उत्तराखण्ड में अब सोशल मीडिया पर खुफिया विभाग को कड़ी नजर रखने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। फेसबुक के अलावा व्हाट्सअप और ट्वीटर जैसे कई सोशल मीडिया अकाउंटों पर अब प्रदेश के खुफिया विभाग की नजर रहेगी। इसे सोशल मीडिया में सरकार के खिलाफ चलाए जा रहे कैम्पेन को रोकने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि सरकार के इस निर्णय का विरोध भी होने लगा है, लेकिन जिस तरह से इस निर्णय के पक्ष में समर्थन मिल रहा है उससे मामला खासा दिलचस्प हो गया है।
मौजूदा समय में खास तौर पर कोरोना संकट के दौरान सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया में लगातार जो टिप्पणियां देखने को मिली उससे सरकार और खास तौर पर मुख्यमंत्री खासे असहज बताए जा रहे हैं। प्रवासी उत्तराखण्डियों की वापसी के मामले में जिस तरह से श्रेय लेने के लिए तमाम तरह के जुगत सोशल मीडिया में आए उससे सरकार की फजीहत भी हुई। गुजरात से प्रवासियों को प्रदेश में लाने के मामले में सरकार पर कई सवाल सोशल मीडिया में उठाए गए जिससे सरकार की छवि को भी नुकसान तो हुआ ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की कार्यक्षमता पर भी गंभीर सवाल खडे़ किए गए।
कोरोना से निपटने के लिए सरकार की तैयारियों और क्वांरटीन सेंटरों की हकीकत को जहां प्रदेश के न्यूज पोर्टलों द्वारा उठाया गया तो वहीं सोशल मीडिया में सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं की हकीकत को लेकर तमाम तरह के वीडियो जारी हुए जिससे देशभर में प्रदेश सरकार और प्रशसन की छवि को बड़ा धक्का लगा। साथ ही इसके लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की प्रशासनिक क्षमता को लेकर तमाम तरह के तंज भी कसे गए।
इसी को देखते हुए स्वयं मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि आजकल सोशल मीडिया को देखने से यह लगता है कि कुछ लोग सोशल मीडिया के नाम पर एक कंलक के तौर पर हैं। साथ ही यह भी साफ कर दिया कि कहीं कोई सोशल मीडिया की आड़ में अपना एजेंडा तो नहीं चला रहा है। जिससे प्रदेश और सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा है। माना जा रहा है कि अब आने वाले दिनों में राज्य का खुफिया विभाग सोशल मीडिया में जारी पोस्ट और उसमें की जाने वाली टिप्पणियों पर कड़ी नजर रखने वाला है। इस तरह की पोस्टों और टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है।
वैसे सोशल मीडिया पर जिस तरह की पोस्ट नजर आ रही हैं उससे अपने आप में एक बड़ा सवाल तो खड़ा हो ही रहा है। अधिकतर झूठ को बढ़-चढ़ाकर सोशल मीडिया में प्रस्तुत किया जा रहा है। यह बेहद गंभीर सवाल बन चुका है। हाल ही में लॉकडाउन के दौरान अपने बीमार पिता को 1400 किमी साईकिल से अपने घर लाने वाली बिहार की एक बालिका को लेकर जिस तरह से झूठी खबरें सोशल मीडिया में वायरल हुई वह वास्तव में गंभीर चिंतन का विषय बन चुका है। यह साबित हो गया कि खबर पूरी तरह से झूठी है, लेकिन इस खबर को जिस तरह से सोशल मीडिया में शेयर कर बिहार की नीतीश सरकार और केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का नाकाम प्रयास किया गया वह इसे साबित करने के लिए काफी है कि सोशल मीडिया में कहीं न कहीं एक एजेंडा चलाए जाने की कवायद की जा रही है।
इससे उत्तराखण्ड भी नहीं बचा है। आज सोशल मीडिया में खबरों को इस तरह से प्रस्तुत किया जा रहा है कि जैसे वह किसी समाचार पत्र में प्रकाशित हों और सरकार इनको छुपाने का प्रयास कर रही है। कुछ समय पूर्व प्रदेश में जंगलों में लगी भयानक आग को लेकर सोशल मीडिया में कई पुराने वीडियो ओैर फोटो को पोस्ट कर यह साबित करने का प्रयास किया गया कि प्रदेश के जंगलों में भीषण आग लगी हुई है और प्रदेश सरकार के साथ ही वन विभाग भी सोया हुआ है, जबकि यह साबित हो गया कि सभी पोस्टां में लगी फोटो पिछले वर्ष विदेशां में लगी जंगलों की आग की ही थी। लेकिन इससे प्रदेश सरकार की छवि को खासा नुकसान हो चुका था।
वैसे यह भी देखने में आ रहा है कि प्रदेश में सोशल मीडिया में एक ऐसा वर्ग और समूह है जो कि लगातार सरकार और प्रदेश के खिलाफ पोस्ट करने में पीछे नहीं है। इनमें अधिकतर कई ऐसे पत्रकार हैं जिनकी भूमिका पर पूर्व में सवाल उठाए गए हैं। हैरानी की बात यह है कि जो पोस्ट सोशल मीडिया में जारी की जाती है उन पोस्टों से संबंधित खबरें उन समाचार पत्रों में ही प्रकाशित नहीं होती हैं जिन समाचार पत्रों में ऐसे पत्रकार नियमित लेखन का काम करते हैं। इससे साफ है कि इसके पीछे व्यक्तिगत लेखन और अपनी छवि को ही सामने रखकर सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। भले ही इसके कारण झूठी और अर्द्धसत्य खबरें ही क्यों न हों।
इसके अलावा यह भी देखा जा रहा है कि सोशल मीडिया में गाली-गलौच और भद्दी पोस्ट और टिप्पणियां देखने को मिल रही हैं। वह भी एक तरह से सही नहीं है। कांग्रेस या भाजपा के नाम पर बंटे सोशल मीडिया में जिस तरह से एक-दूसरे के लिए अपमानजनक शब्दों का सहारा लिया जा रहा है वह भी खासी चिंता का विषय बन चुका है। अब राज्य सरकार का खुफिया विभाग किस तरह से सोशल मीडिया पर नजर रखता है, यह देखने वाली बात होगी। साथ ही सरकार के इस निर्णय को लेकर जो आशंका बन रही है कि सरकार अपने खिलाफ बोलने वालों पर नियंत्रण रखने की कवायद कर रही है, कहीं यह आशंका सही साबित तो नहीं होगी, यह भी देखना दिलचस्प होगा। बहरहाल प्रदेश में अब सोशल मीडिया में कोई पोस्ट या टिप्पणी करने से पहले भलीभांति सोच-समझकर उपयोग किया जाए तो बेहतर होगा, नहीं तो सरकार के कोपभाजन का शिकार होना पड़ सकता है।