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Uttarakhand

रंग लाएगी तुंगनाथ टू दिल्ली मैराथन!

प्रकृति के संरक्षण को समर्पित उत्तराखण्ड के लोकपर्व हरेला को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने की मांग अब जोर पकड़ने लगी है। गत् दिनों प्रदेश के धावकों ने तुंगनाथ मंदिर से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तक लगातार छह दिनों की मैराथन दौड़ लगाई और इसके समापन के दौरान गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी के माध्यम से मांगपत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा। इस दौरान जिस तरह का इनको समर्थन मिला उससे कहा जा सकता है कि इनकी यह मैराथन दौड़ रंग जरूर लाएगी

 

  •       संजय कुंवर

उत्तराखण्डवासी लंबे समय से लोकपर्व हरेला पर अवकाश घोषित करने की मांग कर रहे थे। जनभावनाओं को ध्यान में रख वर्ष 2020 में तत्कालीन त्रिवेंद्र रावत सरकार ने प्रकृति के संरक्षण को समर्पित लोकपर्व हरेला को सार्वजनिक अवकाश की सूची में शामिल किया था। अब प्रदेशवासी इस पर्व को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने की मांग कर रहे हैं। जिसकी कमान प्रदेश के धावकों ने अब संभाल ली है। इसी के उद्देश्य से इन धावकों ने गत् दिनों तुंगनाथ से दिल्ली तक की मैराथन शुरू की।

इसकी शुरुआत 19 सितंबर को तुंगनाथ मंदिर से हुई जो लगातार छह दिनों तक चली और 24 सितंबर को दिल्ली में इसके समापन के दौरान गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी के माध्यम से मांग पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा गया।

गौरतलब है कि उत्तराखण्ड का लोकपर्व हरेला को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने की मांग को लेकर राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दौड़ चुके धावकों ने पंच केदार में तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर से 19 सितंबर को नई दिल्ली के लिए 500 किमी. हरेला मैराथन शुरू की। इस मैराथन में प्रदेश की फ्लाइंग गर्ल के नाम से मशहूर भागीरथी बिष्ट, सिरमौरी चीता और अंतरराष्ट्रीय एथलीट सुनील शर्मा सहित कई धावकों ने प्रतिभाग किया।

धावकों का जगह-जगह पर हुआ भव्य स्वागत
तुंगनाथ टू दिल्ली हरेला मैराथन पूरी टीम का तुंगनाथ, चोपता, भीरी, चन्द्रपुरी, अगस्त्यमुनि, तिलवाड़ा और रुद्रप्रयाग, श्रीनगर, मलेथा, बागवान, देवप्रयाग में लोगों ने भव्य स्वागत किया। प्रख्यात लोक संस्कृतिकर्मी और केदार घाटी के सामाजिक सरोकारों के पुरोधा जैक्सवीन स्कूल गुप्तकाशी के चेयरमैन लखपत राणा ने फ्लाइंग गर्ल भागीरथी बिष्ट, सिरमौरी चीता और अंतरराष्ट्रीय एथलीट सुनील शर्मा सहित मैराथन में प्रतिभाग कर रहे सभी लोगों का तिलवाड़ा पुलिस चौकी के पास भव्य स्वागत किया। इस अवसर पर उनकी बिटिया वंशिका, बेटे मानव राणा, स्थानीय लोगों, चौकी प्रभारी तिलवाड़ा पुलिस चौकी के सहयोग से फूल-मालाओं के साथ स्वागत किया और जैक्सवीन स्कूल गुप्तकाशी की ओर से स्मृति चिन्ह भी भेंट किए। उन्होंने कुछ दूरी तक मैराथन टीम के साथ दौड़ भी लगाई। इस अवसर पर लखपत राणा ने कहा कि हरेला पर्व को राष्ट्रीय पर्व घोषित किया जाना चाहिए। तुंगनाथ से दिल्ली तक हरेला मैराथन एक नजीर बनेगी। उन्होंने फ्लाइंग गर्ल भागीरथी बिष्ट और सिरमौरी चीता और अंतरराष्ट्रीय एथलीट सुनील शर्मा सहित मैराथन में प्रतिभाग कर रहे सभी लोगों को शुभकामनाएं प्रेषित की।

क्या है हरेला लोकपर्व?
उत्तराखण्ड में मनाया जाने वाला लोकपर्व ‘हरेला’ प्रकृति को सुंदर और हरा भरा रखने का त्योहार है। इस पर्व के पीछे हरियाली, अच्छी फसल की कामना है, खुशहाली का आशीष है, बुजुर्गों का आशीर्वाद है। प्रदेश के गांवों से देश-विदेश में बसे लोग चिट्ठियों के जरिए हरेला के तिनकों को आशीष के तौर पर भेजते हैं। गाजे-बाजे के साथ इस दिन पूरे पहाड़ में पौधे भी लगाए जाते हैं। उत्तराखण्ड को शिवभूमि भी कहा जाता है, क्योंकि यहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग और शिवजी का ससुराल भी है। इसलिए हरेला पर्व का खास महत्व है। इस दिन लोग भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा भी करते हैं।

कौन है फ्लाइंग गर्ल?

महज 23 साल की भागीरथी प्रदेश के सीमांत वाण गांव की रहने वाली है। भागीरथी को संघर्ष और आभाव विरासत में मिला। महज तीन वर्ष की छोटी आयु में भागीरथी के पिताजी की असमय मृत्यु हो गई थी। जिस कारण भागीरथी के पूरे परिवार पर दुःखों का पहाड़ टूट पडा था। जैसे-तैसे परिस्थियों से लड़कर होश संभाला और कभी भी हार नहीं मानी। भागीरथी पढ़ाई के साथ-साथ घर का सारा काम खुद करती हैं। यहां तक कि अपने खेतों में हल भी खुद ही लगाया करती हैं। उनके मन में बस एक ही सपना है कि एक दिन ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतना और अपने गांव, राज्य, देश, कोच का नाम रोशन करना है। भागीरथी अपनी रफ्तार से दुनिया के फलक पर चमक बिखेरने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। भागीरथी देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित मैराथन में अपनी सफलता का परचम लहरा चुकी हैं।

कहां है तुंगनाथ मंदिर
उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जनपद स्थित पंच केदारों में तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ मंदिर है। इसकी ऊंचाई 3640 मीटर है। यह मंदिर तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है। यहां हर साल देश- विदेश से हजारों तीर्थयात्री और पर्यटक आते हैं। पंच केदारों में यह मंदिर सबसे ऊंचाई पर स्थित है। मान्यता है कि इसी स्थान पर शिवजी भुजा रूप में विद्यमान हैं। इसलिए प्राचीनकाल के इस मंदिर में भगवान शिव के भुजाओं की पूजा होती है।

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