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वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सौ शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने का सपना दिखाया था। इसमें देहरादून भी शामिल है। जहां 2018 से शुरू हुए कार्यों में करोड़ों खर्च होने के बावजूद शहर की सूरत नहीं बदली है। आधे-अधूरे कार्यों से यहां की जनता आजिज आ चुकी है। हालात ये है कि पहली ही प्री मानसून बारिश में जगह-जगह पानी भरने और गंदगी के ढेर लगे दिखाई दिए हैं। स्मार्ट सिटी के निर्माण की डेड लाइन 2024 है लेकिन अभी तक आधे से अधिक कार्य पूरे नहीं हुए हैं

देहरादून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी के हालात कुछ इसी तरह से बन चुके हैं कि 7 वर्षों में अभी तक न तो राज्य को स्मार्ट सिटी मिल पाई है और न ही इस ड्रीम प्रोजेक्ट से आवाम को कोई राहत मिल पाई है। इसके उलट आधा देहरादून नगर स्मार्ट सिटी के कामांे के चलते एक बड़ी समस्या बन चुका है।

वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश के 10 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाए जाने का निर्णय लिया गया और इसके लिए बजट अवमुक्त किया गया। उत्तराखण्ड को भी इस योजना से जोड़ा गया और देहरादून शहर को स्मार्ट सिटी में रखा गया। उल्लेखनीय है कि तब राज्य में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार थी। राज्य सरकार स्मार्ट सिटी योजना में उत्तराखण्ड को शामिल करने पर उत्साहित तो थी लेकिन इसका पूरा दारोमदार केंद्र सरकार के ही फंड से होने पर भी इसमें कोई खास रुचि नहीं दिखाई थी।

बहरहाल राज्य को स्मार्ट सिटी तो मिल गई और इसका प्रस्ताव भी केंद्र सरकार ने स्वीकृत कर दिया। जिसके लिए 1 करोड़ का बजट स्वीकृत कर दिया गया। योजना में 22 कार्यों को रखा गया। जिसमें वाटर मैनेजमंेट सीवर लाइन, स्मार्ट शौचालय, दून लाइब्रेरी, पेयजल आपूर्ति, पेयजल लाइन, मुख्य बाजार पलटन बाजार का सौंदर्यीकरण, इलेक्ट्रिक बस, स्मार्ट पोल, ड्रेनेज सिस्टम, स्मार्ट पेयजल मीटर, वर्षा जल निकासी, मल्टीयूटिलिटी डक्ट, स्मार्ट रोड और ग्रीन बिल्डिंग के अलावा स्मार्ट स्कूल, पेयजल एटीएम, कमांड एंड कंट्रोल सेंटर, ई क्लेक्ट्रेड, सिटीजन आउट रीच, पेडिस्ट्रिीयन क्रॉस स्मार्ट बस स्टेशन, इंडिकेटिव क्रॉस और कमांड सेंटर रखे गए।

2016 में जाकर कहीं स्मार्ट सिटी के काम शुरू तो हुए लेकिन उनकी गति बेहद धीमी ही रही। इसी वर्ष ग्रीन बिल्डिंग के लिए भी राज्य सरकार ने केंद्र को प्रस्ताव भेजा। जिसमें देहरादून के सबसे बड़े चाय बागान आरकेडिया ग्रांट की भूमि का चयन किया गया। चाय बागान की भूमि होने के चलते यह प्रस्ताव स्वीकृत नहीं हो पाया। जिस कारण स्मार्ट सिटी का अति महत्वपूर्ण अवस्थापना का कार्य रुक गया।

2017 में राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और भाजपा की सरकार बनी। तब एक बारगी लगा कि अब केंद्र और राज्य में भाजपा सरकार होने के चलते राज्य को स्मार्ट सिटी जल्द ही मिल पाएगी लेकिन तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार भी स्मार्ट सिटी के कामों के प्रति उदासीन रही। जिस कारण स्मार्ट सिटी परियोजना के कार्य बेहद धीमी गति से ही चलते रहे। कभी नोडल एजेंसी को लेकर विवाद हुआ तो कभी इसके टेंडर प्रक्रिया को लेकर हंगामा मचा। सरकार ने इसके लिए बीच का रास्ता अपनाते हुए एमडीडीए को नोडल एंजेसी बनाया और जिलाधिकारी देहरादून को स्मार्ट सिटी योजना का सीईओ बनाकर स्मार्ट सिटी के निर्माण का रास्ता तैयार किया।

बावजूद इसके स्मार्ट सिटी के कामों में पहले की ही तरह से लेट-लतीफी जारी रही और कामों की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े होते रहे। हैरानी की बात यह है कि विपक्ष के अलावा सत्ता पक्ष के विधायक भी निर्माण कार्यों की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाते रहे लेकिन न तो सरकार ने और न ही जिलाधिकारी देहरादून ने इन आरोपों की सच्चाई जानने के प्रयास किए। एक तरह से सरकार ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए निर्माण कार्यों को सही ठहराते हुए सभी के मुंह बंद कर दिए। भाजपा के जो विधायक गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे थे उनको पार्टी अनुशासन का हवाला देकर चुप करवा दिया गया। कांग्रेस के आरोपों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह सरकार पूरे दो वर्ष तक स्मार्ट सिटी के कामों पर उदासीन रही। 2018 में नगर निगम महापौर रहे धर्मपुर के भाजपा विधायक के कार्यकाल मे स्मार्ट सिटी का ब्लू पिं्रट तैयार किया गया था लेकिन अब स्वयं विनोद चमोली ही इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका कहना है कि 2018 में जो ब्लू पिं्रट तैयार किया गया था उसके अनुरूप काम नहीं किए जा रहे हैं। इससे यह तो साफ हो जाता है कि देहरादून में स्मार्ट सिटी के कामों पर जो सवाल उठाए जाते रहे हैं उनमें बहुत हद तक सच्चाई है। आज भी उन सवालों पर कोई जवाब नहीं दिया जा रहा है। 7 वर्षों में केवल स्मार्ट स्कूल, पेयजल एटीएम, कमांड एंड कंट्रोल सेंटर, ई क्लेक्ट्रेड, सिटीजन आउट रीच, पेडिस्ट्रिीयन क्रॉस स्मार्ट बस स्टेशन, इंडिकेटिव क्रॉस और कमांड सेंटर का काम ही पूरा हो पाए हैं और वाटर मैनेजमंेट सीवर लाइन, स्मार्ट शौचालय, दून लाइब्रेरी, पेयजल आपूर्ति, पेयजल लाइन, मुख्य बाजार पलटन बाजार का सौंदर्यीकरण, इलेक्ट्रिक बस, स्मार्ट पोल, ड्रेनेज सिस्टम, स्मार्ट पेयजल मीटर, वर्षा जल निकासी, मल्टीयूटिलिटी डक्ट, स्मार्ट रोड के काम निर्माणाधीन ही चल रहे हैं।
आज लगभग आधा देहरादून नगर स्मार्ट सिटी के आधे-अधूरे कामों के चलते पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो चुका है। बरसात के सीजन में तो और भी समस्याएं होने लगी हैं। सबसे ज्यादा परेशानी चकराता, राजपुर रोड, ईसी रोड, हरिद्वार रोड और आईएसबीटी क्षेत्र में हो रही है। इन स्थानों में सड़कांे के दोनों ओर नालियां बनाई जा रही हैं जिससे सड़कों को खोद डाला है। बरसात के सीजन आने के बावजूद इनका काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। राजपुर रोड से लेकर परेड ग्राउंड, लैंसडाउन चौक और घंटाघर, बुद्धा चोैक तक बनाए जाने वाले नालियों को सड़कांे से डेढ़ फीट ऊंचा बना दिया गया है जिससे सड़कों पर बरसात का पानी नालियों में नहीं जा पा रहा है। साथ ही नालियों का काम भी अधूरा ही पड़ा हुआ है जिससे कीचड़ और गहरे गड्ढे बन गए हैं। वहीं भंडारी बाग, पथरी बाग एवं देहराखास में सीवर लाइन का कार्य भी निर्माणाधीन ही चल रहा है, साथ ही पथरी बाग में रेलवे का ओवर ब्रिज का काम चल रहा है जिसके चलते इस मार्ग की हालत बेहद खराब हो चुकी है। जबकि इस क्षेत्र में गुरु रामराय विश्वविद्यालय और महाविद्यालय के साथ- साथ कई शैक्षणिक संस्थान हैं। बुरी तरह से टूट-फूट चुकी इसी सड़क पर हजारों छात्रों का आवागमन होता है। अगले माह जब सभी शैक्षणिक संस्थान खुलेंगे तो हालात और भी खराब हो सकते हैं।

निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर जो आरोप लगाए जाते रहे हैं उनकी सच्चाई भी जल्द ही सामने आ चुकी है। प्रिंस चौक से त्यागी रोड के लिए एक माह पूर्व ही बनाई गई सड़क पहली ही बारिश में क्षतिग्रस्त हो गई। आधे से ज्यादा सड़क बरसात में उखड़ कर बह गई जिस पर व्यापारियों ने भी खासा हंगामा किया और सरकार से निर्माण कार्यों की जांच कराने की मांग की। इसी तरह से शहर के सबसे बड़े और व्यस्ततम बाजार पल्टन बाजार के सौंदर्यीकरण के काम की गुणवत्ता पर अनेक बार सवाल उठाए जाते रहे हैं। बाजार की मुख्य सड़कों में रंगीन टाइल लगा दी गई जिसकी गुणवत्ता इतनी खराब थी कि अनेक जगहों पर टाइलें उखड़ गईं। नालियों को बगैर साफ किए ही उन पर स्लैब डाल दिए गए जिससे बरसात का पानी दुकानों में घुस जाता है। नालियों में निकासी का प्रबंध नहीं होने से बरसात में पूरा पल्टन बाजार तालाब बन जाता है। यही नहीं पल्टन बाजार में साइकिल ट्रैक का भी निर्माण अभी तक शुरू नहीं किया जा सका है जबकि नगर के अनेक क्षेत्रों में साइकिल ट्रैक भी बनाए जाने हैं।

हैरानी की बात है कि बरसात का मौसम शुरू हो चुका है और स्मार्ट सिटी के तहत बनाए जाने वाले नालांे पर सबसे ज्यादा सवाल उठ रहे हैं। आईएसबीटी क्षेत्र में ड्रेनेज के लिए बनाए जा रहे नाले की निकासी उस क्षेत्र में कर दी गई है जिस क्षेत्र में हमेशा जल भराव होता है। धर्मपुर के भाजपा विधायक विनोद चमोली ने नालांे के निर्माण पर नाराजगी जताई है। अजबपुर फ्लाईओवर की सर्विस लेन में बरसात का पानी भरने से आवागम प्रभावित होने और नालांे की निकासी के काम पर भी उन्होंने नाराजगी जताई है। इस क्षेत्र में दीपनगर, मूलचंद इन्क्लेव, चौधरी इन्क्लेव कारगी क्षेत्र में जल भराव की स्थिति बेहद गंभीर है। जिस तरह से स्मार्ट सिटी के कामों की हालत हो रही है उससे यह भी अंदेशा खड़ा हो रहा है कि जब तक स्मार्ट सिटी के सभी काम पूरे होंगे तब तक पूर्व में निर्मित हो चुके कार्य पूरे कैसे होंगे? यह बात इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है कि केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी का बजट भी आधा कर दिया है जिससे निर्माणाधीन कार्यों पर तो शंका खड़ी हो रही है, साथ ही ग्रीन बिल्डिंग के प्रस्ताव पर भी कुहासा छाने लगा है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए तय बजट में 50 प्रतिशत की कटौती कर दी है। जिसके चलते अब 1 हजार करोड़ की बजाय महज 550 करोड़ का ही बजट रहेगा। जिसमें स्मार्ट सिटी के सभी कार्य पूरे होने हैं। बजट कम होने के चलते स्मार्ट सिटी योजना का काम कैसे पूरा होगा यह तो कहा नहीं जा सकता। हालांकि राज्य सरकार इसके लिए कदम उठा चुकी है। केंद्र द्वारा कटौती की गई 450 करोड़ को राज्य सरकार स्वयं खर्च करेगी इसके लिए सरकार अतिरिक्त फंडिग की व्यवस्था करने की बात कह चुकी है।

इस पूरे बजट के गणित को भी स्मार्ट सिटी परियोजना पर संकट इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि केंद्र की 90 प्रतिशत 5 सौ करोड़ माना जा रहा है और राज्य सरकार को 50 करोड़ इस बजट में खर्च करना है। लेकिन मौजूदा हालात में स्मार्ट सिटी परियोजना के जो शेष कार्य होने हैं वे सभी तकरीबन 5 सौ करोड़ से कम में नहीं हो सकते हैं। साथ ही ट्वीन सिटी योजना भी स्मार्ट सिटी परियोजना का ही एक अंग है। इसके चलते अब स्मार्ट सिटी के शेष कामों के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं। अब राज्य सरकार शेष 450 करोड़ रुपए अपने बजट से स्मार्ट सिटी योजनाओं के शेष कार्यों को पूरा करेगी।

बहरहाल, राज्य सरकार का पूरा फोकस देहरादून को स्मार्ट सिटी के तौर पर बनाने में है लेकिन जिस तरह से इस योजना पर सवाल खड़े हो रहे हैं वह योजना को लेकर शंका बढ़ा रहा है। यह भी गौर करने वाली बात है कि 2015 से अब तक मौजूदा सरकार ने योजना में हो रही लेट-लतीफी और गुणवत्ता पर कोई ठोस कार्रवाई की हो यह देखने को नहीं मिला। प्रधानमंत्री के हर ड्रीम प्रोजेक्टांे पर राज्य की मशीनरी और अफसरशाही भारी क्यों पड़ रही है। जबकि पूर्व में कौशल विकास मिशन योजना राज्य में भ्रष्टाचार का एक बड़ा पर्याय बनकर सामने आ चुकी है तो क्या अब स्मार्ट सिटी योजना भी इसी राह में चल पड़ी है? यह सवाल देहरादून के हर नागरिक के मन में कौंध रहा है।

बात अपनी-अपनी
स्मार्ट सिटी के जो काम होने चाहिए थे वे पूरे नहीं हुए। कहीं न कहीं इसमें ब्यूरोक्रेसी जिम्मेदार है और सबसे ज्यादा टेक्नोक्रेट इसके लिए दोषी है। ये समस्या का पूरा समाधान नहीं करते, केवल उसका तात्कालिक निराकरण करते हैं। दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनका विभागों से कोई कॉर्डिनेशन नहीं बन पा रहा है। इस कारण करोड़ों रुपया सरकार का लग रहा है, वह पानी में बह जाता है।
विनोद चमोली, पूर्व मेयर एवं विधायक, धर्मपुर

स्मार्ट सिटी को जो काम था वह पहले कंपनियों को दिया गया। लेकिन इसमें काम की गति बेहद धीमी रही। अब तीन माह से काम हो रहे हैं लेकिन इसमें भी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर काम की गति कम रहेगी तो प्रतिदिन के हिसाब से पेनाल्टी लगेगी। अब जो भी काम हो रहे हैं वह सभी भूमिगत सर्वे के आधार पर ही हो रहे हैं।
खजानदास, विधायक, राजपुर रोड

स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट सरकार द्वारा दिखाया गया एक सपना-सा लगता है। 2017 में शुरू हुआ था जिसे 2022 में पूरा होना था। अब तक 638 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं लेकिन धरातल पर हालात बदतर हैं। सड़क में गड्ढे हैं या गड्ढ़ों में सड़क, यह पता ही नहीं चलता। इस प्रोजेक्ट में स्मार्ट पार्क, पार्किंग पर कोई भी काम नहीं हुआ है।
राजेंद्र प्रसाद रतूड़ी, प्रदेश उपाध्यक्ष, आम आदमी पार्टी उत्तराखण्ड

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