किसी भी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता अपनी पार्टी में सेवाएं इसलिए देते हैं कि चुनाव आने पर उनका मूल्यांकन होगा और पार्टी उन्हें टिकट देगी। चाहे निकाय चुनाव हो, पंचायत चुनाव हो या लोकसभा और विधानसभा। सभी चुनावों में पार्टी के नेता टिकट की दावेदारी जताते हैं। जिसमें बहुत से नेताओं की किस्मत में टिकट मिलना नहीं होता है। ऐसा ही आजकल उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में देखने को मिल रहा है। जहां राष्ट्रीय दलों के नेता अपना टिकट कटने से न केवल मायूस हैं, बल्कि बगावत का झंडा बुलंद किए हुए हैं। फिलहाल भाजपा और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी में भी नेता अपनी ही पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ बगावती तेवर अपना रहे हैं। हालांकि इन बगावती तेवर वाले नेताओं को संतुष्ट करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। उन्हें आगामी चुनाव और संभावित सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के सपने दिखाकर मनाया जा रहा है। बावजूद इसके अभी भी कई नेता ऐसे नजर आ रहे हैं जो बागी बन बाजी पलट सकते हैं
जसपुर विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस के निवर्तमान विधायक आदेश चौहान को फिर से टिकट दिया गया है। इनके सामने कांग्रेस के ही सुल्तान भारती खड़े हुए हैं। हालांकि भारती को मनाने के प्रयास चल रहे हैं। विधायक आदेश चौहान कहते हैं कि सुल्तान भारती जी को मना लिया जाएगा। उनकी नाराजगी दूर कर दी गई है। इसी के साथ जसपुर में आम आदमी पार्टी में यूनुस चौधरी को टिकट मिलने से नफीस आजाद अंसारी नाराज हो गए हैं। नफीस आजाद अंसारी प्रदेश में आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता थे। उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देकर जेजेपी से नामांकन करने भरने की घोषणा कर पार्टी प्रत्याशी को कड़ी चुनौती दे दी है।
आम आदमी पार्टी में जसपुर से बगावत करने वाले नफीस आजाद अंसारी ही नहीं, बल्कि अजय अग्रवाल भी है। अजय अग्रवाल पिछले 40 सालों से भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार थे। गत वर्ष वह भाजपा छोड़कर आम आदमी पार्टी में इस उम्मीद से आए थे कि उन्हें पार्टी विधानसभा का टिकट देगी। लेकिन आम आदमी पार्टी ने ऐन वक्त पर अजय अग्रवाल की बजाय यूनुस चौधरी को टिकट थमा दिया। अजय अग्रवाल ने फिलहाल आप का दामन छोड़ कर बसपा से चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है।
यूनुस चौधरी को टिकट देने के पीछे आम आदमी पार्टी की मंशा जसपुर में अल्पसंख्यक मतदाताओं को अपने पाले में लाने की है। गौरतलब है कि जसपुर में सबसे ज्यादा अल्पसंख्यक मतदाताअ हैं। पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी आदेश चौहान अल्पसंख्यक मतदाताओं के समर्थन से ही जीत हासिल कर पाए थे। इस बार आम आदमी पार्टी यूनुस चौधरी के जरिए अल्पसंख्यकों का ध्रुवीकरण करने की तैयारी में जुटी हुई है।
काशीपुर विधानसभा में भाजपा ने इस बार एक बार फिर चीमा परिवार को ही टिकट फाइनल कर दिया है। पिछले तीन बार से हरभजन सिंह चीमा भाजपा के टिकट पर काशीपुर से विधायक बनते आ रहे थे। इस बार उन्होंने उम्र ज्यादा होने और बीमार रहने के कारण चुनाव न लड़ने का ऐलान किया। लेकिन इसी के साथ उन्होंने अपने बेटे त्रिलोक सिंह चीमा को आगे कर भाजपा से उनकी दावेदारी कर दी। त्रिलोक सिंह चीमा राजनीति के मामले में बिल्कुल नौसिखिए हैं। इसके चलते ही पूर्व सांसद बलराज पासी पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष राम मेहरोत्रा और नगर निगम की मेयर ऊषा चौधरी तथा खिलेंद्र चौधरी यहां से अपनी- अपनी दावेदारी जता रहे थे।
लेकिन ऐन वक्त पर भाजपा ने हरभजन सिंह चीमा के बेटे त्रिलोक सिंह चीमा को अपना प्रत्याशी बना दिया। इसके बाद भाजपा के अन्य नेताओं ने इसका विरोध किया। जिसमें सबसे आगे पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष राम मेहरोत्रा और मेयर ऊषा चौधरी रहीं। हालांकि फिलहाल दोनों के बगावती तेवर ठंडे पड़ते दिखाई दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राम मेहरोत्रा को समझा-बुझाकर शांत कर दिया है। जबकि काशीपुर नगर निगम की मेयर ऊषा चौधरी के सामने टचिंग ग्राउंड वाला मामले का डर दिखाकर शांत किया गया है। टचिंग ग्राउंड में हुए अवैध खनन मामले में मेयर ऊषा चौधरी फंसती नजर आ रही थी। बताया जा रहा है कि भाजपा ने उन्हें टचिंग ग्राउंड मामले की फाइल खोलने का डर दिखाकर फिलहाल शांत कर दिया है।
बाजपुर विधानसभा क्षेत्र में इस बार भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए यशपाल आर्य को टिकट दिया गया है। जबकि पिछले 5 साल से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही सुनीता टम्टा बाजवा ने पार्टी से बगावत कर दी है। सुनीता टम्टा बाजवा का 2017 में भाजपा से टिकट कटने का कारण भी यशपाल आर्य ही रहे थे। तब भाजपा में रहते सुनीता टम्टा बाजवा का टिकट कटा तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उन्हें कांग्रेस में ले आए और पार्टी का टिकट दिलाया। इस बार सुनीता टम्टा बाजवा के पति किसान आंदोलन में सक्रिय थे। वह इस आंदोलन के जरिए किसानों को एकजुट कर विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगे हुए थे।
पूर्व में परिवर्तन यात्रा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह द्वारा मंच से ही घोषणा की गई थी कि इस बार पार्टी का टिकट सुनीता टम्टा बाजवा का ही होगा। लेकिन सुनीता टम्टा बाजवा की किस्मत ने इस बार फिर पलटी मारी। यशपाल आर्य भाजपा छोड़ कांग्रेस में आ गए और पार्टी का टिकट पा गए। फिलहाल सुनीता टम्टा बाजवा आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुकी है और आप के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं।
गदरपुर में कांग्रेस के दर्जनों दावेदार थे। लेकिन पार्टी ने सब को दरकिनार कर पूर्व विधायक रहे प्रेमानंद महाजन को टिकट दे दिया। इससे कई नेताओं को मायूसी हुई। पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके राजेंद्र पाल राजू पार्टी के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए हुए हैं। उन्होंने एक पंचायत कर यह निर्णय लिया है कि पंजाबी समाज गदरपुर से उन्हें चुनाव लड़ाएगा। हालांकि, पंजाबी समाज से पहले ही आम आदमी पार्टी के जरनेल सिंह काली चुनाव लड़ रहे हैं। काली कांग्रेस के नेता हुआ करते थे। पिछली बार वह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर कांग्रेस की हार का कारण बन चुके हैं। तब राजेंद्र पाल राजू को कांग्रेस ने टिकट दिया था। दो पंजाबी प्रत्याशियों के चुनावी मैदान में आ जाने के कारण इसका फायदा भाजपा प्रत्याशी अरविंद पांडेय को मिला था। तब अरविंद पांडेय दूसरी बार चुनाव जीत गए थे।
2012 के विधानसभा चुनाव में भी अरविंद पांडेय की जीत का कारण कांग्रेस के पैराशूट प्रत्याशी को टिकट मिलना था। तब पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के भतीजे मनीष तिवारी को कांग्रेस ने टिकट देकर भारी भूल की थी। इस बार कांग्रेस ने बंगाली मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए गदरपुर से प्रेमानंद महाजन को अपना प्रत्याशी बनाया है। गदरपुर में न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा में भी अंदरखाने विरोध का बिगुल बज चुका है। भाजपा में पूर्व में यहां से पार्टी के प्रत्याशी रहे रविंद्र बजाज ने अरविंद पांडेय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। रविंद्र बजाज के साथ ही भाजपा के कई नेता अरविंद पांडेय के विरोध में उतर आए हैं। रविंद्र बजाज ने फिलहाल अरविंद पांडेय के खिलाफ निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने का निर्णय ले लिया है। इससे अरविंद पांडेय की गदरपुर से तीसरी बार जीत की राह आसान नजर नहीं आ रही है।
रुद्रपुर में भाजपा ने अपने दो बार के विधायक राजकुमार ठुकराल का टिकट काट दिया है। राजकुमार ठुकराल को हिंदूवादी चेहरा बनाकर भाजपा पिछले दो चुनाव जीत चुकी है। लेकिन इस बार भाजपा द्वारा कराई गई राजकुमार ठुकराल की सर्वे रिपोर्ट उनके खिलाफ बताई गई। इसके चलते भाजपा ने पार्टी के जिला अध्यक्ष और आरएसएस के करीबी नेता शिव अरोड़ा को अपना प्रत्याशी बनाया है। राजकुमार ठुकराल फिलहाल बगावती तेवर अपनाए हुए हैं। वह भाजपा के खिलाफ चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। किच्छा विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने 7जी (कांग्रेस का तिलकराज बेहड़ विरोधी गुट) का दबाव सहन न करते हुए रुद्रपुर के पूर्व विधायक तिलकराज बेहड़ को टिकट दे दिया है। हालांकि यहां 7जी ग्रुप के द्वारा स्थानीय और बाहरी का मुद्दा खूब जोर से उठाया गया था। कांग्रेस के 7जी ग्रुप के साथ पार्टी नेता तिलक राज बेहड़ का बाहरी होने के नाते विरोध कर रहे थे। जिसका नेतृत्व पार्टी के प्रदेश महासचिव और पूर्व दर्जा धारी राज्यमंत्री हरीश पनेरु कर रहे थे।
फिलहाल तिलक राज बेहड़ ने कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को मनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। लेकिन हरीश पनेरु को मना कर अपने पाले में लाने में वह कामयाब नहीं हो पाए हैं। हरीश पनेरु निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। उधर, दूसरी तरफ भाजपा ने भी इस बार अपने पूर्व के दो बार विधायक रहे राजेश शुक्ला को किच्छा से टिकट दे दिया है। यहां से अजय तिवारी सहित कई नेता भाजपा के टिकट पर अपनी दावेदारी जता रहे थे। अजय तिवारी 2017 में कांग्रेस में होते हुए भी टिकट के प्रबल दावेदार थे। लेकिन ऐन वक्त पर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने किच्छा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। इससे अजय तिवारी के 2017 में चुनाव लड़ने की किच्छा से इच्छा पूरी नहीं हो सकी। इसके बाद अजय तिवारी कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे।
भाजपा विधायक राजेश शुक्ला का जिस तरह संगठन में विरोध चल रहा था उससे अजय तिवारी को पूरी उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें ही अपना उम्मीदवार बनाएगी। लेकिन भाजपा ने तीसरी बार भी राजेश शुक्ला को ही अपना पार्टी प्रत्याशी घोषित कर दिया। इससे अजय तिवारी नाराज होकर बगावती रुख अपना रहे हैं। सितारगंज में इस बार कांग्रेस ने नव तेजपाल को टिकट देकर पार्टी के कई नेताओं को नाराज कर दिया। नाराज होने में सबसे आगे सितारगंज के पूर्व विधायक नारायण पाल हैं। इन्होंने पार्टी से बगावत कर 27 जनवरी को बसपा के टिकट पर नामांकन दाखिल कर दिया है। जब सितारगंज विधानसभा सीट आरक्षित थी तब 2007 में नारायण पाल बसपा के टिकट पर ही चुनाव जीते थे। इसके बाद 2012 में आरक्षण खत्म हो गया और सीट सामान्य हो गई। तब नारायण पाल कांग्रेस में आ गए। 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से टिकट की दावेदारी की थी। लेकिन पार्टी ने दोनों बार ही उन्हें निराश किया।
कांग्रेस ने जिस नव तेजपाल को टिकट दिया है, वह 2017 में बसपा के टिकट पर सितारगंज से चुनाव लड़ चुके हैं। दिल्ली के किसान आंदोलन में सक्रिय रूप से भागीदारी कर रहे नव तेजपाल को इस बार कांग्रेस ने किसानों का उसके साथ भारी समर्थन होने के कारण टिकट दिया है। पिछले दिनों जब परिवर्तन यात्रा हुई तो नव तेजपाल ने सबसे ज्यादा भीड़ इकट्ठी कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था। तब से कयास लग रहे थे कि इस बार कांग्रेस नव तेजपाल पर दांव लगा सकती है। नानकमत्ता में इस बार भाजपा में अंतर्कलह सामने आ रही है। भाजपा ने यहां से दो बार के विधायक रहे डॉ प्रेम सिंह राणा को एक बार फिर अपना प्रत्याशी बनाया है। जबकि यहां से भाजपा के टिकट पर तैयारी कर रहे श्रीपाल राणा बगावत करते दिखाई दे रहे हैं। श्रीपाल राणा आरएसएस के सह प्रांत संयोजक रह चुके हैं। वह आरएसएस को छोड़कर भाजपा में इस उम्मीद से शामिल हुए थे कि पार्टी उन्हें अपना प्रत्याशी बनाएगी। बताया जा रहा है कि आरएसएस छुड़वाने और भाजपा में लाने के लिए पार्टी के नेताओं ने उन्हें प्रोत्साहित किया था। तब कहा जा रहा था कि डॉ प्रेम सिंह राणा का क्षेत्र में विरोध होने के कारण उनका टिकट कटेगा और श्रीपाल राणा का होगा।
लेकिन डॉ प्रेम सिंह राणा का मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का करीबी होना उनका एक बार टिकट होने का कारण बन गया। इसी के साथ ही यह भी कहा जा रहा था कि अगर भाजपा डॉ प्रेम सिंह राणा का टिकट काटती तो थारू मतदाता मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से नाराज हो जाते। जिसका खामियाजा उन्हें अपनी विधानसभा सीट खटीमा पर भुगतना पड़ सकता था। खटीमा विधानसभा सीट पर पहाड़ी मतदाताओं के बाद दूसरे नंबर पर थारू मतदाता है। अपना टिकट कटने के बाद श्रीपाल राणा पार्टी से नाराज बताए जा रहे हैं। वह पिछले 2 साल से नानकमत्ता विधानसभा क्षेत्र के गांव-गांव का दौरा कर चुके हैं। फिलहाल, वह अपना टिकट कटने पर एक बार फिर गांव-गांव जा रहे हैं। जहां वह मतदाताओं से अपील कर रहे हैं कि उनके साथ भाजपा ने नाइंसाफी की है। अगर उन्हें टिकट नहीं देना था तो आरएसएस छुड़वा कर भाजपा ज्वाइन क्यों करवाई गई और उन्हें टिकट का आश्वासन क्यों दिया गया। फिलहाल, भाजपा के लिए श्रीपाल राणा के इन सवालों का जवाब उनके पार्टी प्रत्याशी प्रेम सिंह राणा की हेट्रिक में बाधा डाल सकते हैं।