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Uttarakhand

तीरथ के सामने त्रिवेंद्र की फौज

नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कार्यभार संभालते ही अपने कार्यालय में फेरबदल तो किया, लेकिन इतने भर से उनकी समस्या कम नहीं होगी। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने अपने स्टाफ में 41 लोगों की जो भारी-भरकम फौज खड़ी की उसका सामना करना तीरथ के लिए बड़ी चुनौती है। इस फौज पर सरकारी खजाने से जो करोड़ों रुपया लुटाया जाता रहा है, उसे रोक पाना आसान नहीं होगा

नए नवेले मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कामकाज संभालते ही शासन और मुख्यमंत्री कार्यालय में बड़ा फेरबदल किया है। उन्होंने जहां शासन के चार अधिकारियों को बदल दिया है, तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री के चार सलाहकारांे को बाहर का रास्ता भी दिखाया है। तीरथ सिंह रावत के इस कदम से न सिर्फ अधिकारियों में हड़कंप मचा हुआ है, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री के अन्य सलाहकारों के साथ-साथ दायित्वधारियों में भी अपने भविष्य को लेकर खासी बेचेैनी बनी हुई है।

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सबसे चैंकाने वाला काम पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के चार सलाहकारों को पद से हटाकर किया है। सबसे चर्चित मीडिया सलाहकार रहे रमेश भट्ट, औद्योगिक सलाहकार केएस पंवार, नरेंद्र सिंह तथा स्वास्थ्य सलाहकार डाॅ नवीन बलूनी के साथ-साथ लघु उद्योग सलाहकार के पद पर तैनात रहे विमल कुमार को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया, जबकि माना जा रहा है कि जल्द ही पूर्व मुख्यमंत्री के सलाहकारों, ओएसडियो और कई निजी सचिव तथा सहायकों को भी बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। इसके चलते कइयों द्वारा पार्टी के बड़े नेताओं की चरण वंदना का कार्यक्रम तक आरम्भ हो गया है जिससे उनकी नौकरी नए मुख्यमंत्री कार्यालय में बनी रह सके।

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में मुख्यमंत्री के निजी स्टाफ में तकरीबन 5 दजर्न से ज्यादा अधिकारियों की फौज खड़ी कर राज्य के खजाने को लुटाया जा रहा था। मुख्यमंत्री की इस फौज में सरकारी विभागों से प्रतिनियुक्ति में आए हुए अधिकारियों के अलावा भाजपा के कई नेताओं और मुख्यमंत्री के खास चहेतों को निजी स्टाफ के तौर पर तैनात किया गया था। इनमें से कइयों का वेतन एक लाख से भी अधिक है, तो कइयों को सरकारी भवन तक आवंटित किए गए।

इनमें से 20 तो शासकीय सेवाआंे और आवश्यक स्टाफ है, लेकिन 40 के लगभग स्टाफ पूरी तरह से राजनीतिक रखा गया। यानी भाजपा और मुख्यमंत्री के चहेतों को स्टाफ के नाम पर तेैनात किया गया था। इन सभी पर हर माह तकरीबन पांच से छह करोड़ खर्च हो रहा है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि यह धनराशि उसी उत्तराखण्ड के सरकारी खजाने से लुटाई जाती रही है जिस उत्तराखण्ड के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने तक के लाले पड़े हुए हैं। यही नहीं कई जन कल्याणकारी योजनाओं की पंेशन तक लंबित पड़ी हुई है। इन सबके बावजूद मुख्यमंत्री के निजी स्टाफ में नियुक्तियां अनवरत होती रही जिससे इनकी संख्या 38 तक पहुंच गई थी। जिस तरह से जगदीश चंद्र खुल्वे, रमेश भट्ट एवं नरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री के स्टाफ के तौर पर आवास की सुविधा दी गई है, तो इससे साफ है कि ओएसडी पद के लिए भी आवास की सुविधा अनुमन्य की गई थी।

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यालय में तैनात स्टाफ की सूची पर नजर डालें तो शासन की तरफ से 3 अपर मुख्य सचिव, 2 सचिव, 3 अपर सचिव, 3 निजी सचिव, 3 निजी अपर सचिव, 4 समीक्षा अधिकारी सहित कुल 18 अधिकारी तैनात किए गए। इसके अलावा 10 ओएसडी, 8 निजी सहायक, 4 पीआरओ, 3 सोशल मीडिया उप समन्वयक, 1 मीडिया काॅर्डिनेटर और 1 मीडिया सलाहकार, 4 सलाहकार, 1 प्रोटोकाॅल अधिकारी एवं 3 अनुसेवक सहित 41 स्टाफ तैनात किया गया।

नौ ओएसडी की फौज त्रिवेंद्र रावत के इर्द-गिर्द बनाई गई। इनमें धीरेंद्र पंवार, जगदीश चंद्र खुल्बे, गोपाल सिंह रावत, अभय सिंह रावत, देवेंद्र सिंह रावत, विकास कुमार, दर्शन सिंह रावत, उर्वादत्त भट्ट, शैलेंद्र त्यागी तथा मोहन सिंह बिष्ट के नाम हैं। इन सभी को 80 से 90 हजार वेतन और सुविधाएं दी जाती रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक मुख्यमंत्री के विशेष कार्य
अधिकारियों को प्रतिवर्ष 1 करोड़ 8 लाख रुपए सरकारी खजाने से वेतन दिया जाता रहा है। सुविधाओं का खर्च भी जोड़ दें तो प्रतिवर्ष एक से डेढ़ करोड़ रुपए तो मुख्यमंत्री के ओएसडियों पर ही खर्च होते रहे।

अब मुख्यमंत्री के जनसंपर्क अधिकारियों की बात करें तो इनमें सभी पीआरओ को-टर्मिनस हैं यानी जब तब राजा तक तक फौज। इनमें शैलेंद्र त्यागी, परमजीत सिंह, बुद्धि सिंह रावत, संदीप सिंह को जन संपर्क अधिकारी बनाया गया। जिनको प्रति पीआरओ 63 हजार रुपए वेतन दिया जा रहा है। एक वर्ष में पीआरओ पर 30 लाख से भी अधिक खर्च सरकारी खजाने से दिया जाता रहा है। इसी तरह से नितिन रावत, पंकज कुमार नैथानी और पारितोष सेठ को सोशल मीडिया उप समन्वयक बनाया गया। यह सभी को-टर्मिनस पद हैं। इन सभी कोे 50-50 हजार प्रति माह वेतन निर्धारित किया गया। जिससे प्रति वर्ष 18 लाख रुपए वेतन आदि के नाम पर लुटाया जाता रहा। ये सभी भाजपा कार्यकर्ता और भाजपा नेताओं के चहेते लोग हैं जिनको सरकार में एडजस्ट करके रोजगार देने का माध्यम बनाया गया।

पूर्व मुख्यमंत्री के 8 निजी सहायकों में सुरेश जुयाल, विपिन सिंह, राजेंद्र कुमार क्षेत्री, राय सिंह नेगी, रविंद्र कुमार, संजय कुमार थापा, विक्रम रावत, चंद्रशेखर तिवारी शामिल हैं। इन सभी निजी सहायकांे को प्रति माह 33 हजार 40 रुपए के हिसाब से प्रति वर्ष 32 लाख से भी अधिक रुपए वेतन के नाम पर दिया जाता रहा है। गौेर करने वाली बात यह है कि यह सभी निजी सहायक पद को-टर्मिनस पद हैं। इससे साफ हैै कि भाजपा के कार्यकर्ताओं और अपने खास चहेतों को इस पद पर रोजगार देने के लिए ही तैनात किया गया। अनुसेवक के भी तीन पद हैं जिनमें दो पद को-टर्मिनस और एक पद पुनर्नियुक्ति के आधार पर तौनात किया गया। इनमें शेर सिंह बोहरा, महेश सिंह रावत को-टर्मिनस के आधार पर तैनाती पाए हुए हैं तो जगदीश प्रसाद गौड़ को सेवानिवृति के बाद दोबारा सरकारी सेवा में पुनर्नियुक्ति दी गई। इन सभी को प्रति अनुसेवक 20,403 रुपए प्रति माह वेतन दिया गया जो कि प्रति वर्ष 7 लाख से भी अधिक सरकारी खजाने से दिया जा रहा है। इस प्रकार से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के जम्बो निजी स्टाफ के लिए तकरीबन एक करोड़ 95 लाख रुपए हर वर्ष सरकारी खजाने से दिए जाते रहे हैं। अगर इन सभी को अन्य सुविधाएं जैसे आवास, वाहन, कार्यालय और अन्य स्टाफ का खर्च भी जोड़ें तो खर्च का आंकड़ा कई करोड़ तक हो सकता है।

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यालय में तैनात स्टाफ की सूची पर नजर डालें तो शासन की तरफ से 3 अपर मुख्य सचिव, 2 सचिव, 3 अपर सचिव, 3 निजी सचिव, 3 निजी अपर सचिव, 4 समीक्षा अधिकारी सहित कुल 18 अधिकारी तैनात किए गए। इसके अलावा 10 ओएसडी, 8 निजी सहायक, 4 पीआरओ, 3 सोशल मीडिया उप समन्वयक, 1 मीडिया काॅर्डिनेटर और 1 मीडिया सलाहकार, 4 सलाहकार, 1 प्रोटोकाॅल अधिकारी, 3 अनुसेवक सहित 41 स्टाफ तैनात किया गया। हाल ही में सूचना अधिकार के तहत हल्द्वानी निवासी रवि शंकर जोशी ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के स्टाफ आदि की जानकारी प्राप्त की। इसमें कई खुलासे भी सामने आए हैं। जिनमें सबसे ज्यादा गौर करने वाला खुलासा यह रहा कि त्रिवेंद्र रावत के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट का नाम मुख्यमंत्री स्टाफ की सूची में बताया ही नहीं गया है, जबकि रमेश भट्ट सबसे चर्चित और ताकतवर सलाहकार के तौर पर देखे जाते रहे हैं। रमेश भट्ट को लाखों रुपए सरकारी खजाने से दिए गए, लेकिन इसका भी कोई हिसाब नहीं मिल पाया है

हाल ही में सूचना के अधिकार के तहत हल्द्वानी के निवासी रवि शंकर जोशी ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के स्टाफ आदि की जानकारी सूचना के अधिकार के जरिए हासिल की। जानकारी में कई खुलासे भी सामने आए हैं। जिनमें सबसे ज्यादा गौर करने वाला खुलासा यह रहा कि त्रिवेंद्र रावत के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट का नाम मुख्यमंत्री स्टाफ की सूची में बताया ही नहीं गया है, जबकि रमेश भट्ट सबसे चर्चित और ताकतवर सलाहकार के तोैर पर देखे जाते रहे हैं। रमेश भट्ट को लाखों रुपए सरकारी खजाने से दिए गए, लेकिन इसका भी कोई हिसाब नहीं मिल पाया है। मुख्यमंत्री के निजी स्टाफ के लिए सरकारी खजाना किस कदर से लुटाया जाता रहा है इसका भी खुलासा सामने आया है। ओएसडियों को सैमसंग और वीवो जैसे मोबाइल फोन तक सरकारी पैसे से खरीद कर दिए गए और इनका खर्च भी सरकारी खजाने से दिया जाता रहा है।

अब नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत द्वारा फिलहाल त्रिवेंद्र सिंह रावत के खास सलाहकारों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है, जबकि अभी दर्जनों व्यक्ति स्टाफ में कार्यरत हैं। किसी ने अभी तक अपनी पोस्ट से त्याग पत्र नहीं दिया है। यहां तक कि को-टर्मिनस पर तैनात किसी भी स्टाफ के पद मुक्त होने की भी जानकारी नहीं है, जबकि त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद ये सभी को-टर्मिनस पद स्वतः की समाप्त हो गए हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत कब तक पूर्व मुख्यमंत्री के जम्बो स्टाफ को बाहर का रास्ता दिखाते हैं। करोड़ों रुपए सरकारी खजाने से स्टाफ के नाम पर खर्च किए जाते रहे हैं, जबकि राज्य पर 50 हजार करोड़ से सभी ज्यादा का कर्ज हो चला है।

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