अरबपति भू-माफिया और गैंगस्टर यशपाल तोमर की जमीनों पर कब्जे के जरिए खड़ा हुआ अकूत संपत्ति का साम्राज्य पश्चिमी यूपी से लेकर उत्तराखण्ड तक फैला हुआ है। भू-माफिया यशपाल तोमर ने अवैध तरीके से अरबों की जमीन पर क़ब्जा किया और इस खेल में खाकी, खादी से लेकर सुरा और सुंदरियों का भी जमकर इस्तेमाल हुआ। यशपाल तोमर उत्तराखण्ड का बड़ा माफिया रहा है। उसे गढ़वाल गैंगस्टर कहा जाता है। उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में तोमर पर 18 मुकदमें दर्ज हैं। यशपाल ने सिंडिकेट बनाकर कई राज्यों में जमीन हड़पने का काम किया है। यह पहले अपने गिरोह के लोगों द्वारा हत्या, बलात्कार, अपहरण-जान से मारने की धमकी, रोड एक्सीडेंट जैसे काम को अंजाम देकर उसमें फंसाता था। मुकदमा दर्ज कराकर उन्हें जेल भिजवा देता था। अकेले ग्रेटर नोएडा के चिटहरा गांव के ही 12 लोगों को फर्जी मुकदमों में फंसाकर वह उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब और राजस्थान में जेल की हवा खिला चुका है। सलाखों के पीछे भेजते ही शातिर यशपाल तोमर पीड़ित लोगों से समझौते के नाम पर ब्लैकमेलिंग का खेल खेलता था। बाद में वह उनकी जमीन अपने नौकरों के नाम करा लेता था। पुलिस के कई ऑफिसर जांच के लपेटे में हैं तो कई अधिकारियों पर मुकदमें दर्ज हो चुके हैं। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और कुछ ब्यूरोक्रेट्स के सगे-संबंधी भी तोमर के जमीनों के काले समंदर में गोते लगा चुके हैं
पात्र परिचय
यशपाल तोमरः उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद स्थित गांव बरबाला रमाला का रहने वाला है यूपी और उत्तराखण्ड का गैंगस्टर है। ग्रेटर नोएडा के चिटहरा सहित यूपी और उत्तराखण्ड के हरिद्वार में लोगों के साथ धोखाधड़ी कर अवैध तरीके से उनकी अरबों रुपये की जमीनें कब्जाने और फर्जी तरीके से बेचकर सरकार से मुआवजा उठाने के आरोप में 18 मामले दर्ज हो चुके है।
एम ़भास्करः उत्तराखण्ड कैडर के आईएएस अधिकारी आर मीनाक्षी श्री सुदंरम के ससुर है जो आजकल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के भरोसेमंद अफसरों में शामिल हैं। वह फिलहाल मुख्यमंत्री धामी के सचिव हैं। यूपी के जिला गौतमबुद्ध नगर के दादरी में हुई एफआईआर में एम ़भास्कर का नाम छठे नंबर पर है। इन्होंने ग्रेटर नोएडा के चिटहरा गांव में अनुसूचित जाति के लोगों का पट्टा को फर्जी तरीके से खरीद फरोख्त की है।
केएम संत : उत्तराखण्ड कैडर के आईएएस अफसर बृजेश संत के पिता हैं। बृजेश संत हरिद्वार के जिलाधिकारी रह चुके हैं। वह यहां के मुख्य विकास अधिकारी भी रहे हैं। फिलहाल वह प्रदेश की धामी सरकार में खनन निदेशक के पद पर तैनात है। साथ ही वह देहरादून-मसूरी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष हैं। केएम संत भी आईएएस हैं। वह वर्ष 2000 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वह रिटायर होने के बाद उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल के सदस्य रह चुके हैं। संत यूपी के अलीगढ़ निवासी है। दादरी में दर्ज हुई रिपोर्ट केएम संत का सातवां नंबर हैं। संत पर ए-ग्रेटर नोएडा के चिटहरा गांव में जमीन घोटाले में संलिप्त होने के आरोप है।
सरस्वती देवी : उत्तराखण्ड कैडर के आईपीएस राजीव स्वरूप की मां हैं राजीव स्वरूप 2006 बैच के आईपीएस अफसर है। वह दो बार हरिद्वार के एएसएसपी रह चुके हैं। फिलहाल वह डायरेक्टर पीटीसी है। सरस्वती देवी के पति राम स्वरूप राम बिहार के गया से कांग्रेस सांसद रह चुके हैं। सरस्वती देवी को दादरी में दर्ज मुकदमें में 9वें नंबर पर आरोपी बनाया गया है। इन्होंने भी चिटहरा गांव के दलितों के पट्टे अपने नाम कराकर फर्जीवाड़ा किया है।
गिरिश वर्मा : यह उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रह चुके एक आईएएस का बेहद करीबी हैं। गिरीश वर्मा पर भी दादरी में मुकदमा दर्ज हुआ हैं। एफआईआर में उसका 8वां नंबर है। वर्मा पर आरोप है कि उसने अधिकारियों से सांठ-गांठ कर पट्टों की जमीन को असंक्रमणिय से संक्रमणीय कराने में भूमिका निभाई।
नरेंद्र कुमारः त्रिदेव रिटेल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का ऑथराइज्ड सिग्नेचरी है। यह कंपनी अनिल राम और साधना राम की है। अनिल राम और साधना राम उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के समधी और समधन है। उनकी पुत्री गौरी विजय बहुगुणा के बड़े सुपुत्र साकेत बहुगुणा की पत्नी है। इन पर अरबों रुपये की 80 बीघा जमीन हड़पने के आरोप है। इनकी कंपनी के ऑथराइज्ड सिग्नेचरी नरेंद्र कुमार के खिलाफ दादरी थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है।
कंपनी के मालिकों पर आरोप है कि उन्होंने चिटहरा गांव में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की 80 बीघा जमीन तब खरीदी जब उनके पट्टे खारिज किए जा चुके थे। उनके पट्टे अपने नाम कर उन पट्टों को फिर से बहाल कराया गया। असंक्रमणीय से संक्रमणीय घोषित कराया गया और फिर अपने नाम बेनामे कराए गए। जब लोगों ने बेनामे करने का विरोध किया तो उन्हें फर्जी मुकदमों में फंसाकर जेल भिजवाया गया।
प्रस्तावना
कोई भी कह सकता है कि आईएएस-आईपीएस के परिजन अगर धोखाधड़ी से जमीन खरीदने में संलिप्त हैं तो इसमें उत्तराखण्ड के इन अधिकारियों का क्या दोष है? राज्य के वरिष्ठ नौकरशाहों का इस तरह अपराधों में संलिप्त होना या उनके परिजनों का माफियाओं से ऐसा निकट का संबंध होना, ईमानदार, पारदर्शी शासन पर प्रश्न चिÐ है। जिनके परिजन और रिश्तेदार, माफियाओं के साझीदार होंगे, वे अपराधों पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए क्या उचित कदम उठा पाएंगे? सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के एक गांव चिटहरा में इनके द्वारा विवादास्पद जमीन कैसे और क्यों खरीदी गई? क्या यह भू-माफिया से सेटिंग गेटिंग का गिफ्ट है या उन फर्जी मामलों का उपहार है जो उत्तराखण्ड के हरिद्वार जिले में दर्ज कराए गए थे। जिन आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के परिजन और रिश्तेदार जमीन घोटाले में माफिया के साथ नामजद हैं, वह हरिद्वार में बतौर डीएम और एसएसपी तैनात रह चुके हैं। गैंगस्टर यशपाल तोमर का हरिद्वार में जमीनों की खरीद फरोख्त का खासा कारोबार था। माना जा रहा है कि इस दौरान ही यशपाल तोमर ने इन नौकरशाहों के परिवारजनों के लिए जमीनों की खरीद फरोख्त का काम किया। ग्रेटर नोएडा में पट्टों को औने पौने दाम पर नौकरशाहों के परिवारजनों को बेचा गया। ग्रेटर नोएडा के दादरी थाने में दर्ज एफआईआर में उल्लेख है कि यशपाल तोमर ने जमीनें हड़पने के लिए लोगों को डराने-धमकाने और प्रेशर बंनाने के लिए जिन जगहों पर एफआईआर करवाई, उनमें हरिद्वार का कनखल और ऋषिकेश का लक्ष्मण झूला थाना भी शामिल है। हरिद्वार और ऋषिकेश में इस मामले से संबंधित तीन मुकदमें दर्ज हुए।
उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश पुलिस इस बात की जांच में जुटी है कि यशपाल तोमर उत्तराखण्ड के वरिष्ठ नौकरशाहों के परिजनों और पूर्व मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों के संपर्क में कैसे आया। चूंकि जमीनें
नौकरशाहों और राजनेताओं के नाम पर नहीं हैं बल्कि उनके परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों के नाम पर हैं। ऐसे में वही बताएंगे कि वह भू-माफिया यशपाल तोमर के संपर्क में कैसे आए।
पहले भी लगे हैं वरिष्ठ नौकरशाहों पर आरोप
ऐसा नहीं है कि यह पहला मामला है जब उत्तराखण्ड की नौकरशाही पर इस तरह के दाग लगे हो बल्कि इससे पहले भी कई नौकरशाह पर ऐसे आरोप लगे हैं। उत्तराखण्ड के पुलिस महानिदेशक रहे बीएस सिद्धू पर रिजर्व फॉरेस्ट की जमीन पर अवैध कब्जा करने का आरोप एनजीटी में सिद्ध हुआ था। तब एनजीटी ने सिद्धू पर 40 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था। गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी मोहम्मद शाहिद पर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार में शराब माफियाओं को शह देने के आरोप लगे थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के निजी सचिव रहते 2015 में एक स्टिंग में वह शराब माफियाओं को व्यापार का गुर सिखाते देखे गए थे।
किसान से भू-माफिया बने यशपाल की कहानी
यूपी के जिला बागपत के बरवाला थाना क्षेत्र के रमाला गांव निवासी यशपाल तोमर पेशे से किसान था। उसके परिवार में पांच भाइयों के पास महज 9 बीघा जमीन थी। यशपाल ने साल 2000 में कार चोरी के फर्जी कागजात बनवाने से अपराध की दुनिया में कदम रखा था। उसने गुरुग्राम से चोरी की गई गाड़ी के फर्जी दस्तावेज बनवाए और बागपत के किसी शख्स के पहचान पत्र के आधार पर उन्हें कोर्ट में पेश करके किसी और के नाम से कार छुड़वा ली। इसके बाद यशपाल का फर्जीवाड़ा रुकने की बजाय बढ़ता ही चला गया। यहां तक कि उसने कोर्ट से एनकाउंटर के दौरान जब्त मारुति कार को भी फर्जी तरीके से छुड़वा लिया। जमीनों का फर्जी कागज बनवाकर हड़पने से लेकर लोगों पर फर्जी मुकदमें कराने में धीरे-धीरे उसने महारत हासिल कर ली। उत्तराखण्ड में लोग उसे ‘गढ़वाल गैंगस्टर’ तक कहकर बुलाने लगे। साल 2002 में हरिद्वार के थाना कोतवाली में पुलिस पर जानलेवा हमला, हथियार लूटने और धोखाधड़ी के आरोप में यशपाल को पहली बार गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था।
हरिद्वार में दर्ज है चार मामले
यशपाल तोमर के खिलाफ हरिद्वार के कनखल, ज्वालापुर एवं शहर कोतवाली में 13 मई 2022 को चार अलग-अलग मुकदमें दर्ज हैं। कनखल के कांग्रेस नेता तोष जैन और उनकी पत्नी मोनिका जैन की पूर्व में तोमर फर्जी तरीके से गिरफ्तारी करा चुका था। दोनों पति पत्नी जेल में रहे। इसके बाद उस पर कांग्रेसी नेता तोष जैन ने घर में घुसकर हत्या की धमकी देने के संबंध में मुकदमा दर्ज कराया। इसी तरह ज्वालापुर में दिल्ली के प्रॉपर्टी डीलर भरत चावला ने रंगदारी एवं जबरन भूमि कब्जाने समेत प्रभावी धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया हुआ है। इसके बाद तोमर पर एसटीएफ ने गैंगस्टर एक्ट का मुकदमा दर्ज किया था। चौथा मुकदमा शहर कोतवाली में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट को गुमराह कर चौपहिया वाहन कोर्ट से छुड़वाने के संबंध में एसटीएफ ने दर्ज कराया था।
उत्तराखण्ड पुलिस की गिरफ्त में यशपाल तोमर
12 जनवरी 2022 की बात है जब यशपाल तोमर को उत्तराखण्ड की एसटीएफ ने हरियाणा के गुरुग्राम से धर दबोचा था। बताया जाता है कि उस समय वहां उसके साथ उत्तराखण्ड का एक चर्चित नौकरशाह भी था जिसको बाद में हरियाणा सरकार के एक अधिकारी के हस्तक्षेप के बाद छोड़ दिया गया था। हरिद्वार के ज्वालापुर की चर्चित 56 बीघा जमीन मामले में दिल्ली निवासी गिरधारी लाल ने एक मुकदमा ज्वालापुर कोतवाली में दर्ज कराया था। जिसमें यशपाल तोमर पर आरोप लगा था कि वह गिरधारी लाल पर जमीन अपने नाम करने का दबाव डाल रहा था। उत्तराखण्ड पुलिस के डीजीपी अशोक कुमार के निर्देश पर मुकदमा दर्ज होने के बाद इस मामले की जांच उत्तराखण्ड एसटीएफ को सौंपी गई थी। एसटीएफ टीम यशपाल तोमर को गुरुग्राम से गिरफ्तार कर हरिद्वार ले आई थी और ज्वालापुर कोतवाली में उससे पूछताछ की। इसके बाद जो कुछ सामने आया उसके बाद उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में सियासी हलचल मच गई। फिलहाल यशपाल तोमर हरिद्वार की जेल में है। हरिद्वार जिला प्रशासन ने तोमर की 165 करोड़ की सम्पत्ति जब्त कर ली है।
कैसे खुले यशपाल तोमर के राज
उत्तराखण्ड एसटीएफ यशपाल तोमर के मामलों की जांच करते-करते उसके ड्राइवर मालू तक पहुंची। बागपत जिले के फतेहपुर गांव का रहने वाला मालू पुत्र वीरेंद्र यशपाल तोमर का वर्ष 2009 से ड्राइवर था। वह यशपाल के घर में काम करता था। पैसे का लेनदेन उसके हाथों में था। उसने उत्तराखण्ड एसटीएफ के सामने न केवल सरकारी गवाह बनना कबुल कर लिया बल्कि परत-दर-परत यशपाल तोमर के काले साम्राज्य से पर्दा उठा दिया। जिसमें उत्तराखण्ड एसटीएफ को पता चला कि तोमर के रहस्य यूपी के ग्रेटर नोएडा स्थित चिटहरा गांव से जुड़े हैं। जहां 300 करोड़ का जमीन घोटाला हुआ है। इसी जमीन घोटाले में उत्तराखण्ड के राजनेता के रिश्तेदार और नौकरशाहों के परिजन संलिप्त पाए गए हैं।
क्या है जमीन घोटाला
यूपी के गौतमबुद्ध नगर के अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) वंदिता श्रीवास्तव की जांच में इसका खुलासा हुआ है। जांच के आधार पर इस मामले में दो मुकदमें दादरी कोतवाली में दर्ज हुए हैं। जिनमें एक 21 मई को चिटहरा गांव के लेखपाल शीतला प्रसाद द्वारा दर्ज कराई गई। चांकाने वाली बात यह है कि मुकदमा दर्ज होने के कुछ ही घंटों के भीतर लेखपाल शीतला प्रसाद को निलंबित कर दिया गया। जबकि दूसरा मुकदमा 22 मई को दादरी कोतवाली में दर्ज हुआ है। जिसमें दादरी तहसील के कानूनगो पंकज निर्वाण की तरफ से एफआईआर दर्ज कराई गई। दादरी तहसील के राजस्व निरीक्षक पंकज निर्वाण ने 22 मई को दादरी थाने में दर्ज मामले के अनुसार ग्राम चिटहरा की भूमि प्रबंधक समिति ने 282 व्यक्तियों को कृषि भूमि के आवंटन का प्रस्ताव 3 जुलाई 1997 को पास किया था। जिसे तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने 20 अगस्त 1997 को स्वीकृति प्रदान की थी। इन पट्टों को लेकर अनेक शिकायतें मिलीं। तमाम तरह की कमियां पाई गईं। भू-माफिया यशपाल तोमर ने अपने तीन नौकरों कर्मवीर, बेलू और कृष्णपाल को चिटहरा का निवासी बनाकर उनके नाम सैकड़ों बीघा जमीन कराई। जबकि यह लोग बेहद गरीब हैं। इनकी आर्थिक दशा ऐसी नहीं है कि वह करोड़ों की जमीन खरीद सकें। इन्हें पढ़ना-लिखना भी नहीं आता है। इसके बाद यशपाल तोमर ने इस जमीन की पावर ऑफ अटार्नी अपने नौकर और ड्राइवर मालू के नाम करवाई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यशपाल कभी भी संपत्ति अपने नाम पर नहीं खरीदता है, वह अपने किसी सगे-संबंधी या रिश्तेदार या नौकर के नाम रजिस्ट्री कराता था।
अधिकारियों की संलिप्तता
दादरी तहसील के अधिकारियों के साथ मिलकर इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया, क्योंकि सन 1997 के पट्टे जब तक यशपाल तोमर के आदमियों के नाम नहीं हुए, बहाल नहीं किए गए। यशपाल तोमर के नौकरों के नाम एग्रीमेंट होते ही इन पट्टों की पत्रावली एडीएम हापुड़ के यहां ट्रांसफर कराई गई। एडीएम हापुड़ के न्यायालय से पट्टा बहाली का आदेश पारित किया गया। पट्टे बहाल होने के तुरंत बाद दादरी के तत्कालीन एसडीएम ने एक साथ 111 पट्टाधारियों को संक्रमणीय भूमिधर घोषित कर दिया। यशपाल तोमर ने सरकारी दस्तावेज और पत्रावली में ओवर राइटिंग करके रकबा बढ़ाया। इस बढ़े हुए रकबे की रजिस्ट्री अपने आदमियों के नाम करवा ली गई। कुछ जमीन का मुआवजा ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण से हासिल किया गया है। एफआईआर के मुताबिक मेरठ के अपर आयुक्त राधेश्याम मिश्रा की अदालत में इन पट्टों पर स्थगन आदेश पारित किया गया था। इसके बावजूद मुआवजा उठा लिया गया। दरअसल, दादरी के तत्कालीन एसडीएम ने स्थगन आदेश को पत्रावली पर दर्ज नहीं किया। जमीन की खरीद-फरोख्त हो जाने के बाद यह आदेश दर्ज किया गया। यशपाल तोमर और दादरी के तत्कालीन एसडीएम की मिलीभगत से बड़े पैमाने पर धांधली की। इस धांधली में तत्कालीन अधिकारियों की संलिप्तता रही।
एफआईआर में दर्ज आरोपियों की सूची में उत्तराखण्ड के अफसरों के संबंधी भी शामिल
नौकरों के खाते में डाली गई रकम
यशपाल तोमर ने अपने तीन नौकर कर्मवीर, बेलू और कृष्णपाल का खाता दादरी बैंक में खुलवाया। उन तीनों के बैंक खातों में ज्ञानचंद पुत्र साधु राम को संयुक्त खातेदार भी बनाया गया, ताकि जब खाते में पैसा आए तो उसे आसानी से ट्रांसफर किया जा सके। ज्ञानचंद, यशपाल तोमर का ससुर था। अब उसकी मौत हो चुकी है। यशपाल तोमर ने आवंटन पत्रावली (रजिस्टर 57ख) में छेड़खानी करके रकबा बढ़ाया था। जब मुकदमा मेरठ के अपर आयुक्त न्यायालय में चल रहा था, तब आवंटन पत्रावली वहीं थी। यशपाल तोमर तत्कालीन अपर आयुक्त से उनके बाबुओं को दिग्भ्रमित कर रजिस्टर हासिल कर लेता था। वह झांसा देता था कि उसे भूमि का मिलान कराना है। उसी दौरान धीरे से पत्रावली में वह रकबा बढ़ा देता था और फिर रजिस्टर को वापस अदालत में जमा कर देता था।
फिल्म ‘सात उचक्के’ की तर्ज पर करता था कांड
यशपाल ने कई प्रदेशों में कुल 28 लोगों के खिलाफ झूठे मुकदमें दर्ज कराए हैं। उसके कारनामों की कहानी बॉलीवुड की फिल्म ‘सात उच्चके’ से मिलती-जुलती है। जिसमें किरदार किसी की संपत्ति हड़पने के लिए या किसी पर दबाव बनाने के लिए या किसी को जेल भेजने के लिए एक काल्पनिक घटना को कहानी बनाकर पुलिस के सामने इस तरह प्रस्तुत करता है कि वो तथ्यों के आधार पर बिल्कुल सच लगे। इसके बाद निर्दोष व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराकर उसे जेल भेज दिया जाता था। फिर खेल शुरू होता था जेल जाने वाले व्यक्ति को अपने इशारों में नचाने का। इसी तर्ज पर उसने फर्जी मामलों में फंसाए गए लोगों की जमीन अपने नौकरों के नाम कराई।
हसीनाओं से हनीट्रैप फिर मुकदमा दर्ज
यशपाल तोमर फर्जी मुकदमों में फंसा कर यूपी, हरियाणा, दिल्ली और उत्तराखण्ड में विवादित संपत्ति को हड़पने में माहिर बन गया था। भू-माफिया यशपाल तोमर की नजर हमेशा उन संपत्तियों पर रहती थी जिन पर विवाद रहता था। इसके लिए वो अपने गैंग की तीन लड़कियों को आगे करता था। इसके बाद ये तीनों लोगों को अपने हनी ट्रैप में फंसाकर उनकी संपत्ति पर कब्जा तो करवाती ही थी साथ ही फर्जी मुकदमें दर्ज करवाती थी। बताया जा रहा है कि इन तीनों लड़कियों ने पीड़िता बनकर पश्चिमी उप्र के अलावा उत्तराखण्ड और राजस्थान में 12 दुष्कर्म के मुकदमें दर्ज करवाए हैं। जिन लड़कियों के जरिए भू-माफिया यशपाल तोमर ने निर्दोष लोगों को जेल भिजवाया उनके नाम रेशमा, शीतल और किरन हैं। शीतल नाम की लड़की ने थानों में सात लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज करवाए। रेशमा ने ऋषिकेश में दुष्कर्म का मुकदमा और किरन ने राजस्थान में मुकदमा दर्ज करवाए हैं। ये तीनों फर्जी मुकदमें दर्ज करवाने के बाद आज तक किसी को नहीं मिली है। उत्तराखण्ड की एसटीएफ को इन तीनों की सरगर्मी से तलाश है। पता चला है कि मुकदमें दर्ज करवाने के लिए भू-माफिया यशपाल तोमर का साथ देने के लिए पुलिस वाले भी शामिल रहते थे। इनमें मेरठ में इंस्पेक्टर रहे सुभाष अत्री को मेरठ एसएसपी ने सस्पेंड कर दिया तो रिटायर्ड इंस्पेक्टर ऋषि राम कटारिया पर जांच शुरू हो गई है। उत्तराखण्ड की एसटीएफ अभी भी कई खाकीधारियों की जांच कर रही है।
बात अपनी-अपनी
यह मामला प्रदेश से बाहर का है। जिस भी कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ रही है उसे अपनाया जा रहा है। हमारे प्रदेश का कुछ मामला होगा तो फिर कानून के अनुसार ही काम होगा। प्रदेश हित में उचित कार्रवाई की जाएगी।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड
भूमि घोटाला तो बहुत दूर की बात है उत्तर प्रदेश में हमारी कोई जमीन नहीं है न ही कोई हमारी संपत्ति है। इसके अलावा मेरे परिवार के सदस्य जो बहुगुणा फेमिली से संबंधित है उन पर भी कोई संपत्ति यूपी में नहीं है। रही बात अनिल राम और साधना राम की मेरा इन दूर के रिश्तेदारों से कोई मतलब नहीं है। उनका जमीन का कारोबार है वह बिजनेस मैन हैं। अगर उनकी कोई संपत्ति होगी तो उनकी ही किसी कंपनी के नाम
होगी।
विजय बहुगुणा, पूर्व मुख्यमंत्री
भाजपा सरकार के संरक्षण में भू-माफिया और नौकरशाही की मिलीभगत चिंताजनक है। इस मिलीभगत से अनुसूचित जाति के व्यक्तियों की जमीन हड़पने के आरोप गंभीर है। इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए। हरिद्वार में तैनात रहे दो आईएएस और आईपीएस अधिकारी के परिजनों का नाम इस मामले में सामने आना गंभीर बात है। हरिद्वार में समय समय पर जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान के रूप में तैनात रहे अधिकारियों के भू-माफिया के साथ मिलीभगत जांच का विषय है। भाजपा सरकार में दबा कुचला और कमजोर वर्ग पीड़ित और असहाय महसूस कर रहा है। इस मामले में सरकार को उचित स्तरीय जांच करनी चाहिए। जांच में जो भी दोषी पाया जाए उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
करण माहरा, प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस
यशपाल तोमर की राज्य में सारी संपत्तियों का पता लगाया जा रहा है। अब तक करीब 153 करोड़ की संपत्ति हरिद्वार जिले में सामने आई है जिसे जब्त कर लिया गया है। ऐसे भू-माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल जांच जारी है।
अशोक कुमार, डीजीपी उत्तराखण्ड
यशपाल तोमर कार चोरी के फर्जी कागजात बनवाने से लेकर भूमि तथा गैर कानूनी काम में शामिल रहा है। अब से करीब 20 साल पहले उसके खिलाफ सन 2002 में हत्या की कोशिश, धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज हुआ था। उस मामले में आरोपी दिल्ली से सटे हरियाणा के जिला गुरुग्राम से चोरी गाड़ी के फर्जी दस्तावेज किसी और के नाम से बनवा लिए थे। उसके बाद बागपत के किसी शख्स के पहचान पत्र के आधार पर कोर्ट में गैंग के किसी अन्य सदस्य को पेश करके कार तो रिलीज कराई ही थी साथ ही साथ खुद के मुकदमें से बरी हो गया था। हरिद्वार की एक कोर्ट से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर वो एनकाउंटर के दौरान जब्त मारुति कार को हरिद्वार पुलिस से रिलीज करा ले गया। गंभीर तो यह है कि उस कार के चेचिस और इंजन नंबर से जानकारी हासिल की गई तो उस कार के बारे में पता चला कि कार चोरी का मुकदमा 2 सितंबर 2001 को सिटी कोतवाली गुरुग्राम में दर्ज था।
अजय सिंह, एसएसपी, एसटीएफ