देहरादून। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी ही सरकार के समय हर की पैड़ी में गंगा को नदी के बजाय नहर घोषित करने के निर्णय को अब गलत बता रहे हैं। वो मांग कर रहे हैं कि मौजूदा सरकार उनकी सरकार के समय के शासनादेश को रद्द कर हर की पैड़ी को गंगा नदी घोषित कर दे। हरीश रावत के इस नए पैंतरे से प्रदेश सरकार असहज हो चली है, तो वहीं इसका बड़ा असर बहुत जल्द प्रदेश की राजनीति में देखने को मिल सकता है।
हरीश रावत द्वारा दिए गए इस ताजा-तरीन बयान को प्रदेश सरकार के लिए एक बड़ी फांस माना जा रहा है। दरअसल, वर्ष 2016 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी ने अपने एक निर्णय को हरिद्वार गंगा नदी से दो सौ मीटर दूरी के नियम का कड़ाई से पालन करवाने के लिए आदेश जारी किया था। इसके चलते हर की पैड़ी से लेकर डाम कोठी तक के क्षेत्र में तकरीबन सैकड़ों निर्माण जिसमें धर्मशालाएं, होटल और आवासीय भवनों के अलावा व्यापारिक प्रतिष्ठान, दुकानें आदि को गंगा नदी से दो सौ मीटर के नियम में माना गया। एनजीटी के आदेश के चलते तत्कालीन हरीश रावत सरकार को इन भवनों को अतिक्रमण की श्रेणी में मानकर ध्वस्त करने की कार्यवाही करने पर मजबूर होना पड़ा।
दरअसल, हरिद्वार में हर की पैड़ी से लेकर डाम कोठी तक के क्षेत्र में सैकड़ों निर्माण हुए हैं। इनमें से कई निर्माण स्वतंत्रता से पूर्व के भी हैं, लेकिन कुछ दशकां से इस क्षेत्र में राजनीतिक सरंक्षण और विकास प्राधिकरण द्वारा आंखें मूंदने के चलते हुए पिछले वर्षों के दौरान नित नए-नए सैकड़ों निर्माण होते चले गए। हैरत की बात यह है कि यह निर्माण सीधे गंगा तट को छूते हुए ही बनाए गए हैं।
तत्कालीन इलाहबाद हाईकोर्ट में कानपुर के चमड़ा उद्योग के चलते गंगा नदी को प्रदूषित करने पर एक जनहित याचिका दाखिल की गई जिस पर हाईकोर्ट द्वारा कानपुर के अलावा समस्त गंगा नदी के तट से दो सौ मीटर तक किसी भी निर्माण पर पूरी तरह रोक लगा दी गई। हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखकर राज्य सरकारों को इस पर नियम बनाने का आदेश जारी कर दिया।
तब से लेकर गंगा नदी पर बनाए गए 200 मीटर का नियम उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में लागू है। हालांकि इस नियम पर अनेक बार राज्य सरकारों द्वारा कई ढील दी गई जिनको नियम में वैधानिक बनाया गया है। जैसे अगर गंगा नदी तट ओैर निर्माण से पहले कोई सड़क हो या फिर सीवरेज सिस्टम की व्यवस्था हो तो कुछ शर्तों पर छूट दी जाती रही हैे।
इस छूट का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर होने लगा और राज्य सरकारां के अलावा प्रशासन तथा प्राधिकरण के ढीले रवैये के चलते गंगा नदी पर हजारों-हजार निर्माण होते चले गए। ज्यादातर निर्माणों में राजनीतिक सरंक्षण ओैर प्राधिकरण की मिलीभगत के चलते ऐसा होता चला गया।
पूर्ववर्ती सरकार के समय में अतिक्रमण की श्रेणी में आए हर की पैड़ी से लेकर डाम कोठी तक सैकड़ों निर्माणों को ध्वस्त करने की कार्यवाही अमल में लाई जाती इससे पूर्व ही इस पर राजनीति होने लगी। सरकार पर भारी दबाव बनता चला गया। एक साथ हजारां परिवार पर बेघर होने और कारोबार चौपट होने का खतरा बन गया।
तत्कालीन सरकार ने इससे बचने के लिए सबसे आसान रास्ता यह निकाला कि सरकार हर की पैड़ी की गंगा धारा को ही गंगा मानने से इंकार कर दिया और बकायदा इसके लिए शासनादेश जारी कर दिया जिसके अनुसार हर की पैड़ी में बहने वाली गंगा को नदी न मानकर नहर मान लिया गया। नहर होने के चलते एनजीटी का आदेश निष्प्रभावी हो गया और हरीश रावत सरकार के समय हजारों लोगों के निर्माण को ध्वस्त होने से बचा लिया गया।
आने वाले वर्ष 2022 में हरिद्वार में कुम्भ मेला होना है। सदियों से हर की पैड़ी में कुम्भ स्नान किए जाने की परंपरा रही है। हिंदू मान्यता के अनुसार हरिद्वार को ब्रहमकुंड माना गया है और मान्यता के अनुसार हर की पैड़ी में ही अमृत की बूंदें गिरने से हर की पैड़ी को ही ब्रहमकुंड माना जाता रहा है। करोड़ों हिंदुओं की आस्था के अनुसार हर की पैड़ी में गंगा नदी बहती है। इसको लेकर भारत के साधु समाज के अलावा आम जनमानस भी हर की पैड़ी में ही कुम्भ स्नान करता रहा है। यहां तक कि नगाओं का शाही स्नान भी हर की पैड़ी में ही होता रहा है।
हरीश रावत सरकार के एक शासनादेश से हर की पैड़ी में बहने वाली गंगा को नदी न मानकर एक नहर मान ली गई है जिसके चलते अब देश भर के हिंदुओं और खास तौर पर हरिद्वार के साधु समाज और अखाड़ा परिषद हर की पैड़ी में बहने वाली गंगा को ही गंगा नदी का दर्जा दिए जाने की मांग करता रहा है।
वैसे भी मौजूदा सरकार द्वारा कुंभ मेले के लिए किए जा रहे निर्माण कार्यों से साधु समाज पहले ही नाराज चल रहा है। इस नाराजगी को भांपते हुए हरीश रावत ने अपनी ही सरकार के वक्त लागू किए गए शासनादेश को रद्द करने की मांग प्रदेश सरकार से की है। हरीश रावत भले ही कह रहे हों कि उनकी सरकार के समय सैकड़ां निर्माण को बचाने के लिए यह कदम उठाना पड़ा था, लेकिन करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़े होने के सवाल पर अब उनको लगता है कि उनकी सरकार द्वारा जारी किया गया शासनादेश आस्था के खिलाफ था। अब सरकार को चाहिए कि उक्त शासनादेश को रद्द कर हर की पैड़ी में बहने वाली गंगा को गंगा नदी की धारा माना जाए।
राजनीतिक तौर पर हरीश रावत की इस मांग के पीछे एक साथ कई समीकरणों को साधने का ही प्रयास बताया जा रहा है। अगर प्रदेश सरकार हरीश रावत सरकार में जारी शासनादेश को रद्द करती है तो हर की पैड़ी में बहने वाली गंगा एक नहर न मानकर नदी मान ली जाएगी। तब एनजीटी का आदेश फिर से हरिद्वार के उन सभी निर्माणों के ऊपर लागू होना निश्चित है जिसको बचाने के लिए शासनादेश जारी किया गया था।
हालांकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत भी सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि हमारी सरकार हरीश रावत सरकार में जारी शासनादेश को रद्द कर देगी, लेकिन इसके लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। एक तरह से त्रिवेंद्र रावत इस पूरे मामले में अपनी सरकार के समाने भविष्य में होने वाले लाभ और हानि के मामले में बहुत ही सधे हुए तरीके से बयान दे रहे हैं।
राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो प्रदेश सरकार के लिए यह बहुत ही विकट स्थिति बनी चुकी है। 2022 में कुम्भ मेला होना है और कुम्भ स्नान के लिए हर की पैड़ी में गंगा नदी की जगह एक मानवीय नहर में स्नान होता है तो यह निश्चित ही करोड़ों लोगों की आस्था पर कानूनी बाधा के तौर पर माना जा सकता है। साधु समाज के विरोध के चलते पहले ही प्रदेश सरकार खासतौर पर प्रदेश के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक साधु समाज के निशाने पर हैं।
अगर प्रदेश सरकार शासनादेश को रद््द करती है तो एनजीटी के आदेश का भी पालन करवाना सरकार के लिए एक बड़ी मजबूरी बन सकती है जिसका बड़ा राजनीतिक असर भाजपा की अंदरूनी राजनीति में पड़ना तय माना जा रहा है। अगर सरकार एनजीटी के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए कोई नया कानून बनाती है तो इसका भी दूरगामी असर गंगा नदी और उसके तटों पर हो रहे अतिक्रमण, निर्माण में बेहताशा वृद्धि होने की आशंका बन रही है।
भाजपा की मौजूदा राजनीति को देखें तो मदन कौशिक प्रदेश सरकार में दूसरे नंबर के मंत्री बताए जाते हैं। मदन कौशिक की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भाजपा में किसी से छुपी नहीं है। अगर एनजीटी के आदेश का पालन सरकार करवाती है तो मदन कौशिक की राजनीति के लिए एक बड़ा नुकसान का कारण बन सकता है। अगर हरीश रावत सरकार के शासनादेश को जारी रखती है तो करोड़ों हिंदुओं औेर साधु समाज की सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ सकती है जिसका गंभीर परिणाम अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो हरीश रावत ने अपने नए दांव से प्रदेश सरकार खासतौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक को ही उहापोह की स्थिति में ला खड़ा कर दिया है। जिस तरह से कोरोना संकट के चलते पहले से ही पर्यटन जमीन चाट चुका है, अगर सरकार शासनादेश में कोई तब्दीली करती है तो यह निश्चित ही माना जा रहा है कि एनजीटी के आदेश की तलवार हरिद्वार पर लटकी रहेगी और जो भी करोबार कोरोना संकट से उबरने का प्रयास कर रहा है उसे फिर से जमीन पर आने से कोई नहीं रोक सकता।