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Uttarakhand

सीमांत में हुआ साहित्य-संस्कृति का संगम

युवाओं को मोबाइल से हटाकर किताबों की दुनिया में ले जाने के उद्देश्य से पहाड़ों पर ‘किताब कौतिक’ के आयोजन महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। टनकपुर, चंपावत, बैजनाथ के बाद अब सीमांत पिथौरागढ़ में चौथा किताब कौतिक सराहा जा रहा है। साहित्य-संस्कृति और लोक कला से जुड़ी विभूतियां इस कौतिक में भविष्य की नींव मजबूत करने पहुंची

किताब कौतिक की चौथी कड़ी में इस बार सीमांत पिथौरागढ़ में किताबों का मेला लगा जिसमें स्थानीय लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 4, 5 और 6 जुलाई के इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में पत्रकार, साहित्यकार और अधिकारियों की सहभागिता रही। किताब कौतिक के इस कार्यक्रम में साहित्य, संस्कृति और लोक कला का संगम देखने को मिला। यहां लगभग 60 प्रकाशकों की 50 हजार किताबें बिक्री के लिए उपलब्ध कराई गई थीं। जिनमें आध्यात्म, पर्यटन, विज्ञान, इतिहास, बाल साहित्य सहित पाठकों की रुचि के अनुसार हर तरह का साहित्य था। कार्यक्रम का उद्घाटन जिला पंचायत अध्यक्ष दीपिका बोरा, नगर पालिका अध्यक्ष राजेंद्र रावत, जिलाधिकारी रीना जोशी और मुख्य विकास अधिकारी वैभव चौधरी द्वारा हुआ।
4 जुलाई को पर्यटन, रंगमंच, सिविल सेवा, साहित्य, पत्रकारिता, बाल साहित्य आदि के विशेषज्ञों ने 7 जगहों पर लगभग 15 स्कूलों के बच्चों को जानकारी दी। इस दिन 3 हजार से ज्यादा लोगों ने मेले में शिरकत की और लगभग 5 हजार किताबों की बिक्री हुई। कौतिक में आमंत्रित लेखक और साहित्यकारों से स्थानीय लोगों की सीधी बातचीत हुई। लगभग 25 स्कूलों के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम, पेंटिंग प्रतियोगिता, ऐपण प्रतियोगिता, कविता वाचन, फोटोग्राफी व अन्य गतिविधियों में उत्साहपूर्वक भागीदारी की। शाम को ‘भाव राग ताल’ टीम द्वारा ‘हटमाला के उस पार’ नाटक का प्रभावशाली मंचन किया गया।

यहां ‘न्यौलि कलम-पिथौरागढ़’ किताब का विमोचन हुआ, जिसमें पिथौरागढ़ जिले के स्कूली बच्चों के 125 स्वरचित लेख/कविता आदि प्रकाशित हैं। इस दिन जिले के 5 वरिष्ठ साहित्यकारों को सम्मानित किया गया जिनमें कच्चाहारी बाबा, बद्री दत्त कसनियाल, परमानंद चौबे, पद्मादत्त पंत और लोक कलाकार जगत राम साथ ही जीआईसी भड़कटिया द्वारा छलिया नृत्य और मानस अकादमी द्वारा हिलाजात्रा की प्रभावशाली प्रस्तुति की गई। कौतिक के दूसरे दिन 10 नई किताबों का विशेष अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया। वरिष्ठ पत्रकार बद्री दत्त कसनियाल और प्रो. शेखर पाठक ने पहले सत्र में ‘पिथौरागढ़ का वैभवशाली इतिहास और भविष्य की संभावना’ विषय पर अपनी बात रखी। प्रसिद्ध लेखिका डॉ हेमा उनियाल ने ‘मानसखण्ड-नए संदर्भ’ विषय पर व्याख्यान दिया। लगभग 25 कवियों ने ‘कवि सम्मेलन’ में अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। सभी कवियों को सम्मानित किया गया। सांस्कृतिक संध्या में लोकगायक प्रहलाद मेहरा, कैलाश कुमार और नाद भेद टीम ने सुंदर गीत गाए।

‘किताब कौतिक’ में डीएम रीना जोशी

नक्षत्र, अल्मोड़ा द्वारा आधुनिक दूरबीनों के साथ लगभग 800 लोगों को खगोल विज्ञान से जुड़ी जानकारी दी गई। अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने सरलता से विज्ञान के सिद्धांत समझाने वाले मॉडल्स प्रदर्शित किए। साथ ही ‘पहरू’ द्वारा स्थानीय भाषाओं की किताबों का स्टॉल लगाया गया। पुष्पा फर्त्याल (शहरफाटक) द्वारा कठपुतलियों के माध्यम से परंपरागत वेशभूषा और  महिलाओं के दैनिक कार्यों का सुंदर चित्रण किया गया। स्थानीय युवा ऐपण कलाकार यामिनी और कविता खड़ायत द्वारा हस्तशिल्प प्रदर्शनी लगाई गई। दोनों को अच्छे ऑर्डर भी प्राप्त हुए। संगीत कला अकादमी द्वारा सम्मानित वरिष्ठ रंगकर्मी ललित पोखरिया (लखनऊ) ने अभिनय में रुचि रखने वाले बच्चों से बातचीत की और मार्गदर्शन किया। युवा वैज्ञानिक सम्मान प्राप्त डॉ संजय उपाध्याय ने ‘शोध की चुनौतियां और मेरे अंतरराष्ट्रीय अनुभव’ विषय पर विद्यार्थियों से बात की। युवा आईएएस देवेश शासनी (एसडीएम धारचूला) और वरिष्ठ लेखक, पत्रकार नवीन जोशी (लखनऊ) ने जीजीआईसी में लगभग 500 छात्राओं से संवाद किया। जहां पर छात्र-छात्राओं को कैरियर से जुड़े टिप्स दिए गए। सुबह कौशल्या देवी मंदिर (हुडैती) में ‘नेचर वॉक’ की गई। सीटीआर से आए श्री राजेश भट्ट ने बर्ड वाचिंग और वनस्पति विज्ञानी डॉ बीएस कालाकोटी ने रास्ते पर मिल रही जड़ी-बूटियों के बारे में सभी लोगों को जानकारी दी।

नेचर वॉक के समापन पर भूतपूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ ललित उप्रेती ने रक्तदान, नेत्रदान और अंगदान की जरूरत पर बात रखी। इसके अलावा ‘स्थानीय भाषा का शिक्षा में महत्व’ विषय पर विशेषज्ञों ने चर्चा की। ‘घुमक्कड़ी और यात्रा लेखन’ पर रोचक वार्ता के साथ ही ‘हिंदी साहित्य में पहाड़’ विषय पर लेखक और पत्रकार नवीन जोशी ने चर्चा की। कौतिक में आमंत्रित अतिथियों को आस- पास के पर्यटन स्थल, मंदिरों का भ्रमण करवाया गया। स्मृति चिÐ के रूप में पिथौरागढ़ जिले के विशिष्ट त्योहार, लोक परंपरा, प्राकृतिक दृश्य आदि चित्र भेंट किए गए।

 

किताबों का अवलोकन करते छात्र

पिथौरागढ़ में तीन दिवसीय किताब कौतिक का आयोजन भविष्य की नींव को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण रहा। यहां संस्कृति, कला, साहित्य, भाषा सभी पर गहन मंथन हुआ। इसके लिए हेम पंत जी बधाई के पात्र हैं जिनके अथक
प्रयासों से यह कौतिक किया गया।
रीना जोशी, जिलाधिकारी पिथौरागढ़

 

 

 

सूरज भर उजाला लेकर लौटा हूं : अशोक पाण्डेय
विकास की हर सरकारी योजना में पिथौरागढ़ जिले की बारी सबसे आखिर में आती रही है। इसी के चलते स्थानीय महाविद्यालय में न तो अच्छी किताबें थीं न पढ़ाने को पर्याप्त संख्या में अध्यापक। लंबे समय से आक्रोशित छात्र-समुदाय अंततः आंदोलन करने को विवश हुआ और अच्छी किताबों और अध्यापकों की मांगें लेकर सड़कों पर उतर आया। इन युवाओं के मां-बाप और परिचित भी उनके साथ आ खड़े हुए। सडकों पर जुलूस निकाले गए, सभाएं हुईं। कोई डेढ़ माह चले इस अभूतपूर्व घटनाक्रम की परिणति के पहले कदम के रूप में विश्वविद्यालय प्रशासन को पांच लाख रुपये की स्तरीय किताबें पिथौरागढ़ भिजवानी पड़ी। लिखने-पढ़ने को लेकर जिस तरह की चेतना हाल के वर्षों में इस नगर में दिखी है वह एक मिसाल है। कोई दसेक बरस पहले यहां के चुनिंदा युवाओं की कोशिशों से ‘आरम्भ स्टडी सर्कल’ नाम का एक शानदार ग्रुप अस्तित्व में आया। इसी समूह की अगुवाई में शिक्षक-पुस्तक आंदोलन चला था। सैकड़ों बच्चे आज इसके सदस्य हैं। जिन छात्र संघों के चुनाव ठेकेदारी और खनन जैसे धंधों में घुसने के रास्ते बन चुके हैं, पिथौरागढ़ के लड़के-लड़कियों ने एक पढ़ने-लिखने वाले को उसमें अध्यक्ष बनाकर भेजा।

मैंने सुन रखा था कि ‘आरम्भ’ के ये युवा खूब पढ़ते हैं और मिल-जुल कर अपनी पढ़ी किताबों पर नियमित चर्चा करते हैं। यह भी कि उनकी पढ़ाई का दायरा कोर्स की किताबों तक ही सीमित नहीं है और वे आधुनिकतम वैश्विक लेखन से परिचित हैं। इन चमकीले युवाओं से मिलने की इच्छा मुझे पिछले दिनों पिथौरागढ़ लेकर गई जहां हमारे मित्र हेम पंत और उनके साथियों की पहल पर एक पुस्तक मेला आयोजित किया जा रहा था। हॉल में घुसते ही तमाम लड़के-लड़कियों ने घेर लिया और किताबों पर मुझसे दस्तखत करवाए। इनमें से ज्यादातर ‘आरम्भ’ का हिस्सा थे। हॉल का सबसे बड़ा हिस्सा ‘आरम्भ’ के आकर्षक स्टॉल ने घेरा हुआ था और उसमें बहुत बड़ी संख्या में किताबें बिक्री के लिए सजाई गयी थीं। मैं इन किताबों के टाइटल्स को देखता, हैरान होता जाता था कि वहां रिचर्ड फाइनमैन की किताबें भी थीं और इस साल साहित्य का नोबेल जीतने वाली एनी एरनॉ की भी। बच्चों की किताबों का एक अलग विस्तृत सेक्शन था, क्लासिक्स का अलग, समकालीन लेखन का अलग।

उम्मीदों से भरे महेंद्र, दीपक, राकेश, शीतल, रजत, एकता और अभिषेक जैसे ये सैकड़ों युवा किताबों के साथ-साथ हर उस चीज से प्यार करते हैं जो इंसान बने रहने के लिए जरूरी हैं। वे चित्रकला पर भी बहस करते हैं और सिनेमा पर भी। पिछले माह उनके समूह ने चर्चित मलयाली फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ को साथ-साथ देखा है और उस पर चर्चा की है। युवाओं के किसी समूह की सफलता का इससे बड़ा पैमाना क्या होगा कि माता-पिता शान से घर आए मेहमानों को बताएं कि उनके बच्चे ‘आरम्भ’ का हिस्सा हैं।

किताबों की प्रदर्शनी और बिक्री को ‘आरम्भ’ ने लगातार अपने कैलेंडर का हिस्सा बना लिया है। आज पिथौरागढ़ जिले में कहीं भी किसी मंदिर परिसर में या ऐसी ही किसी जगह कोई मेला लगता है तो आयोजक एक जगह इन किताबों के लिए छोड़ने लगे हैं। ‘आरम्भ’ इन जगहों पर बच्चों की किताबों को ले जाने पर अधिक जोर देता है। गांवों के बहुत-से बच्चे पहली बार अपने कोर्स से बाहर की किसी किताब को छू पाते हैं। पुस्तक मेले के एक हिस्से में मुझसे मेरी किताबों को लेकर महेंद्र रावत नाम के एक युवा ने मंच पर बातचीत की। किसी ने बताया यह वही हैं जो छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव जीते थे। महेंद्र ने सभी किताबें अच्छे से पढ़ रखी थीं और वे पूरी तैयारी के साथ बाकायदा नोट्स बनाकर पहुंचे थे। बातचीत में अनिर्वचनीय आनंद आया।

‘आरम्भ’ की ईमानदार मशक्कत का नतीजा यह निकला है कि आज उस पिथौरागढ़ से पढ़े-लिखे युवाओं की पीढियां निकल कर देश भर में नाम रोशन कर रही हैं जिसे कभी पिछड़ा होने का अभिशाप मिला हुआ था और जहां के बच्चों को अच्छी पढ़ाई के लिए नैनीताल और अल्मोड़ा जैसी जगहों पर जाना पड़ता था। यहां आकर यह यकीन और पुख्ता होता है कि अच्छा पढ़ने-पढ़ाने का आज भी कोई विकल्प नहीं है। थोड़ी-सी रोशनी की उम्मीद लेकर पिथौरागढ़ गया था, इन बेहतरीन लड़के-लड़कियों की संगत में कुछ देर रह कर सूरज भर उजाला लेकर लौटा हूं।
अशोक पांडेय, ब्लागर, अनुवादक एवं चर्चित लेखक (फेसबुक से)

 

 

 

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