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हाथी के दांत खाने के और दिखाने के कुछ और होते हैं। लगता है कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की हकीकत भी ऐसी ही है। पूर्व में राज्य के पशुपालन मंत्री रहते परमार्थ निकेतन को गौ सेवा के नाम पर भूमि आवंटित करने को बेहद उतावले रहे त्रिवेंद्र रावत आज अपने राज में गौ सदनों को ध्वस्त किए जाने पर मौन हैं। उन्हें मलाल नहीं कि जिन गायों को वे चौबीसों घंटे ऑक्सीजन छोड़ने वाली मानते हैं, वे कड़ाके की इस ठंड में खुले आसमान तले कैसे रह रही होंगी? राज्य की पशुपालन मंत्री रेखा आर्य को भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। गौ सेवी तो यहां तक आक्रोश व्यक्त करते हैं कि ऋषिकेश के पशुलोक स्थित गौ सदन को बचाने के लिए जब वे पशुपालन मंत्री से मिले तो उन्होंने इस बारे में अपने पति गिरधारी लाल साहू से बात करने को कह दिया। गौ सेवी आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि गौ सदन इस मकसद से तुड़वाया गया ताकि इस भूमि को राज्य सरकार निवेश नीति के तहत किसी होटल कारोबारी या वेलनेस सेंटर को दे सके

 

भाजपा गाय और गंगा के नाम पर राजनीति करती रही है। चुनावों में भी इसी मुद्दे को लेकर जनता में अपनी गहरी पैठ बनाती रही है। लेकिन आज सत्ता पाने के बाद भाजपा और उसकी सरकारें गाय को पूरी तरह से भुला चुकी हैं। यहां तक कि बगैर सरकारी संरक्षण या सहायता के चलने वाले गौ सदनों को शासन और विभागों के जरिए नेस्तनाबूद किया जा रहा है। ऋषिकेश में तहसील प्रशासन और पशुलोक विभाग निराश्रित और बीमार गायों के लिए करीब 20 वर्षों से चलाए जा रहे गौ धाम या गौ सदन को तोड़ दिया, जबकि यह गौ सदन अतिक्रमण की जद में नहीं था।

इस गौ धाम को तोड़े जाने के पीछे की कहानी खासी दिलचस्प है। इसमें जहां एक ओर गौ धाम की करोड़ों की भूमि का लोभ छुपा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ मौजूदा सरकार ओैर खासतौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के कथित गौ प्रेम की हकीकत भी सामने आती दिखाई दे रही है। जिस गौधाम को ध्वस्त किया गया वह वर्षों से बगैर किसी सरकारी सहायता से संचालित होता आ रहा था। पशुलोक वीरभद्र खुर्द में वर्ष 2001 में ऋषिकेश के धर्मपरायण और पशुप्रेमी लोगों द्वारा तकरीबन पांच बीघा में यह गौ धाम बनाया गया था। जिसमें नगर के आस-पास भटकने वाले आवारा गौवंश और निराश्रित तथा बीमार गायों के रहने और उनके उपचार के लिए व्यवस्था की गई। यह गौ धाम दुर्घटना में घायल पशुओं के उपचार के लिए भी बेहतर काम करता रहा है। यहां तक कि उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रां से गौ तस्करी करके लाए गए गौ वंश को तस्करों के हाथों पुलिस कार्यवाही से छुड़वा कर इसी गौ धाम या गौ सदन में उनकी देखभाल भी करता रहा है।

गौधाम के लिए नगर और आस-पास के क्षेत्रां के कई सामाजिक लोग नियमित स्वेच्छा से धनराशि देते थे। कई पशु चिकित्सक भी गौधाम को संचालित करने वाली संस्था श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति को सेवाभाव से योगदान देते रहे हैं। पशुओं को चारा-पानी के अलावा रहने के लिए टिनशेड की व्यवस्था भी बहुत बेहतर तरीके से की जा रही थी। भाजपा की अंतरिम सरकार में पशुपालन मंत्री रहे बंशीधर भगत ने गौ धाम की बेहतर सेवाओं को देखते हुए पशुलोक प्रशासन को आदेश दिए कि पशुलोक की अनुपयोगी भूमि गौ सदन के लिए दी जाए। जिसके लिए तत्कालीन उपनिदेशक पशुलोक द्वारा 31 जनवरी 2001 को पशुलोक की त्रिकोणीय अनुपयोगी भूमि श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति उत्तरांचल, भगवानपुर आश्रम पुष्कर मंदिर मार्ग की गैरसरकारी संस्था को दी गई थी।

अब 14 सितंबर 2019 को पशुलोक प्रशासन और ऋषिकेश तहसील प्रशाशन द्वारा अचानक जेसीबी ले जाकर पूरा गौधाम ध्वस्त कर दिया गया। इसमें रहने वाली 56 गायों को क्रेन द्वारा ट्रैक्टर ट्राली में उठाकर पशुलोक के खुले मैदान में एक बाड़ा बनाकर छोड़ दिया गया, जबकि समिति द्वारा 70 गायों की संख्या बताई जा रही है। आज इस कड़ाके की सर्दी में यह सभी गायें ओैर गौवंश खुले में रहने को मजबूर हैं।

 

  • भाजपा की अंतरिम सरकार के पशुपालन मंत्री बंशीधर भगत ने जिस गौ सदन के लिए जनवरी 2001 में भूमि उपलब्ध कराई, वह आज त्रिवेंद्र सरकार की जरूरत नहीं रही। प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर गौ सदन तोड़ दिया।

    अतिक्रमण हटाने की आड़ में गौ सदन की ही बलि क्यों?

    पूर्व में जिला अदालत देहरादून ने गौ सदन में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे।

    गौ सदन की भूमि पर अब वेलनेस सेंटर और होटल खुलने की चर्चाएं।

ऐसा नहीं है कि इस गौधाम को हटाए जाने के प्रयास पहली बार हुए हैं। बस, फर्क इतना है कि इस बार के प्रयास सफल हुए हैं। पूर्ववर्ती कांग्रेस की तिवारी सरकार के समय में तत्कालीन पशुपालन मंत्री मंत्रीप्रसाद नैथानी ने भी पशुलोक की इस अनुपयोगी भूमि में स्थापित गौधाम को हटाए जाने के प्रयास किए थे। तत्कालीन समय में इस गौ सदन को तोड़ने के लिए जेसीबी मशीनां के साथ पूरा सरकारी अमला पहुंच गया था, लेकिन भारी जन दबाब के चलते कार्यवाही पूरी नहीं हो पाई। इसके विरोध में श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति उत्तरांचल द्वारा जिला जज देहरादून की अदालत में एक वाद दाखिल किया गया जिस पर जिला जज अदालत ने यथास्थिति को बहाल करने के आदेश दिए और इस मामले में नियमानुसार कार्यवाही करने के आदेश देते हुए स्थगन आदेश समिति के पक्ष में जारी कर दिया। तब से लेकर ध्वस्तीकरण की कार्यवाही तक यह गौधाम संचालित होता रहा।

अब बताया जाता है कि पशुलोक प्रशासन ने तहसील ऋषिकेश प्रशासन के साथ मिलीभगत करके एक षड्यंत्र रचकर गौधाम को ध्वस्त कर दिया। इस पूरे मामले में श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति उत्तरांचल के अध्यक्ष और भाजपा नेता संजय शास्त्री बताते हैं कि जिला जज देहरादून द्वारा स्थगन आदेश में कहा गया था कि नियमानुसार कानूनी प्रक्रिया के तहत ही कार्यवाही की जाए। वर्षों तक पशुलोक विभाग द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। यहां तक कि कोर्ट के स्टे को भी खारिज करने में कोई रुचि नहीं ली। लेकिन जैसे ही राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और रेखा आर्या पशुपालन मंत्री बनीं तो पूरा पशुलोक प्रशासन गौधाम को ध्वस्त करने के षड्यंत्रों में लग गया। इसके लिए पशुलोक प्रशासन द्वारा एसडीएम ऋषिकेश की अदालत में वर्ष 2019 में एक वाद दायर किया गया और 3 सितंबर 2019 को एकपक्षीय निर्णय पशुलोक के पक्ष में करवा लिया। हैरत की बात यह है कि श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति को इसकी कोई सूचना तक नहीं दी गई। समिति का कहना है कि एडीएम कोर्ट में कम से कम तीन महीने तक तो मुकदमा चला ही होगा और दूसरे पक्ष यानी समिति को इसमें जवाब देने के लिए बुलाया जाना जरूरी था, लेकिन न तो समिति को मुकदमे की कोई सूचना दी गई और न ही जब निर्णय दिया गया, तब भी समिति को कोई सूचना दी गई। जबकि समिति लगभग 20 वर्षों से गौ सदन का संचालन करती रही है। समिति को इसकी सूचना समाचार पत्रों के माध्यम से मिली तो समिति द्वारा इसके विरोध में जिला जज देहरादून की अदालत में रिव्यू दाखिल किया गया जिस पर जिला न्यायालय द्वारा आदेश पारित करने वाली अदालत से सभी मूल अभिलेख प्रस्तुत करने और बेदखली की कार्यवाही को विधिवत तौर पर करने के आदेश गए। इस आदेश के बाद यह होना चाहिए था कि एसडीएम अदालत समिति के पक्ष को सुनती और तब कार्यवाही की जाती, लेकिन इसके बजाए गौधाम को ध्वस्त कर दिया गया।


पशुलोक प्रशासन और तहसील प्रशासन की इस कार्यवाही से नगर के पशु प्रेमियां में खासा रोष देखने को मिल रहा है। समिति के संरक्षक डॉक्टर दिनेश शर्मा ने केंद्रीय गृह मंत्री अमितशाह के अलावा मुख्यमंत्री को इस प्रकरण की शिकायत की है। गृह मंत्री अमितशाह को लिखे पत्र में कहा गया है कि राज्य की पशुपालन मंत्री रेखा आर्या ने इस गौ सदन को बचाने के प्रयास तक नहीं किए। यहां तक कि जब समिति के लोग पशुपालन मंत्री से मिलने उनके कार्यालय में गए तो मंत्री जी ने अपने पति गिरधारी लाल साहू से इस बारे में बात करने को कहा। इससे कम से कम यह तो साफ हो जाता है कि पशुलोक किसी भी सूरत में इस गौधाम को हटाए जाने का प्रयास कर रहा था, जबकि सूत्रों की मानें तो इस पूरे प्रकरण के पीछे गौ सदन की करोड़ों की भूमि और पशुलोक प्रशासन द्वारा वर्षों से पशुलोक की भूमि पर अवैध कब्जां को संरक्षण दिए जाने के मामले में कानूनी कार्यवाही से बचने के लिए यह कार्यवाही की गई है। इस मामले की भी अलग ही दिलचस्प कहानी है। जिसमें पशुलोक प्रशासन के उच्चाधिकारियों के फंसने की आशंका है जिससे बचने के लिए इस गौधाम की बलि दी गई है।

दरअसल, टिहरी बांध के निर्माण के लिए टिहरी से हजारों परिवारों को अलग-अलग स्थानों में विस्थापित किया गया। इसी कड़ी में पशुलोक की भूमि को टिहरी बांध पुनर्वास के लिए चिन्हित किया गया जिसमें दर्जनों गावों के परिवारां के लिए भूमि आवंटित की गई। इसी आवंटन में बहुत बड़ा खेल किया गया। टिहरी बांध पुनर्वास विभाग द्वारा पशुलोक की ऐसी भूमि पर भी विस्थापितों के लिए भूमि के पट्टे काट दिए गए जो पुनर्वास विभाग को मिली ही नहीं थी। वर्षों से दोनां ही विभाग घोर लापरवाही करते रहे और आज उक्त भूमि पर कई मंजिला आवासीय कॉलोनियों का निर्माण हो चुका है।

इस मामले को लेकर मसूरी के एक वकील रमेश जयसवाल द्वारा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई जिस पर हाईकोर्ट ने पशुलोक प्रशासन को अपनी भूमि को कब्जे में लेने का आदेश जारी कर दिया। पशुलोक प्रशासन अपनी भूमि को खाली करवाकर कब्जे में लेने के लिए प्रयास करता रहा। लेकिन भारी जनदबाव के चलते ऐसा नहीं हो पाया, पर हाईकोर्ट के आदेश ओैर समय-सीमा के बाद पशुपालन सचिव ने हाईकोर्ट में जबाब दाखिल करके बताया कि पशुलोक द्वारा सभी अतिक्रमणकारियों को हटा दिया गया है और भूमि को कब्जे में ले लिया गया है, जबकि ऐसा कुछ नहीं किया गया।

रमेश जयसवाल द्वारा इस मामले को फिर से हाईकोर्ट के संज्ञान में लाया गया तो हाईाकोर्ट ने इसे अवमानना का मामला बनाकर सचिव पशुपालन को हाईकोर्ट में उपस्थित होने का आदेश दिया। जिस पर सचिव द्वारा हाईकोर्ट की अवमामना की कार्यवाही के भय से इस गौ सदन को ध्वस्त करवाया, जबकि गौधाम कभी भी अतिक्रमण में था ही नहीं। गौधाम को गौ सेवा करने के लिए स्वयं पशुलोक के उपनिदेशक द्वारा यह भूमि दी गई थी। पशुलोक की भूमि पर हो रहे अतिक्रमण पर पशुलोक प्रशासन ने समय- समय पर अतिक्रमण हटाने का प्रयास किया था जिसका प्रमाण वर्ष 2002 में वन विभाग और राजस्व विभाग द्वारा संयुक्त निरीक्षण में यह पाया गया था कि पशुलोक की भूमि में सीमा डेंटल कॉलेज ने अपनी दीवार का निर्माण करके अतिक्रमण किया हुआ है। साथ ही विख्यात स्वामी राम साधक ग्राम का निर्माण पशुलोक की भूमि में किया गया है और रिपोर्ट में इनको ही अतिक्रमण में चिन्हित किया गया था।

रिपोर्ट के बाद पशुलोक के उपनिदेशक डॉक्टर जी कांडपाल द्वारा दिनांक 19 सितंबर 2002 को सीमा डेंटल कॉलेज के प्रबंधक को अतिक्रमण हटाने का पत्र भी जारी किया गया था। इस पत्र से यह स्पष्ट है कि पशुलोक की भूमि में अतिक्रमण हुआ है, लेकिन गौधाम का उल्लेख अतिक्रमण में नहीं किया गया।

उजाड़ हो चुकी गौशाला

बताया जाता है कि आज गौधाम की करोड़ों की भूमि पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। आज यह इलाका एक छोटे नगर की भांति तेजी से विकसित हो रहा है। बड़े-बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट और रिसोर्ट तथा एम्स तक इस क्षेत्र में स्थापित हो चुके हैं। टिहरी बांध विस्थापितों की हजारों की आबादी इस क्षेत्र में निवास कर रही है। एक नगर की भांति इस क्षेत्र को बना दिया गया है। सीमा डेंटल कॉलेज एवं योग और आस्था के कई केंद्र इस क्षेत्र में स्थापित हो चुके हैं। माना जा रहा है कि अब गौधाम से बेदखल करवाई गई भूमि सरकार की राज्य में निवेश की नीति के तहत बड़े होटल करोबारियों को दी जाएगी। प्रदेश सरकार द्वारा ऋषिकेश में वेलनेस सेंटरों को स्थापित करने की योजना आरंभ की गई है। तकरीबन पांच बीघा की करोड़ों की भूमि में आने वाले समय में कोई बड़ा वेलनेस सेंटर या होटल स्थापित दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं होगा।

 

बात अपनी-अपनी

हमने पशुलोक को कई बार लिख कर दिया है कि इस गौधाम को पशुलोक विभाग अपने नियंत्रण में ले। हम चाहते थे कि गायों की सेवा जैसी होती रही वैसी ही पशुलोक विभाग भी करता रहे। हमसे जो सहायता संभव होगी वह करते रहेंगे। इसे तोड़ने की जरूरत नहीं थी। यह कोई अतिक्रमण नहीं था। स्वयं पशुलोक ने न्यायालय में अपने जवाब में लिख कर दिया है कि श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति और पशुलोक विभाग मिलकर इस गौ सदन का संचालन करते हैं तो फिर इसे तोड़ा क्यों गया। मुकदमे की सूचना समिति को नहीं दी गई। गुपचुप तरीके से एकपक्षीय निर्णय अपने पक्ष में करवा लिया गया। हम इसके खिलाफ कोर्ट में जा रहे हैं।
संजय शास्त्री, अध्यक्ष श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति

सरकार केवल चुनाव में ही गाय का नाम वोट के लिए लेती रही है, जबकि सरकार और भाजपा को गाय से कोई मतलब नहीं है। पशुपालन मंत्री इस षड्यंत्र में लगी हुई हैं। हमारी जानकारी में आ रहा है कि गौधाम से बेदखल करवाई गई भूमि किसी बड़े होटल व्यवसायी को वैलनेस सेंटर के नाम पर आवंटन करने का खेल किया जा रहा है। पशुपालन सचिव द्वारा अपने कारनामों से बचने के लिए गौधाम को तुड़वाया गया है। हाईकोर्ट ने तो पशुलोक विभाग की जमीनों पर किए गए अवैध कब्जों को हटाने के आदेश दिए थे और गौ सदन कभी भी अतिक्रमण में नहीं था। अवैध कब्जों को तो हटा नहीं पा रहे हैं और गौधाम को तोड़कर हाईकोर्ट को कहेंगे, देखें साहब हमने पशुलोक की भूमि से अवैध कब्जों को हटा दिया है। हम इनको हाईकोर्ट तक घसीटेंगे। हमारी जितनी गायें गौधाम में थी उनका आज कुछ अता-पता नहीं है। कई टन भूसा, चारा, दवाइयां ओैर टिनशेड को मिट्टी में मिला दिया गया है। इसका जवाब तो सरकार और पशुलोक विभाग को देना ही होगा।
दिनेश शर्मा, संरक्षक श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति

गौधाम पशुलोक की भूमि पर अवेध कब्जा करके बनाया गया था। पशुलोक ने कभी भी गौधाम को भूमि नहीं दी थी। पहले भी गौ सदन अतिक्रमण में चिन्हित था। पहले की रिपोर्ट में भी यही था तभी तो मुकदमा किया गया। हम समिति को क्यों सूचना दें, सूचना देने का काम कोर्ट का होता है। पशुलोक ने कभी यह नहीं कहा है कि गौधाम को समिति और पशुलोक मिलकर चला रहे हैं। सभी गायों की सुरक्षा की जा रही है। रात्रि के लिए शेड बनाए हुए हैं। दिन में चरने के लिए ही गायों को मैदान में छोड़ा जाता है। कोई गाय ठंड में बाहर नहीं है।
डॉ. राजेंद्र कुमार वर्मा, परियोजना निदेशक पशुलोक ऋषिकेश

 

सरकार की गौ भक्ति की खुली पोल

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत अपनी गौ भक्ति के लिए खासे चर्चित रहे हैं। गाय पर दिए गए बयानों को लेकर वह सोशल मीडिया में खूब ट्रोल हो चुके हैं। मुख्यमंत्री ने गाय को संसार का एकमात्र ऐसा प्राणी बताया है जो सांस छोड़ते हुए भी ऑक्सीजन छोड़ता है, जबकि अन्य सभी प्राणी कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। अपने इस बयान को सही साबित करने के लिए मुख्यमंत्री ने दावा किया था कि वैज्ञानिक भी यही मानते हैं। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद सोशल मीडिया में उनकी गौ भक्ति को लेकर खासा मजाक उड़ाया गया।

पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के समय वर्ष 2010 में विख्यात धार्मिक संस्था परमार्थ निकेतन स्वर्गाश्रम की गौ भक्ति और गौ सेवा करने के निर्णय पर तत्कालीन पशुपालन मंत्री त्रिवेंद्र रावत इतने प्रभावित हुए कि पशुलोक की गंगातट से लगी हुई खादर की 117 एकड़ से भी ज्यादा भूमि को चिदानंद मुनि के नाम आवंटित करने में जरा भी देरी नहीं की। तत्कालीन पशुपालन मंत्री त्रिवेंद्र रावत चिदानंद मुनि को गंगा खादर की भूमि देने को इतने लालायित थे कि स्वयं परमार्थ निकेतन में उपस्थित होकर पत्रकारां के समक्ष अपने हाथों से भूमि आवंटन का पत्र चिदानंद मुनि को दिया।

इसका एक ही कारण था कि पशुपालन मंत्री त्रिवेंद्र रावत और चिदानंद मुनि की गौ भक्ति और गौ सेवा के लिए तत्परता। हालांकि भूमि आवंटन के समय कई विवाद भी सामने आए और तत्कालीन सचिव पशुपालन विनोद फोनिया द्वारा शासनादेश में कई कठोर शर्तों को अंकित कर दिया गया जिसके चलते चिदानंद मुनि लंबे समय तक उक्त भूमि में गौधाम का निर्माण नहीं कर पाए। बताया जाता है कि गौधाम के अलावा कई अन्य गतिविधियां उक्त गौधाम में संचालित किए जाने का प्रस्ताव था, लेकिन सचिव द्वारा जारी शासनादेश के चलते बेहद समस्या आ रही थी। आखिरकार गौधाम का निर्माण नहीं हो पाया ओैर मामला एक तरह से खत्म हो गया।

इसके बावजूद तत्कालीन पशुपालन मंत्री त्रिवेंद्र रावत की गौ भक्ति और गौ सेवा जारी रही। वर्ष 2009 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी और पशुपालन मंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा पशुलोक स्थित विस्थापित क्षेत्र में एक भव्य गौ अनुसंधान केंद्र की आधारशिला रखी गई। जिसमें गौ मूत्र से लेकर गाय के गोबर और गायों से होने वाले लाभों के साथ-साथ गौ वंश की नस्ल सुधार के लिए भी अनुसंधान किए जाने का प्रस्ताव रखा गया। लेकिन एक दशक बीत जाने के बावजूद उक्त गौ अनुसंधान केंद्र का निर्माण शिलान्यास से आगे नहीं बढ पाया है। आज उस भव्य गौ अनुसंधान केंद्र का आधारशिला पट झाड़ी और कांटों के बीच अपने आप को किसी तरह से इस उम्मीद पर बचाए हुए है कि शायद कभी भव्य इमारत बनेगी और उसकी ओर लोगों का ध्यान जाएगा। अब दो दशकों से बगैर किसी सरकारी सहायता से संचालित होने वाला गौधाम भी ध्वस्त कर दिया गया है, जबकि इस गौ सदन में दर्जनों गायों की सेवा होती रही है और आज कई गायें लापता बताई जा रही हैं। जो गायें पशुलोक प्रशासन ने अपने कब्जे में ली हैं वे आज इस कड़ाके की सर्दी में खुले बाड़े में ठिठुर रही हैं। यह सरकार की गौ भक्ति की असल हकीकत है।

ऐसा नहीं है कि गौ सेवा पर पहली बार ही सवाल खड़े हुए हैं। देहरादून के केदारपुरम स्थित कांजी हाउस में कई गायों के मरने के समाचार सामने आ चुके हैं, जबकि सरकार का दावा है कि प्रदेश में गाय के लिए हर संभव सहायता दी गईं है। यहां तक कि कई गौशालाओं को सरकार अनुदान भी दे रही है। कुछ वर्ष पूर्व रुड़की क्षेेत्र में एक गौशाला की बदहाली की खबरें खासी चर्चाओं में रही। आरोप लगा कि गौशाला संचालक सरकार से लाखां का अनुदान लेने में कामयायब होते रहे, लेकिन गायों की सेवा करने में नकाम रहे। इस मामले ने खासा तूल भी पकड़ा था, लेकिन फिर मामला पूरी तरह से दबा दिया गया।

वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट के हाइवे से 500 मीटर दूरी पर शराब के ठेकां को लेकर दिए गए आदेश के बाद पूरी प्रदेश सरकार शराब से होने वाले राजस्व को पाने की जुगत में कई सड़कों को डि-नोटिफिकेशन कर रही थी। जिससे सरकार को शराब के करोबार से होने वाला राजस्व कम न हो पाए। इसके लिए तमाम तरह के जतन किए गए। इसी के तहत श्रीनगर में बदरीनाथ हाइवे में वर्षों से संचालित हो रहा शराब का ठेका पांच सौ मीटर दूर ले जाया गया। जिस स्थान पर शराब का ठेका स्थापित किया गया उसके ठीक सामने गौशाला संचालित होती आ रही थी। प्रशासन हर हाल में गौशाला को हटाए जाने के प्रयास में लग गया। हालांकि स्थानीय लोगों के भारी दबाव के चलते ऐसा संभव नहीं हो पाया और आखिरकार शराब के ठेके को ही अन्यत्र ले जाया गया। लेकिन इसकी कीमत गौशाला के संचालकों को चुकानी पड़ी। जिस गौशाला को श्रीनगर नगर पालिका निराश्रित और आवारा गायों की सेवा के लिए चारा आदि देती थी उसे अब बंद कर दिया गया है। उत्तराखण्ड गौ संवर्धन समिति कोटेश्वर द्वारा श्रीगनर में गौशाला का संचालन किया जाता रहा है। संस्था के प्रबंधक पीयूष गर्ग बताते हैं कि शराब का ठेका जन दबाब के चलते हटाया गया। लेकिन आज नगर पालिका प्रशासन हमें कोई सहायता नहीं दे रहा है। हमारी संस्था कभी भी किसी से न तो चंदा लेती है और न ही सरकार से अनुदान लेती है। हम अपना और गायों का खर्च गौ मूत्र से दवाइयां बनाकर उठाते हैं। नगर पालिका ने हमसे कमिटमेंट किया था कि हम नगर में घूमने वाली निराश्रित गायां की सेवा करें और नगर पालिका हमें चारा आदि देगी। लेकिन कई महीने हो गए हमें आज तक चारा आदि नहीं मिल पाया है, जबकि इसके लिए अनुबंध भी किया गया है।

कुछ ऐसा ही मामला ऋषिकेश का भी देखने में आया है। छिद्दरवाला स्थित शकुंतला गौशाला से नगर निगम ऋषिकेश ने अनुबंध किया है कि वह नगर में आवारा घूमने वाली गायों और गौवंश की सेवा के लिए शकुंतला गौशाला को नियमित अनुदान देगी, जबकि श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति द्वारा बीस वर्षों तक बगैर सरकारी सहायता के ही गौसेवा की जाती रही है। नगर निगम द्वारा शकुंतला गौशाला को अनुदान देने का अनुबंध किया गया। अब शकुंतला गौशाला द्वारा नगर निगम को चार महीने का दस लाख के खर्च का बिल भेजा गया है और नगर निगम ने अभी तक इसके लिए एक भी रुपया जारी नहीं किया है। बताया जा रहा है कि शकुंतला गौशाला के संचालक भी सत्ताधारी पार्टी से जुड़े हैं। जिसके चलते नगर निगम ने उनके साथ अनुबंध किया है, लेकिन उसका पालन नहीं किया जा रहा है। अब शकुंतला गौशाला ने साफ कर दिया है कि अगर उनका खर्च नहीं दिया गया तो वे सभी उन गायों को गौशाला से बाहर कर देंगे जिनको नगर निगम ने उनको सौंपा है। इन मामलां से यह साफ हो जाता है कि प्रदेश सरकार और भाजपा की गौ भक्ति केवल दिखावे और चर्चाओं के अलावा कुछ नहीं है। न तो आज तक प्रदेश को गौ अनुसंधान केंद्र मिल पाया है और न ही खादर में सैकड़ों बीघा में बनने वाला गौधाम ही नसीब हो पाया है। यहां तक कि वर्षों से संचालित होने वाला गौधाम भी सरकार के द्वारा ध्वस्त कर दिया गया है।

 

संघ पर भी उठ रहे सवाल

कुछ दिन पहले ऐसी थी गौशाला

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस पूरे देश में गाय को लेकर तमाम तरह के बयान जारी करता रहा है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत गाय को देश की धरोहर बताते हैं और देशवासियों को गौ पालन करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। लेकिन हैरत की बात है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के बावजूद ऋषिकेश के जिस गौधाम को ध्वस्त किया गया है उसकी संचालन समिति में संघ के उत्तराखण्ड प्रांत कार्यवाह दिनेश सेमवाल महासचिव के पद पर हैं। यही नहीं समिति के संरक्षक और गौ सेवा को आरंभ करने वाले डॉक्टर दिनेश शर्मा भी आरएसएस से जुड़े रहे हैं। साथ ही शर्मा विद्या मंदिर और सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालयों की कार्यकारिणी से भी जुड़े हुए हैं। स्वयं प्रदेश में मौजूदा मुख्यमंत्री भी आरएसएस पृष्ठभूमि के माने जाते हैं और वे प्रचारक के पद पर कार्य कर चुके हैं। इन सबके बावजूद गौ सेवा के नाम पर गौ सदन को ध्वस्त करना और गौ सेवा करने वालां पर सरकार का कहर टूट पड़ना कई गंभीर सवाल खड़े करता है।

श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति के सरंक्षक डॉ दिनेश शर्मा बेहद दुखी मन से बताते हैं कि हमें ज्यादा दुख इस बात का है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार है। संघ के प्रांत कार्यवाह दिनेश सेमवाल समिति में महासचिव पद पर हैं। मैं स्वयं संघ के कई पदों पर काम कर चुका हूं। समिति के अध्यक्ष संजय शास्त्री भाजपा के नेता हैं, लेकिन फिर भी हमारी न तो सरकार ने सुनी और न ही प्रशासन ने। यहां तक कि पशुपालन मंत्री हमसे बात करने के बजाए हमें अपने पति गिरधारी लाल साहू बात करने को कहती हैं। यह एक मजाक नहीं तो क्या है? संवैधानिक पद पर बैठी मंत्री अपने पति जो न तो सरकारी पद पर हैं और न ही किसी संवैधानिक पद पर हैं, से बात करने को कहती है तो हालात कैसे चल रहे हैं इससे आप बेहतर समझ सकते हैं। मुख्यमंत्री जी गौ भक्ति के नाम पर बयान देते रहते हैं, लेकिन हमारी बात सुनने के बावजूद हमारा गौधाम ध्वस्त कर दिया जाता है। आज उन गायों का क्या होगा यह कोई जानने का प्रयास नहीं कर रहा है। इस कड़ाके की ठंड में वे गायें खुले में हैं। मेरा मानना है कि सरकार और संघ सब गौ सेवा ंके नाम पर राजनीति करते हैं ओैर कुछ नहीं।

 

बात अपनी-अपनी

मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है, तो मैं इस पर क्या बात कर सकता हूं। आप दिनेश सेमवाल जी से बात करें वे ही आपको बता पाएंगे।
युद्धवीर सिंह, प्रांतीय प्रचारक संघ

मैं अभी किसी कार्यक्रम के तहत कुमाऊं में हूं। मैं ज्यादा बात नहीं कर सकता।। गौधाम तोड़ा गया। हो सकता है
कि वह इल्लीगल रहा होगा।
दिनेश सेमवाल, महासचिव श्री गौमाता एवं सर्वजीव सेवा समिति और प्रांतीय कार्यवाह संघ

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