प्रेमनाथ का काला साम्राज्य/भाग-एक
प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी की भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग से ठीक उलट उत्तराखण्ड सरकार का राजस्व विभाग कैसे नटवरलाल ए.वी. प्रेमनाथ के हाथों की कठपुतली बना हुआ है और उसे संरक्षण दे रहा है इसका खुलासा ‘दि संडे पोस्ट’ के अगले अंक में विस्तार से होगा
अमीरों के ऐशगाह में तब्दील होते पहाड़ों में अनाप-शनाप जमीन खरीदना संभव नहीं है। बावजूद इसके प्रॉपर्टी डीलर और बिल्डर पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता का दोहन जमकर करते रहे हैं। दशकों से पहाड़ियों की जमीन पर बाहरियों का कब्जा बेरोक-टोक जारी है। अल्मोड़ा जिले में दिल्ली सरकार के एक मुलाजिम एवी प्रेमनाथ और उनकी पत्नी आशा यादव ने अपने एनजीओ ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ के माध्यम से ऐसा ही भारी फर्जीवाड़ा कर सीधे-सीधे कानून को ही चुनौती दे दी थी। एक तरफ जहां प्रदेश की कांग्रेस और भाजपा सरकार इस ‘नटवरलाल’ के काले कारनामों पर धृतराष्ट्र रूपी आंखें मूंदे रही तो वहीं दूसरी तरफ ‘दि संडे पोस्ट’ ने अपना पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए पिछले तेरह वर्षों से एक के बाद एक इसके घपले-घोटालों का पर्दाफाश किया। चाहे जनपद अल्मोड़ा के मैणी गांव में सैकड़ों नाली जमीन फर्जी तरीके से खरीदने का मामला हो या डांडा-कांडा गांव में सरकारी जमीन को नियम विरुद्ध कब्जाने के मामले हो, प्रेमनाथ शातिर अपराधी की तरह स्थानीय लोगों को प्रताड़ित कर उन्हें डराने-धमकाने और उनकी जमीनों को कब्जाता रहा। राजनेताओं और नौकरशाहों में अपनी पहुंच का इस्तेमाल करके छल और प्रपंच के सहारे दशकों तक यह बचता रहा है। जब भी किसी ने निष्पक्ष जांच की तो प्रेमनाथ ने उसे फर्जी मामलों में फंसाकर कानूनी गिरफ्त से बच निकलने की असफल कोशिश की। लेकिन इस बार केंद्र सरकार के शिकंजे में शिकारी फंस चुका है। दिल्ली की एंटी करप्शन टीम की जांच के आधार पर केंद्र सरकार ने प्रेमनाथ के भ्रष्टाचार का उपचार कर ‘जीरो टॉलरेंस’ के दावे को सच कर दिखाया है। इस प्रकरण से प्रधानमंत्री मोदी की ‘ना खाऊंगा न खाने दूंगा’ बात को भी साबित कर दिया है
कहते हैं कि देर है अंधेर नहीं। ऊपर वाले की जब लाठी पड़ती तो वह आवाज नहीं करती है और ना ही मारते हुए दिखती है। ऐसा ही हुआ दिल्ली सरकार मे महत्वपूर्ण पद पर तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ। दिल्ली, आंध्र प्रदेश, उत्तराखण्ड सहित कई राज्यों में झूठ-फरेब और छल प्रपंच के बल पर जमकर लूट मचाने और अकूत संपत्ति का साम्राज्य खड़ा करने वाले इस भ्रष्ट अधिकारी पर आखिर केंद्र सरकार की गाज गिर ही गई। अपनी काली करतूतों के चलते अक्सर चर्चा में रहने वाला यह अधिकारी एवी प्रेमनाथ है। 1997 बैच के दिल्ली, अंडमान, निकोबार, आइसलैंड सिविल सर्विस (दानिक्स) अधिकारी एवी प्रेमनाथ पर भ्रष्टाचार के मामले सिद्ध हो जाने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 9 अक्टूबर को उसे तत्काल प्रभाव से जबरन रिटायर कर दिया है। तीन महीने का अग्रिम वेतन देकर सेवा तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी गई है। यह वही प्रेमनाथ है जिसने अल्मोड़ा जिले के डांडा-कांडा और मैणी गांव में छल, कपट कर प्लीजेंट वैली फाउंडेशन के माध्यम से प्रपंच रचा। फर्जी तरीके से सैकड़ो नाली जमीन खरीदी और सरकारी जमीन पर अपने एनजीओ की बेशकीमती इमारत खड़ी कर दी।
भ्रष्टाचार में गहरे तक धंसे एवी प्रेमनाथ को दिल्ली की नौकरशाही में ‘नटवरलाल’ की संज्ञा तक दे दी गई थी। उस पर कुल पांच मामले दर्ज है। गत् वर्ष इस अधिकारी ने देवभूमि उत्तराखण्ड में एक नाबालिग बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न की घटना को अंजाम देकर अधिकारी वर्ग को शर्मसार कर दिया था। पॉस्को एक्ट के तहत अल्मोड़ा जेल में दो माह तक रहने के बाद जब वह जमानत पर दिल्ली आया तब तक उसे निलंबित किया जा चुका था। निलंबन से पहले प्रेमनाथ दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग में तैनात था। केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने 9 अक्टूबर को प्रेमनाथ को जबरन सेवानिवृत करते हुए अपने आदेश में कहा है कि ‘वह प्रेमनाथ को सार्वजनिक हित में सेवा से सेवानिवृत करने के लिए मौलिक नियमों के नियम 56 (जे) के उप नियम 1 और सीसीएस (पेंशन) नियम 1965 के नियम 42 द्वारा प्रदत्त अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहे हैं। नियमों के अनुसार केंद्र सरकार को सार्वजनिक हित में ईमानदारी की कमी और अप्रभविता के आधार पर सरकारी अधिकारियों को समय से पहले सेवानिवृत करने का पूर्ण अधिकार है।’
गौरतलब है कि ‘दि संडे पोस्ट’ वर्ष 2010 से ही एवी प्रेमनाथ के काले कारनामों को उजागर करता आया है। अल्मोड़ा जिले के डांडा कांडा में बने उसके प्लीजेंट वैली फाउंडेशन का सच कई बार उजागर किया गया। जिसमें बताया गया की फाउंडेशन में गरीब बच्चों का स्कूल चलाने के नाम पर कैसे काले धन को खपाया जा रहा है। इस का संज्ञान लेते हुए दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्यूरो ने अल्मोड़ा के डांडा- कांडा में जाकर स्थलीय निरीक्षण कर संपत्ति का मूल्यांकन किया। जहां प्रारंभिक मूल्यांकन से पता चला है कि परियोजना में 12.31 करोड़ रुपए का भारी निवेश किया गया है। एंटी करप्शन ब्यूरो ने अपनी जांच में प्रेमनाथ को कुल सेवा काल के दौरान (1 मई 1998 से 31 मार्च 2023 का वेतन भत्ता आदि) सबकुछ मिलाकर कुल 1 करोड़ 75 लाख के आय का आकलन किया है। ऐसे में 10 करोड़ रुपया कहा से और कैसे जुटाया गया यह जांच का विषय है। साथ ही एवी प्रेमनाथ के परिवार के सदस्यों के नाम पर भी उत्तराखण्ड के साथ ही देश के कई राज्यों में अकूत संपत्तियां अर्जित करने की जानकारी भी सामने आ चुकी है। एंटी करप्शन ब्यूरो को यह जांच आगे जारी कर संपत्ति का सही मूल्यांकन किया जाना था जिसमें प्लीजेंट वैली फाउंडेशन के निर्माण कार्यों की लागत कई गुना बढ़ने की संभावना थी लेकिन उत्तराखण्ड सरकार के असहयोग चलते जांच टीम जांच को आगे बढ़ाने में सफल नहीं हो सकी। जांच में प्रेमनाथ की नामी-बेनामी अकूत संपत्तियों का कच्चा चिठ्ठा सामने आने के बाद एंटी करप्शन ब्यूरो ने 16 जून 2023 को भ्रष्टाचार उन्मूलन एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। याद रहे कि एंटी करप्शन टीम ने अपनी जांच में जिस 100 नाली जमीन का रहस्य खोला है ‘दि संडे पोस्ट’ इस मामले को अल्मोड़ा के ‘मैणी गांव का जमीन घोटाला’ कह प्रकाशित कर चुका है। डांडा-कांडा के साथ ही मैणी गांव में एवी प्रेमनाथ और उनकी पत्नी आशा यादव उर्फ आशा प्रेमनाथ के द्वारा किए गए घपले घोटालों को अखबार द्वारा सिलसिलेवार उजागर किया जाता रहा है।

वर्ष 9-अंक 32 दिनांक 20 जून 2010 ‘जमीन की लूट’: अल्मोड़ा के डांडा-कांडा निवासी बिशन सिंह अधिकारी 21 नवंबर 2008 को एक पत्र देश की राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को लिखते हैं। पत्र की एक कॉपी ‘दि संडे पोस्ट’ को भी भेजी जाती है। पत्र में लिखा है ‘डांडा-कांडा स्थित उनकी पुश्तैनी जमीन पर दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कब्जा कर लिया है। जमीन पर विशालकाय भवन बनाए जा रहे हैं। बेनाप जमीन कब्जा करने, अवैध तरीके से पेड़ काटने, गांव की पेयजल लाइन तोड़कर पेयजल आपूर्ति अवरुद्ध करने और जेसीबी चलाकर वन विभाग की जमीन पर रास्ता बनाने से हो रही जनहानि को रोका जाए।’ पत्र के आधार पर ‘दि संडे पोस्ट’ टीम स्थलीय निरीक्षण करने जब डांडा- कांडा पहुंची तो उपरोक्त आरोप सही पाए गए। प्रथम दृष्टया स्पष्ट हो रहा था कि जिस जमीन पर भवन बनाए जा रहे हैं वहां खूब अनियमितताएं हो रही हैं। देखा गया कि वहां नवनिर्मित चार आलीशान भवनों को एक स्कूल का नाम दिया गया। जिसका संचालन दिल्ली की एक स्वयं सेवी संस्था ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ कर रही थी। यहां एनजीओ द्वारा वन विभाग की जमीन पर अवैध तरीके से न केवल सड़क का निर्माण कार्य चल रहा था, बल्कि जेसीबी मशीन चलाकर सैकड़ों पेड़ों को जड़ से उखाड़कर मिट्टी में मिला दिया गया। बेनाप जमीन पर दशकों से बसे बिशन सिंह अधिकारी के परिवार को उजाड़कर उस पर भी कब्जा कर लिया गया। अधिकारी परिवार जमीन से बेदखल होने के बाद अधिकारियों के कार्यालय के चक्कर काटने पर मजबूर हो गया। यही नहीं, बल्कि अधिकारी परिवार पर प्लीजेंट वैली फाउंडेशन के कर्ताधर्ता एवी प्रेमनाथ ने दिल्ली में कई फर्जी मामले भी दर्ज करा दिए। ‘जमीन की लूट’ शीर्षक से ‘दि संडे पोस्ट’ की आवरण कथा में एनजीओ की आड़ में भू-माफियागिरी के खेल का भंडा फोड़ किया गया।
वर्ष 2-अंक 6 दिनांक 1 अगस्त 2010 ‘बचीराम बना मोहरा ’ : पहाड़ के सीधे-सादे लोग कैसे उत्तराखण्ड में जमीन लेने वालों द्वारा सताए जा रहे हैं और एक-दूसरे के खिलाफ मोहरा बन रहे हैं, ‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने इस अंक में इसकी पड़ताल की। डांडा-कांडा निवासी बचीराम एक ऐसा व्यक्ति है जो पूरी तरह निरक्षर है। लेकिन उसके नाम से कई पेज का पत्र जिलाधिकारी अल्मोड़ा को लिखा गया। वह पत्र कब लिखा गया और किसने लिखा इसकी जानकारी तक बचीराम को नहीं। लेकिन उसके नाम से स्थानीय निवासी बिशन सिंह अधिकारी और उसके पुत्र के खिलाफ जातिसूचक शब्द बोलने और उसकी पत्नी को प्रताड़ित करने की शिकायत कर दी गई। बचीराम को तो यह तक भी पता नहीं था कि जिस पेड़ को उसने खुद काटा है बिशन सिंहअधिकारी पर उस पेड़ को अवैध रूप से काटने के भी आरोप पत्र में लगा दिए गए। जबकि इस बाबत जिलाधिकारी की जांच रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि पत्र बचीराम ने नहीं, बल्कि किसी शरारती तत्व ने लिखा है। इससे साफ हो गया कि बचीराम के जरिए सीधा निशाना बिशन सिंह अधिकारी पर साधा गया। जिस जमीन पर बिशन सिंह का परिवार पचास साल से काबिज था, प्लीजेंट वैली फाउंडेशन को वह जमीन कैसे मिल गई। उस जमीन पर कैसे निर्माण कार्य कराया जा रहा था। उक्त फाउंडेशन के कर्ताधर्ताओं की इन कारगुजारियों का खुलासा ‘दि संडे पोस्ट’ ने पहले अंक में किया था। इसके बाद दिल्ली प्रशासन के एडीएम एवी प्रेमनाथ जिनकी पत्नी इस फाउंडेशन की अध्यक्ष हैं, ने ‘दि संडे पोस्ट’ को मानहानि के तीन नोटिस भेजे। सीधा मतलब यही है कि जो भी सामने आएगा या सच बोलेगा उसके खिलाफ फर्जी मामले दर्ज कराए जाएंगे।
वर्ष 2-अंक 8 दिनांक 15 अगस्त 2010 ‘दास्तान-ए-प्लीजेंट वैली’: दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी एवी प्रेमनाथ की पत्नी के एनजीओ के उत्तराखण्ड में कई गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने संबंधी समाचार हमारे इस अंक की आवरण कथा थी। इसमें एनजीओ पर जमीन के अवैध अतिक्रमण से लेकर बेनाप जमीन पर बिल्डिंग खड़ी करने का मामला है। सैकड़ों चीड़ के पेड़ काटकर उन्हें जमीन में दफनाकर सबूत खत्म करने और बिना किसी स्वीकृति के अवैध तरीके से रास्ता बनाने का मामला भी शामिल है। अगर कोई पहाड़ी व्यक्ति ऐसे जुर्म करने की हिमाकत करता तो अब तक कब का सलाखों के पीछे होता। लेकिन यह मामला एक ऐसे बाहरी रसूख वाले व्यक्ति का था जिसके आगे सब कुछ गौण है। गांव डांडा-कांडा में दिल्ली का प्लीजेंट वैली फाउंडेशन ‘गरीब मेधावी बच्चों’ के लिए एक स्कूल बना रहा है। इसके लिए जमीन मुहैया कराई स्थानीय निवासी गोपाल बिष्ट ने जो इसी फाउंडेशन में चार हजार मासिक की नौकरी करता है। स्थानीय एसडीएम की रिपोर्ट कहती है कि गोपाल ने इस फाउंडेशन के लिए 100 नाली जमीन खरीदी है जिसका मूल्य लगभग 80 लाख है। प्रश्न यह उठता है कि एक गरीब, चार हजार कमाने वाले पहाड़ी के पास इतना धन कहां से आया और क्यों कर उसने यह महंगी जमीन एक फाउंडेशन को स्कूल निर्माण के लिए दे डाली। इसकी तहकीकात उत्तराखण्ड के साथ चल रहे खिलवाड़ का घिनौना सच सामने लाती है। भू-अध्यादेश कानून की धज्जियां उड़ाने के लिए एक गरीब पहाड़ी को करोड़पति बनाने, सरकारी जमीन पर कब्जा करने, तीन सरकारी चालान किए जाने एवं जांच में दोषी पाए जाने के बावजूद भी कोई कार्यवाही न होने और पूरे सरकारी तंत्र के अंधे होने की कहानी ‘दि संडे पोस्ट’ की तहकीकात बयां करती है।
वर्ष 2-अंक 10 दिनांक 29 अगस्त 2010 ‘आखिर कौन है आशा यादव’: इस अंक में यह सामने लाया गया कि किस तरह उत्तराखण्ड में लागू भू-अधिनियम कानून की जिस आशा यादव नामक महिला ने धज्जियां उड़ाई वह कोई और नहीं, बल्कि आशा प्रेमनाथ ही हैं। नियमतः उत्तराखण्ड में कोई भी बाहरी व्यक्ति सवा नाली से अधिक जमीन नहीं खरीद सकता। लेकिन आशा यादव नाम की महिला ने फर्जी खतौनी के आधार पर सौ नाली जमीन खरीद ली। तत्कालीन भाजपा सरकार ने उत्तराखण्ड में जमीनों की अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर रोक लगाने के उद्देश्य से भू-अधिनियम लागू किया था। लेकिन सरकार के कायदे कानूनों के साथ एक भद्दा खेल भी शुरू हुआ। यह खेल खेलने वाली महिला आशा यादव हैं। बड़ी चालाकी से आशा यादव ने जून स्टेट गांव की खतौनी निकलवाई। उसमें से एक नाम को काटकर आशा यादव पुत्री बीआर यादव निवासी छोटी मुखानी हल्द्वानी जोड़ दिया। इसके बाद वैसी ही नकली खतौनी कम्प्यूटर के सहारे बनवाई। जिस खतौनी की हूबहू नकली खतौनी बना दी गई जिसमें वह बाकायदा खातेदार दर्ज हो गई। इसके बाद उसी खतौनी के आधार पर अल्मोड़ा के मैणी गांव में 100 नाली जमीन खरीद ली गई। ‘दि संडे पोस्ट’ ने नैनीताल के खाता खतौनी कक्ष को वहां के सब रजिस्टार के साथ छान मारा। लेकिन कुमारी आशा यादव के नाम से जून स्टेट में उसके नाम कोई भी जमीन का मालिकाना हक दर्ज नहीं मिला। इस तरह सवा नाली की जगह 100 नाली जमीन खरीदकर सरकार की आंखों में धूल झोंक चुकी आशा की हकीकत हमने पाठकों के सामने पेश की थी।
वर्ष 2-अंक 12 दिनांक 12 सितंबर 2010 ‘सरकारी आवास में एनजीओ’: इस अंक में हमने दिखाया कि एवी प्रेमनाथ अपने अधिकारी होने का किस तरह दुरुपयोग करते हैं। अपने रसूख और पहुंच का इस्तेमाल कैसे किया जाता है यह एवी प्रेमनाथ से सीखना चाहिए। जिन्होंने सरकार की ओर से आवंटित सरकारी आवास में एनजीओ का कार्यालय खोल रखा है। जिसका संचालन इनकी पत्नी करती है। दिल्ली के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त एवी प्रेमनाथ का नाम आवास आवंटन प्रतीक्षा सूची में बहुत पीछे था। लेकिन अपनी पहुंच के कारण आवास आवंटित कराने में वह सफल रहे। प्रेमनाथ को फरवरी 2007 में ग्रेटर कैलाश में आवास दिया गया। ग्रेटर कैलाश स्थित ऑफिसर्स फ्लैट पूरी तरह आवासीय क्षेत्र में आता है। प्रेमनाथ इसमें रहने के बजाए यहां से एनजीओ एवीआर फाउंडेशन का संचालन करते रहे।
वर्ष 2-अंक 49 दिनांक 5 जून 2011 ‘आशा का सच’: आखिर आशा यादव का सच सामने आ ही गया। ‘दि संडे पोस्ट’ ने जमीन खरीदने के जिस फर्जीवाड़े को प्रकाशित किया उसे

नैनीताल जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट ने प्रमाणित कर दिया है। साथ ही दिल्ली की प्रतिष्ठित फॉरेंसिक लैब ‘ट्रूथ लैब’ की जांच रिपोर्ट से यह भी प्रमाणित हो गया कि प्लीजेंट वैली फाउंडेशन की अध्यक्ष आशा प्रेमनाथ और मैणी गांव में फर्जी ढंग से जमीन खरीदने वाली आशा यादव के हस्ताक्षरों में समानता है। जांच रिपोर्ट की मानें तो ये दोनों हस्ताक्षर एक ही व्यक्ति के हैं।
सर्वविदित है कि ‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने 29 अगस्त 2010 के अंक में ‘आखिर कौन है आशा यादव’ नामक समाचार प्रकाशित किया था। जिसमें ‘पहाड़ी जमीन बाहरियों ने लूटी’ शृंखला के तहत आशा यादव नामक एक ऐसी महिला का पर्दाफाश किया गया था जिसने फर्जी खसरा खतौनी के दम पर 100 नाली जमीन अल्मोड़ा जिले के मैणी गांव में खरीद ली थी। आशा यादव ने अपने आपको छोटी मुखानी हल्द्वानी का निवासी बताते हुए नैनीताल जिले के जून स्टेट के राजस्व अभिलेखों में फर्जी तरीके से अपनी जमीन दर्शा दी थी। फिर इन्हीं दस्तावेजों के सहारे उसने अपने आपको उत्तराखण्ड का मूल निवासी सिद्ध करके मैणी गांव में 100 नाली जमीन खरीद डाली। जबकि बाहरी होने के नाते वह उत्तराखण्ड में भू-अध्यादेश कानून के चलते महज सवा नाली जमीन ही खरीद पाती।