होगी। इस मामले में एक बात यह सामने आ रही है कि नियुक्तियां रद्द होने के प्रदेश प्रभारी के पत्र को पार्टी भीतर बैठे विरोधियों ने जमकर वायरल किया। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष (संगठन) मथुरा दत्त जोशी इस बात से खिन्न हैं। वे कहते हैं कि ‘जब राहुल गांधी ने प्रदेश कांग्रेस को प्रशंसा पत्र लिखा तब तो उन्होंने उसे इतना वायरल नहीं किया जितना प्रदेश प्रभारी के पत्र को वायरल किया गया। इससे पार्टी की कमजोरी ही जग जाहिर होती है। ऐसे जयचंद रूपी नेताओं के चेहरे जनता के सामने आने जरूरी हैं।’ जोशी यह भी कहते हैं कि ‘फिलहाल करण माहरा के सामने प्रदेश में केदारनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना बड़ा लक्ष्य है। इसी के साथ प्रदेश में नगर निकाय और पंचायत चुनाव होने हैं। निश्चित तौर पर ये लक्ष्य करण माहरा प्रदेश के नेताओं और कार्यकर्ताआंे के सहयोग के बिना पूरा नहीं कर सकते हैं। ऐसे में कार्यकर्ताओं का मनोबल कम न होने पाए इसकी जरूरत है।’
प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी किसी से छुपी नहीं है। गुटबाजी का पुराना इतिहास रहा है। वर्तमान समय में प्रदेश कांग्रेस तीन खेमे हैं। जिसमें एक खेमा प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा का है तो दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का, तीसरे खेमे के तार चकराता विधायक प्रीतम सिंह से जुड़े हैं। कांग्रेसी सूत्रों के अनुसार फिलहाल करण माहरा एक तरफ हैं तो दूसरी तरफ माहरा के खिलाफ हरीश रावत, गणेश गोदियाल और प्रीतम सिंह का गुट एकजुट है। बता दें कि हरीश रावत के साथ ही गणेश गोदियाल और प्रीतम सिंह पूर्व में पार्टी के मुखिया रहकर पार्टी को आगे ले जाने का काम करते रहे हैं। हालांकि पार्टी पिछले दो दशक में कितना आगे पहुंची है यह चर्चा का विषय है। राज्य स्थापना के साथ ही सबसे पहला प्रदेश अध्यक्ष बनने का सौभाग्य हरीश रावत को ही मिला है। इसके बाद यशपाल आर्य अध्यक्ष बने थे। विधायक प्रीतम सिंह 2017-21 तक प्रदेश अध्यक्ष रहे। 2021-22 तक गणेश गोदियाल के पास प्रदेश कांग्रेस की कमान रही।
उत्तराखण्ड के वरिष्ठ पत्रकार हेमराज सिंह चौहान के अनुसार भाजपा में जहां पार्टी अध्यक्षों और मुख्यमंत्रियों के बीच आपसी सामंजस्य रहा है। कांग्रेस में इसके ठीक विपरीत हालात रहे हैं। सरकार और संगठन में सदैव ठनी रहती है। एक-दूसरे की टांग खिंचाई किया जाना उत्तराखण्ड कांग्रेस की संस्कृति बन चुकी है। कांग्रेस में बड़े नेता हों या प्रवक्ता, आसपी खींचतान में एक-दूसरे के खिलाफ बयान देने में देर नहीं करते। ज्यादा दिन नहीं बीते, जब त्रिवेंद्र रावत की आम पार्टी को लेकर हरीश रावत, रणजीत रावत और हरक सिंह रावत आपस में ही भिड़ गए थे। इसी तरह केदारनाथ सोना चोरी प्रकरण पर प्रवक्ता बातें करते रहे, कोई बीजेपी को टारगेट करता रहा, किसी ने सरकार को घेरा तो कोई शंकराचार्य में ही उलझा रहा। इसी तरह कांवड़ यात्रा में पहचान बताने वाले फैसले पर भी नेता, प्रवक्ता अलग-अलग बात कर रहे थे। बावजूद इसके कि यह मामला हिंदू-मुस्लिम जैसे संवेदनशील विषय से जुड़ा था। चौहान कहते हैं कि कांग्रेस में पुराने और नए नेताओं का शीतयुद्ध पार्टी को रसातल में ले जाता रहा है। यह आज से नहीं जब से राज्य बना है तब से ही चला आ रहा है।
बात अपनी-अपनी
जब मैं पीसीसी अध्यक्ष बना तब चुनावी समय था। इसलिए चुनाव को देखते हुए मैंने नई कार्यकारिणी बनाना उचित नहीं समझा और पुरानी कार्यकारिणी के सहयोग से कार्य किया, चुनाव में उतरे। लेकिन जरूरत के हिसाब से कुछ पदों पर नियुक्तियां की थी जिनका अनुमोदन
एआईसीसी से लिया गया था। कार्यकारिणी की सूची क्यों लम्बित है और क्यों नियुक्तियों को रद्द किया गया ये तो पीसीसी ही बता सकती हैं।
गणेश गोदियाल, पूर्व अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस
कांग्र्रेस एक बड़ा संगठन है। यह देश की सबसे पुरानी पार्टी है। यहां पत्र आना-जाना एक प्रक्रिया है। इसे सिर्फ नकारात्मक नहीं देखना चाहिए। चाहे प्रदेश अध्यक्ष हो या प्रदेश प्रभारी सभी को पार्टी हाईकमान ने बनाया है। इस प्रकरण में जहां तक मुझे पता चला है हमारे कुछ भाई सिर्फ प्रदेश प्रभारी वाले पत्र को वायरल कर रहे हैं। जबकि एक माह पहले ही राहुल गांधी जी ने भी एक पत्र लिखकर प्रदेश अध्यक्ष की प्रशंसा की है। मेरा सवाल उन भाइयों से यह है कि जब पत्रबाजी हो रही है तो दोनों ही पत्रों को वायरल क्यों नहीं किया जा रहा। पिछले दिनों दिल्ली में देश के सभी प्रदेश अध्यक्षों की मीटिंग हुई जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा करण माहरा की तारीफ करते हुए पीठ थपथपाई गई थी। प्रदेश के मुखिया को इससे प्रोत्साहित और हतोत्साहित हुए बिना ‘मिशन केदारनाथ’ और निकाय चुनाव के लक्ष्य को साधने की तरफ बढ़ना चाहिए।
रणजीत रावत, पूर्व विधायक, सल्ट