जब अफसरशाही अपनी नीतियों को बगैर होमवर्क के जल्दबाजी में लागू कर देती है तो उसका खामियाजा अंततः प्रदेश की जनता को ही भुगतना पड़ता है
शिक्षा, उच्च शिक्षा वन विभाग यहां तक कि औद्योगिक विभाग में देखने को मिल रहा है कि सरकार द्वारा नीतियां तो बनाई गईं लेकिन उनको अचानक से बदल दिया गया। सरकार की नीतियां शासन की प्रयोगशाला में एक प्रयोग की तरह लागू की जा रही हैं। इसका सबसे पहला ज्वलंत उदाहरण राज्य की स्कूली शिक्षा में हो चुका है जो पहले ही प्रयोग में बुरी तरह से फेल हो चुकी हैं। एक वर्ष के बाद स्वयं सरकार को भी यह मानने को मजबूर होना पड़ा है कि स्कूली शिक्षा की बेहतरी के लिए किया गया उसका यह प्रयोग खरा नहीं उतरा है।
वर्ष 2021-22 में राज्य सरकार ने सरकारी स्कूलों में निरंतर कम हो रही छात्रों की संख्या को देखते हुए उत्तराखण्ड बोर्ड से संचालित होने वाले सरकारी स्कूलों को सीबीएसई बोर्ड से चलाने का निर्णय लिया। इसके लिए प्रथम चरण में 155 सरकारी स्कूलों को अटल उत्कृष्ट स्कूल बनाया गया और इनको उत्तराखण्ड बोर्ड की जगह सीबीएसई बोर्ड से अधिकृत करके इन स्कूलों को सीबीएसई बोर्ड से मान्यता भी दे दी गई। इन अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के छात्रों द्वारा पहली बार सीबीएसई बोर्ड से 10वीं और 12वीं की परीक्षा दी गई जिसमें 10वीं का परीक्षा का परिणाम 60-49 प्रतिशत का ही रहा तो 12वीं का परिणाम महज 51-49 तक सिमट गया।
यही नहीं इन अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के 98 ऐसे विद्यालय हैं जिनका परीक्षा परिणाम 50 प्रतिशत से भी कम रहा है। इनमें 59 ऐसे स्कूल हैं जिसमें 12वीं के 50 प्रतिशत या इससे भी कम छात्र पास हुए हैं। जबकि 39 ऐसे स्कूल हैं जिनमें 10वीं के 50 प्रतिशत ही छात्र पास हो पाए हैं। पास होने वाले छात्रों के आंकड़े को देखें तो 12वीं के कुल 12753 छात्रों ने परीक्षा दी जिसमें 6481 ही उत्तीर्ण हो पाए हैं।
10वी में भी कुछ ऐसा ही परिणाम रहा हेै। 10वीं के कुल 8625 छात्र परीक्षा में बैठे जिसमें 5142 ही छात्र पास होने में सफल हो पाए हैं। जानकारी तो यह भी सामने आ रही है कि इन अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के 35 प्रतिशत छात्र एक ही विषय में फेल हुए हैं। खराब परिणाम देने वाले स्कूलांे की समीक्षा में यह जानकारी निकल कर आई है कि 35 प्रतिशत छात्र किसी न किसी एक विषय में ही फेल हुए हैं।
शिक्षा विभाग के बड़े-बड़े दावों के विपरीत हजारों छात्रों का एक वर्ष तो बर्बाद हुआ ही है, साथ ही सरकारी अमले को अटल उत्कृष्ट स्कूलों में लगाने के नाम पर अव्यवस्था अलग से हुई। हैरानी की बात यह है कि शासन और शिक्षा विभाग द्वारा इसके भविष्य में होने वाले परिणामों का होमवर्क किए बिना ही प्रयोग को लागू किया गया जिससे राज्य में एक ही स्कूल में दोहरी व्यवस्था को लागू कर दिया गया जिससे शिक्षकों में भी नाराजगी बढ़ गई। अब एक वर्ष के बाद जब हजारों छात्र परीक्षा में फेल हो गए हैं तो सरकार की नींद टूटी और सरकार मान रही है कि उससे गलती हुई है कि प्रदेश में सीबीएसई पैटर्न पहले छोटी कक्षा से लागू किए जाने के बाद ही हाईस्कूल और इंटर में लागू किया जाना चाहिए था।
निजी वन भूमि एवं बगीचों में पेड़ों के काटने पर पूर्व में जुर्माने के साथ-साथ सजा का भी प्रावधान था जिसे सरकार ने गैरसैंण में हुई कैबिनेट बैठक में हटा दिया। सरकार के इस निर्णय से कई स्थानों में जमकर निजी वन भूमि और बगीचों में पेड़ों के कटान के मामले सामने आने लगे। सजा का प्रावधान खत्म करने के बाद जुर्माना लगाने के अलावा वन विभाग के पास कोई चारा नहीं बचा। इसका सबसे ज्यादा फायदा उन लोगों को हुआ जिनकी निजी जमीनों में वर्षों से देखरेख नहीं हो रही थी और उसमें पूरा जंगल उग आया लेकिन जमीनों के भाव आसमान छूने के चलते वे जमीनें सोना उगलने लगी और जमीन मालिकों द्वारा बाहरी लोगों को बेची जाने लगी।
जबकि पूर्व में निजी वन भूमि पर उगे जंगलों को काटे जाने पर सजा का प्रवधान होने के चलते ये जमीनें सुरक्षित थीं लेकिन सरकार के एक निर्णय से उनका सुरक्षा कवच हट गया और इसका फायदा बिल्डरों और होटल, रिसोर्ट के अलावा भूमि के कारोबारियों को होने लगा है। हालांकि सरकार की इस नीति की जब आलोचना होने लगी तो सरकार को अपने फैसले को वापस लेने को मजबूर होना पड़ा।
स्वयं वन मंत्री सुबोध उनियाल का मानना है कि सजा के प्रावधान को हटाने के बाद प्रदेश में बगीचों के बेचे जाने के मामले में तेजी आई है। साथ ही उनका यह भी कहना है कि उनको सूचना मिल रही है कि सजा का प्रावधान न होने से प्रदेश के कई इलाकों में बगीचों के सफाए का खेल हो रहा है। प्रदेश के वन मंत्री भी सजा के प्रवधान को हटाए जाने के दुष्परिणाम तुरंत ही सामने आने की बात मान रहे हैं और फिर से सजा के प्रावधान को लागू करने के लिए कैबिनेट में रखने की बात कर रहे हैं। अभी तक सरकार ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया है जबकि कुछ ही दिनों पूर्व कैबिनेट की बैठक भी हुई लेकिन इस मामले को सरकार ने छुआ तक नहीं। इससे सरकार की नीयत पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ मौजूदा सरकार के समय में ही ऐसा हो रहा है पूर्व में भी ऐसे ही मामले सामने आ चुके हैं जिसमें सबसे बड़ा मामला औद्योगिक विभाग का भी सामने आ चुका है। राज्य में औद्योगिक विकास के लिए तिवारी सरकार द्वारा वर्ष 2002 में सिडकुल की स्थापना की गई थी। इसमें देहरादून के सेलाकुई में औद्योगिक विकास के लिए अनेक उद्योगों को लगाया गया था। सेलाकुई में खसरा नंबर 323 में पट्टे की जमीन को फ्री होल्ड के तौर पर अधिसूचित किया गया था और इस भूखंड में सरकार की नीतियों के तहत अनेक उद्योग स्थापित किए गए। लेकिन फिर अचानक वर्षों बाद सरकार को याद आया कि उक्त भूखंड में गलत तरीके से भूखंडों का आंवटन हुआ है जिसके लिए 60 उद्योगों को नेाटिस थमा दिए गए। जबकि उक्त भूखंड पर सरकार की सिडकुल नीति के तहत ही उद्यमियों द्वारा भूखंड खरीद कर अपने उद्योग स्थापित किए गए थे। गौर करने वाली बात यह हेै कि इन सभी उद्योगों को केंद्रीय औैद्योगिक योजना के तहत टैक्स में छूट का लाभ भी मिल चुका है।