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Uttarakhand

लोकतंत्र के मंदिर की कलंक-कथा

जिस विधानसभा को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है वहां एक बार फिर कलंक-कथा लिखी गई है। विधानसभाओं में प्रदेशों के विकास की योजनाओं को सरकार और विपक्ष विधान अनुसार गुण-दोष के आधार पर परखते हैं और जरूरत पड़ने पर नया विधान बनाते हैं, लेकिन उत्तराखण्ड की विधानसभा में स्थापित विधान के साथ खिलवाड़ कर ‘अपनों’ को उपकृत करने का खेला भी होता आया है। जिस विधानसभा में आमजन को जाने के लिए पास बनाने में पसीने छूट जाते हैं, वहां मुख्यमंत्री, मंत्री, स्पीकर और विधायकों के रिश्तेदार-नातेदार एक पत्र पर आसानी से नौकरी पा जाते हैं। उत्तराखण्ड राज्य जब से बना है तब से यहां अनगिनत रिकॉर्ड तोड़ घोटाले हुए हैं। विधानसभा भर्तियों में जो धांधली हुई है, वह किसी से छिपी नहीं है। सरकार भाजपा की रही हो या कांग्रेस की बैकडोर यानी पीछे के दरवाजे से भर्तियां जमकर हुई हैं

उत्तराखण्ड में इन दिनों भर्ती घोटाले के जिन्न बंद बोतल से बाहर निकल रहे हैं। अभी तक अधीनस्थ सेवा चयन आयोग भर्ती घोटाले में दो दर्जन के करीब गिरफ्तारियां हो चुकी है और आगे भी जांच जारी है। अब विपक्ष ने विधानसभा में हाल में हुई भर्तियों पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। सोशल मीडिया पर भर्तियों की सूची वायरल हो रही है। इन भर्तियों में मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक के करीबियों के नाम सामने आ रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि इन भर्तियों में लेन-देन और भाई-भतीजावाद जमकर चला है। विपक्ष ने इन भर्तियों को लेकर सवाल खड़े किए हैं तो वहीं सत्तापक्ष ने भी विपक्ष के सामने गड़े मुर्दे उखाड़ कर बीते दौर की याद दिला दी है। इस तरह सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच भर्ती घोटाले पर सियासत शुरू हो गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 के विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की जमकर तारीफ की थी। भाजपा का कहना है कि भ्रष्टाचार पर उसका जीरो टॉलरेंस है। विपक्ष शासित राज्यों बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल, झारखंड से लेकर दिल्ली तक केंद्रीय जांच एजेंसियां सीबीआई और ईडी ताबड़तोड़ छापेमारी कर रही हैं। विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं के घरों को ये जांच एजेंसियां खंगाल रही हैं। लोगों का कहना है कि भाजपा शासित राज्य उत्तराखण्ड में जब इतने बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों के आरोप लगाए जा रहे हैं तो वहां पर भी राज्य सरकार को इसकी सीबीआई जांच की सिफारिश करनी चाहिए और केंद्रीय जांच एजेंसियों को गड़बड़ियों में शामिल लोगों की जांच करके उन पर नकेल कसनी चाहिए।

हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की इस मामले में जमकर तारीफ भी हो रही है वह इसलिए कि उन्होंने पेपर लीक घोटाले की जांच कराकर बड़ी पहल की है। साथ ही सीएम धामी ने घोटाला सामने आने के बाद नौकरियां निरस्त करने के आदेश भी दिए हैं। इस मामले में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल तक ने धामी की सराहना की है तो दूसरी तरफ वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने उन पर विधानसभा भर्ती प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराने की बात कहकर गेंद मुख्यमंत्री के पाले में डाल दी है।

माहरा ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की विधानसभा में जहां 403 विधायक हैं, वहां कार्मिकों की संख्या उत्तराखण्ड की विधानसभा से कम है जबकि उत्तराखण्ड में सिर्फ 70 विधायक हैं और यहां कार्मिकों की संख्या 570 का आंकड़ा पार कर गई है। इसका बोझ आम जनता पर पड़ रहा है। भ्रष्टाचार की वजह से सरकारी संस्थानों से आम लोगों का भरोसा टूट रहा है। उन्होंने सवाल उठाया है कि जब मुख्यमंत्री बाकी भर्तियों को निरस्त कर रहे हैं तो विधानसभा में हुई भर्तियों को निरस्त क्यों नहीं किया जा रहा है। साथ ही वह कहते हैं कि इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए। सीएम की सख्ती के बाद जहां भर्तियों की गड़बड़ी पकड़ी जा रही हैं और तमाम भर्तियां निरस्त हो रही हैं वही विधानसभा में हुई भर्तियों पर सवाल उठ रहें हैं। ऐसे में सभी की नजर प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की तरफ थी कि वह अपने जीरो टॉलरेंस के दावे को विधानसभा भर्ती प्रक्रिया में जांच शुरू कराकर कितना पुख्ता कर पाते है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि 28 अगस्त को जैसे ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने विधानसभा भर्ती प्रकरण पर उत्तराखण्ड भाजपा की घेराबंदी की और धामी सरकार से निष्पक्ष जांच कराने की बात कही तो ऐसे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बिना देरी करते हुए उसी समय इस मामले की जांच के आदेश दे दिए।

 

आर्टिकल 187 को आधार बनाते हुए की गई नियुक्तियां
Prem Chand Agrwal

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब प्रदेश में सरकारी नौकरियों पर उंगलियां उठी हो। राज्य की पहली निर्वाचित एनडी तिवारी की सरकार के कार्यकाल में पुलिस दारोगा भर्ती प्रक्रिया पर उंगलियां उठी थीं। मामला हाईकोर्ट गया था।सूत्रों की मानें तो

Govind Singh Kunjwal

विधानसभा में 72 लोगों की नियुक्ति में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के स्टाफ विनोद धामी, ओएसडी सत्यपाल रावत और पीआरओ नंदन बिष्ट के रिश्तेदारों की भी नौकरी लगी है। उत्तराखण्ड के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के पीआरओ राजन रावत को भी नौकरी मिली है। उत्तराखण्ड की कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य के पीआरओ गौरव गर्ग को भी रोजगार दिया गया है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक के पीआरओ अमित वर्मा को भी विधानसभा में नियुक्ति मिल गई है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक के पीआरओ आलोक शर्मा की पत्नी मीनाक्षी शर्मा को भी नियुक्ति दी गई है। उत्तराखण्ड आरएसएस के कई नेताओं के सगे संबंधियों को भी नियुक्ति मिली है।

 

तारीख एक और प्रमोशन दो
विधानसभा सचिवालय में तैनात अपर सचिव मुकेश सिंघल को 31 दिसंबर 2021 को सचिव पद पर प्रमोशन मिलता है। सिंघल का वेतन 1 लाख 31 हजार 100 रुपए होता है। लेकिन इसी आदेश को विस्तार से देखें तो उक्त अधिकारी को सचिव पद पर प्रमोशन देते हुए उसका वेतन एक लाख 44 हजार 200 रुपए कर दिया जाता है। यही नहीं बल्कि जुलाई 2022 में फिर से इस अधिकारी के लिए वेतन वृद्धि प्रस्तावित कर दी जाती है। यानी दिसंबर में प्रमोशन पाए अधिकारी को दो माह बाद 24 फरवरी 2022 में फिर से पदोन्नति मिल जाती है। 2 महीने में यह अधिकारी लेवल-12 से लेवल-13ए और लेवल-13ए से लेवल-14 तक पहुंच जाता है। ऐसी छलांग भारत में शायद ही किसी अधिकारी ने लगाई हो। जानकारी के अनुसार भारत सरकार के प्रशासनिक सेवा में आने वाले आईएएस भी लेवल 10 में भर्ती होते हैं। लेवल 14 के वेतनमान तक आने में उन्हें करीब 25 साल लग जाता है। लेकिन उत्तराखण्ड में कुछ भी संभव है। यहां एक अधिकारी एक ही तारीख के आदेश से दो दो बार प्रमोशन पा जाता है।

अग्रवाल से पहले कुंजवाल
यह पहला मौका नहीं है, जब उत्तराखण्ड में बैकडोर से भर्तियों में भाई-भतीजावाद के मामले सामने आ रहे हों बल्कि पूर्व में कांग्रेस सरकार के दौरान भी ऐसे ही आरोप लगे थे। 2017 के विधानसभा की आचार संहिता लगने से पूर्व 2016 में विधानसभा में करीब 158 पदों पर बैकडोर से भर्तियां की गई थी। तब कांग्रेस सरकार में गोविंद सिंह कुंजवाल विधानसभा अध्यक्ष थे। पूर्ववर्ती विधानसभा अध्यक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोविंद सिंह कुंजवाल भी प्रेमचंद अग्रवाल की तरह विधानसभा में भर्ती के मामले में कटघरे में खड़े हुए थे। उनके द्वारा की की गई नियुक्तियों के मामले में यह आरोप लगा कि उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनावों की आचार संहिता के एक सप्ताह पूर्व गुपचुप तरीके से 158 लोगों को विधानसभा में तदर्थ नियुक्ति दे दी। इसके लिए उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक कल्याण निगम (उपनल) के जरिए नियुक्त आउटसोर्सिंग कर्मचारियों से 16 दिसंबर 2016 को इस्तीफा लेकर उन्हें तदर्थ नियुक्ति दे दी गई थी। आरोप यह भी है कि इस्तीफा देने वाले उपनल कर्मियों की संख्या 131 थी और तदर्थ नियुक्ति पाने वालों की संख्या 158 थी। चर्चा है कि उस दौरान विधानसभा अध्यक्ष रहते गोविंद सिंह कुंजवाल ने अपने बेटे पंकज कुंजवाल को क्लास टू श्रेणी में विधानसभा रिपोर्टर पद पर नियुक्ति दिलाई। इस पद के लिए अंग्रेजी और हिंदी में शॉर्ट हैंड अनिवार्य है लेकिन पंकज कुंजवाल को शॉर्ट हैंड आती ही नहीं थी। कुंजवाल की बहू स्वाति कुंजवाल को भी 5400 ग्रेड पे पर उप प्रोटोकॉल अधिकारी के रूप में तदर्थ नियुक्ति दे दी गई। इतना ही नहीं बल्कि कुंजवाल के भतीजे स्वप्निल कुंजवाल को सहायक समीक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्ति दी गई। इसके अलावा विधायक कुंजवाल के अध्यक्ष काल में ही धारचूला विधायक हरीश धामी के भाई खजान धामी को विधानसभा रिपोर्टर के पद पर नियुक्ति दी गई। खजान धामी को भी शॉर्टहैंड का ज्ञान नहीं है। विधायक हरीश धामी की बहू यानी खजान धामी की पत्नी लक्ष्मी चिराल को भी सहायक समीक्षा अधिकारी बना दिया गया। तब विधानसभा में ही तत्कालीन कैबिनेट मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी की पुत्री मोनिका को भी अपर सचिव पद पर तैनाती दे दी गई। बताया यह भी जाता है कि तब पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी के ओएसडी रहे जयदीप रावत की पत्नी सुमित्रा रावत को भी विधानसभा में नियुक्ति दी गई थी।

चिट्ठी दो, नौकरी लो
विधानसभा में बैकडोर भर्तियों में अपने अपनों को नौकरियां कैसे रेवड़ियां की तरह बांटी जा रही थी, उसका प्रमाण वे चिट्ठियां हैं, जो सोशल मीडिया में वायरल हो गई हैं। इन चिट्ठियों से समझा जा सकता है कि एक तरफ युवा कड़ी मेहनत करके डिग्री हासिल करने के बाद भी नौकरी नहीं ले पाता है और दूसरी तरफ सिर्फ एक पत्र लिखकर अनुकंपा और विशेषाधिकार के आधार कैसे रोजगार पाया जाता है। हालांकि यह अनुकंपा आम आदमी पर नहीं बल्कि सत्ता के करीबी और रसूखदार लोगों के बच्चों को हासिल होती है। देखिए किस तरह एक चिट्ठी में अभ्यर्थी ने विधानसभा अध्यक्ष को लिखा कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय की स्नातक और उत्तराखण्ड की मूल निवासी है। उन्हें उत्तराखण्ड की विधानसभा में शैक्षिक योग्यता के अनुसार किसी पद पर नियुक्ति दी जाए। देखिए कि किस तरह एक चिट्ठी पर ही उन्हें नौकरी करने का आदेश कर दिया गया है। इसी तरह एक अन्य अभ्यर्थी ने विधानसभा को पत्र लिखा कि वह गरीब परिवार का बेरोजगार युवक है, उसने कंप्यूटर कोर्स किया है और उसकी शैक्षिक योग्यता स्नातक है। उसे विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि विधानसभा सचिवालय में पद रिक्त है और उनकी पारिवारिक स्थिति को देखते हुए उन्हें नियुक्ति दी जाए। इस तरह मात्र एक पत्र पर अभ्यर्थी को विधानसभा में रक्षक पद पर तदर्थ नियुक्ति दे दी गई। राजनीति के गलियारों में कैसे निराले खेल होते हैं और कैसे अभ्यर्थी पत्र लिखकर और सहायक समीक्षा अधिकारी तो कभी रक्षक के पद पर नियुक्ति पा जाते हैं। राज्य के अधिकांश योग्य बेरोजगारों को इस बात का पता ही नहीं रहा होगा कि वे विधानसभा अध्यक्ष को अपनी गरीबी और बेरोजगारी का हवाला देते हुए चिट्ठी लिखने मात्र से ही विधानसभा में नियुक्ति पा सकते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि मात्र एक चिट्ठी लिखकर नियुक्ति पाने का यह अनोखा कारनामा उत्तराखण्ड कांग्रेस के गांधी कहे जाने वाले गोविंद सिंह कुंजवाल के विधानसभा कार्यकाल का बताया जा रहा है।

क्या कहती है उत्तराखण्ड विधानसभा नियमावली
जिस तरह विधानसभा में बैकडोर यानी पीछे के दरवाजे से अनुकंपा और एक विशेष अधिकार के आधार पर भर्तियां की जाती है और जिस तरह का बचाव पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल कर रहे हैं, उससे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि विधानसभा में नियुक्ति के लिए कोई नियम-कानून ही नहीं है। लगता है कि विधानसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार अथवा मर्जी ही वहां का कानून है। लेकिन हकीकत तो कुछ और ही बयां करती है। गौरतलब है कि उत्तराखण्ड विधानसभा में भर्ती के लिए बाकायदा एक नियमावली है। उस नियमावली का नाम है ‘‘उत्तराखण्ड विधानसभा सचिवालय सेवा (भर्ती तथा सेवा की शर्तें) की नियमावली 2011’’। इस नियमावली में 2015 और 2016 में संशोधन भी किए गए हैं। लेकिन अचंभित करने वाली बात यह है कि इस नियमावली में यह कहीं नहीं लिखा कि अध्यक्ष का विशेषाधिकार है कि वे जितनी और जैसे चाहे वैसी भर्तियां कर सकता है।

जिस तरह कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल कह रहे हैं कि यदि किसी माननीय अध्यक्ष को लगता है कि मेनपावर की आवश्यकता है तो वह नियुक्त करता है ऐसा नियमावली में कहीं नजर नहीं आता है। विधानसभा की भर्ती नियमावली को देखें तो वह ऐसा नहीं कहती है बल्कि नियमावली की धारा 5 में पदमाप निर्धारण समिति की व्यवस्था है। इसके सदस्य कौन होंगे, इसका भी स्पष्ट उल्लेख है। इस धारा के अंतर्गत पदमाप निर्धारण समिति की अनुशंसा और वित्त विभाग से परामर्श करके ही विधानसभा अध्यक्ष पदों की संख्या में कमी या वृद्धि कर सकता है। इससे स्पष्ट है कि विधानसभा अध्यक्ष को भर्ती के मामले में अपनी मनमानी करने की छूट नहीं है बल्कि पदों की संख्या और नियुक्ति का एक निर्धारित मानदंड है। प्रेमचंद अग्रवाल जिस तरह से मीडिया के सामने ताल ठोक रहे हैं उससे तो साफ है कि सभी भर्तियां अध्यक्ष की मनमर्जी से हुई है।

मैंने सभी मुख्यमंत्रियों की सिफारिश पर दी नौकरी
भाजपा ने यूके ट्रिपल एससी घोटाले को दबाने के लिए विधानसभा मामले को उठवाया है। क्योंकि इस घोटाले में भाजपा के लोग इन्वॉल्व थे इसलिए भाजपा ने अपने बचाव में मेरे ऊपर पलटवार कराया है। जब से उत्तराखण्ड की विधानसभा बनी प्रकाश पंत, यशपाल आर्य, हरवंश कपूर और मैं अध्यक्ष बने। सभी विधानसभा में नियुक्ति करते रहे। जिस प्रक्रिया से उन्होंने नियुक्ति की उसी से मैंने भी नियुक्ति की है। किसी की नियुक्ति पर भी आरोप नहीं लगाए गए, मेरी पर लगे। मेरा मामला हाईकोर्ट में पहुंचा जहां हमारे निर्णय को वैध ठहराया गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो वहां भी हमारे द्वारा की गई नियुक्तियों को सही ठहराया गया। मैंने अपने लड़के, बहू को नौकरी पर रखा है लेकिन भाजपा के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी बहू और लड़के को भी विधानसभा में नौकरी दी उस प्रश्न को आज तक किसी ने नहीं उठाया। विधानसभा नियमावली में यह कहीं नहीं लिखा कि परिवार के सदस्यों को नौकरी पर नहीं रख सकते। मैंने भाजपा नेताओं की सिफारिश पर भी नौकरियां लगाई। एक हरीश रावत को छोड़कर प्रदेश के जितने भी मुख्यमंत्री रहे उन सभी की सिफारिश पर उनके लोगों को नौकरी पर रखा है। भाजपा से मेरा अनुरोध है कि मेरे कार्यकाल में हुई नियुक्तियों की पैसे के लेन-देन की जांच जरूर कराए और साथ में अपनी पार्टी के नेताओं की जांच भी कराए।गोविंद सिंह कुंजवाल, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष

बात अपनी-अपनी

विधानसभा एक संवैधानिक संस्था है। हम विधानसभा अध्यक्ष से इस मामले में बात करेंगे। हमारी सरकार इसको लेकर होने वाली जांच में पूरा सहयोग करेगी। हम इस मामले में राजनीति नहीं करना चाहते। हमने कभी भी नहीं कहा कि पटवारी भर्ती और 2015 में दरोगा भर्ती किसके समय में हुई थी। हम बस इतना कहना चाहते हैं कि चाहे कोई भी संस्था हो और कोई भी सरकार हो, नियुक्तियों में यदि गड़बड़ी हुई है तो उन सभी की जांच-पड़ताल की जाएगी।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड

मेरी सरकार में यह फैसला हुआ था की ये तमाम भर्तियां आयोग के माध्यम से की जाएंगी। जिसके लिए आदेश भी जारी किए थे। लेकिन इस बार किस प्रक्रिया से हुए हैं मुझे जानकारी नहीं हैं। लेकिन अगर शॉर्टकट से कोई रोजगार पाने की कोशिश कर रहा है तो यह गलत है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड

मैंने विधानसभा में किसी भी भर्ती में भ्रष्टाचार की बात नहीं कही है। विधानसभा में मेरे कार्यकाल के दौरान कर्मचारियों की जरूरत पड़ने पर नियमानुसार ही भर्तियां की गई। ये सभी भर्तियां अस्थाई तौर पर हुई हैं।
प्रेमचंद अग्रवाल, वित्त मंत्री उत्तराखण्ड सरकार

हमारे यहां तो योग्यता पर ही नौकरी दी जाती है, लेकिन कांग्रेस में कैसे नौकरियां लगाई जाती हैं, सब जानते हैं।
महेंद्र भट्ट, अध्यक्ष प्रदेश भाजपा

यह बेरोजगारों के भविष्य के साथ बड़ा खिलवाड़ है। भाजपा कार्यकाल में विधानसभा में हुई भर्तियों में घपले हुए हैं। अब अपने बचाव में भाजपा कह रही है कि कांग्रेस के कार्यकाल में भी भर्तियों में धांधली हुई है। जैसे ही राहुल गांधी जी ने इस मुद्दे को उठाया तो भाजपा बैकफुट पर आ गई है।
गरिमा दसौनी, प्रवक्ता उत्तराखण्ड कांग्रेस

अगर कांग्रेस वाकई में जांच की पक्षधर है तो फिर लोकतांत्रिक तरीके से तमाम दरवाजे खुले हैं, कांग्रेस उन्हें चुने। लेकिन कांग्रेस यह भी जांच करवाए की यशपाल आर्य से लेकर गोविंद कुंजवाल तक के कार्यकाल की पूरी जांच हो।
रविंद्र जुगरान, प्रदेश प्रवक्ता भाजपा

 

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