विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद उत्तराखण्ड कांग्रेस में बड़ा बदलाव देखने को मिला है जिसमें तमाम कयासां के इतर युवा नेता करण माहरा पर पार्टी ने भरोसा जताते हुए प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान सौंपी है। करण माहरा, 2007 और 2017 में रानीखेत विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। 2017 में वे उप नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं। छात्र राजनीति से ही कांग्रेस पार्टी के युवा चेहरों में शुमार माहरा राजनीतिक पृष्ठ भूमि वाले परिवार से ताल्लुक रखते हैं। अविभाजित उत्तर प्रदेश में उनके पिता स्व. गोविंद सिंह माहरा की गिनती कद्दावर नेताओं में की जाती थी। माहरा के अग्रज स्व. पूरण सिंह माहरा भी रानीखेत से विधायक रहे थे। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के साले करण माहरा कांग्रेस पार्टी में तेज-तर्रार नेता और जनहित के मुद्दों पर हमेशा से मुखर रहे हैं। ‘दि संडे पोस्ट’ के विशेष संवाददाता कृष्ण कुमार संग प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नए अध्यक्ष की विस्तृत बातचीत के अंश
लगातार दो बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव कांग्रेस पार्टीबुरी तरह हार चुकी है। यहां तक कि निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में भी हार का सिलसिला बना रहा जिससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता नजर आ रहा है। ऐसे विकट समय में आप प्रदेश अध्यक्ष बने हैं। पार्टी को पटरी में लाने के लिए क्या रणनीति रहेगी आपकी?
निश्चित ही चुनौती है। चुनाव के दौरान सारा माहौल कांग्रेस के पक्ष में था। महंगाई, बेरोजगारी से जनता परेशान थी। कोविड में अनियमिताओं और सरकार की उपेक्षा से जनता बेहद दुखी थी। इन सबके बावजूद कांग्रेस चुनाव हार गई। अब मुझे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया है तो निश्चित ही यह मेरे लिए बड़ी चुनौती तो है ही। मैं इस चुनौती को अपने लिए एक अवसर के रूप में देखता हूं कि अब मैं ज्यादा मेहनत करूं और यह साबित करूं कि हमारे अंदर योग्यता है और ताकत भी। ताकि हम भविष्य में ज्यादा बेहतर प्रदर्शन कर पाएं।
चुनाव संचालन या चुनावी रणनीति पर अब कांग्रेस के ही लोग सवाल उठा रहे हैं। अगर सब कुछ सही था तो कमियां कहां रह गई?
देखिये, सवाल तो जो हारा है वह उठायेगा ही, जिसके
मनमाफिक काम नहीं हुआ वह भी उठायेगा। यह तो चलता ही है। जो चुनाव लड़ रहा है उसकी अपनी भी जिम्मेदारी होती है। मैं भी चार चुनाव लड़ा हूं। अजय भट्ट जी से मैं तीन चुनाव लड़ा हूं, जिसमें दो हारा हूं एक जीता हूं। मैं यह मानता हूं कि कहीं न कहीं मेरी अपनी ही कमियां रही होगी। भीतरघात भी होता है, सामग्री की कमी भी होती है। तो इसके लिए किसी दूसरे को दोष क्यों दिया जाएं? आप चुनाव लड़ रहे हैं तो आप क्यों मानते हैं कि पार्टी ही आपको चुनाव जितवायेगी। आपकी योग्यता पर भी वोट पड़ते हैं, पार्टी के कैडर वोट और पार्टी के कार्यकर्ताओं से आपका व्यवहार केसा है, इस पर भी बहुत कुछ डिपैंड करता है। इसलिए किसी पर आरोप लगा देना चुनाव संचालन पर आरोप लगा देना, गलत है।
क्या हालिया सम्पन्न विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट बंटवारा सही था।
निश्चित ही टिकट बंटवारा सही हुआ था। बाद में जो लिस्ट आई थी उसमें अवश्य कुछ दिक्कतें थी जिन्हें सुलझाने की कोशिश भी की गई थी। जेसे रामनगर सीट के बारे में मैं कहना चाहूंगा उस सीट पर एक व्यक्ति पिछले पांच साल से मेहनत कर रहा था लेकिन अंतिम दोर में उसे उस सीट के बजाय दूसरी सीट से चुनाव लड़वाया गया। ऐसे ही लालकुआं सीट पर दुर्गापाल जी ओैर हरेंद्र बोरा जी लगातार मेहनत कर रहे थे और लोग कह रहे थे कि यह सीट स्वीप करेगी लेकिन वह सीट डिस्टर्ब हो गई और अचानक आखिरी मौके पर हरीश रावत जी को वहां चुनाव लड़ने के लिए भेज दिया गया, जबकि रावत जी की वहां कोई तैयारी नहीं थी। ये कुछ टेक्निकल फाल्ट्स रहे जिससे रिजल्ट में फर्क आया। आइंदा से इसका खयाल रखा जाएगा।
कांग्रेस के नवनिर्वाचित विधायकों में नाराजगी की बातें देखी जा रही है। कभी कहा जाता है कि दस विधायक नाराज हैं कभी आठ की बात सामने आ रही है। कोई पार्टी छोड़ने की बात कर रहा है। सच्चाई क्या है?
देखिए, सबकी अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा और शिकायतें होती हैं। पार्टी अगर कोई बड़ा निर्णय लेती है तो कुछ समय तक रियेक्शंस आते ही हैं। लेकिन इन बातों की हवा तो अब निकल गई है। अब तो साफ हो गया कि जो भी बातें थी वह सब हवा में ही थी। मैंने पहले भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि पार्टी में कोई टूट नहीं होने जा रही है। केवल दो विधायक आपस में बैठे थे, तीसरा नहीं बैठा। दस की तो छोड़ दीजिये। मैंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ कहा है कि कांग्रेस के कोई भी नेता हो, उन सबको अपनी बात करने का अधिकार है लेकिन अपनी बात को पार्टी फोरम में ही रखे, वह चाहे यहां कहना चाहें या दिल्ली कहना चाहें, ये उनका अधिकार है। दरवाजे खुले हैं। उनको अपनी तकलीफ बतानी चाहिए। लेकिन जिससे पार्टी कमजोर हो और कार्यकर्ता का मनोबल टूटता हो उन बातों को सार्वजनिक तोर पर मीडिया या सोशल मीडिया में नहीं कहना चाहिए।
पिछले पांच साल में यह देखा जाता रहा है कि कांग्रेस के नेता और पदाधिकारी सोशल मीडिया में ज्यादा ही एक्टिव रहे हैं। सरकार की नीतियों के खिलाफ हो या भ्रष्टाचार के मामलां को लेकर, पार्टी के नेता सोशल मीडिया से बाहर नहीं निकल पाए। आप इस चलन को बदलेंगे?
निश्चित ही यह मैंने भी महसूस किया है। जब तक हम गांव, घरों को अपने से कनैक्ट नहीं करेंगे, लोगां से बातचीत नहीं करेंगे, उनकी तकलीफों को नहीं समझेंगे तो केसे सोच सकते हैं कि लोग हमसे जुडं़ेगे। मेहनत तो कर रहे हैं, लेकिन हो क्या गया है कि कुछ ‘लैपटोपिया’, कुछ ‘मोबाइलिया’ जेसे लोग भी आ गये है जो फेसबुक में ही रहते हैं, उसी में वो लड़ाई लड़ते हैं, उसी में ही वो चुनाव लड़ते है। मैं खून पसीना बहाने वाले कार्यकर्ता, जो अपनी मेहनत से अपने घर और अपने परिवार को चला रहे हैं, समाज की मदद करते हैं, ऐसे लोगों की मदद से गांव के लोगों को अपने साथ जोडूंगा। उनको जागरुक करके भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा करूंगा।
अभी आप ने एक शब्द ‘लैपटोपिया’ कहा है। इसी को लेकर कांग्रेस के एक बड़े नेता ने सोशल मीडिया में आरोप लगाया है कि पूरी कांग्रेस को लैपटाप में तब्दील कर दिया गया है जिससे जमीनी कार्यकर्ता और नेताओं की भारी उपेक्षा हो रही है। आरोप कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पर लगाया गया है।
किस ने किस नियत से कहा है मैं नहीं कह सकता। मैं कह रहा हूं न कि सबके अपने अपने ‘ग्रीवांस’ होते हैं। जिन प्रभारी पर आरोप लगा रहे हैं उन्होंने चुनाव से छह महीने पहले ही कांग्रेस को इस स्थिति पर ला दिया था कि पूरा मीडिया तक यह कह रहा था कि इस बार कांग्रेस बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी। हर महीने जिलों में ब्लॉक स्तर, बूथ स्तर की मीटिंगे हो रही थी। मैं भी चिढ़ने लगा था क्योंकि इस तरह से काम करने की आदत नहीं थी। हर बूथ कमेटी का नाम भेजो, बीएलओ का नाम भेजो, उसका फोन नंबर, पता भेजो, इस तरह के आदेश मिलने लगे थे।
जिन प्रभारी पर आरोप लगा रहे है उन्होंने चुनाव से छह महीने पहले ही कांग्रेस को इस स्थिति पर ला दिया था कि पूरा मीडिया तक यह कह रहा था कि इस बार कांग्रेस बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी। हर महीने जिलों में ब्लॉक स्तर, बूथ स्तर की मीटिंगे हो रही थी। यदि आज ऐसे प्रभारी को दोष दिया जा रहा है तो यह सब अपनी गलती, अपनी हार को छुपाने के लिये किया जा रहा है। कांग्रेस चुनाव में क्यों हारी यह सब जानते हैं। उसमें प्रभारी की कोई गलती नहीं है। कांग्रेस के नेताओं की व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं और उनकी बयान बाजी के कारण कांग्रेस का यह हश्र हुआ है। जिसे मैं मानने से संकोच नहीं कर सकता
एआईसीसी से सीधे कार्यकर्ताओं फोन आ रहे थे। तो हमको भी डर लगा। हमने भी अपनी तैयारी पूरी कर ली। यदि आज ऐसे प्रभारी को दोष दिया जा रहा है तो यह सब अपनी गलती, अपनी हार को छुपाने के लिए किया जा रहा है। कांग्रेस चुनाव में क्यों हारी यह सब जानते हैं। उसमें प्रभारी की कोई गलती नहीं है। अपनी गलतियों से हम लोग चुनाव हारे हैं और ठीकरा फोड़ रहे हैं उस आदमी के ऊपर जिसने अपना पूरा टाइम देकर इस राज्य में कमेटियों का गठन किया। जरा आप आम कार्यकर्ताआें से पूछिये। आम कार्यकर्ता यह मानता है कि आज तक देवेंद्र यादव जेसा कोई प्रभारी नहीं आया है जिसने इस तरीके से कांग्रेस को खड़ा करने की कोशिश की है। क्या कारण है कि चुनाव से पहले जिस तरह के बयान दिये जा रहे थे उन पर रोक नहीं लगाई गई? चुनाव के बाद भी ऐसे बयान दिए जा रहे हैं। क्यों इन लोगों ने अपने अपने नेताओं को बयान देने से रोकने की कोशिश नहीं की? कांग्रेस के नेताओं की व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं और उनकी बयानबाजी के कारण कांग्रेस का यह हश्र हुआ है। जिसे मैं मानने से संकोच नहीं कर सकता।
कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, उपनेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद गढ़वाल क्षेत्र के कांग्रेसी नेतओं में बहुत नाराजगी है। उनका कहना है कि कुमाऊं को ही तीनों पद दे दिये गये हैं और गढ़वाल को हाशिये पर डाल दिया गया है। आप इस नाराजगी को किस तरह से देखते हैं।
मुझे बताइये, जब तिवारी जी की सरकार थी तब भी तो कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री कुमाऊं से ही थे। तब तो कोई नहीं बोला। भाजपा में अजय भट्ट नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे। तब तो गढ़वाल और कुमाऊं की बात सामने नहीं आई थी। प्रीतम सिंह जी प्रदेश अध्यक्ष थे और फिर नेता प्रतिपक्ष बनाये गये और गणेश गोदियाल जी प्रदेश अध्यक्ष बनाये। गये ये दोनों तो गढ़वाल से ही थे तब किसी ने कोई बात नहीं की कि कुमाऊं से क्यों नहीं बनाया गया। आज पार्टी ने सोच समझ कर कोई निर्णय लिया है तो इस तरह की बातें सामने आने लगी है जिनका कोई मतलब नहीं है। गढ़वाल कुमाऊं, ठाकुर ब्राह्मण इत्यादि सब बेकार की बातें हैं। आम कार्यकर्ता को इससे कोई मतलब नहीं है कि प्रदेश अध्यक्ष कुमाऊं का है या गढ़वाल का। यह केवल औेर केवल कुछ लोगों के दिमाग की उपज है जो अपने फायदे के लिए इस तरह की बातें कर पार्टी को कमजोर कर रहे हैं।
नई कांग्र्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष की 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर क्या रणनीति रहेगी।
देखिए, मेरा फोकस जमीनी कार्यकर्ताओं में जान फूंकना, उनको सम्मान ओैर इज्जत दिलाना है। मेरा फोकस सशक्त बूथ कमेटियों का गठन करना है। उनको ट्रेनिंग भी देना मेरा फोकस रहेगा। मेरी कोशिश रहेगी कि पहले तो हम पांच की पांच सीटें जीतें। यह तय है कि हर सीट पर आपको कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा।