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Uttarakhand

मसूरी में कांटे का मुकाबला

पहाड़ों की रानी का खिताब पाई मसूरी में बाहरी चमक-दमक की कमी नहीं है, लेकिन तह में जाने पर असलियत इस चमक-दमक से कोसों दूर है। यहां का ग्रामीण क्षेत्र बुनियादी सुविधाओं तक से महरूम है। सड़क और पेयजल की इस विधानसभा क्षेत्र में भारी किल्लत है। धामी सरकार में मंत्री और स्थानीय विधायक गणेश जोशी की पहचान एक जमीनी नेता की जरूर नजर आती है किंतु पेयजल, सड़क और स्वास्थ्य को लेकर उनकी परफॉरमेंस से जनता इस दफा खासी आक्रोशित है। क्षेत्र में एक बड़ा मुद्दा शिफन कोर्ट मलिन बस्ती का है जिसे अदालती आदेश पर स्थानीय प्रशासन ने ध्वस्त तो कर दिया लेकिन इस बस्ती के 85 परिवारों के पुनर्वास के लिए अभी तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है

उत्तराखण्ड में मसूरी विधानसभा का एक विशेष स्थान है। भारत में अंग्रेजी साम्राज्य में कई हिल स्टेशनों की स्थापनाएं की गई थी जिसमें 1824 में सबसे पहले मसूरी को ही अंग्रेजों द्वारा बसाया गया था। ग्रीष्मकाल के दौरान अंग्रेज अपनी प्रशासनिक व्यवस्था के लिए इस नगर का उपयोग करते थे। एक तरह से यह नगर अंग्रेजों की राजधानी जैसा ही बन चुका था। कालांतर में देश भर के राजे-रजवाड़े और सामंतों तथा अमीरों के आरामगाह के तौर पर मसूरी विकसित होता चला गया। आज पूरे विश्व भर के पर्यटन स्थलों में मसूरी का अपना एक विशेष स्थान है।
पर्यटक नगरी होने के अलावा मसूरी उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में हुए पुलिसिया दमनचक्र का गवाह भी रही है। मसूरी गोली कांड के बाद पृथक राज्य आंदोलन की समूचे उत्तराखण्ड में लहर उठी थी। इसके अलावा पृथक उत्तराखण्ड राज्य की लड़ाई को लेकर गठित उत्तराखण्ड क्रांतिदल की स्थापना भी इसी मसूरी नगर में की गई। यहां तक कि अलग उत्तराखण्ड राज्य की अवधारणा को पहली बार सामने रखने का काम भी मसूरी में कॉमरेड पीसी जोशी द्वारा एक सम्मेलन में किया गया था।

कई साहित्यिक और रंगकर्मियों तथा समाज में अपना विशेष स्थान रखने वाले व्यक्तियों की कर्मभूमि और जन्मभूमि भी मसूरी रहा है। विख्यात रंगकर्मी टॉम अल्टर और प्रसिद्ध साहित्यकार रस्किन बॉन्ड भी मसूरी की थाती रहे हैं। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही मसूरी विधानसभा का अस्तित्व रहा है। देहरादून जनपद में चकराता, पछुवादून तथा देहरादून के अलावा मसूरी विधानसभा हुआ करती थी। शुरुआती दौर में मसूरी एक बड़ी विधानसभा हुआ करती थी। उत्तराखण्ड बनने के बाद फिर से विधानसभाओं का पुनर्गठन किया गया जिसमें मसूरी सीट के कई हिस्से पृथक विधानसभा सीट में बदल दिए गए। अब यह विधानसभा सीट देहरादून नगर का कौलागढ़, और राजपुर तक सीमित रह गई है। मसूरी विधानसभा क्षेत्र ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड को कई राजनीतिक हस्तियों को विधायक चुनकर सदन में भेजा है। 1957 में इसके पहले विधायक स्वर्गीय गुलाब सिंह बने।

गुलाब सिंह इस क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर 1957 से लेकर 1969 तक लगातार चार बार विधायक रहे तो 1974 में कांग्रेस के शांति प्रपन्न शर्मा विधायक निर्वाचित हुए। वर्ष 1977 में देश की राजनीति में जनता पार्टी की जबर्दस्त लहर चली और कांग्रेस के कई दिग्गज चुनाव हार गए। इसी दौरान जनता पार्टी के उम्मीदवार रणजीत सिंह रावत ने शांति प्रपन्न शर्मा को करारी शिकस्त देकर इस सीट पर अपना कब्जा किया। 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता ब्रह्मदत्त ने मसूरी से चुनाव जीत कर इस सीट को फिर से कांग्रेस के खाते में दर्ज किया। 1985 में फिर से कांग्रेस के ही किशोरी लाल सकलानी ने चुनाव जीता और विधायक निर्वाचित हुए।

1989 के विधानसभा चुनाव में पूर्व में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर पहली बार विधायक बने रणजीत सिंह रावत फिर से निर्दलीय चुनाव में उतरे और कांग्रेस के किशोरी लाल सकलानी को भारी मतों के अंतर से हराया। 1991 में राम मंदिर आंदोलन का प्रभाव समूचे उत्तर प्रदेश में इस कदर पड़ा कि भाजपा के एक अनजान से चेहरे राजेन्द्र शाह ने कांग्रेस के दिग्गज नेता किशोरी लाल सकलानी को करारी मात दे डाली। 1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में भी वे ही यहां से विधायक बने। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद मसूरी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने अपनी वापसी की और राज्य आंदोलनकारी जोत सिंह गुनसोला 2002 में पहली बार विधायक बने। 2007 में फिर से गुनसोला विधायक का चुनाव जीते। वर्ष 2012 में भाजपा के गणेश जोशी मसूरी सीट से चुनाव में उतरे और गुनसोला को करारी हार देते हुए 2017 में फिर से चुनाव जीत कर विधायक निर्वाचित हुए। धामी सरकार में गण्ेाश जोशी सैनिक कल्याण और औद्योगिक विकास जैसे बड़े मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे हैं।

पूरे मसूरी विधानसभा क्षेत्र में समस्याओं का अंबार है। सबसे ज्यादा खस्ताहाल क्षेत्र की ग्रामीण सड़कें हैं। क्यारा शेरकी सड़क मार्ग जो कि शेरकी से शुरू होकर किरगी, सरखेत चिन्यारी, कुलैत समरोली भैंसवाड़ मितली मानसिंह बाड़ा गांव के लिए पूर्व तिवारी सरकार के समय बनाया गया था, आज पूरी तरह टूट- फूट चुका है। स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार का एकमात्र साधन खेती-बाड़ी ही है लेकिन इस सड़क की दुर्दशा के चलते उनको अपने उत्पादन को मंडी अथवा स्थानीय बाजार तक में ले जाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। कई बार इस मार्ग की मरम्मत के लिए जनता मांग कर चुकी है लेकिन इसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाया है। हैरत की बात यह है कि इन गांवों के ग्रामीणों ने पेयजल, स्वास्थ्य आदि की कभी कोई मांग नहीं की, मांग केवल इस मार्ग की मरम्मत की ही है जो पूरी नहीं हो पाई है। क्यारा से एक अन्य मार्ग जो कि धनौल्टी रोड से जोड़ने के लिए प्रस्तावित था, का शिलान्यास विधायक गणेश जोशी द्वारा अपने मौजूदा कार्यकाल में जरूर किया लेकिन इस पर काम आज तक शुरू नहीं हो पाया है।

देहरादून नगर के लिए स्मार्ट सिटी योजना के तहत करोड़ों के काम हो रहे हैं जिनमें पेयजल योजना भी प्रमुख है। लेकिन इसी देहरादून नगर से सटे मसूरी क्षेत्र के बगरियाल गांव में पेयजल समस्या के हालात बेहद चिंताजनक हैं। इस गांव के लिए पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में करोड़ांे की पेयजल योजना स्वीकृत हुई थी। इस योजना पर आज तक कोई काम नहीं हुआ। थक-हार कर ग्रामीणों ने सामूहिक धन एकत्रित कर नदी में पम्प लगाकर अपने गांव के लिए पानी की व्यवस्था की है। इसी तरह से विलापुर कांदली गांव में टौंस और संतला देवी नदियों के बावजूद ग्रामीणों को चौबीस घंटे में महज दो घ्ंाटे ही पीने का पानी मिल पा रहा है। ग्रामीण आंदोलन भी कर चुके हैं लेकिन आज तक इसका निराकरण नहीं हो पाया है।
इसी विलापुर कांदली गांव के लिए एक लाख की लागत से एक ओवरहेड टैंक बनाया गया है जिनमें आज तक पानी नहीं आ पाया है। स्थानीय निवासियों का आरोप है कि निर्माण कार्य में जमकर भ्रष्टाचार के चलते टैंक में पानी एकत्र नहीं हो पा रहा है जिस कारण इसका उपयोग ही नहीं हो रहा है। इसी क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी समस्या आवागमन की है। क्षेत्र के लिए परिवहन की व्यवस्था नहीं है। अपने वाहनों के अलावा पैदल ही ग्रामीणों को आवागमन करना पड़ रहा है। आज तक इस क्षेत्र में सिटी बस या छोटी सवारी गाड़ियों की व्यवस्था नहीं हो पाई है। एक अन्य गांव चांदमारी में भी पेयजल की समस्या बनी हुई है। इस गांव में भी प्राकृतिक स्रोतों से ही पीने का पानी मिल पा रहा है।

विधायक और सरकार में कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के आवासीय क्षेत्र बकरालवाला औेर पथरियापीर में दो पुल क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। इन दोनों ही पुलों से आवागमन होता है लेकिन इनकी मरम्मत अभी तक नहीं हो पाई है। स्वयं मेयर सुनील गामा भी इसी क्षेत्र में रहते हैं, बावजूद इन पुलों की मरम्मत न होना कई सवाल खड़े करता है। पथरियापीर के पुल की मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति किए जाने के आरोप भी लग रहे हैं। मसूरी विधानसभा क्षेत्र में मलिन बस्तियों की भरमार हैं। वर्तमान में यहां की एक ऐसी ही बस्ती शिफन कोर्ट के निवासी अपने विधायक गणेश जोशी से खासे नाराज हैं। शिफन कोर्ट के 85 गरीब परिवारों को दो वर्ष पूर्व एक ही रात में बेघर करने के लिए सरकार ओैर समूचा प्रशासन कार्यवाही करता नजर आया था। तब कोर्ट के आदेश पर 85 परिवारों के खिलाफ रातोंरात कार्यवाही की गई थी। तकरीबन दो बरस बीत जाने के बावजूद इन परिवारों का पुनर्वास तक नहीं हो पा रहा है, जबकि स्थानीय विधायक गणेश जोशी ने नए आवास बनाकर पुनर्वास किए जाने का वादा किया था।

हैरत की बात तो यह हेै कि देहरादून की कुछ अन्य मलिन बस्तियों को बचाने के लिए भाजपा के चार विधायक त्रिवेंद्र रावत सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे। इन बस्तियों को अतिक्रमित मानते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने ध्वस्त करने के आदेश भी जारी किए थे। बावजूद सरकार द्वारा तीन वर्ष का समय इन अवैध बस्तियों को दिया गया था जिसकी समय सीमा पूरी होने के बाद फिर से तीन वर्ष आगे बढ़ा दिया गया है। लेकिन मसूरी के शिफन कोर्ट के 85 परिवारों के लिए सरकार ने अभी तक कोई योजना नहीं बनाई है। शिफन कोर्ट का पूरा मामला सरकार ओैर प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय जन प्रतिनिधियों की संवेदनहीनता का सबसे बड़ा प्रमाण है।

आजादी से पूर्व शिफन कोर्ट के परिसर में स्थानीय कुली और रिक्शे चालकों की बस्ती आबाद थी। यह क्षेत्र नगर से बाहरी क्षेत्र में था। अंग्रेजी प्रशासन के नियमों के अनुसार कुली
मजदूरी और रिक्शा चालकों के लिए नगर से बाहर ही बसावट तय थी। आजादी के बाद शिफन कोर्ट तो बंद हो गया लेकिन इन बस्तियों को हटाया नहीं गया। 19 अगस्त 2020 में जब कोरोना की पहली लहर अपने चरम पर थी, तब जिला प्रशासन द्वारा अदालती आदेश का हवाला देते हुए बस्ती को चौबीस घंटों का भी समय नहीं दिया और बुल्डोजर चलाकर इसे ध्वस्त कर दिया गया। इस कार्यवाही में बस्ती के नागरिकों को अपने आवासों से सामान तक निकालने का समय नहीं दिया गया। पूरी बस्ती को छावनी में तब्दील करके कार्यवाही को अंजाम दिया गया। तब से लेकर आज तक शिफन कोर्ट के निवासी दर-दर भटक रहे हैं।

इस मामले में जमकर राजनीति भी की गई है। मसूरी नगर पालिका प्रशासन और स्थानीय कांग्रेस नेता गोदावारी थापली पर निवासी राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं। ‘हंस
फाउंडेशन’ द्वारा शिफन कोर्ट बस्ती के निवासियों के लिए आवास बनाकर देने की की घोषणा की गई लेकिन जमीन सरकार द्वारा दिए जाने की बात की शर्त रखी। हैरत की बात यह है कि प्रशासन और नगर पालिका अभी तक जमीन देने का प्रस्ताव तक नहीं दे पाई है। यहां तक कि गोदावरी थापली जो कि अपनी निजी भूमि देने की बात कर रही थी वे भी अभी तक भूमि देने में कोई कार्यवाही नहीं कर पाई है। अब जानकारी मिल रही है कि स्थानीय विधायक गणेश जोशी ने गढ़ी कैंट में शिफन कोर्ट बस्ती के नाम से भूमि और आवास का शिलान्यास किया है, जबकि बस्ती वासियांे की मांग मसूरी में ही जमीन देने की रही है।

‘शिफन कोर्ट बचाओ समिति’ के सचिव संजय टम्टा कहते हैं कि ‘जब कोरोना महामारी का बड़ा दौर चल रहा था और हर आदमी इससे डरा हुआ था कि वह अपने घरांे से बाहर नहीं आ रहा था उस समय देहरादून जिला प्रशासन ने हमारे 85 परिवारों को चौबीस घंटे का समय भी नहीं दिया और हमारी पूरी बस्ती को बुल्डोजर चलाकर हमें बेघर कर दिया। हमें इतना डराया गया कि हमें शपथ पत्र में साइन करने को मजबूर किया गया जिसमें लिखा था कि हम इस कार्यवाही के विरोध में किसी न्यायालय में नहीं जाएंगे। आज बस्ती को उजाड़े हुए डेढ़ साल का समय हो गया है लेकिन आज तक उस जगह कोई भी निर्माण नहीं किया जा सका है। ‘हंस फाउंडेशन’ ने हमारे लिए मकान बनाने की बात कही लेकिन जमीन सरकार और प्रशासन को ही देनी है जो कि आज तक जानबूझ कर नहीं दी जा रही है। हमें खबर मिली है कि विधायक और मंत्री गणेश जोशी जी ने हमारे लिए मकान बनाने के लिए देहरादून के गढ़ी कैंट में शिलान्यास किया है जिसकी हमें ही खबर नहीं है। जबकि हम चाहते हैं कि हमारे लिए मसूरी में ही जमीन दी जाए।’

स्थानीय पत्रकार विकास चौहान का कहना है कि ‘शिफन कोर्ट में 85 परिवार आजादी से पहले के बसे हुए थे। सरकार ने रोपवे के नाम पर होटल कारोबारी और जन प्रतिनिधियों के साथ मिलकर एक षड्यंत्र के तहत रातोंरात इन परिवारों को हटा दिया। चौबीस घंटे की मोहलत तक नहीं दी गई, जबकि हाईकोर्ट ने इन परिवारों के लिए स्टे भी दिया था। इन परिवारों के लिए किसी जनप्रतिनिधि ने संवदेना तक नहीं दिखाई औेर हाईकोर्ट के आदेश के नाम पर इन परिवारों को उजाड़ा गया है। अब इन परिवारों को बसााए जाने के लिए नगर पालिका और विधायक के बीच मामले को लटकाया जा रहा है।’

मसूरी विधानसभा सीट पर भाजपा का 2012 से लगातार कब्जा बना हुआ है। भाजपा विधायक और केैबिनेट मंत्री गणेश जोशी अपने क्षेत्र में जनता से सीधे संवाद और जुड़ाव के चलते बेहद लोकप्रिय नेता माने जाते हैं। कोरोना काल में जहां भाजपा के कई विधायक अपने- अपने घरों में दुबके बैठे थे वहीं गणेश जोशी लगातार अपने क्षेत्र में सामाजिक कार्यों और करोना पीड़ितों को राहत दिलवाने में लगातार सक्रिय रहे जिसके चलते वे स्वयं दो बार कोरोना से संक्रमित हुए हैं। अपने क्षेत्र में कई कार्यक्रमों और भाजपा के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं तक जोशी की मजबूत पकड़ बनी हुई है।

1958 में जन्मे गणेश जोशी 1976 से 1984 तक भारतीय सेना में सैनिक रह चुके हैं। इनके पिता भी भारतीय सेना से रिटायर्ड हैं। 1984 में जोशी भाजपा से जुड़े और 1985 में देहरादून शहर के भाजपा जनता युवा मोर्चा के महामंत्री बने। 1989 में देहरादून के भाजपा युवा मोर्चा के उपाध्यक्ष और 1994 में अध्यक्ष बने। 1998 में भाजपा के देहरादून शहर के मंत्री 2000 में देहरादून के ही जिला महामंत्री मनोनीत हुए। 2007 में राजपुर सीट से पहली बार चुनाव लड़े ओैर जीत हासिल की। 2009 में विधानसभा की आवास समिति के चेयरमैन के पद पर कार्य किया तो 2012 में राजपुर सीट सुरक्षित होने पर मसूरी सीट से चुनाव में उतरे और जीत हासिल की।

2017 में फिर से मसूरी सीट से ही चुनाव लड़े ओैर फिर से जीत हासिल करके विधायक निर्वाचित हुए। 2021 में तीरथ सिंह रावत की अल्पकालीन सरकार में पहली बार कैबिनेट मंत्री और वर्तमान में धामी सरकार में भी कैबिनेट मंत्री हैं। हरीश रावत सरकार के समय चर्चित शक्तिमान घोड़ा प्रकरण से देशभर में गणेश जोशी खासे चर्चित रहे हैं। हालांकि अब वे आरोपों से मुक्त हो चुके हैं। 2022 के चुनाव में भाजपा से मसूरी सीट पर अन्य कोई खास दावेदार नहीं हैं इसलिए गणेश जोशी की उम्मीदवारी तय मानी जा रही है। भाजपा ओैर संघ के गोपनीय सर्वे में भी गणेश जोशी को बढ़त मिलती बताई जा रही है। इससे यह माना जा रहा है कि गणेश जोशी मसूरी सीट से भाजपा के उम्मीदवार होंगे।

कांग्रेस पार्टी में मसूरी से तीन दावेदार सबसे ज्यादा मजबूत दिखाई दे रहे हैं। जिनमें दो बार के विधायक रहे जोत सिंह गुनसोला और एक बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी गोदावरी थापली का नाम सबसे ज्यादा चर्चाओं में है। कांग्रेस में युवा नेता के तौर पर मसूरी क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाले अनिल नेगी भी इस बार टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। राज्य आंदोलनकारी रहे जोत सिंह गुनसोला कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में जाने जाते हैं। गुनसोला दो बार मसूरी नगर पालिका के चेयरमैन रह चुके हैं। 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में गुनसोला भाजपा के पूर्व एमएलसी और अंतरिम सरकार में पर्यटन और संस्कृति मंत्री नारायण सिंह रावत को करारी मात देकर पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। इस चुनाव में गुनसोला को 50 प्रतिशत से भी ज्यादा मत प्राप्त हुए थे। 2007 में गुनसोला को क्षेत्र की जनता ने अपना पूरा समर्थन देते हुए उनको फिर से चुनाव में जीत दिलाई। हालांकि इस बार गुनसोला का मत प्रतिशत 2002 से कम रहा।

2012 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने गुनसोला पर भरोसा जताते हुए उनको अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन इस चुनाव में गुनसोला को भाजपा के गणेश जोशी ने 9776 मतों से पराजित कर डाला। 2022 के चुनाव में गुनसोला फिर से कांग्रेस पार्टी से अपनी दावेदारी जता रहे हैं लेकिन 67 वर्ष की आयु होने के चलते गुनसोला पर दबाव भी बना हुआ है। कांग्रेस पार्टी के भीतर युवाओं को चुनाव में टिकट देने की मांग के चलते गुनसोला का विरोध कांग्रेस के भीतर होने की आशंका है। कांग्रेस की दूसरी मजबूत दावेदार गोदावरी थापली हैं। गोदावरी मसूरी विधानसभा क्षेत्र के राजनीतिक परिवार से हैं। कांग्रेस नेता उपेंद्र थापली और गोदावरी थापली की इस क्षेत्र में एक बड़े नेता के तौर पर पहचान है। उपेंद्र थापली और गोदावरी थापली दोनों ही कांग्रेस पार्टी से बगावत करके चुनाव भी लड़ चुके हैं।

जहां 2007 में उपेंद्र निर्दलीय चुनाव में खड़े हुए और 8 हजार से भी ज्यादा मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे। 2012 में उपेंद्र ने अपनी पत्नी गोदावरी थापली को कांग्रेस से टिकट न मिलने पर चुनाव में खड़ा किया। 9 हजार से भी ज्यादा मत पाकर तीसरे स्थान पर रही। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 2012 में अगर गोदावरी थापली कांग्रेस से बगावत करके चुनाव नहीं लड़ती तो गुनसोला की हार होना असंभव था। 2017 में कांग्रेस ने गोदावरी थापली को उम्मीदवार बनाया लेकिन इस चुनाव में गोदावरी थापली को गणेश जोशी ने बड़े मतों के अंतर से हरा दिया। दो बार ग्राम प्रधान रह चुकी गोदावरी थापली वर्तमान में मसूरी क्षेत्र से कांग्रेस की बड़ी नेता मानी जाती हैं। वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महासचिव गोदावरी थापली जिला नियोजन कमेटी की सदस्य भी हैं।

कांग्रेस पार्टी के तीसरे बड़े दावेदार अनिल नेगी हैं। 1998 से कांग्रेस पार्टी से जुड़े और युवा कांग्रेस के जिला महासचिव, 2000 में देहरादून जिले के महासचिव ओैर देहरादून महानगर महासचिव पद पर काम कर चुके नेगी 2007 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी में सचिव, 2011 में प्रदेश कांग्रेस संगठन सचिव के पद पर काम कर चुके हैं। अनिल नेगी दावेदारी जता चुके हैं। इनकी दावेदारी से कांग्रेस में टिकट बंटवारे से त्रिकोणीय मामला बन गया है। मसूरी सीट पर बूथ लेवल कार्यकर्ताओं में नेगी की मजबूत पकड़ बताई जाती है। इनकी सुपुत्री स्वाति नेगी छात्र संघ चुनाव में बड़ी जीत हासिल कर चुकी है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के युवा कार्यकर्ता नेगी को ही टिकट दिए जाने की मांग कर रहे हैं।

आम आदमी पार्टी और उत्तराखण्ड क्रांति दल इस विधानसभा सीट पर खास सक्रिय नजर नहीं आते हैं। हालांकि आप नेताओं का कहना है कि पार्टी हर कीमत पर यहां से अपना उम्मीदवार उतारेगी लेकिन वह कौन होगा यह अभी तक तय नहीं है। राज्य के सबसे मजबूत क्षेत्रीय दल रहे उक्रांद का इस सीट पर अभी तक कोई दमदार प्रत्याशी न होने के चलते इस बार का चुनाव भी भाजपा-कांग्रेस के बीच लड़ा जाना तय है।

 

मैं मसूरी विधानसभा क्षेत्र से दावेदारी कर रहा हूं। मेरी दावेदारी का सबसे बड़ा आधार इस क्षेत्र में जातिगत समीकरण है जिसमें मैं एकदम सही बैठता हूं। इस विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मणों के 22 प्रतिशत वोट हैं, जबकि ठाकुरों के 33 प्रतिशत वोट हैं। जोत सिंह गुनसोला जी तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं। उनके पास अब तो न टीम है और न ही कोई विजन। उनकी एक ही बात है कि ‘ह्नैजालू’ के अलावा वे कोई काम नहीं कर पाए हैं। थापली परिवार हमेशा से कांग्रेस पार्टी से बगावत करता रहा है। 2007 और 2012 में भी थापली परिवार कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ चुका है जिनके कारण गुनसोला जी की हार हुई है। मसूरी विधानसभा क्षेत्र के पांच वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी है तो उसकी जिम्मेदारी भी थापली परिवार की ही है।
लक्ष्मण नेगी, कांग्रेस नेता

 

मैं लगातार धरातल से जुड़ कर काम कर रही हूं। 2017 में कांग्रेस पार्टी ने मुझे टिकट दिया था। मैं अपने क्षेत्र में चुनाव हारने के बावजूद काम करती रही हूं। कांग्रेस सरकार के समय हमने अपने क्षेत्र के लिए 200 करोड़ के काम करवाए, जबकि मैं चुनाव हारी हुई थी। मैं फिर से कांग्रेस पार्टी से दावेदारी कर रही हूं।
गोदावरी थापली, कांग्रेस नेता

 

आजादी के बाद मसूरी को अधिकारियों और नौकरशाहों के मौज का नगर तो बना दिया गया लेकिन पर्यटन को विकासित करने के लिए एक भी काम इस क्षेत्र के लिए नहीं किया गया है। अनियोजित निर्माण ओैर शासन की उदासीनता तो अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही बनी हुई थी लेकिन राज्य बनने के बाद इसके हालात और भी बदतर होते चले गए। मसूरी में जो भी सड़क और विकास के काम दिखाई दे रहे हैं वे सभी 1947 से पहले के ही है। एक भी नई सड़क इस नगर के लिए नहीं बनाई गई है। राज्य बनने के बाद एक छोटा बाईपास मार्ग जरूर बनाया गया है लेकिन इस नगर के लिए चार अन्य मार्गों के निर्माण का प्रस्ताव पास होने के बावजूद आज तक उनका कोई अता-पता नहीं है।
जय प्रकाश उत्तराखण्डी, वरिष्ठ पत्रकार और राज्य आंदोलनकारी

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