महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी इन दिनों उत्तराखण्ड के पहाड़ों में चढ़ते-उतरते नजर आ रहे हैं। महाराष्ट्र के भव्य राजभवन से कोसों दूर कोश्यारी का पहाड़ों में विचरना राजनीतिक कारणों से है। राज्य में दोबारा सत्ता पाना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर बनता नजर आ रहा है। कांग्रेस दलित कार्ड खेल राजनीतिक समीकरण बदलने में जुटी है। ऐसे में भाजपा आलाकमान गवर्नर कोश्यारी को उत्तराखण्ड में सक्रिय कर डाला है
उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी इन दिनों समुद्र किनारे बने अपने भव्य राजभवन को छोड़ लगातार उत्तराखण्ड के पहाड़ों में चढ़ाई चढ़ते और उतरते नजर आ रहे हैं। राज्यपाल होने के चलते कोश्यारी सक्रिय राजनीति से तो दूर हैं लेकिन मन उनका राजभवन में रमता नहीं है। उत्तराखण्ड में उनके समान जनाधार वाला नेता भाजपा के पास दूर-दूर तक कोई नहीं है। अगले कुछ माह में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में भाजपा आलाकमान को राज्य में सत्ता खोने का भय सताने लगा है। पार्टी सूत्रों की माने तो संकटकाल में उसे एक बार फिर से कोश्यारी की कमी खल रही है। यही कारण है कि अलग-अलग कार्यक्रमों के बहाने कोश्यारी को राज्य में सक्रिय रहने को कहा गया है। जनता के बीच ‘भगत दा’ के नाम से प्रख्यात कोश्यारी इसके चलते फुल एक्शन मोड में आ चुके हैं।
नवंबर, 2020 से ही कोश्यारी की राज्य में आवाजाही बढ़ने लगी थी। उन्होंने लगातार कई यात्राएं देहरादून की हैं। देहरादून के डिफेंस कॉलोनी स्थित अपने आवास में कोश्यारी बगैर गवर्नर प्रोटोकॉल खुलकर भाजपा कार्यकर्ताओं और आम जनता से मिलते हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने में कोश्यारी की भूमिका प्रमुख मानी जाती है। जानकारों का दावा है कि लगातार प्रदेश का दौरा करने के बाद पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को कोश्यारी ने ही राज्य में सत्ता परिवर्तन का सलाह दी थी। कोश्यारी के करीबियों का कहना है कि तब भगत दा त्रिवेंद्र सिंह को हटा अपने करीबी पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाना चाहते थे लेकिन राज्य भाजपा के कई नेताओं का विरोध देख पार्टी आलाकमान को तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी करानी पड़ी। संवैधानिक चूक के चलते तीन माह के भीतर ही तीरथ को हटना पड़ा था। तब कोश्यारी के कहने पर ही धामी का चयन किया गया। चूंकि धामी को सीएम बनाने में कोश्यारी फैक्टर सबसे अहम् रहा इसलिए अब पार्टी आलाकमान ने राज्य में दोबारा सत्ता में वापसी की अप्रत्यक्ष जिम्मेदारी कोश्यारी के कंधों में डाल दी है। राज्य की राजनीति में भगत दा के दबदबे और महत्व को इससे भी समझा जा सकता है कि पार्टी और सरकार से जुड़े मसलों पर देहरादून में कम मुंबई राजभवन में चर्चा करना पार्टी नेता ज्यादा मुफीद समझते हैं। आगामी चुनावों में पार्टी टिकट चाहने वालों के लिए तो मुंबई राजभवन में मथ्था टेकना अनिवार्य हो चला है। पार्टी सूत्रों की माने तो धामी सरकार के गठन बाद तत्कालीन मुख्य सचिव ओम प्रकाश को हटाए जाने से लेकर कई नौकरशाहों के तबादले तक में कोश्यारी फैक्टर हावी रहा है। कांग्रेस नेता पूर्व सीएम हरीश रावत की बढ़ती सक्रियता और लोकप्रियता का इलाज ढूंढ़ पाने में विफल रहे राज्य भाजपा के नेताओं से खिन्न होकर भाजपा आलाकमान ने कोश्यारी को राज्य में सक्रियता बढ़ाने को कहा है।
उत्तराखण्ड की राजनीति में ‘बख’ फैक्टर हमेशा हावी रहा है। ब्राह्मण और खसिया (ठाकुर) बाहुल्य राज्य में पहली बार दलित फैक्टर का उभार देखने में आ रहा है। भाजपा में इस फैक्टर के चलते भी खासी बेचैनी है। राज्य में दलित जनसंख्या लगभग 12 सीटों में प्रभाव रखती है। हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर की इन सीटों पर दलित वोट हार और जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 2022 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का वोट प्रतिशत इस वोट बैंक के चलते 10.93 प्रतिशत था जो 2012 आते-आते 12.2 प्रतिशत पहुंच गया था। कांग्रेस ने राज्य में पहली निर्वाचित सरकार 26.91 प्रतिशत वोट हासिल कर बनाई थी। भाजपा को तब 25.45 प्रतिशत वोट मिले थे। क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखण्ड क्रांति दल को 5.49 प्रतिशत और समाजवादी पार्टी को 6.27 प्रतिशत मत मिले थे। कांग्रेस के 36 विधायक निर्वाचित हुए थे, भाजपा के 19, बसपा के 7 तो उक्रांद के 4 विधायक तब बने थे। 2007 में भाजपा का मत प्रतिशत 31.9 प्रतिशत रहा, कांग्रेस को 29.59 प्रतिशत वोट मिले, बसपा का वोट प्रतिशत बढ़कर 11.76 प्रतिशत हो गया तो सपा का वोट प्रतिशत पूरी तरह शिफ्ट हो गया था। इन चुनावों में भाजपा के 35, कांग्रेस के 21, बसपा के 8 और उक्रांद के 3 विधायक चुने गए थे। 2012 के चुनाव में कांग्रेस को 33.79 प्रतिशत, भाजपा को 33.13 प्रतिशत, बसपा को 12.19 प्रतिशत वोट मिले, वहीं उक्रांद का वोट प्रतिशत घटकर मात्र
3.18 प्रतिशत रह गया। 2017 के चुनाव मंे पहली बार बसपा का जनाधार कम हुआ। मोदी मैजिक का बड़ा असर दलित वोट में देखने को मिला। 12.19 प्रतिशत से घटकर यह 7 प्रतिशत पहुंच गया और बसपा का एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका। उक्रांद का हाल बसपा से भी खराब रहा। उसका वोट प्रतिशत 3.18 प्रतिशत से घटकर मात्र 0.7 प्रतिशत रह गया। भाजपा को 2017 में मिले प्रचंड बहुमत के पीछे 5 प्रतिशत दलित वोट बैंक और 3 प्रतिशत उक्रांद समर्थक वोट बैंक का भाजपा में शिफ्ट होना रहा। आगामी चुनाव में भाजपा और कांग्रेस इसी वोट बैंक को लेकर नजरें गड़ाई बैठी हैं। कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत ने ‘दलित सीएम’ का कार्ड खेल भाजपा की चिंता में इजाफा कर डाला है।
गौरतलब है कि राज्य के दलित वोट बैंक में भारी प्रभाव रखने वाले नेता यशपाल आर्या का 2017 के चुनाव में कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले जाने का बड़ा असर देखने को मिला था। अब यशपाल आर्या 2022 के चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं। आर्या के आने से दलित वोट बैंक को लेकर कांग्रेस की उम्मीदों में खासा इजाफा हुआ है। गत् दिनों हल्द्वानी के
रामलीला मैदान में आर्या की वापसी को लेकर आयोजित रैली में उमड़ा भारी जनसमूह कांग्रेस के लिए शुभ संकेत तो भाजपा के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुका है। ऐसे में राज्य के हर कोने में अपनी पैठ रखने वाले भगत सिंह कोश्यारी को दोबारा खांटी राजनीति के मैदान में एक्टिवेट करना भाजपा आलाकमान की मजबूरी को दर्शाता है। राज्य के लगभग 50 प्रतिशत ठाकुर मतदाताओं में हरीश रावत और कोश्यारी की समांतर पैठ है। इसके अलावा संघ के प्रचारक होने के चलते पूरे राज्य में भगत सिंह का दखल दशकों से रहा है। भाजपा आलाकमान उनके इस दखल और अनुभव का लाभ लेना चाहता है। खुद कोश्यारी के लिए यह चुनाव इस दृष्टि से खासा महत्वपूर्ण है कि पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाने का जो दांव भाजपा आलाकमान ने चला है उसके पीछे कोश्यारी का हाथ और दिमाग रहा है। अब यदि धामी के नेतृत्व में होने जा रहे चुनावों में भाजपा को मात मिलती है तो इसका असर गवर्नर कोश्यारी पर पड़ना तय है। इसलिए कोश्यारी समुद्र का मोह छोड़ वापस पहाड़ों में विचरते नजर आ रहे हैं।
गत् दिनों आई आपदा के बाद गवर्नर कोश्यारी कुमाऊं क्षेत्र में निजी कार्यक्रम के बहाने पहुंचे। वहां उन्होंने आपदा पीड़ितों का हाल तो जाना ही साथ ही जहां कहीं भी शिकायतें मिली सीधे सीएम धामी से वार्ता कर उन्हें सुलझाने के निर्देश भी दिए। कोश्यारी अपने गृह जनपद बागेश्वर स्थित मां भगवती के मंदिर भी खड़ी चढ़ाई चढ़कर पहुंचे तो उस प्राथमिक विद्यालय में भी गए जहां से उन्होंने पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की थी। कुल मिलाकर राज्य विधानसभा चुनावों तक भगत दा का फोकस उत्तराखण्ड रहना तय बताया जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कम से कम अगले तीन महीनों तक उ)व ठाकरे सरकार राहत की सांस ले सकती है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार और गवर्नर कोश्यारी के बीच रिश्ते लंबे अर्से से तनावपूर्ण चल रहे हैं।