देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य में स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं में भेदभाव किस तरह से होता है यह कोरोना महामारी के दौरान खुलकर सामने आ चुका है। कोरोना की लड़ाई में फ्रंट लाइन में खड़े आयुष के योद्धाओं के साथ सरकार और सरकारी सिस्टम भी भेदभाव कर रहा है। हैरत की बात यह है कि सरकारी सिस्टम की कार्यशैली से स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए दो श्रेणियां बनाकर एक को तमाम सुविधाएं दी जा रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर आयुष चिकित्सकों को हर सुविधा औेर लाभ से वंचित किया जा रहा है।
राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा चिकित्सकां, फार्मासिस्टों और नर्सों का एक दिन का वेतन कटौती न करने का प्रस्ताव बनाकर सरकार को सौंप दिया है। जल्द ही इस प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर लग सकती है। कैबिनेट से पास होने के बाद सभी एलोपैथिक स्वास्थ्य कर्मचारियों और अधिकारियों को 3 हजार से लेकर आठ हजार तक का फायदा होगा।
हैरानी की बात यह है कि आयुष चिकित्सकों को इससे अलग रखा गया है। आयुष चिकित्सकों के लिए किसी तरह का कोई प्रस्ताव न तो आयुष मंत्रालय और न ही आयुष निदेशालय द्वारा सरकार को दिया गया है। यहां तक कि आयुष चिकित्सकों की लंबे समय से की जा रही कई मांगों को भी अनसुना किया जाता रहा है। इसके चलते आयुष चिकित्सकों में भारी रोष है।
दरअसल, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दो श्रेणियां निर्धारित की गई हैं। एलोपैथिक स्वास्थ्य सेवाएं राज्य के स्वास्थ्य विभाग के आधीन हैं और आयुष स्वास्थ्य सेवाएं आयुष विभाग के तहत संचालित होती हैं, जबकि दोनों का कार्य प्रदेशवासियों को सेवाएं देने के लिए है। बावजूद इसके आयुष चिकित्सकों के साथ हमेशा दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है।
स्वास्थ्य विभाग और सरकारी सिस्टम प्रांतीय चिकित्सा संघ की हर मांगों को मानता रहा है, जबकि आयुष सेवाओं का संघ की मांगों को अनसुना ही किया जाता रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण सामने आया कि जब एलौपैथिक चिकित्सा सेवा के डॉक्टरों और फार्मासिस्टों के साथ-साथ नर्सों द्वारा एक दिन की वेतन कटौती के आदेश के खिलाफ प्रदेशभर में हड़ताल पर जाने की धमकी दी। कोरोनाकाल में हड़ताल की धमकी के बाद सरकार और शासन की सांसें फूल गई और तत्काल मुख्यमंत्री ने चिकित्सकों के साथ बैठक कर उनकी एक दिन की वेतन कटौती और कोरोनाकाल में विशेष प्रोत्साहन भत्ता दिए जाने पर अपनी सहमति जता दी। इसका ही असर रहा कि तत्काल स्वास्थ्य विभाग द्वारा सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेज दिया गया ओैर जल्द ही इस पर कैबिनेट अपनी मुहर लगा देगी जिससे अब एलोपैथिक चिकित्सकों को एक दिन के वेतन की कटौती से मुक्त कर दिया जाएगा। इसके अलावा सूत्र बताते हैं कि एलोपैथिक चिकित्सकों को कोरोनाकाल में विशेष प्रोत्साहन भत्ता भी दिए जाने पर सरकार सहमत हो गई है। जल्द ही चिकित्सकों को इसका लाभ मिलने की संभावना है।
अब आयुष चिकित्सकों की बात करें तो प्रदेश में एक ही सेवा से जुड़े दूसरे वर्ग के साथ किस तरह से दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है, यह अपने आप में दिलचस्प है। जहां कोरोना संकट के दौरान ऐलोपैथिक चिकित्सकों की सेवाओं को किसी सूरत में नकारा नहीं जा सकता तो वहीं आयुष चिकित्सकों की सेवा भावनाओं को भी नहीं नकारा जा सकता। लेकिन सरकार और सिस्टम के अलावा मंत्रालय, आयुष निदेशालय तक अपने ही इन कोरोना योद्धाओं के साथ किस तरह दोयम दर्जे का व्यवहार करता रहा है, यह कई बार सामने आ चुका है।
गोर करने वाली बात यह हे कि स्वास्थ्य विभाग स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास है ओैर स्वास्थ्य विभाग के अधीन आने वाले चिकित्सक, फार्मासिस्ट, नर्स आदि अपने हक के लिए सरकार पर दबाव बनाने में हमेशा कामयाब रहते हैं। सरकार और शासन इनके दबाव के चलते इनकी मांगों को तत्काल मान लेते हैं। वित्त विभाग जो हर बात पर वित्त की टांग अड़ाता रहा है वह भी सरकार और शासन की हां में हां मिलाकर अपनी सहमति देने में तुरंत तैयार हो जाता है। कुछ दिनों पूर्व भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। चिकित्सकों ने सरकार पर अपनी मांगों को मनवाने के लिए पूरे प्रदेश में आंदोलन और हड़ताल करने तथा सामूहिक त्यागपत्र देने की बात कहकर सरकार की सांसें ही फूला दी ओैर मुख्यमंत्री ने तत्काल ही चिकित्सकां के साथ बैठक कर उनकी मांगों पर सहमति दे दी।
आयुष चिकित्सकां की लंबे समय से चली आ रही मांगां पर न तो सरकार और न ही शासन ने कोई रुचि दिखाई। जब मांगें तेज होने लगी तो 12 मांगों में से केवल एक मांग मान लगी गई जिसमें आयुष निदेशक की नियुक्ति का मामला था। हैरानी इस बात की है कि सरकार ने आयुष निदेशक की तैनाती के लिए नियमावली बनाने की मांग को तो दरकिनार किया, लेकिन कार्यकारी निदेशक की तैनाती कर आयुष विभाग में एक निदेशक तैनात कर दिया।
इसी तरह से भारतीय चिकित्सा परिषद में भी रजिस्ट्रार की तैनाती के लिए सरकार ने बीच का रास्ता अपनाकर रजिस्ट्रार के पद पर फार्मासिस्ट को रजिस्ट्रार बनाकर तैनात कर दिया, जबकि यह पद एक बड़ा पद है और इसके लिए फार्मास्टिस्ट को तैनात करना नियम के खिलाफ है।
आयुष चिकित्सक कोरोना संकट के दौरान पहली पंक्ति में युद्ध लड़ रहे हैं। क्वारंटीन सेंटरों और सर्विलांस में आयुष चिकित्सकों की तैनाती हुई है। इसमें भी आयुष चिकित्सकों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता रहा है। जहां एलोपैथिक चिकित्सकों को 14 दिनों के बाद अगले 14 दिनों तक स्वास्थ्य लाभ के लिए अवकाश दिया जाता है, तो वहीं आयुष चिकित्सकों को इससे दूर रखा गया है। आज भी कई ऐसे चिकित्सक हैं जो लगातार तीन-चार माह से एक ही क्वांरटीन सेंटरों में काम कर रहे हैं। हालांकि अब विरोध के बाद उनको अवकाश दिया जा रहा है, लेकिन उनके काम और सेवाओं के लिए इस तरह की सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं जिस तरह से एलोपैथिक चिकित्सकों को दी जा रही हैं।
‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने समाचार में आयुष चिकित्सकों के साथ भेदभाव के प्रामाणिक समाचार प्रकाशित किए थे जिसमें 33 वर्षों तक अपनी सेवाएं देने वाले कई दर्जन आयुष चिकित्सकों को पेंशन से भी महरूम रखा गया है, जबकि एलोपैथिक चिकित्सकों को पेंशन का लाभ मिल रहा है।
इसी तरह से एक दिन के वेतन कटौती के मामले में भी आयुष चिकित्सकों के लिए विभागीय स्तर पर कोई प्रस्ताव तक नहीं बनाया गया है। एलोपैथिक चिकित्सकों के एक दिन के वेतन कटौती से राहत देने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा तत्काल सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है। लेकिन आयुष मंत्रालय ओैर विभाग द्वारा आयुष चिकित्सकों के लिए कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया है। यहां तक कि मंत्रालय और निदेशालय से भी किसी तरह का आश्वासन तक इनको नहीं दिया गया है।
आयुष मंत्री हरक सिंह रावत पेंशन मामले में कई माह से कैबिनेट में इस मामले को लाने की बात करते रहे हैं लेकिन आज तक किसी भी कैबिनेट में यह मामला रखा ही नहीं गया है। अब कोरोनाकाल में विशेष प्रोत्साहन भत्ता दिए जाने की बात हो या एक दिन के वेतन कटौती से राहत देने की बात हो आयुष मंत्रालय हमेशा की ही तरह इस पर बात करने से बच रहा है।
हैरानी इस बात की है कि राज्य सरकार ने करोना संकट को देखते हुए आयुष चिकित्सकों को स्वास्थ्य विभाग के आधीन किया हुआ है। फिलहाल सभी स्वास्थ्य सेवाएं संचालित हो रही हैं। बावजूद इसके आयुष चिकित्सकों को एलोपैथिक की तरह दी जाने वाली सुविधा से अलग रखा जा रहा है। एक दिन के वेतन कटौती से राहत के प्रस्ताव हो या विशेष प्रोत्साहन भत्ता दिए जाने की बात हो आयुष चिकित्सकों को इसका लाभ देने के लिए उनके विभाग से ही प्रस्ताव दिए जाने की बात सामने आ रही है। जब तक आयुष विभाग से प्रस्ताव नहीं दिया जाएगा तब तक आयुष चिकित्सकों को इसका लाभ नहीं मिलेगा, ऐसी आंशकाएं जातई जा रही हैं।
बात अपनी-अपनी
जब सरकार ने कोरोना संकट के चलते स्वास्थ्य सेवाओं को स्वास्थ्य विभाग के अधीन किया हुआ है तो आयुष चिकित्सकों को भी एक जैसा लाभ मिलना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि स्वास्थ्य विभाग के अधीन तो सभी काम करें, लेकिन फायदा केवल एलोपैथिक के ही लोगों को हो। प्रस्ताव में हमें भी जोड़ा जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जा सकता है तो हमारे लिए भी तत्काल प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेजा जाए। हम सरकार के साथ खड़े हैं और हमने आज तक कोई आंदोलन या हड़ताल करने की धमकी सरकार को नहीं दी है फिर भी हमारे साथ भेदभाव किया जाता रहा है। अब हमें भी लग रहा है कि सरकार और शासन से अपनी मांगों के लिए नए तरीके से काम करना होगा। जब एक समान काम और एक समान वेतन का नियम है, तो हमें क्यों उस नियम से अलग रखा जा रहा है।
डॉक्टर हरदेव सिंह रावत, प्रांतीय महासचिव राजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा संघ
एलोपैथिक चिकित्सक को सिर्फ हड़ताल पर जाने की धमकी देते हैं और सरकार उनकी मांगों को तुरंत मान लेती है, जबकि आयुष चिकित्सक भी वही काम कर रहे हैं जो एलोपैथिक चिकित्सक कर रहे हैं। हम तो फ्रंट लाइन में सबसे पहले कोरोना से लड़ रहे हैं। हमारे बाद ही एलोपैथ में कोरोना के मामले जाते हैं। फिर हमें क्यों भेदभाव से गुजरना पड़ रहा है। हमारी 12 मांगों पर लंबे समय से सुनवाई तक नहीं हो रही है, जबकि एलोपैथिक चिकित्सकों की मांगें तुरंत मान ली जाती हैं। आप हमारी मांगों को देखें तो पता लगेगा कि जैसी हमारी मांगें हैं वैसी मांगें एलोपैथिक की भी रही है। लेकिन उनकी मांगों को तो मान लिया गया और हमें छोड़ दिया गया।
डॉक्टर डी. सी. पसबोला, प्रवक्ता एवं मीडिया प्रभारी प्रांतीय महासचिव राजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा संघ