भाारती पाण्डे, प्रशिक्षु संवाददाताा
इस कोविड महामारी ने फिर एक जिंदादिल साथी को हमसे छीन लिया। कोविड संक्रमण के कारण हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में सांस की परेशानी के चलते पिछले कुछ दिनों से भर्ती उत्तराखण्ड के जाने-माने रंगकर्मी, सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यों में सक्रिय अजीत साहनी को सरकारी तंत्र और अव्यवस्थाओं ने हम सबसे हमेशा के लिए छीन लिया।
सुशीला तिवारी अस्पताल हो या भारत का कोई भी अस्पताल हो, सबका असली चेहरा हम सब देख चुके हैं। अस्पतालों में न बेड्स हैं, न आॅक्सीजन सिलेंडर और न ही वेंटिलर। कोई भी सत्ताधारी पार्टी स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतें, अरबों का बजट और खोखले दावे चाहे कितना भी क्यों न कर ले, पर वास्तविकता यही है कि इन अव्यवस्थाओं और भ्रष्ट तंत्र ने हमेशा से आम जनता की जानें ली हैं।
साथी अजीत साहनी को उनकी गंभीर स्थिति के समय अस्पताल ने रेमिडिसीवर उपलब्ध नहीं करवाया। परिवार वालों ने निजी अस्पताल में भर्ती करवाने की भी कोशिश की, लेकि किसी भी अस्पताल में बेड्स नहीं मिल पाए। जिस कारण सांसंे टूटने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई।
कोविड के दौरान हुई मौतों को मृत्यु कहना कदापि उचित नहीं लग रहा है। ये साफ तौर पर सरकार और तंत्र द्वारा की गई हत्याएं हैं। जब केंद्र सरकार के पास समय था और पीएम केयर फंड के माध्यम से जुटाए गए संसाधन थे (जिस फंड का कोई रिकाॅर्ड आरटीआई में भी नहीं दिया गया) उस समय से लेकर अब तक सरकार और इस देश के गृहमंत्री ही नहीं, बल्कि खुद प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार के दौरान बड़ी-बड़ी रैलियां, रोड शो और बेतुके संबोधनों में समय और संसाधनों को बर्बाद कर रहे थे। पूरा का पूरा तंत्र मीडिया से मिलकर जनता का ध्यान भटकाने में लगा हुआ था। नेताओं के घृणित बयान, खोखले दावों और कुंभ जैसी चीजों पर सारा ध्यान लगाकर जनता को मरने के लिए छोड़ दिया।
सरकार राम मंदिर, हिन्दू-मुस्लिम जैसे मुद्दों को लाई और जनता ने अंधभक्त बनकर ऐसी पार्टी को खूब समर्थन दिया जिसे आम जनता की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी मूलभूत जरूरतों से कोई भी सरोकार नहीं है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की सरकार सिर्फ पूंजीपति वर्ग के हित की चिंता करती है और अब स्थिति ये है कि सड़कों पर मर रही जनता के पास न अस्पताल हैं, न ही कोई व्यवस्था। जनता के दिए हुए टैक्स से पार्टी चुनाव प्रचार और विज्ञापन में करोड़ों रुपए खर्च करने वाली भाजपा जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर एक पैसा भी खर्च नहीं करना चाहती। पिछले साल आकस्मिक लाॅकडाउन लगाने के बाद पैदल चलने, भूख से मरने, ट्रेन से कटकर मारे गए मजदूरों के हाल का गवाह पूरा देश है और ठीक एक साल बाद स्थिति उससे भी ज्यादा बुरी है। न कोई व्यवस्था है, न ही सरकार के पास कोई प्लान है। सरकार ने सारी पारदर्शिता खत्म कर तानाशाही शुरू कर दी है। और पूरा का पूरा तंत्र सिर्फ आम जनता की हत्या पर उतारू है। देश की जनता सवाल नहीं पूछती, मीडिया निष्पक्ष नहीं है, पर जहां-तहां जल रही चिताएं दहाड़ रही हैं। अफसोस उन्हें इस भ्रष्ट तंत्र में न्याय मिलना असंभव है। साथी अजीत साहनी को विनम्र श्रद्धांजलि