[gtranslate]
Uttarakhand

देश ने एक सच्चा सैन्य अफसर खो दिया

  • रिटायर्ड ले. जनरल डॉ  मोहन भंडारी
    पी.वी.एस.एम., ए.पह.उा.एम.

एक जवान चौबीस घंटे जान हथेली पर लेकर ही जीता है। और बात जब किसी एयरक्राफ्ट पर सवारी की आए, तो उड़ान भरने के बाद आप जब तक भूमि को नहीं छूते हैं, तब तक कुछ कह नहीं सकते। विमान या कोई भी एयरक्रॉफ्ट पूरी तरह से तकनीक और यंत्रों पर आधारित होता है। इसमें कोई शक नहीं कि उड़ान से पहले एक बेहतरीन स्थिति वाले एमआई-17 हेलीकॉप्टर को चुना गया होगा, उसकी पूरी जांच हुई होगी, तमाम मापदंडों पर उसे परखा गया होगा, सबसे दक्ष उपलब्ध पायलट को कमान सौंपी गई होगी, लेकिन फिर भी यह दुखद हादसा हो गया। जो उच्च अधिकारी हादसे के शिकार हुए, उन्हें चूंकि मैं व्यक्तिगत रूप से भी जानता हूं, इसलिए निजी रूप से भी मेरे लिए यह बहुत दुख की घड़ी है।

देश ने बिपिन रावत के रूप में एक सच्चा सैन्य अफसर खो दिया है। वह देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ थे। इनके पिताजी लक्ष्मण सिंह रावत मेरी रेजीमेंट में थे। वह भी बहुत कर्मठ एवं समर्पित जवान थे, मेहनत एवं सेवा के बल पर ही उन्होंने सिपाही से लेकर थ्री स्टार जनरल तक का सफर तय किया था। समर्पित पिता की औलाद बिपिन रावत ने भी सैन्य सेवा को सहजता से स्वीकार किया। दिसंबर 1978 में इन्हें कमीशन मिला था। उसके अगले साल 1979 में मेरी उनसे मिजोरम के
मोर्चे पर पहली मुलाकात हुई थी। बहुत स्मार्ट जवान अफसर थे, तेजतर्रार और व्यवहार कुशल। बाद में अमेरिका में यूएस आर्मी कॉलेज में, मैं एक सैन्य कोर्स करने गया था, तब बिपिन रावत भी अमेरिका में ही थे। वह कांगो में भी रहे। बारामुला में भी रहे। उनसे मेरी बातचीत लगातार होती रहती थी। मिलना-जुलना भी खूब होता था। मेरी पत्नी और उनकी पत्नी के बीच भी बड़ा मेल था। जब हम रानीखेत से दिल्ली जाते थे, तब उनके घर परिवार से मुलाकात होती थी। वह जब रानीखेत आते थे, तब भी मिलना होता था। ऐसे अनेक मौके हैं, जो याद आ रहे हैं और दिल भर आ रहा है।

बहुत बेबाक, निडर और साहसी व्यक्ति थे। ईश्वर के अलावा किसी से नहीं डरते थे। दिल बहुत साफ था। हर मौके पर सबकी मदद करते थे। सेना के बहुत सक्षम व आदर्श पेशेवर अफसर थे। आतंकी हिंसा से लड़ने और रणनीति बनाने में विशेषज्ञ थे। उन्हें छह सम्मान मिले हुए थे। उनका जाना एक बहुत बड़ी क्षति है। उनके साथ ही भारतीय सेना ने कई बहुत सक्षम अफसरों को खोया है, यह दुख कुछ दिनों तक सालता रहेगा। कुन्नूर की पहाड़ियों और जंगल के ऊपर आखिर क्या हुआ? हेलीकॉप्टर कैसे जमीन पर आ गिरा, यह तो जांच के बाद ही सामने आएगा। इस देश के तमाम लोगों की तरह ही मेरे मन में भी आज बहुत से सवाल उमड़ रहे हैं? क्या पायलट से चूक हुई थी? क्या खराबी आ गई थी? यह जो एमआई-17 हेलीकॉप्टर है, उसमें मैं कई दफा बैठ चुका हूं। रूस द्वारा बनाए गए इस हेलीकॉप्टर का खूब उपयोग होता है, इसे सेना में घोड़े के रूप में देखा जाता है। दो इंजन वाले इस हेलीकॉप्टर में बहुत वजन और 30 से ज्यादा जवानों को ढोने की क्षमता है। इसे सेना में बहुत योग्य वाहन माना जाता है, लेकिन बताते हैं कि कुन्नूर में मौसम खराब था, कोहरा था। इंजन से आवाज आ रही थी, शायद इंजन फेल हो गया था। ऐसी उड़ानों में आपके पास समय नहीं होता है। थोड़ी भी गलती हो जाए, तो सुधार नहीं पाते हैं और दुर्घटना हो जाती है।

हादसे के बाद की तस्वीरें देखकर अपने साथ हुए हादसे की मेरी यादें ताजा हो गई हैं। साल 1968 में ऐसे ही एक हादसे में मैं बाल-बाल बचा था, दो महीने तक अस्पताल में रहा था। वास्तव में फैसला लेने के लिए या हादसे के लिए एक सेकेंड से भी कम समय होता है। गुलमर्ग के ऊपर खिल्लनमर्ग में मैं स्कीइंग कोर्स करने गया था। मेरे बाएं पांव की हड्डी टूट गई थी, मुझे वहां से लाया जा रहा था। फ्रांस का बना हुआ एलविट-3 हेलीकॉप्टर था, उस जमाने का बहुत मजबूत और विश्वसनीय। हेलीकॉप्टर के नीचे जो स्कीड होती है, वह बर्फ में धंसी हुई थी। उड़ान से पहले वह और धंस गई। हेलीकॉप्टर पूरी ताकत से उड़ा और उठते ही उसके टुकड़े हो गए। धुआं फैल गया। नियम है कि जब धुआं आने लगे, तब उससे सौ मीटर दूर चले जाना चाहिए। लेकिन जाने की मेरी स्थिति नहीं थी। पायलट आग बुझाने में लगे हुए थे, अच्छा हुआ आग किसी तरह से बुझ गई। मुझे किसी तरह से निकाल लिया गया। दरअसल, एयरक्राफ्ट में बहुत ईंधन भरा होता है, जो आग लगती है, तो देर तक बुझती नहीं है। कुन्नूर के हादसे में यही हुआ है। हेलीकॉप्टर के टुकड़े हुए और आग बुझी नहीं।

स्वाभाविक है, एमआई-17 हेलीकॉप्टर पर सवाल उठेंगे। आज कम-से-कम 50 देश इसका उपयोग करते हैं। लगता यही है कि ऐसे विरल हादसों को रोकना मुश्किल है। हेलीकॉप्टर गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध काम करता है, जब उसका इंजन फेल होता है, तब वह किसी पत्थर की तरह गिरता है। एक ऐसा ही हादसा 1963 में हुआ था। अनेक बड़े अधिकारी उसमें शहीद हुए थे। तब सरकार ने यह आदेश निकाला था कि थ्री स्टार और उससे ऊपर के अफसर एक ही जहाज में एक साथ नहीं जाएंगे। जो वीआईपी होंगे, वह सिंगल इंजन एयरक्राफ्ट में सफर नहीं कर सकेंगे। इन नियमों का पालन अभी भी होता है। लेकिन इस हादसे में क्या हुआ यह ब्लैक बॉक्स मिलने पर ही पता चलेगा। यह भी एक नियम ही है कि बड़े अफसर अपने परिवार को साथ ले जा सकते हैं, परिजन के लिए भी कार्यक्रम या काम निर्धारित रहता है।

यह हादसा बड़ा है, सेना में इसका दुख है, लेकिन इसका मनोबल पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। हमारी सैन्य व्यवस्था इतनी अच्छी है कि सबको अपना काम पता है और सब चौबीस घंटे तैयार रहते हैं। दुनिया को हमारी ताकत का पता है। रूसी राष्ट्रपति चंद घंटों की अपनी यात्रा में ही इशारा कर गए हैं कि भारतीय सेना ताकतवर सेना है और भारत एक बहुत शक्तिशाली राष्ट्र है। हां, सेना को और सशक्त करने की जरूरत है। आज देश जिस मोड़ पर है, वहां रक्षा बजट को कम-से-कम पांच प्रतिशत करना चाहिए, ताकि सेना को आधुनिक बनाने और जरूरत के हिसाब से सुसज्जित करने का खर्चीला काम आसानी से पूरा हो सके।

You may also like

MERA DDDD DDD DD