उत्तरकाशी से गंगोत्री तक 100 किमी लंबे भागीरथी इको सेंसिटिव जोन क्षेत्र में ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के निर्माण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित एजेंसियों को सशर्त मंजूरी दी है। इसके तहत साफ कहा गया था कि हाई पावर्ड कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक ही निर्माण कराया जाएगा। जबकि इसमें शामिल एजेंसियों ने इन सभी बिंदुओं को नजरअंदाज कर दिया और एक अधिसूचना प्रकाशित की, जो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश और भागीरथी इको सेंसिटिव जोन का घोर उल्लंघन है।’ यह कहना है ऑल वेदर चारधाम सड़क संघर्ष समिति के सचिव अशोक सेमवाल का। समिति के अलावा रक्षा सूत्र आंदोलन और हिमालय बचाओ अभियान के संयोजक पर्यावरणविद् सुरेश भाई ने भी इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। सुरेश भाई ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से लेकर केंद्रीय जल मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, वन और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव तथा राष्ट्रीय राजमार्ग और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को इस बाबत पत्र लिखकर सुक्खी बाईपास रद्द करने की मांग की है। साथ ही लोगों को उनके व्यवसाय से न उजाड़े जाने और सड़क चौड़ीकरण के नाम पर लाखो देवदार के पेड़ां को काटने से बचाने की गुहार लगाई है।
गौरतलब है कि 12 हजार करोड़ रुपए की 889 किमी लंबी चारधाम सड़क चौड़ीकरण परियोजना के अंतर्गत 10 से 24 मीटर तक सड़क चौड़ी करने की योजना पर निर्माण कार्य जारी है। उत्तराखण्ड के केदारनाथ, बद्रीनाथ गंगोत्री और यमुनोत्री से पिथौरागढ़ तक जाने वाली सड़क को चौड़ा करने के लिए सन् 2016 से काम शुरू हो गया था। नदियों के किनारों से होकर चारधाम के लिए पहले से ही 4 से 6 मीटर तक डामर वाली सड़क मौजूद है। जबकि इसे 10 से 24 मीटर तक चौड़ा करने से संवेदनशील पहाड़ों की चट्टानों को काटकर टनों मिट्टी-मलबे के साथ सीधे गंगा और इसकी सहायक नदियों में गिराया जा रहा है। इस कार्य में विस्फोटों और जेसीबी मशीनों के प्रयोग से पहाड़ अस्थिर और संवेदनशील बन गए हैं। चारधाम सड़क मार्ग पर बने दर्जनों डेंजर जोन इसका उदाहरण हैं, जहां पर बरसात के समय आवाजाही संकट में पड़ जाती है।
माना जा रहा है कि इस निर्माण के कारण पहाड़ों की उपजाऊ मिट्टी बर्बाद हुई है। अनेक जलस्रोत सूख गए हैं। जहां सड़कों के किनारे पर तीर्थयात्रियों को ठंडा जल मिल जाता था अब वहां सीमेंटेड दीवारें खड़ी हो गई हैं। इसी के साथ ही कृषि भूमि और चारागाह समाप्त हुये हैं। यहां की अनेक छोटी-छोटी बस्तियां, ग्रामीण बाजार जहां पर लोगों की आजीविका के अनेक साधन जैसे होटल, ढाबे, दुकान आदि प्रभावित हो रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां की भौगोलिक संरचना के अनुसार केवल 7 से 8 मीटर चौड़ी सड़क बन सकती थी लेकिन इसके विपरीत 10 से 24 मीटर तक चौड़ीकरण का कार्य किया गया है। जिसने पहाड़ की जड़ें हिला कर रख दी हैं। इसके चलते ही चारधाम सड़क चौड़ीकरण का विरोध गढ़वाल और कुमाऊं दोनों क्षेत्र में होता रहा है। इस चारधाम सड़क के निर्माण कार्य में देवदार जैसे दुर्लभ प्रजाति के करीब 2 लाख से अधिक देवदार के पेड़ों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। यहां सबसे अधिक पेड़ सुक्खी बैंड से सीधे झाला तक प्रस्तावित की जा रही टनल मार्ग से जांगला, गंगोत्री तक कटेंगे, जिसकी लम्बाई लगभग 20 किमी है।
पर्यावरणविद सुरेश भाई कहते हैं कि यदि सरकार यहां के संवेदनशील पर्यावरण की रक्षा के लिए ध्यान दें तो यहां पर देवदार के वनों को बचाने के लिए जसपुर से पुराली, हर्षिल, बगोरी, मुखवा (गंगा का गांव) से जांगला तक नई सड़क बनाई जा सकती है। जहां पर बहुत ही न्यूनतम पेड़ों की क्षति हो सकती है। और नए गांव भी सड़क से जुड़ जाएंगे। साथ ही वह कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी के एक विकल्प का भी उदहारण देते हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि वे मार्ग निर्माण में आने वाले पौधों को रिप्लाण्ट करेंगे। यह भी महत्वपूर्ण है। दूसरी ओर झाला से जांगला तक सड़क की चौड़ाई 7 मीटर तक रखी जाए तो गंगोत्री जाने वाली गाड़ी धराली होते हुए जा सकती हैं और वापस आने के लिए जांगला से मुखवा, हर्षिल, बगोरी, जसपुर से सुखी होते हुए उत्तरकाशी पहुंचा जा सकता है। इस तरह गंगोत्री के बचे-खुचे हरे देवदार के छोटे-बड़े लाखों पेड़ों को उजड़ने से बचाया जा सकता है।
यह क्षेत्र (भागीरथी जलागम) बहुत ही संवेदनशील है। जहां बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प से भारी तबाही हो चुकी है। मनेरी भाली जल विद्युत परियोजना (90 मेगा) की टनल भी यहां से गुजर रही है जिसके ऊपर जामक आदि गांव में सन् 1991 के भूकंप से दर्जनों लोग मारे गए थे। यहां पर बड़े निर्माण कार्य जानलेवा साबित होंगे। इसलिए यह ध्यान रखा जाय कि यहां पर चल रहे बड़े निर्माण कार्य सोच-समझकर किया जाए। हमारी केंद्र और राज्य सरकार से मांग है कि निर्माण से उत्पन्न हो रहे मलबे के निस्तारण के लिए हरित निर्माण तकनीक का उपयोग हो। वनों की अधिकतम क्षति रोकी जाए। लोगों की खेती- बाड़ी और आजीविका की वस्तुएं जैसे होटल, ढाबे, दुकानों से चल रहे रोजगार समाप्त न हो। सुखी गांव के नीचे टनल का निर्माण न हो। तेखला से सिरोर गांव होते हुए हिना-मनेरी तक प्रस्तावित नई सड़क का निर्माण रोका जाय। यह इसलिए कि इस क्षेत्र की जैवविविधता और खेती योग्य जमीन, चारागाह, आवासीय भवनों आदि को दोहरी मार से बचाया जा सकता है। यहां के संवेदनशील पर्वतों को छेड़छाड़ से बचाकर मौजूदा सड़क मार्ग पर चल रही व्यावसायिक गतिविधियों को बचाया जाना भी जरुरी है। जिससे यहां के लोगों का पलायन रुकेगा और रोजगार भी चलेगा साथ ही मां गंगा का उद्गम स्थल भी काफी हद तक बचाया जा सकता है।