हल्द्वानी विधानसभा सीट हमेशा से ही राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा से जुड़ी रही है और प्रदेश की महत्वपूर्ण सीटों में शुमार है। देखना दिलचस्प होगा कि टिकट पाने की लड़ाई में अपनी पार्टी का विश्वास कौन दावेदार जीत पाता हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव में सात माह का समय बाकी है, लेकिन राजनीतिक दल और दावेदार अपने-अपने पक्ष में गोलबंदी में जुट गए हैं
उत्तराखण्ड विधानसभा चुनावों में लगभग छह माह का समय बचा है। राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस उत्तराखण्ड क्रांति दल एवं ‘आम आदमी पार्टी’ सहित सभी राजनीतिक दल आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए गोलबंदी में जुट गए हैं। इसके साथ ही चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदार भी अपनी दावेदारी पुरख्ता करने के लिए सक्रिय हो गए हैं। कमोवेश प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों पर सभी राजनीतिक दलों और इच्छुक दावेदारों की सक्रियता बढ़ने लगी है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के राजनीतिक संकटों का ऊपरी तौर पर पटाक्षेप हो चुका है और अब राजनीतिक लड़ाई का फोकस उत्तराखण्ड में शिफ्ट हो चुका है जो अभी तक दिल्ली में था। ‘दि संडे पोस्ट’ अपने इस अंक से राज्य की सभी सत्तर विधानसभा सीटों का राजनीतिक विश्लेषण शुरू कर रहा है। इसकी शुरुआत कुमाऊं का हाट कहलाए जाने वाली हल्द्वानी विधानसभा सीट से की जा रही है।
हल्द्वानी कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है फिर वो उत्तराखण्ड राज्य निर्माण से पूर्व हो या फिर राज्य बनने के बाद। राज्य निर्माण के बाद हुए चार चुनावों में इस सीट पर तीन बार कांग्रेस और एक बार भाजपा का कब्जा रहा। 2002, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में डॉ ़ इंदिरा हृदयेश जीतीं थीं। 2007 में भाजपा के बंशीधर भगत ने इस विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया था। आकास्मिक देहावसान से पूर्व डॉ ़ इंदिरा हृदयेश इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रही थीं और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं। इंदिरा हृदयेश का उत्तराखण्ड की राजनीति में बड़ा कद तो था ही, हल्द्वानी की राजनीति की कल्पना उनके बिना नहीं की जा सकती थी। एक लंबे समय तक हल्द्वानी की राजनीति उनके इर्द-गिर्द ही घूमती थी। उत्तर प्रदेश में विधान परिषद सदस्य के रूप में लंबा राजनीतिक करियर रहा हो या फिर उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद उनकी मृत्यु तक उनकी प्रासंगिकता उत्तराखण्ड की राजनीति में बनी रही फिर चाहे सरकार कांग्रेस की रही हो या फिर भाजपा की। उनकी आकास्मिक मृत्यु ने कांग्रेस के अंदर एक बड़ा शून्य तो पैदा किया ही। हल्द्वानी की राजनीति में भी एक बड़ा शून्य पैदा कर डाला है जिसने हल्द्वानी और उसके आस-पास के क्षेत्रों में राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया है। कांग्रेस के अंदर भी और बाहर भी। सिर्फ हल्द्वानी विधानसभा सीट की बात करें तो यहां की राजनीति पर उनका पूरा नियंत्रण था। खासकर कांग्रेस की राजनीति में हर पत्ता उनके इशारे पर ही हिलता था। 2007 में भले ही चुनाव हार गई हों, लेकिन हल्द्वानी में उन्होंने अपनी पकड़ ढ़ीली नहीं होने दीं। 2002 से 2007 और 2012 से 2017 में हल्द्वानी ने विकास के नए आयामों को छुआ था। हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस का प्रत्याशी कौन होगा का सवाल अब पार्टी के भीतर सिर उठाने लगा है।
हल्द्वानी के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें तो इंदिरा हृदयेश को खासकर कांग्रेस की राजनीति में विशेष चुनौती नहीं मिली। लेकिन इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद सुमित हृदयेश को थोड़ी चुनौती जरूर है। शायद यही उनके राजनीतिक कौशल की परीक्षा भी होगी। इंदिरा हृदयेश ने शनैः शनैः सुमित को हल्द्वानी खासकर कांग्रेस की राजनीति में स्थापित करना शुरू कर दिया था। अपनी राजनीतिक विरासत सौंपकर सुमित हृदयेश को विधायक के रूप में देखना चाहती थीं। उनके विश्वास को सुमित ने तोड़ा भी नहीं। 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों को उन्होंने कुशलता के साथ संचालित किया। 2013 में नगर निगम के मेयर चुनाव में सुमित हृदयेश कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी थे। मेयर के चुनाव में वो भले ही हार गए हों, लेकिन नगर निगम के हल्द्वानी विधानसभा में आने वाले क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी डॉ जोगेंद्र रौतेला से दस हजार मतों की बढ़त बनाई। वो अलग बात है कि नगर निगम में नये जुड़े क्षेत्रों से वो इतनी बढ़त नहीं बना पाए कि वो मेयर पद पर जीत हासिल कर सकें। मेयर चुनाव में असफल रहने के बाद भी वो निरंतर सक्रिय रहे खासकर कोरोना काल में उनकी सक्रियता खासी उल्लेखनीय और सराहनीय रही। लेकिन डॉ हृदयेश के न रहने बाद अब उनकी राह कुछ कठिन होती नजर आने लगी है।
इंदिरा हृदयेश के जीवित रहते अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को दबाए पार्टी में दावेदारों की महत्वाकांक्षाएं बाहर आने लगी हैं। सुमित हृदयेश को इंदिरा हृदयेश का राजनीतिक वारिस कांग्रेस के बड़े नेताओं ने भले ही मान लिया हों, लेकिन इस विरासत की स्वीकृति पर सवाल उठाने वाले कम नहीं हैं। चर्चा है कि पूर्व प्रदेश सचिव ललित जोशी और प्रदेश प्रवक्ता दीपक बल्यूटिया दावेदारों की कतार में शामिल हो सकते हैं। दीपक बल्यूटिया और ललित जोशी की सक्रियता काफी कुछ कह जाती है। सामाजिक व जनहित के कामों में हमेशा सक्रिय रहने वाले मृदुभाषी दीपक बल्यूटिया ने चौंतीस साल का वक्त कांग्रेस की राजनीति में दिया है। कोरोना काल में आजीविका गंवा बैठे लोगों के लिए राशन, दवाइयों की व्यवस्था हो, वनभूलनपुरा के वाशिंदों के लिए रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने के नोटिस पर न्यायालय से स्थगन आदेश लाना हो या फिर उत्तराखण्ड क्षेत्र दमुवाढूंगा के निवासियों को जमीन पर मालिकाना हक दिलाने हो सभी जगह वो सक्रिय रहे हैं। दमुवाढूंगा क्षेत्र में उन्होंने पदयात्रा के माध्यम से क्षेत्र की समस्याओं को उठाया था। बलूटिया कहते हैं कि चौंतीस वर्ष की सेवा के बाद हर कार्यकर्ता की अपेक्षा रहती है कि वो संवैधानिक पद पर बैठे लेकिन हमारी निजी महत्वाकांक्षाएं पार्टी से ऊपर नहीं हैं, न ही हम पार्टी लाइन से अलग जाने की कल्पना कर सकते हैं। जहां तक ललित जोशी का प्रश्न है कभी उनकी गिनती इंदिरा हृदयेश के निकटतम लोगों में होती थी, लेकिन समय के साथ वो कांग्रेस के अंदर ही इंदिरा जी से दूर होते चले गये। एमबीपीजी कॉलेज हल्द्वानी में छात्र संघ सचिव और अध्यक्ष ललित जोशी नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में वाणिज्य कर सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष के रूप में दर्जाधारी राज्यमंत्री थे। प्रदेश कांग्रेस की प्रांतीय कार्यकारिणी के सचिव एवं सदस्य रहे ललित जोशी 2012 के चुनाव में मेयर पद के दावेदार थे, लेकिन इंदिरा जी के मनाने परउन्होंने सुमित हृदयेश के पक्ष में अपनी दावेदारी वापस ले ली थी।
हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याक्षी के विषय में काफी कुछ स्पष्टता बड़े नेताओं के बयानों से दिख जाती है। कांग्रेस की राजनीति में हमेशा विपरीत ध्रुवों में दिखने वाले हरीश रावत और इंदिरा हृदयेश शायद बच्चों के बारे में स्पष्ट थे। नारायण दत्त तिवारी के निधन के बाद उनकी अत्येष्टि में शामिल होने आए हरीश रावत ने इंदिरा हृदयेश से कहा था। ‘‘इंदिरा जी हमारे राजनीतिक मतभेद हमारे बच्चों के राजनीतिक भविष्य में आड़े नहीं आने चाहिए ऐसा मेरा मानना है।’’ इस समय सुमित हृदयेश कांग्रेस से हल्द्वानी नगर निगम से मेयर प्रत्याशी थे। हालांकि इंदिरा जी को अन्त तक शिकायत रही कि हरीश रावत और उनके समर्थकों ने सुमित हृदयेश का आंतरिक रूप से विरोध किया था। कभी कुछ घटनाएं परिस्थितियों को एक सा नहीं रहने देती। इंदिरा हृदयेश के आकास्मिक निधन उनकी अंत्येष्टि में शामिल होने आए हरीश रावत ने खुला समर्थन देते हुए कहा कि ‘‘मेरा आशीर्वाद हमेशा सुमित के साथ है और सुमित ही इंदिरा जी की राजनीतिक विरासत के हकदार हैं।’’ हरीश रावत के इस वक्तव्य को क्षणिक भावनाओं में कहा हुआ मान लिया गया होता, लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व विधानसभाध्यक्ष और जागेश्वर से विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल का बयान कि ‘सुमित ही इंदिरा जी के राजनीतिक वारिस हैं। इस बात में कोई शंका नहीं है कि भविष्य में हल्द्वानी से कौन चुनाव लड़ेगा। सुमित ही हल्द्वानी से चुनाव लड़ेंगे और इंदिरा जी के अधूरे सपनों को पूरा करेंगे’ ने इस बात को पुख्ता किया कि हरीश रावत का सुमित हृदयेश को आशीर्वाद महज रस्म अदायगी नहीं था। हालांकि चुनाव में सात माह का समय बाकी है लेकिन इस अंतराल में हल्द्वानी कांग्रेस के अंदर राजनीतिक समीकरण बहुत बदलेंगे ऐसा लगता नहीं है। प्रदेश प्रभारी इस बात की फिलहाल तस्दीक करते हैं कि हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सुमित के नाम पर कांग्रेस में कोई संशय नहीं है।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी का प्रश्न है तो उसके लिए ये सीट शुरुआत से ही परेशानी का सबब रही है। 2007 को छोड़ कर उसे यहां सफलता नहीं मिली है। 2007 में यहां से उसके वरिष्ठ नेता बंशीधर भगत जीते थे। भारतीय जनता पार्टी के अदंर हल्द्वानी विधानसभा सीट में दावेदारी की लिस्ट बहुत खास लंबी तो नहीं है। हल्द्वानी के मेयर डॉ जोगेंद्र रौतेला, पूर्व प्रदेश प्रवक्ता अनिल डब्बू, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष रेनू अधिकारी, पूर्व राज्यमंत्री तरुण बंसल के नाम चर्चा में हैं। कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत का निकटस्थ होना डॉ ़ जोगेंद्र रौतेला का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है। मेयर के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में चल रहे जोगेंद्र रौतेला 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ ़ इंदिरा हृदयेश से बहुत नजदीकी मुकाबले में चुनाव हार गये थे। दूसरी बार के मेयर जोगेंद्र रौतेला के लिए इस चुनाव में दावेदारी के लिए चुनौतियां बहुत हैं मेयर चुनाव में वो शहरी क्षेत्र से खास वोट नहीं ले पाए और 10 हजार के करीब मतों से सुमित हृदयेश ने उन पर बढ़त बनाए रखी थी। पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष रेणु अधिकारी भी इस बार भाजपा के टिकट पर दावेदारी कर सकती हैं। 2012 में वे नगर निगम के हल्द्वानी विधानसभा चुनाव में एन वक्त पर कांग्रेस छोड़कर भाजपा प्रत्याशी बनी थी लेकिन वो इंदिरा हृदयेश के चुनावी चक्रव्यूह को भेद नहीं पाई थी। हालांकि चर्चा है कि वो रानीखेत विधानसभा क्षेत्र में अपनी जमीन तलाश रही हैं। अनिल डब्बू भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ प्रदेश प्रवक्ता भी रह चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के करीबी अनिल कपूर ‘डब्बू’ इस बार मजबूती से अपनी दावेदारी रख रहे हैं। पूर्व दर्जा राज्यमंत्री तरूण बंसल भी विधायक के टिकट की दावेदारी में है। भाजपा के अंदर खाने चर्चा है कि पार्टी कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत को हल्द्वानी से चुनाव लड़ने को कह सकती है क्योंकि कयास है कि महामंत्री सुरेश भट्ट जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के विश्वस्तों में शुमार होते हैं, भगत की परंपरागत सीट कालाढूंगी से भाजपा प्रत्याशी हो सकते हैं। आम आदमी की सक्रियता भी हल्द्वानी में पूरे प्रदेश की तरह बढ़ी है। समित रिक्कू को आम आदमी पार्टी हल्द्वानी से अपना प्रत्याशी बना सकती है। समाजवादी पार्टी के शोएब अहमद इस बार भी प्रत्याशी के रूप में भाग्य आजमा सकते हैं।
हल्द्वानी विधानसभा सीट हमेशा से ही राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा से जुड़ी सीट रही है और प्रदेश की महत्वपूर्ण सीटों में शुमार होती है। देखना दिलचस्प होगा की टिकट पाने की लड़ाई में अपनी पार्टी का विश्वास कौन दावेदार जीत पाता है। हालांकि विधानसभा चुनावों में सात माह का समय बाकी है लेकिन राजनीतिक दल और दावेदार अपने-अपने पक्ष में गोलबंदी में जुट गए हैं।
‘‘इंदिरा जी हमारे राजनीतिक मतभेद हमारे बच्चों के राजनीतिक भविष्य में आड़े नहीं आने चाहिए ऐसा मेरा मानना है।’’ ‘‘मेरा आशीर्वाद हमेशा सुमित के साथ है और सुमित ही इंदिरा जी की राजनीतिक विरासत के हकदार हैं।’’
-हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री
‘‘सुमित ही इंदिरा जी के राजनीतिक वारिस हैं। इस बात में कोई शंका नहीं है कि भविष्य में हल्द्वानी से कौन चुनाव लड़ेगा। सुमित ही हल्द्वानी से चुनाव लड़ेंगे और इंदिरा जी के अधूरे सपनों को पूरा करेंगे।’’
-गोविंद सिंह कुंजवाल, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष
बात अपनी-अपनी
अभी विधानसभा चुनावों में काफी वक्त है इसलिए कुछ कहना उचित नहीं होगा। हां चौंतीस वर्ष की सेवा के बाद हर कार्यकर्ता की अपेक्षा रहती है कि वो संवैधानिक पद पर बैठे लेकिन हमारी निजी महत्वाकांक्षाएं पार्टी से ऊपर नहीं है, न ही हम पार्टी लाइन से अलग जाने की कल्पना कर सकते हैं।
-दीपक बलूटिया, प्रदेश प्रवक्ता कांग्रेस
मैंने कोंग्रेस के हर प्रकोष्ठ चाहे वह एनएसयूआई, युवा कांग्रेस या फिर प्रदेश का मुख्य संगठन हो मैंने कार्य किया। पूर्व में दर्जा राज्यमंत्री व प्रदेश संगठन में प्रदेश सचिव की जिम्मेदारी निभाई है। छात्र राजनीति से निकला हुवा हूं। पार्टी को मुझ जैसे सक्रिय कार्यकर्ताओं को भी अवसर देना चाहिए। मेरी हल्द्वानी से निश्चित ही दावेदारी है।
ललित जोशी, पूर्व प्रदेश सचिव कांग्रेस
महेंद्र अधिकारी और रेनू अधिकारी दोनों ही हल्द्वानी और रानीखेत विधानसभा क्षेत्रों से दावेदार हैं।
महेंद्र अधिकारी, पूर्व उपाध्यक्ष हल्द्वानी नगर पालिका